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Showing posts from 2024

सच्चा श्राद्ध - जीवित माता पिता की सेवा

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा,  एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। अभी श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं और इसी कालावधि में अभी कुछ दिनों पूर्व समाचार पत्र में कुछ खबरें पढ़ी, जिससे दुःख भी हुआ साथ ही मन भी काफी विचलित हुआ इसलिए पितृपक्ष में पितरों को समर्पित इस  146 वॉँ लेख  की प्रस्तुति का कारण बना। एक खबर कुछ इस प्रकार की थी जिसमें अपने मृत परिजन के अंतिम संस्कार में आने के लिए उनके पुत्र को समय नहीं मिला और उसने अपने पड़ोसियों को ही अंत्येष्टि करने को कह दिया, तब उन पड़ोसियों ने उनका अंतिम संस्कार संपन्न किया, वही दूसरी खबर के अनुसार अपने माता पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ने के बाद पुत्र ने उनकी कोई खैर खबर लेना उचित नहीं समझा, बाद में माता पिता की मृत्यु भी हो गई, वह तब भी नहीं आया।  कालांतर में कुछ परेशानी आने पर ज्योतिष के समक्ष अपनी परेशानी के कारण और समाधान हेतु गया तो ज्ञात हुआ कि पितृदोष के कारण परेशानियाँ आ रही है, तब वह उस वृद्धाश्रम पहुंचा जहाँ मता पिता को छोड़ा था और वहाँ उसने अपने मृत माता पिता की अस्थियाँ अथवा कोई अन्य निशानी की मांग...

भगवान श्री वामन का प्राकट्य

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी, जिसे कि भगवान श्री विष्णु जी के वामन अवतार लिए जाने के कारण वामन द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। त्रेता युग के प्रारम्भिक कालावधि में भगवान श्री हरि विष्णु जी प्रजापति कश्यप एवं माता अदिति के पुत्र के रूप में अवतरित हुवे भगवान श्री वामन भगवान विष्णु जी के पहले ऐसे अवतार रहे जो कि मानव रूप में प्रकट हुवे। दक्षिण भारत में इन्हें उपेन्द्र के नाम से जाना जाता है।  इनके बड़े भाई विवस्वान, इन्द्र, वरुण, पूषा, अर्यमा, भग, धाता, पर्जन्य, अंशुमान, त्वष्टा  और मित्र थे। इस 145 वें पुष्प को उन्हीं भगवान श्री वामन को समर्पित।  ब्रह्मचारी बालक का वेष धारण किये हुवे मेखला, मृगचर्म, दण्ड, कमंडल एवं छत्र इत्यादि से सुशोभित हो रहे भगवान श्री वामन की इन्द्रादि समस्त देवताओं ने दर्शन कर महर्षियों के साथ स्तुति की - पीताम्बरोत्तरीयोऽसौ ,   मौञ्जीकौपीन -  धृग्धरि : ।  कमण्डलुं   च   दध्यन्नं ,   दण्डं   छत्रं   कर...

महावीर पराक्रमी सेनापति लाचित बरफुकन

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारा  इतिहास साक्षी है कि विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा हमारे देश पर काफी आक्रमण किये गए और समय समय पर हमारे वीर योद्धाओं ने उनसे लोहा  भी लिया किन्तु आज भी कई ऐसे नाम हैं जो आमजन को ज्ञात ही नहीं है, आज इस 144 वें पुष्प में हम एक ऐसे वीर योद्धा की चर्चा कर रहे हैं, जिनकी वीरता के  कारण   मुग़ल  शासक  पूर्वोत्तर   भारत पर कब्ज़ा नहीं कर पाए थे, जिनका नाम लाचित बरफुकन है। असम में आज भी वहाँ के लोग तीन महान लोगों का बहुत ही सम्मान करते हैं, जिनमें प्रथम श्रीमंत शंकर देव जी जोकि पंद्रहवीं शताब्दी में वैष्णव धर्म के महान प्रवर्तक थे, द्वितीय लाचित बरफुकन जिन्हें लाचित बोरफूकन भी कहा जाता है, जोकि असम के सबसे वीर सैनिक माने जाते हैं और तृतीय लोकप्रिय गोपीनाथ जी बारदोलोई, जोकि स्वतंत्रता संघर्ष के समय अग्रणीय रहे थे। सन 1671 की सराईघाट की लड़ाई  लाचित बरफुकन की नेतृत्व क्षमता के कारण ही जानी जाती है, जिसमे मुग़ल सेना बुरी तरह से पराजित हुई थी।   ...

श्री अष्ट विनायक

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। प्रथम पूज्य श्री गणेश जी का पूजन समस्त देवी देवता के पूजन में प्रथम रूप से किया जाता रहा हे, वैसे तो हमारे भारत देश में और भारत देश से बाहर भी श्री गणेश जी के कई मंदिर विद्यमान हैं, हमारे इंदौर शहर में ही श्री गणेश जी की एशिया की सबसे बड़ी प्रतिमा विराजमान है। यह स्थान श्री बड़ा गणपति के नाम से प्रसिद्द है किन्तु महाराष्ट्र के श्री अष्ट विनायक जोकि महाराष्ट्र  पृथक पृथक आठ स्थानों पर विराजमान हैं, उनका एक अलग ही महत्त्व है। कहा जाता है कि यह आठों ही स्थान काफी पौराणिक महत्त्व के हैं, जहाँ विराजमान श्री गणेश जी की प्रतिमाएं मानव निर्मित नहीं होकर स्वयंभू अर्थात स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाएं हैं। महाराष्ट्र के पुणे के आसपास स्थित यह आठों पावन स्थान की महाराष्ट्र में एक अष्ट विनायक तीर्थयात्रा भी होती है। श्री अष्ट विनायक के नाम से पृथक पृथक विराजमान आठ गणपति जी के क्रम में भी मत भिन्नता होने से उनके क्रम को भी पृथक पृथक बताया जाता है। आज इस 143 वें पुष्प को श्री अष्ट विनायक जी के श्री चरणों...

शहीद वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारा भारत देश शौर्य और पराक्रम से ओतप्रोत है, यहाँ की वीरगाथाओं से देश विदेश के समस्त भारतीयों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, और वे अपने आप को गौरान्वित मानते हैं। हमारे देश में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई सहित कई वीरांगनाऐं हुई हैं, जिन्होंने अपने  राज्य और देश की स्वतंत्रता और गौरव के  लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे देश की उन वीरांगनाओं में से कई नाम हमारे इतिहास से विलुप्त कर दिए गए होने से हमें उनकी जानकारी भी नहीं है, आज इस 142 वें पुष्प में एक ऐसी वीरांगना की अमर गाथा आपके समक्ष प्रस्तुत है, जिन्होंने अंग्रेजों को भागने पर विवश कर दिया था। वह गाथा है वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी की, जो  स्वतंत्रता सेनानी और प्रथम शहीद वीरांगना थीं।  मध्य प्रदेश में रामगढ़ राज परिवार की महिला नायिका रानी अवंतीबाई लोधी का जन्म  16 अगस्त 1831 हुआ था।  अवंतीबाई के पिता राव जुझार सिंह जिला सिवनी  के जमींदार थे,   जिन्होंने बचपन से ...

अष्ट सिद्धियां

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन।  हम सभी सनातन धर्म प्रेमी जन के लिए श्री हनुमान चालीसा की जानकारी कोई अनभिज्ञता की बात नहीं है और कई लोग तो नियमित श्री हनुमान चालीसा का पाठ भी करते ही होंगे। श्री हनुमान चालीसा की एक चौपाई है "अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता। अस वर दीन्ह जानकी माता।।" अर्थात माता श्री जानकी जी ने श्री हनुमान जी महाराज को अजर अमर होने का वरदान तो दिया ही था, साथ ही उन्हें अष्ट सिद्धियां और नव निधियाँ प्रदान करने का भी वरदान प्रदान किया था। ईन्हीं शक्तियों से श्री हनुमानजी महाराज ने कई असाधारण और असंभव लगने वाले कार्य भी बड़ी ही आसानी से संपन्न कर दिए।  नव निधियों पर पूर्व में ही एक लेख लिखा जा चुका है, जिसे पृथक से लिंक के माध्यम से पढ़ा जा सकता है तथा आज के इस 141 वें पुष्परूपी लेख में हम श्री हनुमानजी महाराज की उन अष्ट सिद्धियों के बारे में चर्चा कर रहे हैं। 

महिष्मति नगरी - होल्कर राजवंश की राजधानी महेश्वर

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारे भारत देश के मध्य प्रदेश राज्य के खरगोन जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित महिष्मति नगरी (जिसे वर्तमान में महेश्वर के नाम से जाना और पहचाना जाता है) का पौराणिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व तो है ही साथ ही यह एक प्रसिद्द पर्यटन स्थल भी है।  कभी होल्कर राजवंश की राजधानी रही यह नगरी आज पर्यटन के साथ ही महेश्वरी साड़ियों के लिए विशेषतः प्रसिद्द है।  स्कन्द पुराण, रेवाखण्ड, वायु पुराण एवं अन्य कई धर्म ग्रंथों में महिष्मति नगरी के नाम से प्रसिद्द इस नगरी में पिछले दिनों अपने एक बालसखा एवं सहपाठी उमाशंकर के साथ जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, उस समय महेश्वर के किले से लगे अति सुन्दर और मनोरम घाट पर माँ नर्मदा में स्नान करते समय इस मनोरम नगरी के विषय में भी कुछ लिखने की इच्छा हुई, इसलिए यह 140 वां पुष्प माँ नर्मदा और भगवान श्री राजराजेश्वर जी को अर्पित करता हूँ। पुण्यश्लोका देवी अहिल्या बाई होल्कर माँ साहेब द्वारा इन्दौर के बाद महेश्वर में अपनी राजधानी स्थापित की गई थी। 

वायुयान के प्रथम भारतीय अविष्कारक शिवकर बापूजी तलपदे

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति इतनी अधिक विकसित रही है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है किन्तु हमारी संस्कृति का वास्तविक चित्रण हमारे इतिहास से विलुप्त कर हमें गलत इतिहास शिक्षा के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है।  इस 139 वें लेख के माध्यम से हम वायुयान के प्रथम भारतीय अविष्कारक श्री शिवकर बापूजी तलपदे के विषय में चर्चा कर रहे हैं।  वैसे तो प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनियों के समय से ही कई संसाधन विकसित हो गए थे किन्तु वे अप्रचारित ही रहे। हमें यह पढ़ाया जाता है कि सबसे पहले वायुयान का अविष्कार राइट बंधुओं ने सन 1903 में किया किन्तु संभवतः हम भूल गए कि उसके पहले यह कार्य भारत में शिवकर बापूजी तलपदे द्वारा सन 1895 में ही कर दिखाया था और उसके भी काफी पहले हमारे महर्षि भारद्वाज द्वारा विमान शास्त्र की रचना कर सम्पूर्ण सिद्धांत बता दिया था। मुंबई में जन्में शिवकर बापूजी तलपदे मुंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स के अध्यापक और एक वैदिक विद्वान थे, उनकी शिक्षा भी वहीं हुई थी। 

क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। काकोरी कांड के महानायक क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल का आज जन्म दिवस है, उन्हें शत शत नमन करते हुवे इस 138 वें पुष्परूपी लेख को स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों को अर्पित करता हूँ। हमारे देश को आजादी मिले 77 वर्ष हो गये हैं। इस आजादी की प्राप्ति में असंख्य लोगों ने अपने प्राणों की आहुतियाँ दी, किंतु हमारे इतिहासकार ने इस आजादी का श्रेय कुछ चुनिंदा लोगों तक ही रखा है। काफी नाम तो ऐसे भी हैं, जिन्हें आज तक कोई नहीं जानता है। क्रांतिकारियों और आजाद हिंद फौज को भी उतना श्रेय नहीं दिया गया, जितने के वे अधिकारी थे। उन्हीं क्रांतिकारियों में एक पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल का भी नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। पंडित राम प्रसाद जी हिन्दी और उर्दू में कविताएँ बिस्मिल उपनाम से लिखा करते थे और अपनी उन कविताओं के माध्यम से ब्रिटिश शासन के विरूद्ध लोगों में जोश भरने का कार्य करते थे। 

छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक और हिंदवी स्वराज्य की स्थापना

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन।   ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी अर्थात आज ही के दिन विजयी हिन्दू सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा हिन्दू पद पादशाही की स्थापना करके यह सन्देश दिया था कि भारत का राष्ट्र जीवन विजय का उपासक है, पराजय का नहीं और भारत हिन्दू राष्ट्र था, है और रहेगा।  चाहे कितनी भी भीषण और विपरीत परिस्थिति हो, हिन्दू समाज का अस्तित्व सदैव रहेगा। छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वर्णिम कार्यकाल में उन्होंने  गुरिल्ला युद्ध तकनीक का अविष्कार  तो किया ही साथ ही  समुद्री बेड़ा (नौसेना) का निर्माण भी किया और  वे  प्रत्येक युद्ध में विजयी भी रहे तथा  उन्होंने  हिन्दूपद पादशाही की स्थापना करते हुवे   भगवा ध्वज एवं संस्कृत भाषा को मान्यता प्रदान करते हुवे पूर्व में  धर्मान्तरित हिन्दुओं की घर वापसी भी करवाई थी। 

महात्मा विदुर जी एवं उनकी धर्मपत्नी पर प्रभु श्री कृष्ण की कृपा

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर सादर अभिनन्दन। प्रभु श्री कृष्ण जी और महाभारत के विषय में तो सभी को जानकारी होगी ही, आज मेरा महान देश के इस 136 वें पुष्प में हम महाभारत के ही एक महत्वपूर्ण चरित्र महात्मा विदुर जी एवं उनकी धर्मपत्नी पर प्रभु श्री कृष्ण की कृपा के अत्यंत ही रोचक प्रसंग से अवगत होंगे, जिसमें प्रभु श्री कृष्ण बगैर आमंत्रण के महात्मा विदुर जी के घर जाकर उनके यहाँ भोजन करने की इच्छा व्यक्त करते हैं। इस संबंध में आज भी कहा जाता है कि दुर्योधन के मेवा त्यागे साग विदुर घर खाई। भगवान श्री वेद व्यास जी के पुत्र होने के कारण महात्मा विदुर जी महाराज धृतराष्ट्र एवं महाराज पांडू के सहोदर थे, किंतु उनकी माता के एक दासी होने के कारण धर्मात्मा एवं विद्वान विदुर जी को  परिवार में वह सम्मान प्राप्त नहीं होता था जिसके कि वे अधिकारी थे। आदर्श भगवतभक्त, उच्च कोटि के साधु एवं स्पष्टवादी महात्मा विदुर जी हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री एवं महाराज धृतराष्ट्र के प्रमुख सलाहकार थे।

महर्षि व्यास और राजा जन्मेजय का प्रसंग - सब कुछ निश्चित है

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर का सादर अभिनन्दन। मानव जन्म लेकर इस धरा पर आये हम लोग परमपिता परमेश्वर की इच्छा और कृपा से ही आये हैं और इस धरा पर मानव जीवन में इस मानव शरीर के माध्यम से हमें कब क्या करना है, यह सब भी पूर्वनिर्धारित होता है। हम इस संसार रूपी रंगमंच के केवल एक कलाकार हैं और हमें यहाँ पर केवल हमारा रोल अदा करना है तथा अपना रोल पूर्ण होने पर यहाँ से चले जाना है। हमारे जीवन में नित्य प्रतिदिन कोई न कोई घटना आदि घटित होती ही रहती है, जिन्हें होनी अनहोनी भी कहा जाता है। यह सभी घटनाऐं हमारे भाग्य और प्रारब्ध पर आधारित होती है। कई बार ऐसी होनी अनहोनी के सम्बन्ध में हमें स्वयं भी आभास हो जाता है अथवा किसी माध्यम से हमें अलर्ट भी किया जाता है ताकि हम संभल सकें, किन्तु कई बार हमारा अभिमान, हठधर्मिता के कारण भी हम उन घटनाओं का प्रभाव कम कर पाने या उनका उपचार करने में असमर्थ हो जाते हैं। घटनाऐं तो होना निश्चित है किन्तु प्रभाव को कम किये जाने का प्रयास तो किया ही जा सकता है जैसे कहा जाता है कि तलवार की चोट सुई सी चोट पर निकल गई। इ...

सर्वेक्षक और मानचित्रकार पंडित नैन जी रावत

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर का सादर अभिनन्दन। हमें अपने ही देश में अपने ही देश के वास्तविक इतिहास से दूर रखने वाली हमारी शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन जब तक नहीं होता तब तक हम अपने देश के इतिहास का ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ ही रहेंगे और यदि यही स्थिति रही तो हमारी आने वाली पीढ़ी तो उस तक पहुँचने की कल्पना भी नहीं कर सकती है। इसलिए यह अति आवश्यक है कि हम अपने प्राचीन इतिहास के विषय में जानकारी स्वयं भी रखें और अपने से जुड़े लोगों को भी उन जानकारियों से अवगत करावें। आज इस बेबसाईट के 134 वें लेख के माध्यम से हम उन महान व्यक्ति के कार्यो के बारे में जानने का प्रयास कर रहे है, जिन्होंने  बिना किसी संसाधन के स्वयं की मेहनत से हिमालयीन इलाकों की खोज करते हुवे पैदल चल कर तिब्बत, मानसरोवर और ल्हासा का नक्शा भी तैयार किया था। कुमाऊँ क्षेत्र के पिथौरागढ़ जिले के मिलम नाम के एक गाँव में जन्में पंडित नैन जी रावत जिन्हें हिमालयी इलाकों की खोज करने वाले प्रथम भारतीय होने का श्रेय प्राप्त है, इस लेख के द्वारा हम उन्हीं के कुछ कार्यो की जानकारी...

देवाधिदेव श्री महादेव जी

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा,  एडवोकेट, इन्दौर का सादर अभिनन्दन। आज महाशिवरात्रि का पावन पर्व है, और सकल जगत भगवान भोलेनाथ की सेवा पूजा और आराधना में लीन है। ऐसा कौन होगा जो शिव जी के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं रखता होगा, प्रत्येक व्यक्ति को देवाधिदेव श्री महादेव जी और उनके परिवार की जानकारी होगी ही। आइये आज महा शिव रात्रि के पावन अवसर पर हम भी शिव जी के बारे में कुछ जानकारी साझा करने का प्रयास करते हैं। मैं यह नहीं कहता कि मुझे बहुत अधिक जानकारी है किन्तु थोड़ा बहुत पढ़ने सुनने से जो कुछ मुझे जानकारी हुई है, वह जानकारी और कुछ आपकी जानकारी मिलकर एक और एक ग्यारह हो जाये तो इसमें कोई बुराई नहीं है। शिव महापुराण में बताया गया है कि सृष्टि का आरम्भ ही शिवजी के अग्निलिंग के प्राकट्य द्वारा हुआ है, इसीलिए शिवजी को आदिदेव भी कहा जाता है, आदि अर्थात प्रारम्भ इस कारण इन्हे आदिनाथ और आदिश भी कहा जाता है। भगवान शिवजी देवताओं के साथ साथ असुर, दानव, राक्षस, भूत, पिशाच, गन्धर्व, यक्ष आदि सभी के  द्वारा पूजित हैं, तो आदिवासी, वनवासी सहित सभी जातियों, वर्...

महा शिव रात्रि

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर का सादर अभिनन्दन।   हमारे देश में महा शिव रात्रि का पर्व बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वैसे तो प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि को शिवरात्रि होती है किन्तु फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि को विशेष रूप से महाशिवरात्रि के रूप में मनाये जाने की परम्परा है। शिवस्य प्रिय रात्रियस्मिन व्रते अंगत्वेन विहिता तदव्रतम शिवरात्र्याख्याम अर्थात महाशिवरात्रि वह रात्रि है जो आनंद प्रदायिनी है और जिसका शिव के साथ विशेष संबंध है। इस पर्व के धार्मिक महत्त्व की बात की जाये तो इस रात्रि को भगवान शिवजी और माता पार्वती के विवाह की रात्रि माना जाता है, और यह मान्यता है कि माता सती के देह त्याग के बाद इस दिन भगवान शिव ने सन्यासी जीवन से गृहस्थ जीवन में पुनः प्रवेश किया था। महा शिव रात्रि के नौ दिनों पहले से भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के विवाह की सभी रस्मोरिवाज पूर्ण कर भोलेनाथ एवं माता पार्वती को वर वधु के रूप में श्रृंगारित किया जाता है, जिसमें  हल्दी मेहँदी एवं अन्य सभ...

श्री ओखलेश्वर धाम

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारे भारत देश में कई प्राचीन धरोहर आज भी विध्यमान हैं, जो युगों पूर्व के अति महत्वपूर्ण पौराणिक प्रसंगों से सम्बद्ध होकर कई आश्चर्यों एवं रहस्यों को भी अपने आप में समाहित किये हुवे हैं। इसी प्रकार का एक स्थान है, श्री ओखलेश्वर धाम। मध्यप्रदेश राज्य के इंदौर जिले से लगभग 45-50 किलोमीटर की दूरी पर सिमरोल घाट के बाद बाई गाँव के शनि मंदिर के पहले बांयी ओर घने जंगल के मध्य स्थित यह श्री ओखलेश्वर धाम नामक स्थान इंदौर, देवास और खरगोन जिलों की सीमा पर कई सनातन धर्म प्रेमी जन की श्रद्धा एवं आस्था का महत्वपूर्ण केँद्र है। यहाँ पर स्थित श्री शिव मंदिर को भिन्न भिन्न मान्यताओं के अनुसार सतयुग अथवा त्रेतायुग का बताया जाता है तो कुछ मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा स्थापित बताया जाता है।

वीरांगना राजकुमारी कार्विका

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन।   इस बेबसाइट पर यह 130 वाँ लेख आपके समक्ष प्रस्तुत है।   हमारे देश में कई वीरांगनाएं हुई हैं, जिन्होंने कई अविस्मरणीय साहसिक और देश भक्ति से परिपूर्ण कार्य किये और वे उन कार्यों के कारण आज भी स्मरण किये जाने योग्य हैं। वह बात अलग है कि हमारे इतिहास में काफी कुछ खास बताया ही नहीं गया है किंतु आज भी कहीं न कहीं से वे लुप्तप्राय बातें प्रत्यक्ष आ ही जाती है। आज हम छोटे से कठ गणराज्य की उन प्रथम योद्धा वीरांगना राजकुमारी कार्विका की चर्चा कर रहे हैं, जिन्होंने महान कहलाये जाने वाले सिकंदर को परास्त किया था। सिंधु नदी के उत्तर में कठ नाम का छोटा सा राज्य था, जिस राज्य की राजकुमारी थी वीरांगना कार्विका। 

भगवान श्री विष्णु जी के पार्षद जय और विजय का श्रापोद्धार

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमने अपने धर्मग्रंथों में, धार्मिक कथानकों में देव, दानव, सुर, असुर, मनुष्य, जीव जंतु सहित कई प्राकृतिक वनस्पति, पेड़, पौधे, पर्वत, नदी, सागर इत्यादि को श्रापित होने और उनके श्रापोद्धार  के बारे में पढ़ा और सुना है। आज हम इस लेख में ऐसे ही एक श्राप और उसके श्रापोद्धार के विषय में चर्चा कर रहे हैं और जिस श्राप के विषय में चर्चा कर रहे हैं वह और किसी को नहीं स्वयं भगवान श्री हरि विष्णु जी के प्रमुख पार्षद जय और विजय को सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार द्वारा उन्हें भगवान के दर्शन लिए जाने से रोकने के कारण दिया गया था। ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्माजी द्वारा सप्तऋषियों की उत्पत्ति की, जिनमें से एक महर्षि मरीचि हैं।  महर्षि मरीचि को देवी कला से एक पुत्र उत्पन्न हुवे महर्षि कश्चप और इन्हीं महर्षि कश्चप की 17 पत्नियों से समस्त मानव जातियों की उत्पत्ति हुई है, ऐसी मान्यता है। महर्षि कश्चप की पत्नी अदिति से वरुण का जन्म हुआ तथा वरुण और उनकी पत्नी स्तुत के पुत्र हुवे कलि और वैद्य। जय ...