क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल

मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। काकोरी कांड के महानायक क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल का आज जन्म दिवस है, उन्हें शत शत नमन करते हुवे इस 138 वें पुष्परूपी लेख को स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों को अर्पित करता हूँ। हमारे देश को आजादी मिले 77 वर्ष हो गये हैं। इस आजादी की प्राप्ति में असंख्य लोगों ने अपने प्राणों की आहुतियाँ दी, किंतु हमारे इतिहासकार ने इस आजादी का श्रेय कुछ चुनिंदा लोगों तक ही रखा है। काफी नाम तो ऐसे भी हैं, जिन्हें आज तक कोई नहीं जानता है। क्रांतिकारियों और आजाद हिंद फौज को भी उतना श्रेय नहीं दिया गया, जितने के वे अधिकारी थे। उन्हीं क्रांतिकारियों में एक पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल का भी नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। पंडित राम प्रसाद जी हिन्दी और उर्दू में कविताएँ बिस्मिल उपनाम से लिखा करते थे और अपनी उन कविताओं के माध्यम से ब्रिटिश शासन के विरूद्ध लोगों में जोश भरने का कार्य करते थे। 

पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल का जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले के खिरनी बाग में हुआ था। रामप्रसाद जी श्री मुरलीधर जी और श्रीमती मूलमती की दूसरी संतान थे। इनके पिताजी श्री मुरलीधर जी पहले शाहजहाँपुर नगर पालिका में कर्मचारी रहे होकर बाद में उन्होंने नौकरी छोड़कर निजी व्यापार प्रारम्भ  कर दिया था। पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल बचपन से ही आर्य समाज और स्वामी दयानंद जी से काफी प्रभावित रहे थे। स्वामी दयानंद जी द्वारा विरचित ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ कर उनके मन में देश और धर्म के लिए कुछ करने की प्रेरणा जाग्रत हुई। नित्य व्यायाम, पूजा पाठ, संध्या वंदन, प्रार्थना, यज्ञादि धार्मिक विचारधारा से ओतप्रोत पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल की दिनचर्या में सम्मिलित था। एक बार शाहजहाँपुर आर्य समाज में स्वास्थ्य लाभ हेतु स्वामी सोमदेव जी नामक एक सन्यासी पधारे थे, युवा रामप्रसाद ने बड़ी लगन से उनकी सेवा की। उस समय  स्वामी सोमदेव जी से वार्तालाप करने पर युवा रामप्रसाद को अनेक विषयों में वैचारिक स्पष्टता की प्राप्ति हुई। सम्पूर्ण देश में उस समय ब्रिटिश शासन के विरूद्ध भारी विरोध चल रहा था, जिसे रोकना किसी के भी वश में नहीं था।  

भाई परमानन्द को लाहौर षड्यंत्र वाले मामले में फाँसी की सजा सुनाई गई, जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदलकर उन्हें कालेपानी भेज दिया होने की घटना के बाद क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल ने प्रतिज्ञा कर ली थी कि वे ब्रिटिश शासन के द्वारा किये जा रहे अन्याय का बदला अवश्य लेंगे। इसके बाद  उन्होंने अपने जैसी  विचारधारा वाले लोगों की खोज प्रारम्भ कर दी, तब लखनऊ में उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ। उस समय मैनपुरी को केंद्र बनाकर उन्होंने क्रांतिकारी श्री गेंदालाल दीक्षित के साथ गतिविधियाँ प्रारम्भ की। गतिविधियाँ बढ़ने लगी और पुलिस को जब शंका हुई और अन्य क्रांतिकारियों के साथ ही पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल की  भी गिरफ्तारी का वारण्ट जारी हुआ तो पंडित जी फरार हो गए। शासन द्वारा गिरफ्तारी का वारण्ट बाद में वापस ले लिया होने पर वे घर आकर अपना रेशम का व्यापार करने लगे, किन्तु उनका मन तो कहीं और लगा हुआ था। 

क्रांतिकारी दल ने पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल को कार्यदल का प्रमुख बना दिया। क्रांतिकारी दल को शस्त्र खरीदने  और अपनी गतिविधियों के संचालन हेतु धन की अत्यंत ही आवश्यकता पड़ती थी, तब पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल ने ब्रिटिश खजाना लूटने का सुझाव रखा। ब्रिटिश खजाने को लूटने का अत्यंत  दुष्कर कार्य संपन्न करने की योजना बना ली गई और इस कार्य को संपन्न करने की तिथि भी निश्चित कर दी गई। निश्चित दिन अपने दस विश्वस्त साथियों के साथ पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल ने लखनऊ से खजाना लेकर जाने वाली रेल को काकोरी रेल्वे स्टेशन के पहले दशहरी गांव के पास चेन खींचकर रोक लिया। रेलगाड़ी के रुकते ही सभी साथी अपने अपने काम से लग गए। रेल के चालक और गार्ड को पिस्तौल दिखाकर चुप कर दिया गया और हवाई फायर करके  यात्रियों को अन्दर ही रहने के लिए बाध्य कर दिया गया। कुछ साथियों ने खजाने के बक्सों को घन हथौड़े से तोड़ दिया और उसमें रखा सरकारी खजाना लेकर सभी फरार हो गए।    

आज भी क्रांतिकारियों के दुस्साहस से परिपूर्ण इस कार्य की घटना को याद करने मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि ब्रिटिश शासन काल में सरकारी खजाने को लूट लेना, वह भी भारी भरकम सुरक्षा व्यवस्था से युक्त चलती रेलगाड़ी से कितने साहस, शौर्य, संकल्प और सुनियोजित रणनीति से यह कार्य संपन्न हुआ होगा। सरकारी खजाने को लूटने में उन क्रांतिकारियों का कोई निजी स्वार्थ भी नहीं था। भारत माता की आजादी के मतवाले इन क्रांतिकारियों को अपने प्राणों की भी कोई चिंता नहीं थी।  ब्रिटिश शासन के सरकारी खजाने की लूट की इस घटना को काकोरी कांड के नाम से याद किया जाता है।        

इस घटना ने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। क्रांतिकारियों की धर पकड़ प्रारम्भ हो गई, बाद में चंद्रशेखर आजाद को छोड़कर इस कांड के सभी क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इनमें 28 क्रांतिकारियों को आरोपी बता कर उन पर मुकदमा  चलाया गया। इनमें से पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल, रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खां तथा राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी की सजा सुनाई गई,  कई लोगों को कालेपानी की सजा सुनाई गई तथा कुछ को अलग अलग अवधि की सजा सुनाई गई। पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल को गोरखपुर जेल भेज दिया गया, जहाँ वे फांसी वाले दिन तक रहे। अपने अंतिम समय तक उन्होंने अपनी व्यायाम, पूजा, संध्या वंदन वाली दिनचर्या नहीं छोड़ी। फांसी वाले दिन अपनी दिनचर्या से निवृत्त होकर  क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल ने अपनी माता जी को एक पत्र लिखकर समस्त देशवसियों को यह सन्देश दिया कि "यदि किसी के मन में उमंग और अरमान जागे तो वे गांवों जाकर किसानों की दशा सुधारें, मजदूरों और श्रमिकों की उन्नति के प्रयास करें " इसके अलावा यह भी अपेक्षा की कि किसी के भी द्वारा किसी को भी घृणा तथा उपेक्षा की नजरों से न देखा जाये।  

फांसी के कुछ घंटे पहले जेल के बैरक में पंडितजी को व्यायाम करते देख कर अंग्रेज अफसर सहम गए और उनसे पूछा कि अभी कुछ देर बाद तुम्हें फांसी होना है फिर तुम व्यायाम क्यों कर रहे हो, तो पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल का उत्तर था "यह भारत माता के चरणों में अर्पित होने वाला पुष्प है इसे मुरझाया हुआ नहीं होना चाहिए, यह स्वस्थ और सुन्दर दिखाई देना चाहिए"। इन तीनों क्रांतिकारियों को एक ही जगह फांसी देने पर जनता के आक्रोश से माहौल ख़राब न हो इसलिए भयभीत ब्रिटिश शासन ने 19 दिसंबर 1927 को पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई, वहीं अशफाक उल्ला खां को फ़ैजाबाद जेल में तथा रोशन सिंह को प्रयाग जेल में फांसी दे दी गई। फांसी पर जाते समय पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल यह पंक्तियाँ गा रहे थे "मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे, बाकि ना मैं रहूं ना मेरी आरजू रहे, जब तक भी रहे तन में जान, रगों में लहू रहे तेरा हो जिक्र या तेरी ही जुस्तजू रहे"। काकोरी कांड के इन महानायक क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल के जन्म दिवस के अवसर पर उन्हें दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का शत शत नमन। 

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