छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक और हिंदवी स्वराज्य की स्थापना

मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन।  ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी अर्थात आज ही के दिन विजयी हिन्दू सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा हिन्दू पद पादशाही की स्थापना करके यह सन्देश दिया था कि भारत का राष्ट्र जीवन विजय का उपासक है, पराजय का नहीं और भारत हिन्दू राष्ट्र था, है और रहेगा।  चाहे कितनी भी भीषण और विपरीत परिस्थिति हो, हिन्दू समाज का अस्तित्व सदैव रहेगा। छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वर्णिम कार्यकाल में उन्होंने गुरिल्ला युद्ध तकनीक का अविष्कार तो किया ही साथ ही समुद्री बेड़ा (नौसेना) का निर्माण भी किया और वे प्रत्येक युद्ध में विजयी भी रहे तथा  उन्होंने हिन्दूपद पादशाही की स्थापना करते हुवे भगवा ध्वज एवं संस्कृत भाषा को मान्यता प्रदान करते हुवे पूर्व में धर्मान्तरित हिन्दुओं की घर वापसी भी करवाई थी। 
चहुंओर घोर निराशा के व्याप्त अंधकार वाले उस समय में हिन्दुत्व विरोधी मुगलिया आतंकवाद अपनी चरम सीमा पर थी। मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, विद्या के केंद्र अर्थात गुरुकुल, पाठशालाएं जलायी जा रही थी, तलवार के जोर पर जबरिया धर्मान्तरण किया जा रहा था, हिन्दुओं पर जजिया टैक्स लगाकर अमानवीय उत्पीड़न किया जा रहा था। इस प्रकार की ऐसी घोर विकट एवं निराशाजनक परिस्थितियों में शिवाजी महाराज द्वारा हिन्दुपद पादशाही की घोषणा करके भगवा ध्वज को लहराने का कार्य किया जोकि भारत के गौरवशाली इतिहास में स्वर्णिम अध्याय के रूप में अंकित हो गया। अपने पौरूष, सैन्य रणकौशल और सामरिक बुद्धिमता के आधार पर छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दू समाज में राष्ट्रीयता की एक ऐसी दिव्य चेतना जाग्रत कर दी जिसके परिणाम स्वरूप मुग़ल साम्राज्य की नींव हिल गई थी। त्रेतायुग में श्रीरामजी द्वारा राक्षसों का संहार करके रामराज्य की स्थापना और द्वापर युग में योगेश्वर श्रीकृष्णजी द्वारा अधर्मियों का विनाश करके धर्म की स्थापना जैसा ही यह एतिहासिक प्रसंग था, शिवाजी महाराज का हिन्दू सम्राट के रूप में राज्यभिषेक होना। 

पुरातन काल में सम्राट चन्द्रगुप्त, सम्राट अशोक, महाराज पुष्पमित्र, सम्राट समुद्रगुप्त, महाराज हर्ष, महाराज ललितादित्य, राजा अवंतिवर्मन, महाराज कृष्णदेवराय और महाराज रणजीत सिंह जी और गुलाब सिंह जी जैसे शूरवीर हिन्दू सम्राटों ने विशाल साम्राज्यों की स्थापना की थी, जिस गौरवशाली इतिहास को आतताइयों ने मिटाने के हरसंभव प्रयास किये किन्तु हिन्दू सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज ने भारत की सुप्त हो रही वीरव्रती रण परम्परा और क्षीण होते जा रहे राष्ट्रीय स्वाभिमान को पुन: जाग्रत करने में अद्भुत सफलता प्राप्त की थी। छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा सफलतापूर्वक स्थापित हिन्दवी स्वराज्य की पृष्ठभूमि को समझने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज के समस्त जीवन को समझना भी जरूरी हो जाता है। शिवाजी महाराज के पिताजी श्री शाहजी भोंसले  जीवन भर मुगलिया दरबारों की चाकरी ही करते रहे किन्तु वीरांगना माता जीजाबाई ने अपने पुत्र को रामायण, महाभारत एवं सनातन भारत की विजयी गाथाएं सुना कर एक वीरव्रती हिन्दू योद्धा बना दिया। 

भारतीय इतिहास इस बात का साक्षी है कि राष्ट्रमाता जीजाबाई का परिश्रम सफल हुआ और शिवाजी महाराज ने अपने बालपन से ही अपनी तलवार के जौहर और अद्भुत रणकौशल का परिचय देना प्रारंभ कर दिया। एक बार शिवाजी के पिता शाह जी भौंसले बाल शिवा को मुगलिया दरबार में लेकर गए, तब पिता की इच्छा के विरूद्ध बाल शिवा ने दरबार की परम्परा के अनुसार मुगल दरबार में अपना सिर नहीं झुकाया और स्पष्ट कहा कि “विदेशी विधर्मी और हिन्दुओं का संहार करने वाले को मैं अपना राजा नहीं मानता”। बाल शिवाजी के इस ‘राजद्रोही’ व्यवहार के बाद दरबारी मुगल सैनिक ने इस बालक का सिर काटने का प्रयास किया था जिसे शिवाजी महाराज के पिताजी द्वारा रुकवाया था शिवाजी महाराज ने मात्र 17 वर्ष की आयु में ही अपनी बाल सेना के साथ तोरण नामक किले पर शत्रु को पराजित करके भगवा ध्वज फहरा दिया था।  इसके बाद उन्होंने जीवन के अंतिम क्षण तक सैकड़ों युद्ध किए और उन युद्धों को जीता।  छत्रपति शिवाजी महाराज एक ऐसे सेनापति थे जिन्होंने अपने समस्त जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारा। 

मुग़ल सम्राट औरगंजेब द्वारा छलपूर्वक शिवाजी महाराज को कैद करने के बाद भी वे चातुर्य से उस कैद से छूट कर आ गए और वापस आकर शिवाजी महाराज ने हिन्दू साम्राज्य की स्थापना के लिए अपनी सैनिक गतिविधियों को युद्ध स्तर पर तेज कर दिया। मुगलिया सेनापति दुर्दान्त अफजल शाह और उसकी समस्त सेना का संहार करने वाले शिवाजी महाराज ने  मुगल सेनापति का सर काट कर अपनी माता जीजाबाई के चरणों में पटक दिया था।  इस घटना की सूचना जब दिल्ली में मुग़ल सम्राट औरंगजेब तक पहुंची तो उनके पांव तले धरती हिल गई थी। एक के बाद एक युद्ध में मिली सफलताओं ने शिवाजी महाराज को एक सफल हिन्दू सम्राट के रूप में प्रस्तुत कर दिया।विजय के इन क्षणों में शिवाजी महाराज ने अपने ‘हिन्दू चरित्र’ पर कभी आंच नहीं आने दी। एक बार ऐसे ही एक युद्ध के पश्चात जब इनके सैनिकों ने एक पराजित मुगलिया शासक की युवा बेटी को उपहार स्वरूप में शिवाजी के सामने प्रस्तुत किया तो शिवाजी महाराज ने उस युवती से कहा “अगर मेरी मां भी इतनी सुंदर होती तो मैं भी इतना ही सुंदर होता” शिवाजी महाराज ने उस मुस्लिम महिला को भी माता के समान सम्मान देकर वापस उसके घर भिजवा दिया था। 

शिवाजी महाराज ने उस समय तलवार के बल पर जबरिया धर्मान्तरित हो चुके हिन्दुओं को वापस हिन्दू धर्म में लाने का अभियान भी प्रारम्भ किया, तो धर्मान्तरित मुसलमान फिर से हिन्दू धर्म में वापस लौटने लगे । शिवाजी महाराज की इन सफलताओं के पीछे उनके कुलगुरू कोणदेवजी और समर्थ रामदासजी के मार्गदर्शन एवं शिक्षा का भी गहरा स्थान है। दादा कोणदेव जी, समर्थ रामदास जी, माताश्री जीजाबाई और प्रजा ने शिवाजी महाराज को  अभिजात हिन्दू सम्राट के रूप में पहचाना और राज्याभिषेक कर दिया। भारत के एक भूभाग में स्थापित इस हिन्दवी साम्राज्य की बागडोर सम्भालते ही छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दुओं के पुर्नुत्थान का विजयी अभियान प्रारंभ करके दिल्ली की मुगलिया सल्तनत को कड़ी चुनौती भी दे दी थी। शिवाजी महाराज  के इस राज्य में संस्कृत एवं मराठी भाषाओं को पुनर्जीवित किया गया। फारसी भाषा को तिलांजलि देकर मराठी को राजभाषा बना दिया गया। शिवाजी महाराज द्वारा आतताइयों द्वारा तोड़े गए मंदिरों के निर्माण से लेकर बहन-बेटियों के सम्मान की व्यवस्थाएं भी की गईं।

अपने राज्य की सुरक्षा के लिए शिवाजी महाराज ने सैनिकों की संख्या दो हजार से बढ़ाकर दो लाख तक कर दी।कोंकण और गोवा जैसे समुद्री तटों की सुरक्षा के लिए सरदार आंगरे के नेतृत्व में एक विशाल समुद्री बेड़ा(नोसेना) का निर्माण भी किया गया। इस सारे कालखण्ड में शिवाजी महाराज ने गुरिल्ला युद्ध की तकनीक का आविष्कार करके अपने राज्य को आक्रमणकारियों से बचाने एवं सुरक्षित करने के सभी उपाय कर लिए थे। शिवाजी महाराज ने उन सभी प्रदेशों पर पुनः अधिकार कर लिया, जो पुरंदर की संधि के समय मुगलों को देने पड़े थे। शिवाजी महाराज ने स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद अपना राज्याभिषेक कराना चाहा किन्तु यह जानकारी मिलने पर मुग़ल सैनिकों ने ब्राह्मणों को धमकी दी कि जो भी शिवाजी का राज्याभिषेक करेगा उसकी हत्या कर दी जाएगी। जब यह बात शिवाजी महाराज ने सुनी तो उन्होंने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार का निश्चय किया कि वे राज्याभिषेक मुगलों के अधिकार वाले राज्य के ब्राह्मणों से करवायेंगे।  

उस समय काशी मुग़ल साम्राज्य के अधीन था, वहाँ के लिए तीन दूत भेजे गए।  दूतों के सन्देश से वहाँ के ब्राह्मण काफी प्रसन्न हुवे किन्तु मुग़ल सैनिकों को यह जानकारी होने पर उन्होंने ब्राह्मणों को पकड़ लिया। तब ब्राह्मणों द्वारा चतुराईपूर्वक शिवाजी से अनभिज्ञ होने और धार्मिक यात्रा पर जाने की बात बताने पर सैनिकों ने उन्हें छोड़ दिया, ब्राह्मणों के जाने के बाद तीनों दूत भी कैद से भाग निकले। उसके बाद ब्राह्मणों ने शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया तब मुग़ल सैनिकों ने फूट डालने का प्रयास किया कि वे शिवाजी को राजा नहीं माने किन्तु उनके प्रयास  विफल ही रहे। शिवाजी महाराज ने अष्टप्रधान मंडल की स्थापना की। शिवाजी महाराज ने विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी समारोह में आमंत्रित किया, उनके राज्याभिषेक के 12 दिनों बाद ही उनकी माताजी का देहांत हो गया। 

इस कारण पश्चात में शिवाजी महाराज ने  दूसरी बार छत्रपति की उपाधि ग्रहण की।  दो बार संपन्न इन समारोहों में उस समय करीब 50 लाख का खर्च हुआ था। इस समारोह में हिंदवी स्वराज्य की स्थापना का उद्घोष किया गया था।  विजय नगर के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था।  एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपना सिक्का भी चलाया था। इसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने कर्नाटक, कोंकण, तुंगभद्रा नदी के पश्चिम में बेलगांव तथा धारवाड़ क्षेत्र, मैसूर, वैलारी, त्रिचूर तथा जिंजी पर भी अपना अधिकार किया। इसलिए राष्ट्रीय स्वाभिमान की विजय के प्रतीक इस दिन को छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक और हिंदवी स्वराज्य की स्थापना दिवस के रूप में समस्त भारतवासी विशाल हिन्दू समाज एक राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाता है।  आज छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक और हिंदवी स्वराज्य की स्थापना दिवस के अवसर पर यह 137 वां पुष्प श्रद्धेय छत्रपति शिवाजी महाराज के चरणों में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर का शत शत नमन।           

Comments

Popular posts from this blog

बूंदी के हाडा वंशीय देशभक्त कुम्भा की देशभक्ति गाथा

महाभारत कालीन स्थानों का वर्तमान में अस्तित्व

बुजुर्गों से है परिवार की सुरक्षा