महा शिव रात्रि
मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर का सादर अभिनन्दन। हमारे देश में महा शिव रात्रि का पर्व बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वैसे तो प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि को शिवरात्रि होती है किन्तु फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि को विशेष रूप से महाशिवरात्रि के रूप में मनाये जाने की परम्परा है। शिवस्य प्रिय रात्रियस्मिन व्रते अंगत्वेन विहिता तदव्रतम शिवरात्र्याख्याम अर्थात महाशिवरात्रि वह रात्रि है जो आनंद प्रदायिनी है और जिसका शिव के साथ विशेष संबंध है। इस पर्व के धार्मिक महत्त्व की बात की जाये तो इस रात्रि को भगवान शिवजी और माता पार्वती के विवाह की रात्रि माना जाता है, और यह मान्यता है कि माता सती के देह त्याग के बाद इस दिन भगवान शिव ने सन्यासी जीवन से गृहस्थ जीवन में पुनः प्रवेश किया था। महा शिव रात्रि के नौ दिनों पहले से भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के विवाह की सभी रस्मोरिवाज पूर्ण कर भोलेनाथ एवं माता पार्वती को वर वधु के रूप में श्रृंगारित किया जाता है, जिसमें हल्दी मेहँदी एवं अन्य सभी रीतिरिवाज संपन्न होते हैं। इस दिन शिवजी की पूजा, अभिषेक, उपवास और रात्रि जागरण करते हुवे भक्तगण भगवान शिवजी और माता पार्वती की आराधना करते हैं।
महा शिव रात्रि के अवसर पर भगवान शिव की पूजा, अभिषेक जिसमें जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक, पंचामृत (दूध, दही, धृत, शहद, शकर) अभिषेक, गन्ने रस से अभिषेक, गंगाजलाभिषेक करने की परम्परा है तथा बिल्वपत्र, शमीपत्र, धतूरा, आंकड़ा, नील कमल, भांग, अक्षत, चंदनादि से पूजन किया जाता है। कहा जाता है कि एक सौ कमल के पुष्प चढ़ाने से भोलेनाथ जितना प्रसन्न होते हैं उतना केवल एक नील कमल चढ़ाने पर होते हैं। उसी प्रकार से एक हजार नील कमल के बराबर एक बिल्वपत्र को माना गया है और एक हजार बिल्वपत्र के बराबर एक शमीपत्र को माना गया है। कई स्थानों पर अलग अलग प्रहर में अलग अलग पूजा की विधि अपनाइ जाती है जैसे प्रथम प्रहर में दुग्ध स्नान, दूसरे प्रहर में दही से स्नान, तीसरे प्रहर में धृत से स्नान और चौथे प्रहर में मधु स्नान। बिल्वपत्र के बिना भगवान शिव जी की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है। शिवजी के प्रिय डमरू का भी अपना एक अलग ही महत्त्व माना गया है। केतकी के पुष्प भगवान शिवजी को अर्पित नहीं किये जाते हैं, उसी प्रकार से तुलसी भी शिवजी को नहीं चढ़ती किन्तु वर्ष में केवल एक दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन हरिहर मिलन के समय शिवजी को तुलसी और विष्णुजी को बिल्वपत्र अर्पित किये जाते हैं।
सम्पूर्ण भारत में मनाये जाने वाले महा शिव रात्रि के इस पर्व को पृथक पृथक स्थानों पर पृथक पृथक विधि से मनाये जाने की परम्परा है। मध्य भारत और उत्तर भारत में कई स्थानों पर नौ दिनी उत्सव के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है और भगवान शिवजी और माता पार्वती के विवाह की समस्त विधियों को संपन्न किया जाता है। कश्मीर में महा शिव रात्रि को हर रात्रि और आम बोलचाल की भाषा में हैराथ अथवा हैरथ के नाम से भगवान शिवजी और माता पार्वती के विवाह के रूप में तीन चार दिन पहले से मनाना प्रारम्भ कर दिया जाता है, जो शिव रात्रि के दो दिन बाद तक चलता है। दक्षिण भारत में शैव संप्रदाय के अनुयायी अधिक होने से दक्षिण भारत में महा शिव रात्रि का यह पर्व व्यापक रूप से मनाया जाता है। श्री शैलम स्थित श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन का भी इस दिन महत्त्व बताया जाता है, यहाँ पर भगवाण शिवजी और माता पार्वती का विवाह संपन्न किया जाता है और उनके विवाह की समस्त विधि संपन्न की जाती है। इस लेख पर जो चित्र लगाया गया है वह श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के मंदिर के शिखर का ही चित्र है, जहाँ वर्ष 2023 के श्रावण मास की पूर्णिमा को बेटे के साथ दर्शन का सौभाग्य मुझे मिला था, आप भी दर्शन कीजिये। बांग्लादेश में यह पर्व अच्छे पति या पत्नी की अभिलाषा से हिन्दुओं द्वारा भगवान शिवजी के दिव्य आशीर्वाद प्राप्ति हेतु किया जाता है। नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर में बड़े ही व्यापक तरीके से यह पर्व मनाया जाता है।
हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार महा शिव रात्रि के व्रत, पूजन और जागरण करने वाले साधक को अपने जीवनकाल में सुख सौभाग्य, धन समृद्धि के साथ समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति तो हो ही जाती है वही पश्चात में मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। मानव के दुखों और पीड़ाओं का नाश कर मानव कल्याण करने वाले इस पर्व से संबंधित कुछ पौराणिक कथाएँ भी प्रचलित हैं, जिनमें से एक समुद्र मंथन के समय को लेकर है कि जब अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया गया था तब सर्वप्रथम हलाहल नामक विष उत्पन्न हुआ था, यह हलाहल विष इतना शक्तिशाली था कि इसमें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को नष्ट कर देने की क्षमता थी और इस अनिष्ट से ब्रह्माण्ड को बचाने की सामर्थ्य केवल भगवान शिवजी की ही थी। भगवान शिवजी ने इस हलाहल विष को अपने कंठ में रख लिया जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वे नील कंठ कहलाये साथ ही भगवान शिवजी भी उस हलाहल से पीड़ित हुवे तब देव चिकित्स्कों ने उपचारार्थ शिवजी को रात भर जगाये रखने की सलाह दिए जाने पर समस्त देवताओं ने शिवजी को आनंदित करने और उन्हें जगाये रखने की चेष्टा करते हुवे संगीत और स्तुतिगान करते हुवे नृत्यादि का आश्रय लिया और सुबह हो जाने पर उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने सभी को आशीर्वाद प्रदान किया। इस प्रकार से शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे भगवान भोलेनाथ जी ने ब्रह्माण्ड को बचाया था।
एक अन्य मान्यता के अनुसार बताया जाता है कि सृष्टि का प्रारम्भ अग्निलिंग के उदय के साथ हुआ है जोकि देवाधिदेव महादेव का ही विशालतम स्वरुप है, जिसके आदि और अंत तक पहुंचने का प्रयास श्री ब्रह्मा जी और श्री विष्णु जी द्वारा किया था किन्तु दोनों ही उनके आदि और अंत तक पहुंचने में सफल नहीं हो सके थे, कहा जाता है कि यह प्रयास महा शिव रात्रि के ही दिन किया गया था और केतकी के पुष्प द्वारा लक्ष्य तक पहुँचने में सफलता मिलने की झूठी गवाही देने के कारण शापित होने के कारण केतकी का पुष्प भगवान शिवजी को अर्पित नहीं किया जाता है। महा शिव रात्रि के व्रत के सन्दर्भ में महादेव जी द्वारा माता पार्वती जी को सुनाई गई जो कथा प्रचलित है वह इस प्रकार है कि - चित्रभानु नामक एक शिकारी था, जिसका जीविकोपार्जन का आधार ही शिकार था। साहूकार का ऋण नहीं चुकाने के कारण उसे साहूकार ने शिवमठ में बंदी बना लिया था, संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। प्रातः पूजन और पश्चात में शिव कथा के श्रवण का सौभाग्य उसे अनायास ही प्राप्त हो गया। संध्या पूर्व ऋण चुकाने के लिए एक दिन का समय दिए जाने की मांग पर साहूकार ने उसे छोड़ दिया।
दिनभर के भूखे प्यासे शिकारी ने शिकार के लिए तालाब के किनारे एक वृक्ष पर पड़ाव बनाया, संयोग से वह वृक्ष बिल्वपत्र का था और यह भी एक संयोग ही था कि वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग था। पड़ाव बनाते समय उसने पेड़ की टहनियाँ तोड़ कर नीचे फेंकी, टहनियों में बिल्वपत्र भी थे, वे शिवलिंग पर गिरे। शिकारी दिन भर का भूखा प्यासा था तो उसका व्रत हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए। रात्रि का एक प्रहर बीतते समय एक गर्भिणी मृगी उधर से निकली तो शिकारी प्रसन्न हो गया, उसने धनुष पर बाण चढ़ाया ही था कि मृगी बोली " मैँ गर्भिणी हूँ, तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे वह अनुचित है मैं प्रसव के बाद शीघ्र तुम्हारे पास आ जाऊंगी तब मुझे मार देना" यह सुन शिकारी ने उसे जाने दिया। कुछ ही देर में दूसरी मृगी उधर से निकली तो शिकारी ने प्रसन्नतापूर्वक फिर से धनुष पर बाण चढ़ाया तो मृगी बोली "मैं ऋतु निवृत्त विरहिणी अपने पति की खोज में भटक रही हूँ, अपने पति से मिलकर शीघ्र तुम्हारे पास आ जाऊंगी तब मुझे मार देना" यह सुन शिकारी ने उसे भी जाने दिया।
रात्रि का आखिरी प्रहर बीत रहा था तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों को लेकर उधर से निकली, तब शिकारी तत्काल अपने धनुष पर बाण चढ़ाकर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली "मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौंप कर वापस लौटती हूँ तब मुझे मार देना"। शिकारी हँसा और बोला सामने आये शिकार को छोड़ दूँ इतना मुर्ख नहीं हूँ पहले ही दो को छोड़ चुका हूँ, मेरे भी बच्चे हैं जो भूख प्यास से तड़प रहे होंगे। शिकारी की बात सुन मृगी बोली "जैसे तुम्हें अपने बच्चो की ममता सत्ता रही है, वही स्थिति मेरी भी है मेरा विश्वास करो इनको इनके पिता को सौंप कर शीघ्र तुम्हारे पास आ जाऊंगी तब मुझे मार देना"। मृगी का करुण स्वर सुन शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया। अब वह वृक्ष पर बैठा बैठा बिल्वपत्र तोड़ तोड़ कर नीचे फेंकता रहा जो संयोग से शिवलिंग पर चढ़ते रहे। सुबह होते होते एक हष्ट पुष्ट मृग उधर आया तब शिकारी ने सोचा अब तो शिकार करना ही है। इधर धनुष पर बाण चढ़ाकर शिकार करने को तैयार शिकारी को देख मृग बोला "तुमने मुझसे पहले आने वाली तीन मृगियों और उनके बच्चों को तो मार ही डाला होगा तो मुझे भी मारने में विलम्ब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे दुःख नहीं सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ, यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया हो तो मुझे भी कुछ पल का जीवन दो ताकि मैं उनसे मिलकर वापस आ जाऊँ तब मुझे मार देना"।
मृग की बात को सुनकर शिकारी को रात्रि का सम्पूर्ण घटनाक्रम याद आ गया उसने सब मृग को सुनाया तो मृग बोला मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार से प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, वे मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी इसलिए जिस तरह तुमने उन पर विश्वास करके छोड़ा है वैसे ही मुझे भी कुछ समय के लिए जाने दो, मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ। उपवास, रात्रि जागरण और शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक ह्रदय निर्मल हो गया था और शिवजी की अनुकम्पा उस पर हो गई थी, धनुष बाण उसके हाथो से छूट गए थे और वह अपने पूर्व के कर्मो को याद कर पश्चाताप की अग्नि में जलने लगा था। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के सामने उपस्थित हुआ ताकि शिकारी उनका शिकार कर सके। पशुओं में ऐसी भावना देखकर शिकारी को बड़ी ही ग्लानि हुई और उसकी आँखों से अश्रु बह निकले। शिकारी ने उस मृग परिवार को नहीं मारा और सदा के लिए अपने कठोर ह्रदय से जीव हिंसा को हटा दिया। कालांतर में शिवकृपा से उस शिकारी एवं मृग परिवार को शिवरात्रि की अनायास हुई साधना के परिणामतः मोक्ष की प्राप्ति हुई। अब हम भी शिवरात्रि के पावन अवसर पर भगवान श्री भोलेनाथ जी की आराधना कर अपना जीवन धन्य करें। मेरा महान देश बेबसाईट पर शिवरात्रि पर लिखा हुआ शिवरात्रि का यह 132 वाँ लेख रूपी पुष्प भगवान श्री देवाधिदेव महादेव के श्री चरणों में अर्पित कर आप सभी को दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर की ओर से हर हर महादेव।
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