शहीद वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी
मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारा भारत देश शौर्य और पराक्रम से ओतप्रोत है, यहाँ की वीरगाथाओं से देश विदेश के समस्त भारतीयों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, और वे अपने आप को गौरान्वित मानते हैं। हमारे देश में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई सहित कई वीरांगनाऐं हुई हैं, जिन्होंने अपने राज्य और देश की स्वतंत्रता और गौरव के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे देश की उन वीरांगनाओं में से कई नाम हमारे इतिहास से विलुप्त कर दिए गए होने से हमें उनकी जानकारी भी नहीं है, आज इस 142 वें पुष्प में एक ऐसी वीरांगना की अमर गाथा आपके समक्ष प्रस्तुत है, जिन्होंने अंग्रेजों को भागने पर विवश कर दिया था। वह गाथा है वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी की, जो स्वतंत्रता सेनानी और प्रथम शहीद वीरांगना थीं। मध्य प्रदेश में रामगढ़ राज परिवार की महिला नायिका रानी अवंतीबाई लोधी का जन्म 16 अगस्त 1831 हुआ था। अवंतीबाई के पिता राव जुझार सिंह जिला सिवनी के जमींदार थे, जिन्होंने बचपन से अवंतीबाई को शिक्षा, घुड़सवारी एवं तलवारबाज़ी सीखने की छूट दी जबकि उस समय और आज भी कई जगह बेटियों को घर का काम ज़्यादा सिखाया जाता है।
रानी अवंतीबाई का विवाह रामगढ़ रियासत के राजकुमार विक्रमाजीत सिंह से हुआ था। राजा विक्रमादित्य सिंह की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी, पिता की मृत्यु के उपरांत राजकुमार विक्रमाजीत सिंह ने राजा का पदभार संभाला। राज-काज संभालने के कुछ समय बाद ही राजा अस्वस्थ रहने लगे। रानी अवंतीबाई के दो पुत्र थे, जिनका नाम था अमान सिंह एवं शेर सिंह। उस समय दोनों राजकुमार भी छोटे थे जिस वजह से राज-काज कौन संभालेगा इस पर दुविधा की स्थिति पैदा हो गई थी, तब रानी अवंतीबाई ने राज-काज संभालने का निर्णय लिया। उस समय ब्रिटिश शासन के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी द्वारा भारत में 'डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स' कानून के जरिए अपने साम्राज्य के विस्तार में हर संभव प्रयास किया जा रहा था, जिसका उद्देश्य ही हिन्दू बहुल प्रांतों को किसी भी तरह अपने साम्राज्य में शामिल करना था। इसी कानून के जरिए वे कानपुर, झांसी, नागपुर, सतारा, जैतपुर, संबलपुर, उदयपुर, करौली इत्यादि रियासतों को ब्रिटिश शासन के आधिपत्य में ले चुके थे।
जब राजा के अस्वस्थ रहने की खबर ब्रिटिश शासन तक पहुंचीं, तो डलहौजी की नजर इस रियासत पर भी पड़ी और उसने इस रियासत को ब्रिटिश शासन के अधीन लाने का फैसला किया। रामगढ़ के राजा विक्रमाजीत सिंह को विक्षिप्त तथा अमान सिंह और शेर सिंह को नाबालिग घोषित कर रामगढ़ राज्य को हड़पने की दृष्टि से ब्रिटिश शासकों ने पालक न्यायालय (कोर्ट ऑफ वार्ड्स) की कार्यवाही की एवं राज्य के प्रशासन के लिए पालक नियुक्त कर शेख मोहम्मद तथा मोहम्मद अब्दुल्ला को रामगढ़ भेजा, जिससे रामगढ़ रियासत "कोर्ट ऑफ वार्ड्स" के कब्जे में चली गयी। अंग्रेज शासकों की इस हड़प नीति का परिणाम भी रानी जानती थी, फिर भी दोनों पालकों को उन्होंने रामगढ़ से बाहर निकाल दिया। अब नाबालिग पुत्रों की संरक्षिका के रूप में राज्य शक्ति रानी के हाथों आ गयी। रानी ने राज्य के कृषकों को अंग्रेजों के निर्देशों को न मानने का आदेश दिया, इस सुधार कार्य से रानी की लोकप्रियता बढ़ी। इसके पश्चात् ब्रिटिश शासन द्वारा रानी अवंतीबाई को अयोग्य घोषित कर सत्ता को हड़प लिया गया। इसे रानी अवंतीबाई ने स्वयं के साथ-साथ स्वतंत्रता का भी अपमान समझा।
सन 1857 में जब सम्पूर्ण देश में स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला प्रज्वलित हुई और उस अग्नि की तपिश रानी अवंतीबाई तक भी पहुँची तब उन्होंने भी स्वतंत्रता संग्राम में कूदने का फैसला किया। उस समय रानी अवंतीबाई के साथ अन्य साथी रिआसतों ने भी स्वतंत्रता संग्राम में कूदने का फैसला किया और यह सब रानी द्वारा अपनी अन्य साथी रियासतों को लिखे गए पत्रों की वजह से संभव हुआ। इस समय रानी लगभग 4000 स्वतंत्रता सेनानियों का नेतृत्व कर रहीं थीं, जो कि देश और स्वतंत्रता के लिए मर-मिटने के लिए भी तैयार थे। भारतीय वीरों ने अंग्रेजों के साथ खेरी गांव में हुए पहले झड़प में उन गोरों के दाँत खट्टे कर दिए। गोरों ने यह नहीं सोचा था कि भारतीय शेर उन पर भारी पड़ेंगे। रानी अवंतीबाई द्वारा बनाई गई रणनीति का ही यह नतीजा था कि अंग्रेजों को भागने पर मजबूर होना पड़ा और मंडला क्षेत्र रानी अवंतीबाई के अधीन आ गया।
जब इस घटना की खबर ब्रिटिश प्रशासन को लगी तो वह सब बौखला गए, किन्तु वह यह भी जानते थे कि इन भारतीय शेरों से भिड़ना आसान काम नहीं होगा। तब गोरों ने पहले से कई ज़्यादा क्रूर रणनीति बनाई। इस बार हुए झड़प में हमारे देशभक्त मशीनगनों और बर्बरता के सामने नहीं टिक पाए और अंततः रानी को जान बचाने के लिए और इस संग्राम को जीवित रखने के लिए देवीरगढ़ के जंगलों में भागना पड़ा। अंग्रेजों द्वारा देशभक्तों की हत्या की आग अभी भी रानी के सीने में धधक रही थी और रानी अवंतीबाई उन वीरांगनाओं में से थीं जिन्होंने हारना सीखा ही नहीं। रानी अवंतीबाई ने पुनः सेना एकत्र कर अंग्रेजों के शिविर पर हमला बोला किन्तु फिर एक बार आजादी के मतवालों को मशीनगनों द्वारा रौंध दिया गया। जब रानी ने स्वयं को अंग्रेजों से घिरते हुए देखा तब उन्होंने बंधक के रूप में नहीं बल्कि स्वतंत्र मरने का फैसला किया और अपने ही तलवार से खुद के प्राण ले लिए।
ऐसे ही कई स्वतंत्रता संग्राम के बाद देश भर में आजादी की मुहीम तेज हुई थी। ऐसे ही वीर, वीरांगनाओं के बलिदानों से प्रेरित होकर शहीद भगत सिंह, चंद्र शेखर आज़ाद जैसे अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के लिए बलिदान दिए। जिसका परिणाम है आज का 'आजाद भारत' किन्तु बदकिस्मती से उनके नाम सार्वजानिक नहीं हो सके। ब्रिटिश सेना से युद्ध कर अपनी रणनीति से ब्रिटिश सेना को भागने के लिए विवश कर देने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी और प्रथम शहीद वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी के जन्म दिवस के अवसर पर भारत देश के समस्त देशवासियों की ओर से शत शत प्रणाम एवं विनम्र श्रद्धांजलि - दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर।
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