श्री ओखलेश्वर धाम

मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारे भारत देश में कई प्राचीन धरोहर आज भी विध्यमान हैं, जो युगों पूर्व के अति महत्वपूर्ण पौराणिक प्रसंगों से सम्बद्ध होकर कई आश्चर्यों एवं रहस्यों को भी अपने आप में समाहित किये हुवे हैं। इसी प्रकार का एक स्थान है, श्री ओखलेश्वर धाम। मध्यप्रदेश राज्य के इंदौर जिले से लगभग 45-50 किलोमीटर की दूरी पर सिमरोल घाट के बाद बाई गाँव के शनि मंदिर के पहले बांयी ओर घने जंगल के मध्य स्थित यह श्री ओखलेश्वर धाम नामक स्थान इंदौर, देवास और खरगोन जिलों की सीमा पर कई सनातन धर्म प्रेमी जन की श्रद्धा एवं आस्था का महत्वपूर्ण केँद्र है। यहाँ पर स्थित श्री शिव मंदिर को भिन्न भिन्न मान्यताओं के अनुसार सतयुग अथवा त्रेतायुग का बताया जाता है तो कुछ मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा स्थापित बताया जाता है।
यहाँ पर श्री हनुमान जी महाराज की संभवतः विश्व की एकमात्र अत्यंत ही अनूठी और दुर्लभ प्रतिमा है, जिसमें श्री हनुमान जी महाराज के हाथों में पर्वत अथवा गदा के स्थान पर शिवलिंग है। कहा यह भी जाता है कि श्री हनुमान जी महाराज की यह स्वयंभू प्रतिमा है। इसी प्रकार से इस पावन धाम में सन 1976 की अक्षय तृतीया के दिन अर्थात 2 मई 1976 से वर्तमान समय तक सतत श्री रामचरित मानस का अखंड पाठ भक्तों द्वारा किया जा रहा है और अखंड ज्योति भी प्रज्वलित है, इस कारण वर्ल्ड बुक ऑफ रेकॉर्ड्स में भी इस स्थान का नाम अंकित है। इस स्थान की प्राचीनता के विषय में स्पष्टतः कुछ भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है, क्योंकि सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग के कई प्रसंग इस स्थान से सम्बंधित बताये जाते हैं। 

यह स्थान महर्षि वाल्मीकि का आश्रम का स्थान तो बताया ही जाता है साथ ही इस स्थान को कपिल मुनि की तपस्थली के साथ साथ कई ऋषि मुनियों के साधना स्थल के रूप में भी जाना जाता है तो मनु और शतरूपा की तपस्थली भी बताई जाती है। यहाँ आसपास के स्थानों की खुदाई करने पर कई प्राचीन प्रतिमाएँ आज भी निकलती हैं, जो इस स्थान की पौराणिकता को भी प्रमाणित करती है। यहाँ एक प्रचीन बावड़ीनुमा कुण्ड भी स्थित है। बरसात के मौसम में हरियाली से भरपूर यह स्थान अधिक रमणीय हो जाता है तो फागुन के माह में टेसू के फूलो से लदे हुवे पेड़ जंगल में दावानल सा एहसास कराते हैं। मंदिर के पीछे कुछ दूरी पर एक मौसमी नदी भी है, जो कि बरसात के दिनों में जल से परिपूर्ण रहती है।  

इस स्थान के बारे में मुख्य मान्यता यह है कि त्रेता युग में श्री राम जी और लंकापति रावण के युद्ध के पूर्व शिवपूजा के लिए नर्मदा नदी की धाराजी से शिवलिंग लेकर आने का कार्य भगवान श्री राम जी ने श्री हनुमानजी महाराज को सौंपा था, तब श्री हनुमान जी महाराज धाराजी से शिवलिंग लेकर जा रहे थे, उस समय महर्षि वाल्मीकि के आश्रम वाले इस स्थान की सुरम्यता पर मोहित हो कुछ पल यहाँ विश्राम किया था और यही से उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टी से देखा कि वहाँ रामेश्वरम में बालू का शिवलिंग स्थापित कर दिया गया है तब वे स्तब्ध गए। हालाँकि श्री हनुमानजी महाराज द्वारा ले जाया गया शिवलिंग आज भी  तमिलनाडु के धनुष्कोटि में स्थापित है। 

यहाँ के विषय में एक अन्य किदवंती यह भी है कि इस क्षेत्र में अत्यंत ही दानप्रिय श्री पाल नामक राजा हुवे थे, जिन्हे सरियाल के नाम से भी जाना जाता था। एक बार भगवान शिव जी राजा की परिक्षा के उद्देश्य से भेष बदल कर अतिथि रूप में राजा के पास पधारे। राजा द्वारा भोजन का आग्रह करने पर उन्होंने मांसाहार की मांग की। राजा ने भी अपने उदार स्वभाव के चलते तत्काल जंगली जानवरो का मांस अतिथि को उपलब्ध करा दिया।  तब अतिथि ने हठ पकड़ ली कि उन्हें तो मानव मांस ही चाहिए। उस पर राजा बोले कि मैं अभी अपनी प्रजा में से किसी को तैयार करता हूँ तब अतिथि फिर से बोले कि जिस प्रजा के आप पालक हैं तो उनका मांस आप कैसे उपलब्ध कराएँगे।  

अतिथि की इस प्रकार की बात सुनकर राजा ने  अतिथि के समक्ष अपने आप को प्रस्तुत कर दिया, तब अतिथि ने यह बोलकर अस्वीकार कर दिया कि तुम तो वृद्ध हो गए हो। अब परेशान राजा ने अपने पुत्र राजकुमार चिन्मय देव जिसे चिलिया भी कहा जाता था,  का मांस उपलब्ध करा दिया और अपने पुत्र का मस्तक यह सोचकर पृथक रख दिया कि वे अपने पुत्र की आत्मिक शांति और उसकी मुक्ति के लिए बाद में उसकी कपाल क्रिया करवा देंगे।  किन्तु अतिथि ने कहा कि राजा तुमने मस्तक वाला भाग छिपा लिया है इसलिए यह हमें स्वीकार नहीं है, हमें तो मस्तक ही चाहिए। तब राजा और रानी कांतिदेवी (जिन्हें चांगना भी कहते थे) दोनों ने दुःखी मन से ओखली में कूटकर अपने पुत्र का मस्तक वाला भाग अतिथि के समक्ष प्रस्तुत कर दिया तब श्री शिवजी अपने वास्तविक स्वरुप में आ गए और राजकुमार को पुनः जीवित कर राजा रानी को काफी वरदान भी प्रदान कर वही लिंगस्वरूप में स्थापित हो गए। राजकुमार का मस्तक ओखली में कूटने के कारण ही इस स्थान का नाम ओखला पड़ा और शिव जी ओखलेश्वर महादेव कहलाये।  

यहाँ श्री हनुमानजी महाराज को चोला अन्य स्थानों की भांति प्रति मंगलवार या शनिवार के बजाय केवल माह में एक बार जब भी रोहिणी नक्षत्र आता है तब ही चढ़ाया जाता है। कई भक्तजन और श्रद्धालुजन यह भी कहते हैं कि चोला चढ़ाने के समय श्री हनुमान जी महाराज अपनी पलकों को झपकाते हुये प्रतीत होते हैं।  कई भक्तजन  इस सम्बन्ध में प्रत्यक्ष पलक झपकते हुवे देखने का दावा भी करते हैं। चैत्र माह की पूर्णिमा अर्थात हनुमान जयंती को श्री हनुमानजी महाराज का सहस्त्रधारा अभिषेक होता है। यहाँ पर मंदिर में आने वाले भक्तजनों को प्रसाद के रूप में छांछ पिलाई जाती है।    

यहाँ मंदिर की वर्तमान व्यवस्स्थाओं का श्रेय ब्रह्मलीन संत श्री ओंकारदास जी महाराज को जाता है, ऐसा कहा जाता है कि संत श्री ओंकारदास जी महाराज जिन्होंने राजस्थान में पुष्कर के निकट वामदेव जी की गुफा में कठोर तपस्या की थी तत्पश्चात भगवान शिव जी के आदेश से ही वे श्री ओखलेश्वर धाम पधारे। महाराजश्री के यहाँ पधारने के समय यहां घना जंगल था और काफी जंगली जानवर भी यहाँ विचरण करते रहते थे।  महाराज श्री ने वर्षों से जीर्ण शीर्ण अवस्था वाले इस मंदिर का रखरखाव और व्यवस्था कर इस स्थान को पुनः जागृत किया, वर्षो से सतत चल रहा अखण्ड रामायण पाठ भी उन्हीं की प्रेरणा से प्रारम्भ हुआ। 

यहाँ कुछ शिलालेख भी हैं किन्तु उन पर लिखी लिखावट अपठनीय है अन्यथा हो सकता है कि इस स्थान से संबंधित और भी कुछ जानकारी उपलब्ध होती। यहाँ शिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा, वैकुण्ठ चतृर्दशी, हनुमान जयंती एवं नवरात्री पर विशेष उत्सवी आयोजन होते हैं। मैं स्वयं भी इस स्थान पर दर्शन के लिए विगत 17-18 वर्षों से केवल विचार ही कर रहा था किन्तु कल रोहिणी नक्षत्र के अवसर पर चोले के श्रृंगार के उत्सवी अवसर पर  मेरे एक बालसखा और सहपाठी श्री कैलाश मालवीय के सानिध्य और सौजन्य से बाबा के दर्शनलाभ का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बाबा के श्री चरणों में यह सेवक दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर बारम्बार वंदन करते हुवे जगत के कल्याण की प्रार्थना करता है। जय श्री राम, भक्त हनुमान जी महाराज की जय, ओखलेश्वर महादेवजी की जय ।             

Comments

Popular posts from this blog

बूंदी के हाडा वंशीय देशभक्त कुम्भा की देशभक्ति गाथा

महाभारत कालीन स्थानों का वर्तमान में अस्तित्व

बुजुर्गों से है परिवार की सुरक्षा