अष्ट सिद्धियां
मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हम सभी सनातन धर्म प्रेमी जन के लिए श्री हनुमान चालीसा की जानकारी कोई अनभिज्ञता की बात नहीं है और कई लोग तो नियमित श्री हनुमान चालीसा का पाठ भी करते ही होंगे। श्री हनुमान चालीसा की एक चौपाई है "अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता। अस वर दीन्ह जानकी माता।।" अर्थात माता श्री जानकी जी ने श्री हनुमान जी महाराज को अजर अमर होने का वरदान तो दिया ही था, साथ ही उन्हें अष्ट सिद्धियां और नव निधियाँ प्रदान करने का भी वरदान प्रदान किया था। ईन्हीं शक्तियों से श्री हनुमानजी महाराज ने कई असाधारण और असंभव लगने वाले कार्य भी बड़ी ही आसानी से संपन्न कर दिए। नव निधियों पर पूर्व में ही एक लेख लिखा जा चुका है, जिसे पृथक से लिंक के माध्यम से पढ़ा जा सकता है तथा आज के इस 141 वें पुष्परूपी लेख में हम श्री हनुमानजी महाराज की उन अष्ट सिद्धियों के बारे में चर्चा कर रहे हैं।
सामान्यतः सिद्धि का शाब्दिक अर्थ सामान्य शक्तियों से पृथक कुछ ऐसी शक्तियों से है, जो कठोरतम तप, जप और साधनाओं से प्राप्त असाधारण और पारलौकिक शक्तियां होती है। हमारे धर्म शास्त्रों में अष्ट सिद्धियों का उल्लेख कुछ इस प्रकार है कि अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा| प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः|| अर्थात अणिमा , महिमा, लघिमा, गरिमा तथा प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व और वशित्व ये सिद्धियां "अष्टसिद्धि" कहलाती हैं। अब हम इस सम्बन्ध में सविस्तार चर्चा करते हैं -
(1) अणिमा - अति सूक्ष्म स्वरुप धारण कर लेने की सिद्धि को अणिमा सिद्धि कहा जाता है। इस सिद्धि की सहायता से श्री हनुमान जी महाराज कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर कहीं भी विचरण कर लिया करते थे जिसका किसी भी व्यक्ति को भान भी नहीं होता था। इस सिद्धि का प्रयोग श्री हनुमानजी महाराज द्वारा किया जाता रहा ऐसा रामायण में उल्लेख मिलता है किन्तु मुख्यतः सुरसा के मुख में प्रवेश कर बाहर निकलना और उसके बाद इस सिद्धि का आश्रय लेकर श्री हनुमान जी महाराज द्वारा सम्पूर्ण लंका नगरी का निरीक्षण किया था, जिसकी लंका नगरी के किसी भी व्यक्ति को कानोकान भनक भी नहीं पड़ी थी।
(2) महिमा - अति विशालकाय स्वरुप धारण कर लेने की सिद्धि को महिमा सिद्धि कहा जाता है। इस सिद्धि की सहायता से श्री हनुमान जी महाराज कभी भी अति विशालकाय रूप धारण कर कई असाधारण कार्य कर लिया करते थे। इस सिद्धि का प्रयोग श्री हनुमानजी महाराज द्वारा किया जाता रहा ऐसा रामायण में उल्लेख मिलता है किन्तु मुख्यतः लंका जाने के समय समुद्र लांघने के समय, सुरसा के मुख के विस्तार कराने हेतु तथा माता सीता को प्रभु श्री राम जी की वानर सेना पर हुवे अविश्वास को दूर करने के लिए अपने शरीर को अत्यंत ही विशालकाय कर लिया था।
(3) गरिमा - अपने शरीर के भार को अत्यधिक कर लेने की सिद्धि को गरिमा सिद्धि कहा जाता है। इस सिद्धि की सहायता से श्री हनुमान जी महाराज कभी भी अपने शरीर का भार असीमित कर किसी विशालकाय पर्वत के भार के समान कर लिया करते थे। इस सिद्धि का प्रयोग श्री हनुमानजी महाराज द्वारा किया जाता रहा, किन्तु मुख्यतः इस सिद्धि के प्रयोग का उल्लेख महाभारत काल में प्राप्त होता है। जबकि पाण्डु पुत्र भीम को अपने बल और शक्ति पर बहुत ही घमण्ड हो गया था तब भीम का घमण्ड तोड़ने के लिए श्री हनुमानजी महाराज ने एक वृद्ध वानर का स्वरुप धारण कर मार्ग में अपनी पूँछ फैलाकर लेट गए थे। भीम ने उन्हें मार्ग से अपनी पूँछ हटाने का कहा तो वे बोले मैं बहुत बूढ़ा हूँ तुम स्वयं पूँछ एक ओर कर मार्ग बना लो, तब भीम पूँछ को हिला भी नहीं पाए और उनका बल और शक्ति का घमण्ड टूट गया।
(4) लघिमा - अपने शरीर के भार को अत्यधिक कम लेने की सिद्धि को लघिमा सिद्धि कहा जाता है। इस सिद्धि की सहायता से श्री हनुमान जी महाराज कभी भी अपने शरीर का भार एकदम हल्का कर किसी तिनके या पत्ते के भार के समान कर लिया करते थे। इस सिद्धि से साधक का शरीर इतना हल्का हो सकता है कि वह पवन से भी तेज गति से उङ सकता है और पलभर में कहीं भी आ-जा सकता है। श्री हनुमानजी महाराज द्वारा अशोक वाटिका में अणिमा और महिमा के साथ साथ इस लघिमा सिद्धि का भी आश्रय लिया था। वे अशोक वाटिका में वृक्ष के पत्तों में छिपकर बैठे थे और वहीं से उन्होंने माता सीता जी से सर्वप्रथम वार्ता की थी।
(5) प्राप्ति - समस्त स्थानों पर सुलभता से पहुँच जाना, समस्त वस्तुओं, पदार्थों को सुलभता से प्राप्त करना, पशु, पक्षी, जड़, चेतन से संवाद कर लेना, भविष्य की गतिविधियों को जान लेने की सिद्धि को प्राप्ति सिद्धि कहा जाता है।इस सिद्धि का प्रयोग श्री हनुमानजी महाराज द्वारा किया जाने के सम्बन्ध में कई प्रसंग रामायण में वर्णित हैं।
(6) प्राकाम्य - इस सिद्धि के आश्रय से जो भी इच्छा हो उसे प्राप्त किया जा सकता है, कहीं भी आना जाना किया जा सकता है, पृथ्वी की गहराइयों से आकाश की ऊँचाइयों तक पहुँचा जा सकता है, लम्बे समय तक पानी में जीवित रहना, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड सहित पाताल, रसातल में कहीं भी आसानी से पहुँचा जा सकता है। इस सिद्धि की सहायता से अपनी इच्छानुसार किसी भी देह को धारण करना, मनचाहा स्वरुप धारण करना जैसे कई असाधारण कार्य भी संभव हो जाते हैं। रामायण में इस प्रकार के कई कार्यों को श्री हनुमान जी महाराज द्वारा किये जाने का वर्णन है।
(7) ईशत्व - ईशत्व अर्थात ईश्वरीय या दैवीय, इस सिद्धि के आश्रय से ईश्वरीय या दैवीय शक्तियां प्राप्त होती है और यह सिद्धि ईश्वरस्वरूप प्रदायक भी है। इस सिद्धि के आश्रय से श्री हनुमान जी महाराज कई दैवीय शक्तियों से संपन्न रहे होकर पूरी वानर सेना का उन्होंने कुशल नेतृत्व किया, समस्त वानरों पर नियंत्रण रखा साथ ही इस सिद्धि के माध्यम से उन्होंने युद्ध में मृत वानरों को पुनर्जीवित भी किया था।
(8) वशीत्व - वशीत्व का अर्थ है सभी को वश में कर लेने की शक्ति। इस सिद्धि के प्रभाव से ही श्री हनुमान जी महाराज जितेंद्रिय हैं और मन पर नियंत्रण रखते हैं। वशीत्व के कारण ही श्री हनुमान जी महाराज किसी भी प्राणी को तुरंत ही अपने वश में कर लेते हैं। श्री हनुमान जी महाराज के वश में आने के बाद प्राणी उनका प्रिय तो हो ही जाता है साथ ही वह उनकी इच्छा के अनुसार ही कार्य भी करता है।
इस प्रकार से अजर, अमर, अतुलित बल धामा, अष्ट सिद्धि और नव निधि के दाता श्री हनुमान जी महाराज के श्री चरणों में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का दण्डवत प्रणाम सहित निवेदन कि वे हम सभी पर अपनी कृपा बनाये रखें, हम सभी पर अपना आशीर्वाद बनाये रखें। जय जय सिया राम।
Comments
Post a Comment