श्री अष्ट विनायक
मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। प्रथम पूज्य श्री गणेश जी का पूजन समस्त देवी देवता के पूजन में प्रथम रूप से किया जाता रहा हे, वैसे तो हमारे भारत देश में और भारत देश से बाहर भी श्री गणेश जी के कई मंदिर विद्यमान हैं, हमारे इंदौर शहर में ही श्री गणेश जी की एशिया की सबसे बड़ी प्रतिमा विराजमान है। यह स्थान श्री बड़ा गणपति के नाम से प्रसिद्द है किन्तु महाराष्ट्र के श्री अष्ट विनायक जोकि महाराष्ट्र पृथक पृथक आठ स्थानों पर विराजमान हैं, उनका एक अलग ही महत्त्व है। कहा जाता है कि यह आठों ही स्थान काफी पौराणिक महत्त्व के हैं, जहाँ विराजमान श्री गणेश जी की प्रतिमाएं मानव निर्मित नहीं होकर स्वयंभू अर्थात स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाएं हैं। महाराष्ट्र के पुणे के आसपास स्थित यह आठों पावन स्थान की महाराष्ट्र में एक अष्ट विनायक तीर्थयात्रा भी होती है। श्री अष्ट विनायक के नाम से पृथक पृथक विराजमान आठ गणपति जी के क्रम में भी मत भिन्नता होने से उनके क्रम को भी पृथक पृथक बताया जाता है। आज इस 143 वें पुष्प को श्री अष्ट विनायक जी के श्री चरणों में अर्पित करते हुवे हम भी श्री अष्ट विनायक यात्रा करते हैं।
श्री अष्ट विनायक दर्शन की विभिन्न क्रमबद्धता में से एक प्रचलित क्रमबद्धता कुछ इस प्रकार की भी है, जिसमें (1) मयूरेश्वर या मोरेश्वर - मोरगाँव, पुणे, (2) सिद्धिविनायक - करजत, अहमदनगर, (3) बल्लालेश्वर - पाली गाँव, रायगढ़, (4) वरदविनायक - कोल्हापुर, रायगढ़, (5) चिंतामणी - थेऊर गाँव, पुणे, (6) गिरिजात्मज विनायक - लेण्याद्री गाँव, पुणे, (7) विघ्नेश्वर विनायक - ओझर एवं (8) महागणपति - राजणगाँव।
(1) मयूरेश्वर या मोरेश्वर - मोरगाँव, पुणे - श्री अष्टविनायक में श्री गणेश जी का मयूरेश्वर के नाम से प्रसिद्द यह स्थान मोरगाँव में पुणे से अंदाजन 80 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है, जहाँ चारों युग के प्रतीकस्वरुप चार द्वार निर्मित हैं तथा मंदिर के चारों कोनों मेँ मीनारें भी हैं। यहाँ श्री गणेश जी की प्रतिमा बांयी ओर की सूंड वाली बैठी हुई मुद्रा में होकर चार भुजाओं और त्रिनेत्र से मयूर पर विराजमान है, उनके साथ नागराज भी शोभायमान है। मंदिर के प्रवेश द्वार के ही नजदीक करीब छः फिट लम्बे मूषकराज के साथ ही बड़े से नंदी भी विराजमान हैं, ऐसा कहा जाता है कि प्राचीनकाल में शिवजी और नंदी यहाँ विश्राम हेतु रुके थे किन्तु नंदी ने शिवजी को यहाँ से जाने के लिए मना कर दिया था, तब से ही मूषकराज और नंदी रक्षक रूप में यहाँ विराजित हैं। यह एकमात्र ऐसा गणेश मंदिर है, जहाँ नंदी भी विराजित हैं। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर श्री गणेश जी ने मयूर पर आरूढ़ होकर सिंदुरासुर नामक एक राक्षस के साथ युद्ध कर उसका वध किया था, तब से ही उनका नाम मयूरेश्वर विनायक हुआ।
(2) सिद्धिविनायक - करजत, अहमदनगर - श्री अष्टविनायक में श्री गणेश जी का सिद्धिविनायक के नाम से प्रसिद्द यह स्थान अहमदनगर की करजत तहसील सिद्धटेक गाँव में पुणे से अंदाजन 200 किलोमीटर की दुरी पर भीमा नदी के तट पर एक पहाड़ की चोटी पर स्थित है, परिक्रमा के लिए पहाड़ी की पांच किलोमीटर की यात्रा करनी होती है। उत्तर दिशा के द्वार वाले इस मंदिर में श्री गणेश जी की उत्तरमुखी प्रतिमा सीधे हाथ की ओर सूंड वाली होकर अंदाजन तीन फिट ऊँची और ढ़ाई फिट चौड़ी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सिद्धटेक के सिद्धिविनायक वाले इस सिद्ध स्थान पर भगवान श्री विष्णुजी द्वारा गणपति जी से वरदान और सिद्धि प्राप्त कर मधु और कैटभ नामक दो राक्षसों के साथ युद्ध कर उनका वध किया था।
(3) बल्लालेश्वर - पाली गाँव, रायगढ़ - श्री अष्टविनायक में श्री गणेश जी का श्री बल्लालेश्वर के नाम से प्रसिद्द यह स्थान मुंबई-पुणे हाइवे पर रायगढ़ के पालीगाँव से टोयन में और गोवा राजमार्ग पर नागोथाने से पहले 11 किलोमीटर दूरी पर स्थित एक ऐसा मंदिर है, जोकि श्री गणेश जी के एक भक्त बल्लालेश्वर के नाम पर जाना जाता है। मंदिर परिसर में ही भक्त बल्लालेश्वर की अंदाजन तीन फिट की मूर्ति पत्थर के एक सिंहासन पर स्थित है। कहा जाता है कि बल्लाल नाम का एक लड़का श्री गणेश जी का परम भक्त था, एक बार बल्लाल ने पाली गाँव में श्री गणेश जी की विशेष पूजा का आयोजन रखा जिसमॅ गाँव के कई बच्चे भी थे। पूजन कई दिनों तक चला तो पूजा में सम्मिलित बच्चे भी वहीं रुक गए, अपने घर नहीं लौटे। तब उन बच्चों की खोज करते हुवे उनके परिजन वहाँ आये और गुस्से में उन्होंने बल्लाल को काफी पीटा और श्री गणेश जी की प्रतिमा के साथ उसे भी जंगल में फेंक दिया। उस गंभीर हालत में भी बल्लाल श्री गणेश जी की आराधना ही करता रहा, जिससे श्री गणेश जी ने प्रसन्न होकर उनके समक्ष प्रगट होकर दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा तब बल्लाल ने श्री गणपति जी से आग्रह किया कि वे यहीं विराजमान हो जाएं, तब से ही श्री गणेश जी यहाँ विराजित हैं। पत्थर के बने इस मंदिर का आकार श्री के सामान नजर आता है, यहाँ श्री गणेश जी की प्रतिमा ब्राह्मण स्वरुप में विराजमान है और सर्दियों के मौसम मेँ सूर्य दक्षिणायन सूर्य की किरणें सीधे प्रतिमा पर पड़ती है।
(4) वरदविनायक - कोल्हापुर, रायगढ़ - श्री अष्टविनायक में श्री गणेश जी का वरदविनायक के नाम से प्रसिद्द यह स्थान रायगढ़ जिले के कोल्हापुर क्षेत्र में महाड़ के पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्र में स्थित है। अपने भक्तों की समस्त कामनाओं को पूरा होने का वरदान प्रदान करने वाले वरदविनायक के मंदिर में नंददीप नामक एक दीपक सन 1892 से प्रज्वल्लित होना बताया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ पर श्री गणपति जी की मूर्ति पहली बार झील में डूबी हुई मिली थी और मूर्ति की स्थिति बहुत ख़राब हो गई थी। इसलिए उसे पानी में विसर्जित कर दिया गया था और उसके बदले एक नई मूर्ति स्थापित कर दी गई थी, किन्तु कुछ लोगों के आपत्ति लेने पर मूर्ति पुनः स्थापित की गई, तब से यहाँ दो मूर्तियाँ हैं। एक मूर्ति सिंदूर से श्रृंगारित है जिसकी सूंड बांई ओर है तथा दूसरी मूर्ति संगमरमर की है जिसकी सूंड दांई और है। सुनहरे और ऊँचे शिखर वाले इस मंदिर के चारों ओर हाथियों की मूर्तियां बनी हुई है। इस स्थान के विषय में प्रचलित मान्यता यह भी है कि देवराज इंद्र के पुत्र गृस्तमदा द्वारा भगवान श्री गणेश जी से प्रार्थना कर उन्हें यहाँ स्थायी रूप से रहने का निवेदन किया साथ ही उन्होंने श्री गणेश जी से उस जंगल को भी आशीर्वाद देने का निवेदन कर यह भी प्रार्थना की कि यहाँ आकर प्रार्थना करने वालों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करें। श्री वरदविनायक जी के बारे में यह भी कहा जाता है कि केवल श्री वरदविनायक जी का नाम लेने मात्र से ही भक्तों की समस्त कामनाओं को पूरा होने का वरदान प्राप्त होता है।
(5) चिंतामणी - थेऊर गाँव, पुणे - श्री अष्टविनायक में श्री गणेश जी का चिंतामणी के नाम से प्रसिद्द यह स्थान पुणे जिले के हवेली नामक स्थान पर थेऊर गांव में तीन नदियों भीमा, मुला और मूथा के संगम के पास स्थित है। कहा जाता है कि भगवान श्री ब्रह्मा जी ने अपने विचलित मन को वश में करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी, इस कारण यदि किसी भक्त का मन बहुत विचलित है और जीवन में दुख ही दुख प्राप्त हो रहे हैं तो इस मंदिर में आने पर ये सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं । उत्तरमुखी मंदिर में स्थापित श्री चिंतामण गणपति जी की प्रतिमा का मुख पूर्व दिशा ओर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऋषि कपिला से असुर चिंतामणि ले गए थे, इसी स्थान पर भगवान श्री गणेश जी ने गणराजा का वध करके अपने भक्त ऋषि कपिला को उनकी चिंतामणि वापस लौटाई थी किन्तु ऋषि ने चिंतामणि की बजाय श्री गणेश जी को चुनते हुवे चिंतामणि भगवान श्री गणेश जी के गले में डाल दी। तब से ही इस स्थान पर श्री गणेश जी भगवान चिंतामणि स्वरूप में विराजमान हैं, भगवान की आँखे भी बहुमूल्य रत्नों से जड़ित है। यह भी कहा जाता है कि यह घटना एक कदम्ब के वृक्ष के नीचे घटित हुई होने के कारण पूर्व में इस स्थान को कदम्ब नगर भी कहा जाता था।
(6) गिरिजात्मज विनायक - लेण्याद्री गाँव, पुणे - श्री अष्टविनायक में श्री गणेश जी का गिरिजात्मज विनायक के नाम से प्रसिद्द यह स्थान पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर स्थित लेण्याद्री पहाड़ी पर स्थित 18 बौद्ध गुफाओं में से 8 वीं गुफा में श्री गिरजात्मज विनायक मंदिर है। इन गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 300 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यह पूरा मंदिर ही एक बड़े पत्थर को काटकर बनाया गया है। सूर्य देव की उपस्थिति में सम्पूर्ण मंदिर में सूर्य की रौशनी रहती है। गिरजात्मज का अर्थ है गिरिजा यानी माता पार्वती के पुत्र गणेश। इस संबंध में धार्मिक मान्यताओं के अनुसार लेण्याद्री पर्वत पर तपस्या कर रही देवी सती से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने मैल से एक मूर्ति बनाई उसके बाद भगवान श्री गणपति इस मैल की मूर्ति में प्रवेश कर देवी सती के समक्ष 6 भुजाओं और 3 नेत्रों वाले बाल स्वरूप में प्रकट हुवे थे।
(7) विघ्नेश्वर विनायक - ओझर - श्री अष्टविनायक में श्री गणेश जी का विघ्नेश्वर विनायक के नाम से प्रसिद्द यह स्थान पुणे-नासिक रोड पर नारायणगावं से करीब 85 किलोमीटर दूरी पर ओझर जिले में जूनर क्षेत्र में स्थित है। कुकड़ी नदी के किनारे स्थित मंदिर के प्रवेश द्वार पर चार द्वारपाल हैं, जिनमें से पहले और चौथे द्वारपाल के हाथ में शिवलिंग है। मंदिर परिसर में बड़ा ही आकर्षक दीपमाला का स्तम्भ स्थित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विघ्नासुर नामक एक असुर संतों, ऋषि मुनियों को प्रताड़ित करता था और उनके यज्ञ, पूजनादि में विघ्न डालता था, तब भगवान श्री गणेश जी ने इसी क्षेत्र में उस असुर का वध किया और सभी को कष्टों से मुक्ति दिलवाई तब से ही इस स्थान पर भगवान श्री गणेश जी विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार के रूप में विराजमान होकर पूजित हैं।
(8) महागणपति - राजणगाँव - श्री अष्टविनायक में श्री गणेश जी का महागणपति के नाम से प्रसिद्द यह स्थान पुणे-अहमदनगर राजमार्ग पर 50 किलोमीटर की दूरी पर पुणे के रांजणगांव में स्थित है। अति विशाल और सुन्दर पूर्वमुखी मंदिर की अद्भुत प्रतिमा को माहोतक के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन समय में विदेशी आक्रंताओं के आक्रमण के समय उनसे भगवान श्री गणेश जी की मूल प्रतिमा को बचाने के लिए मूल प्रतिमा को मंदिर के तहखाने में छिपा दिया था, कहते हैं कि मूल प्रतिमा के 10 सूंड और 20 भुजाएं हैं। यह भी मान्यता है कि भगवान शिव जी जब दानव त्रिपुरासुर से युद्ध करने के लिए जा रहे थे तब इसी स्थान पर भगवान शिव जी ने प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश जी के दर्शन किये थे और शिव जी द्वारा ही यहाँ श्री गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना की थी। गणेशोत्सव के समय रांजणगांव में कोई भी व्यक्ति अपने घर में श्री गणपति जी की मूर्ति की स्थापना नहीं करता बल्कि सभी लोग मंदिर में ही आकर पूजा अर्चना करते हैं।
गणेशोत्सव के पावन अवसर पर हमने आज श्री अष्टविनायक जी की यह लेख रूपी यात्रा की, भगवान श्री अष्टविनायक जी से यही प्रार्थना है कि चार अष्टविनायक जी के तो दर्शन लाभ मुझे उनकी कृपा से हो गए अब वे पुनः अपनी कृपा करें ताकि शेष चार अष्टविनायक के भी दर्शन लाभ हो सके, इसी प्रार्थना के साथ श्री अष्टविनायक जी के श्री चरणों में बारम्बार दंडवत प्रणाम - दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर।
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