वायुयान के प्रथम भारतीय अविष्कारक शिवकर बापूजी तलपदे
मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति इतनी अधिक विकसित रही है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है किन्तु हमारी संस्कृति का वास्तविक चित्रण हमारे इतिहास से विलुप्त कर हमें गलत इतिहास शिक्षा के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है। इस 139 वें लेख के माध्यम से हम वायुयान के प्रथम भारतीय अविष्कारक श्री शिवकर बापूजी तलपदे के विषय में चर्चा कर रहे हैं। वैसे तो प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनियों के समय से ही कई संसाधन विकसित हो गए थे किन्तु वे अप्रचारित ही रहे। हमें यह पढ़ाया जाता है कि सबसे पहले वायुयान का अविष्कार राइट बंधुओं ने सन 1903 में किया किन्तु संभवतः हम भूल गए कि उसके पहले यह कार्य भारत में शिवकर बापूजी तलपदे द्वारा सन 1895 में ही कर दिखाया था और उसके भी काफी पहले हमारे महर्षि भारद्वाज द्वारा विमान शास्त्र की रचना कर सम्पूर्ण सिद्धांत बता दिया था। मुंबई में जन्में शिवकर बापूजी तलपदे मुंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स के अध्यापक और एक वैदिक विद्वान थे, उनकी शिक्षा भी वहीं हुई थी।
18 वी सदी में सम्पूर्ण विश्व में हवाई जहाज की कोई कल्पना ही नहीं थी, ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों ने हमारे धर्मग्रंथों को पढ़ने के लिए संस्कृत की शिक्षा ली और हमारे ऋषि मुनियों के शोध पर कार्य करके उसको अपने नाम से प्रचारित कर दिया और वही हमें पढ़ाया जा रहा है। लार्ड मैकाले ने कई वर्षो तक हमारे ग्रंथों का अध्ययन और भारत के समृद्ध ज्ञान को देखकर समझ लिया था कि अधिक समय तक इन्हें गुलाम नहीं बना कर रख सकते इसलिए उसने भगवान राम और पुष्पक विमान को केवल कोरी कल्पना बता कर असत्य प्रचार प्रसार करना प्रारम्भ कर दिया। शिवकर बापूजी तलपदे ने हमारे ऋषि मुनियों के उसी शोध के ज्ञान से विश्व का सबसे पहला हवाई जहाज बना कर दिखा दिया था, उनके द्वारा एक बड़ा विमान बनाकर उसे मुंबई की चौपाटी के समुद्र तट पर उड़ाया, यह विमान 1500 फिट ऊपर उड़ा और फिर सकुशल बगैर किसी नुकसान के नीचे आया। उन्होंने विमान का नाम मरुत्सखा रखा, जिसका अर्थ हवा का मित्र होता है, इस कार्यवाही के समय वहाँ दो अंग्रेज पत्रकार भी उपस्थित थे, लन्दन के अखबारों में यह खबर प्रकाशित भी हुई थी। किन्तु यह बात अंग्रेजों को नागवार लगी होकर उन्होंने साजिशपूर्वक उन्हें गुमनाम कर दिया।
दक्षिण मुंबई में पठारे प्रभु परिवार में शिवकर बापूजी तलपदे का जन्म हुआ था। आर्य समाज से जुड़े तलपदे वेदों और संस्कृत के विद्वान थे और उन्हें भारतीय वैमानिकी शास्त्रों में काफी रूचि भी थी। संस्कृत और वेदों के तात्कालिक एक विशेषज्ञ पंडित सुबराय शास्त्री, जिन्होंने कर्नाटक के कोलर में एक तपस्वी से विमान बनाने की कला सीखी थी। उन्हीं से शिवकर बापूजी तलपदे को योग्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ, जिससे प्रेरित होकर उन्होंने विमान विद्या पर अनुसन्धान कार्य प्रारम्भ कर इस कार्य को अंजाम प्रदान किया था। विमान के उड़ान की खबर केसरी अख़बार में भी प्रकाशित हुई और उस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी थे न्यायाधीश महादेव गोविन्द रानडे और बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़। शिवकर बापूजी तलपदे की पत्नी श्रीमती लक्ष्मी बाई भी वास्तुकला एवं तकनीकी जानकार और वैदिक विद्वान थीं, वे भी उड़ान के दिन वहीं उपस्थित थी। शिवकरजी ने उस समय अपने विमान को 1500 फिट ऊपर तक करीब 15 मिनिट उड़ाया और सकुशल नीचे भी बगैर किसी नुकसान के उतारा।
विमान निर्माण और उड़ान हेतु वित्तीय सहायता महाराजा गायकवाड़ जी द्वारा प्रदान करने की पेशकश गई थी, किन्तु ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें रोक दिया। तब शिवकर बापूजी तलपदे ने अपने रिश्तेदारों से कर्ज लेकर कार्य किया। कहा जाता है कि पत्नी की बीमारी और अपनी सीमित आय के कारण उन्हेँ अपना शोध करना बड़ा ही मुश्किल लगने लगा था, वे अत्यधिक कर्ज में डूब गए थे, तब उन्हें कर्ज देने वाले रिश्तेदारों ने मरुत्सखा विमान के अवशेष और शोध के दस्तावेज शिवकर बापूजी तलपदे से हासिल किये और एक अच्छी रकम लेकर रैली ब्रदर्स को बेच दिए। रैली ब्रदर्स द्वारा उस समय शिवकर बापूजी तलपदे को यह आश्वासन दिया था कि वे उनके लिए कार्य करेंगे तो वे उन्हें वित्तीय सहायता देंगे किन्तु बाद में रैली ब्रदर्स ने वह सब राइट बन्धुओं को बेच दिया और राइट बन्धुओं ने वह कार्य अपने नाम कर लिया।
शिवकर बापूजी तलपदे विमान बनाने और उसे उड़ाने वाले पहले व्यक्ति हैं या नहीं, उनकी सफलता की यह बात भारत से बाहर नहीं निकल पाई और जो बात बाहर निकली वह भी साजिशपूर्वक दबा दी गई। उस उड़ान की पुष्टि करने वाले कोई चित्र अथवा कोई लेखी सबूत उपलब्ध नहीं होने के कारण शिवकर बापूजी तलपदे गुमनामी के शिकार हो गये। हालाँकि उपलब्ध साहित्य के कुछ अंशों का दावा है कि शिवकर बापूजी तलपदे द्वारा निर्मित विमान बेलनाकार बाँस से बना हुआ था, जिसे तरल पारे का ईंधन दिया गया था। जब पारे ने सूर्य के प्रकाश के साथ संपर्क किया तो उसमें रासायनिक क्रिया होकर हाइड्रोजन का निर्माण हुआ और हाइड्रोजन हवा से हल्का होने के कारण विमान उड़ गया। उनका वह विमान भले ही कितना भी उड़ा हो, कैसे भी उड़ा हो, लेकिन यह तो तय है कि राइट बंधुओं के पहले एक भारतीय द्वारा विमान को बनाने, उसे उड़ाने और सही सलामत उसे नीचे उतार लेने में सफलता प्राप्त की है, जबकि राइट बन्धुओं ने उनके इस कार्य के कई वर्षों बाद विमान बना कर उडाया जो उतनी ऊंचाइयों तक भी नहीं जा सका और उतारते समय क्षतिग्रस्त भी हो गया। हमारे देश की इस महान हस्ती शिवकर बापूजी तलपदे को सादर नमन।
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