महावीर पराक्रमी सेनापति लाचित बरफुकन

मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारा  इतिहास साक्षी है कि विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा हमारे देश पर काफी आक्रमण किये गए और समय समय पर हमारे वीर योद्धाओं ने उनसे लोहा  भी लिया किन्तु आज भी कई ऐसे नाम हैं जो आमजन को ज्ञात ही नहीं है, आज इस 144 वें पुष्प में हम एक ऐसे वीर योद्धा की चर्चा कर रहे हैं, जिनकी वीरता के कारण मुग़ल शासक पूर्वोत्तर भारत पर कब्ज़ा नहीं कर पाए थे, जिनका नाम लाचित बरफुकन है। असम में आज भी वहाँ के लोग तीन महान लोगों का बहुत ही सम्मान करते हैं, जिनमें प्रथम श्रीमंत शंकर देव जी जोकि पंद्रहवीं शताब्दी में वैष्णव धर्म के महान प्रवर्तक थे, द्वितीय लाचित बरफुकन जिन्हें लाचित बोरफूकन भी कहा जाता है, जोकि असम के सबसे वीर सैनिक माने जाते हैं और तृतीय लोकप्रिय गोपीनाथ जी बारदोलोई, जोकि स्वतंत्रता संघर्ष के समय अग्रणीय रहे थे। सन 1671 की सराईघाट की लड़ाई लाचित बरफुकन की नेतृत्व क्षमता के कारण ही जानी जाती है, जिसमे मुग़ल सेना बुरी तरह से पराजित हुई थी।   
लाचित सेंग कालुक मो साई नामक एक पुजारी के चौथे पुत्र थे। लाचित ने शास्त्र और सैन्य कौशल की शिक्षा प्राप्त की थी।  उन्हें अहोम स्वर्गदेव के ध्वजवाहक का पद (निज सहायक के समतुल्य एक पद) सौंपा गया था। इसके पहले लाचित अहोम राजा चक्रध्वज सिंह की शाही घुड़साल के अधीक्षक, शाही धुड़सवार रक्षक दल के अधीक्षक और महत्वपूर्ण सिमुलगढ़ किले के प्रमुख भी रहे थे। राजा चक्रध्वज ने मुग़ल शासकों से गुवाहाटी वापस प्राप्त करने के लिए चलाये गए अभियान में सेना का नेतृत्व करने के लिए लाचित का चयन किया और राजा ने उपहारस्वरूप लाचित को एक सोने की मूठ वाली तलवार और पारंपरिक वस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया था। लाचित ने मुगलों के कब्जे से गुवाहाटी पुनः प्राप्त कर ली और बाद में सराईघाट की लड़ाई में भी इसे बचाये रखा।  

असम को उस कालावधि में अहोम साम्राज्य के नाम से जाना जाता था, दिल्ली में उस समय मुग़ल शासक औरंगजेब का शासनकाल था। औरंगजेब का सम्पूर्ण भारत पर राज करने का एक सपना था. जो दक्षिण और पूर्वी तरफ आगे नहीं बढ़ पा रहा था। अपनी इसी साम्राज्य विस्तार की इच्छापूर्ति के लिए मुग़ल शासक द्वारा उत्तर पूर्वी इलाके के अहोम साम्राज्य पर आक्रमण करने के लिए एक राजपूत राजा रामसिंह के नेतृत्व में विशाल सेना भेजी। अहोम साम्राज्य के सेनापति थे, लाचित बरफुकन जिन्हें लाचित बोरफूकन भी कहा जाता है। लाचित बरफुकन नाम से ही काफी खौफ था, कहा जाता है कि इसके पहले भी कई लोगों ने अहोम साम्राज्य पर हमले किये थे, जिन्हें लाचित बरफुकन ने नाकाम कर दिए थे। पराजित राजा रामसिंह भी इस वीर पराक्रमी सेनापति लाचित बरफुकन की वीरता की प्रशंसा किये बगैर नहीं रहे थे।  

मुग़ल सेना द्वारा आक्रमण के लिए आने की खबर सुनते ही सेनापति लाचित बरफुकन ने अपनी पूरी सेना को ब्रह्मपुत्र नदी के पास खड़ा कर दिया। सेनापति लाचित बरफुकन ब्रह्मपुत्र नदी को अपनी माँ मानते थे और वे अपने साम्राज्य के चप्पे चप्पे की अच्छी तरह से जानकारी भी रखते थे। वहाँ की भौगोलिक स्थिति कुछ इस प्रकार की थी कि अहोम साम्राज्य पर हमला करने से पहले इसी मार्ग का उपयोग करते हुवे ब्रह्मपुत्र नदी से होकर ही आना पड़ता था। नदी के पहले वाला भाग निचला था और नदी के पार वाला भाग ऊँचा था जहाँ सेनापति लाचित की सेना तैनात होती थी, और जब तक दुश्मन की सेना नदी पार करती थी तब तक लाचित की रणनीति अनुसार दुश्मन सेना के आधे से अधिक सैनिक मारे जा चुके होते थे। यही कारण था जिससे कोई भी अहोम साम्राज्य पर कब्ज़ा नहीं कर पा रहा था।  

सराईघाट की भीषण लड़ाई में सेनापति लाचित बरफुकन की कुशल नेतृत्व क्षमता के कारण ही मुग़ल सेना को भारी पराजय का सामना करना पड़ा था। सेनापति लाचित बरफुकन की सेना के पास बहुत ही कम और सीमित संसाधन थे। सामने से लाखों की सेना आ रही थी किन्तु सेनापति लाचित बरफुकन की सेना का  मनोबल काफी ऊँचा था, कहा जाता है कि जैसे ही मुग़ल सेना आई वैसे ही लाचित के एक एक सैनिक ने कई सौ मुग़ल सैनिकों को मारा था। सेनापति लाचित बरफुकन की सेना का मनोबल देखकर मुग़ल सेना में भगदड़ मच गई थी। मुग़ल सेना की इस भारी पराजय से मुग़ल सम्राट औरंगजेब को सेनापति लाचित बरफुकन की ताकत का अंदाजा हो गया था। महावीर पराक्रमी सेनापति लाचित बरफुकन ने युद्ध तो जीत लिया किन्तु अपनी बीमारी से नहीं जीत सके और अंततः सन 1672 में उनका देहांत हो गया। भारतीय इतिहासकारों ने भले ही इस महा पराक्रमी की उपेक्षा की हो किन्तु असम के इतिहास और लोकगीतों में आज भी यह चरित्र महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज की तरह अमर है। 

सेनापति लाचित बरफुकन पराक्रम और सराईघाट की भीषण लड़ाई में असमिया सेना की विजय का स्मरण करने के लिए सम्पूर्ण असम राज्य में प्रतिवर्ष 24 नवम्बर को लाचित दिवस मनाया जाता है तथा राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट लाचित मैडल से सम्मानित किया जाता है। हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा असम के जोरहाट जिले में अहोम सेनापति लाचित बरफुकन के समाधि स्थल के नजदीक ही लाचित बरफुकन की 125 फिट ऊँची (41 फिट ऊँचे पैडस्टल पर 84 फिट की प्रतिमा) कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया गया। समाधि स्थल से लगे इस स्थल को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है, वहाँ अहोम राजवंश के शासनकाल के इतिहास को प्रदर्शित करने वाली गैलेरी  भी बनाई जा रही है साथ ही 500 लोगों की क्षमता वाला एक आडिटोरियम भी बनाया जा रहा है। देश के इन महावीर पराक्रमी सेनापति लाचित बरफुकन को दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का शत शत नमन। 

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