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हमारे देश की महान सांस्कृतिक विरासत को धार्मिक प्रसंग कथानक, पौराणिक प्रसंग कथानक, हमारे देश के महापुरुषों के जीवन चरित्र अथवा उनके कार्यों के प्रेरक प्रसंग, संत माहत्माओं के जीवन चरित्र अथवा उनके सदकार्यों के प्रेरक प्रसंग, हमारे देश में मनाये जाने वाले त्यौहारों, परम्पराओं के साथ ही पारिवारिक, सामाजिक रहन सहन आदि से परिचय कराने और विस्मृत संस्कृति से पुनः जुड़कर और जनमानस के द्वारा उन्हें अपनाकर एक संस्कारित जीवन जीने के लिए प्रेरित किया जाय। इस कार्य को करने का एक प्रयास मात्र ही इस बेबसाइट लेखन का मुख्य उद्देश्य है।
अपनी रुचि अनुसार विषयों पर आप लेख पढ़ सकते हैं : -
आधुनिकता के इस दौर में हम हमारे देश की प्राचीन सभ्यता के साथ ही संस्कृति और परम्पराओं से भी दूर होते जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त वर्तमान शिक्षा पद्धति भी नव पीढ़ी को हमारी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति, संस्कारों आदि से वास्तविक परिचय नहीं करा पा रही है। प्राचीनकाल में गुरुकुल शिक्षा पद्धति में ऐसी व्यवस्थाऍ हुआ करती थी कि बचपन से ही संस्कारित आधारशिला सुदृढ़ हो जाती थी और बचपन से ही इस प्रकार की शिक्षा एवं संस्कार आचरण में आ जाते थे । किन्तु आधुनिक शिक्षा पद्धति उस गुरुकुल वाली शिक्षा पद्धति से भिन्न होने से अपनी परम्पराओं और संस्कृति से हम दूर होते जा रहे है।
अपनी रुचि अनुसार विषयों पर आप लेख पढ़ सकते हैं : -
- धार्मिक प्रसंग / कथाएँ
- महापुरुषों के जीवन के प्रेरक प्रसंग
- महान भक्तों के जीवन चरित्र और प्रेरक प्रसंग
- स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी
- संतों के जीवन के प्रसंग
- प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति और संस्कार
- पारिवारिक मर्यादायें एवं रहन सहन
- सनातन धर्म - संस्कार और नैतिकताऐं
- भारतीय महान नारी शक्तियां
- पर्व उत्सव एवं त्यौहार
आधुनिकता के इस दौर में हम हमारे देश की प्राचीन सभ्यता के साथ ही संस्कृति और परम्पराओं से भी दूर होते जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त वर्तमान शिक्षा पद्धति भी नव पीढ़ी को हमारी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति, संस्कारों आदि से वास्तविक परिचय नहीं करा पा रही है। प्राचीनकाल में गुरुकुल शिक्षा पद्धति में ऐसी व्यवस्थाऍ हुआ करती थी कि बचपन से ही संस्कारित आधारशिला सुदृढ़ हो जाती थी और बचपन से ही इस प्रकार की शिक्षा एवं संस्कार आचरण में आ जाते थे । किन्तु आधुनिक शिक्षा पद्धति उस गुरुकुल वाली शिक्षा पद्धति से भिन्न होने से अपनी परम्पराओं और संस्कृति से हम दूर होते जा रहे है।
आज वास्तव में अत्यंत आवश्यकता है पुनः गुरुकुल वाली शिक्षा पद्धति अपनाने की और नौनिहालों को बचपन से ही संस्कारों से शिक्षित करने की। अभी कई संस्थाओं ने अपने धर्म की शिक्षा बच्चों को प्रदान करने के आशय से अपने अपने धर्मस्थलों में ही इस प्रकार की व्यवस्थाऍ की है, जिससे कि धर्म, संस्कृति और परम्पराओं से बच्चों को अवगत कराया जा सके और उस अनुसार आचरण जीवन में कराया जा सके।
आशा है आप सभी मेरे इस दुर्लभ प्रयास को सुलभ बनाने के लिए इस लेखन को स्वयं तो पढ़ेंगे साथ ही नव पीढ़ी को भी इससे अवगत करने के मेरे इस प्रयास में साथ देंगे। मेरे इस लेखन कार्य में कोई त्रुटि, सुधार सम्बंधित आवश्यक सुझाव हो तो उससे भी अवगत करावें ताकि आगामी लेखन उस अनुसार हो सके। आप सभी का स्नेह बना रहे और आपके इस स्नेह की छत्रछाया में मैं समाज की थोड़ी भी सेवा अपने इस ब्लॉग मेरा महान देश के माध्यम से कर सकूँ, यही मेरी अभिलाषा है।
जय माँ भारती।