वीरांगना राजकुमारी कार्विका
मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। इस बेबसाइट पर यह 130 वाँ लेख आपके समक्ष प्रस्तुत है। हमारे देश में कई वीरांगनाएं हुई हैं, जिन्होंने कई अविस्मरणीय साहसिक और देश भक्ति से परिपूर्ण कार्य किये और वे उन कार्यों के कारण आज भी स्मरण किये जाने योग्य हैं। वह बात अलग है कि हमारे इतिहास में काफी कुछ खास बताया ही नहीं गया है किंतु आज भी कहीं न कहीं से वे लुप्तप्राय बातें प्रत्यक्ष आ ही जाती है। आज हम छोटे से कठ गणराज्य की उन प्रथम योद्धा वीरांगना राजकुमारी कार्विका की चर्चा कर रहे हैं, जिन्होंने महान कहलाये जाने वाले सिकंदर को परास्त किया था। सिंधु नदी के उत्तर में कठ नाम का छोटा सा राज्य था, जिस राज्य की राजकुमारी थी वीरांगना कार्विका।
राजकुमारी कार्विका बचपन से ही एक कुशल योद्धा थी और वे नित्य शस्त्र कला अभ्यास करती थी। जिस आयु में लड़कियाँ गुड्डे गुड्डी के खेल खेलती हैं, उस आयु में राजकुमारी कार्विका शिकार खेलना, शत्रुओं से लड़ना, शत्रुसेना का दमन करना, उनसे अपना देश मुक्त करवाना और फिर शत्रुओं को दण्ड देना इत्यादि उनके बचपन के खेल हुआ करते थे। वीरता और देशभक्ति से ओतप्रोत राजकुमारी ने अपने बचपन की सहेलियों के साथ एक फ़ौज भी बनाई हुई थी, जिसका नाम उन्होंने चंडी सेना रखा था। धनुर्विद्या की समस्त कलाओं में दक्ष, तलवारबाजी में निपुण और भालेबाजी में अचूक निशांची राजकुमारी ने अपने गुरूजी के साथ युद्ध अभ्यास में जीत प्राप्त कर सबसे शूरवीर शिष्या का स्थान प्राप्त किया था। जिस समय राजकुमारी कार्विका तलवारबाजी करने के लिए उतरती थी तब वे अपने दोनों हाथों में तलवार लिए होती थी और एक तलवार कमर पर लटकी होती थी। अपने दोनों हाथों से तलवार चलाते हुवे वे साक्षात माता काली का स्वरुप लगती थी। रणनीति और दुश्मनों के युद्ध के चक्रव्यूह को तोड़ने में भी राजकुमारी कार्विका पारंगत थी। राजकुमारी कार्विका गुरुकुल की शिक्षा पूर्ण कर एक निर्भीक और शूरवीरों की शूरवीर बनकर अपने राज्य में लौटी थी।
राजकुमारी के गुरुकुल से लौटने के कुछ सालों बाद अचानक खबर मिली कि सिकंदर लूटपाट करते हुवे कठ गणराज्य की ओर बढ़ रहा है। भयंकर तबाही मचाते हुवे सिकंदर की सेना नारियों के साथ दुष्कर्म करते हुवे हर राज्य को लूटते हुवे आगे बढ़ रही थी। कठ गणराज्य के इतिहास की प्रथम सेना थी, राजकुमारी कार्विका की चंडी सेना। राजकुमारी कार्विका की चंडी सेना में 8000 से 8500 विदुषी महिलायें थी, छोटा राज्य होने के कारण अत्यधिक सैन्य बल की आवश्यकता उन्हें कभी पड़ी नहीं थी। सिकंदर के अचानक आक्रमण से राज्य को थोड़ा बहुत नुकसान भी हुआ। सिकंदर की डेढ़ लाख सैनिकों की सेना के साथ राजकुमारी कार्विका की 8000 से 8500 विदुषी महिलाओं की चंडी सेना का वह ऐतिहासिक युद्ध था, जिसमें एक भी पुरुष सैनिक नहीं था। राजकुमारी और उनकी सेना ने अदम्य साहस, रणकौशल और वीरता का परिचय देते हुवे सिकंदर की सेना का सामना किया। राजकुमारी कार्विका पहली योद्धा थी जिन्होंने सिकंदर के साथ युद्ध किया था।
युद्ध नीति बनाने में कुशल व्यक्ति की ही जीत होती है। सिकंदर ने पहले सोचा कि महिलाओं की मुट्ठीभर फ़ौज को आसानी से हरा देंगे, उसने पहले 25000 सैनिकों का दस्ता भेजा, उसमें से एक भी सैनिक जीवित वापस नहीं लौटा। राजकुमारी कार्विका की सेना को मानो स्वयं मां भवानी का वरदान प्राप्त हो गया था उन्होंने बिना रुके गाजर मूली की तरह उस दस्ते के सैनिकों को काट गिराया जबकि राजकुमारी की सेना की पचास से भी कम महिलाएं घायल हुई। उसके बाद सिकंदर ने 40000 सैनिकों का दूसरा दस्ता भेजा और तीन तरफ से घेराबन्दी कर दी, किन्तु राजकुमारी ने स्वयं सैन्य संचालन करते हुवे अपनी सेना को तीन भागों में बांटकर युद्ध किया जिसमे सिकंदर की वह सेना भी राजकुमारी के हाथों बुरी तरह से पराजित हुई।
इसके बाद तीसरी बार शेष 85000 सैनिकों के दस्ते के साथ खुद सिकंदर युद्ध करने आया तो राजकुमारी और उनकी सेना ने सिकंदर की सेना में मारकाट मचा दी। नंगी तलवार हाथ में लेकर चंडी स्वरुप में राजकुमारी ने ऐसा युद्ध किया और तबाही की, जिसे देखकर सिकंदर को भी डरकर पीछे हटने को विवश होना पड़ा। राजकुमारी ने साहसपूर्वक सिकंदर और उनकी फ़ौज का सामना कर उसे सिंध के पार भागने के लिए मजबूर कर दिया। इस महाप्रयलंकारी अंतिम युद्ध में कठ गणराज्य की 8500 में से 2750 साहसी वीरांगनाओं ने भारत माता की रक्षा करते हुवे अपने प्राणों की आहूति प्रदान की। राजकुमारी कार्विका की सेना की शहीद वीरांगनाओं में सभी के नाम तो नहीं मिलते किन्तु गरिन्या, मृदुला, सौरायमिनी, जया जैसे कुछ नाम इतिहास में कहीं कहीं मिलते है। इस युद्ध में सिकंदर की 150000 की सेना में से लगभग 25000 सैनिक ही जीवित बच पाये थे।
इस युद्ध में हार मानकर सिकंदर ने कठ गणराज्य पर दौबारा कभी भी आक्रमण नहीं करने का लिखीत संधिपत्र राजकुमारी कार्विका को दिया था। राजकुमारी कार्विका के संबंध में हमारे इतिहासकारों ने कुछ नहीं लिखा उल्टा उस इतिहास को ही नष्ट कर दिया, किन्तु कहते हैं न कि सच छिपता नहीं, कहीं कहीं कुछ उल्लेख मिल ही जाता है। पुराणी लेख नामक दस्तावेज के साथ राय चौदरी की पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ़एशेन्ट इंडिया और ग्रीस के दस्तावेज मैसेडोनिया के इतिहास में इस युद्ध का अति अल्प उल्लेख हुआ है। हमारे इतिहासकारों द्वारा भारत को ऋषि मुनि का देश एवं सनातन धर्म को पुरुष प्रधान तथा नारी विरोधी संकुचित विचारधारा वाला धर्म साबित करने के दुराशय से इस बातों को छोड़ दिया है। यदि 1857 की ऐतिहासिक क्रांति नहीं होती तो हो सकता है रानी लक्ष्मीबाई का भी उल्लेख नहीं होता। राजकुमारी कार्विका जैसी वीरांगनाओं का जन्म केवल सनातन धर्म में ही हो सकता है। सनातन धर्म का शीश नारी है तो धड़ पुरुष है, जिस प्रकार शीश के बगैर धड़ बेकार है उसी तरह सनातन धर्म भी नारी के बगैर अपूर्ण है, बस आवश्यकता है नारी शक्ति के सही दिशा में जाग्रत होने की। अपने इस लेख को यही विराम देते हुवे वीरांगना राजकुमारी कार्विका को दुर्गा प्रसाद शर्मा,एडवोकेट, इंदौर की ओर से विनम्र पुष्पांजली। जय हिन्द जय भारत।
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