महिष्मति नगरी - होल्कर राजवंश की राजधानी महेश्वर
मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारे भारत देश के मध्य प्रदेश राज्य के खरगोन जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित महिष्मति नगरी (जिसे वर्तमान में महेश्वर के नाम से जाना और पहचाना जाता है) का पौराणिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व तो है ही साथ ही यह एक प्रसिद्द पर्यटन स्थल भी है। कभी होल्कर राजवंश की राजधानी रही यह नगरी आज पर्यटन के साथ ही महेश्वरी साड़ियों के लिए विशेषतः प्रसिद्द है। स्कन्द पुराण, रेवाखण्ड, वायु पुराण एवं अन्य कई धर्म ग्रंथों में महिष्मति नगरी के नाम से प्रसिद्द इस नगरी में पिछले दिनों अपने एक बालसखा एवं सहपाठी उमाशंकर के साथ जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, उस समय महेश्वर के किले से लगे अति सुन्दर और मनोरम घाट पर माँ नर्मदा में स्नान करते समय इस मनोरम नगरी के विषय में भी कुछ लिखने की इच्छा हुई, इसलिए यह 140 वां पुष्प माँ नर्मदा और भगवान श्री राजराजेश्वर जी को अर्पित करता हूँ। पुण्यश्लोका देवी अहिल्या बाई होल्कर माँ साहेब द्वारा इन्दौर के बाद महेश्वर में अपनी राजधानी स्थापित की गई थी।
हमारे धर्म ग्रंथों में सतयुग के महाराज यदु के पुत्र राजा मुचकुंद द्वारा महिष्मति नगरी की स्थापना किये जाने का उल्लेख मिलता है। प्राचीन समय में हैहय वंश के अति बलशाली शासक राजा सहस्त्रार्जुन की राजधानी भी रही थी महिष्मति नगरी। इन्हीं राजा सहस्त्रार्जुन द्वारा इसी नगरी में लंकापति रावण को भी परास्त किया था, जिनका पश्चात् में भगवान श्री परशुराम जी द्वारा वध किये जाने का उल्लेख हमारे धर्म ग्रंथों में मिलता है। महाभारत काल में यहाँ राजा नील का राज्य होना बताया जाता है, जिन्हें बाद में पाण्डुपुत्र सहदेव द्वारा युद्ध में परास्त किया गया था। आठवीं सदी में श्रद्धेय शंकराचार्य जी के भारत भ्रमण में भी इस नगरी का उल्लेख पाया जाता है, तो मंडन मिश्र जी का प्रसिद्द शास्त्रार्थ भी इसी स्थान पर होना बताया जाता है। कहा जाता है कि यहाँ स्थित कालेश्वर, ज्वालेश्वर, वृद्ध कालेश्वर, केशव मंदिर, चतृर्भुज मंदिर,बाणेश्वर, मातंगेश्वर शिवालय परमार काल से भी पूर्व अर्थात दसवीं सदी के स्थापित मंदिर हैं।
बौद्ध साहित्य में इस नगरी को अवन्ति जनपद का मुख्य नगर बताया गया है, उस कालखण्ड में भी यह नगरी काफी समृद्धशाली एवं व्यापारिक केंद्र रही थी। गुप्तकाल में भी महिष्मति नगरी का उल्लेख मिलता है तो कवि कालीदास जी की रचनाओं में भी इस नगरी का उल्लेख मिलता है। मौर्य वंश के शासकों द्वारा भी इस नगरी को पुनर्स्थापित किये जाने के प्रमाण हमारे इतिहास में मिलते हैं। महिष्मति नगरी के और भी कुछ नामों का भी वर्णन पृथक पृथक पुरातन साहित्यों में मिलता है, जिनमें मत्स्य, पालीश्वर तीर्थ, मुँह मोहर, महेश्वरी, महेश्वर प्रमुख हैं। पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों द्वारा की गई खुदाई और परिक्षण में भी यहाँ से आरंभिक पाषाण युग, मध्य पाषाण युग और पुरा पाषाण युग के काफी हथियार, बर्तन और अवशेष प्राप्त हुवे हैं। नर्मदा नदी के दूसरे तट पर नवदा टोली नामक प्राचीन स्थल है, वहाँ भी खुदाई में काफी प्राचीन बर्तन और प्राचीन शिल्पकला के अवशेष प्राप्त हुवे हैं।
मुग़ल काल के समय के नष्ट किये हुवे मंदिरों का पुनर्निर्माण केवल यहाँ ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत में देवी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा कराया गया था। देवी अहिल्या बाई होल्कर से बढ़कर शिवभक्त आधुनिक काल में कोई अन्य नहीं हुआ है, उन्होंने सम्पूर्ण भारत में शिवमंदिरों और सुन्दर घाटों का निर्माण एवं पुनरोद्धार करवाया। महेश्वर में अहिल्या घाट अत्यंत ही मनोहर और खूबसूरत घाटों में से एक है, इस सुन्दर और मनोहारी घाट के चारों और भगवान शिव के छोटे बड़े मंदिर हैं ही इसके अलावा भी घाट पर जगह जगह भी शिवलिंग दिखाई पड़ते हैं। घाट के सामने ही नर्मदा नदी अपने पूर्ण तीव्र वेग से प्रवाहित हो रही है। घाट के आसपास शिव मंदिर और घाट के पीछे महेश्वर का ऐतिहासिक और अति भव्य खूबसूरत किला एवं किले का अति भव्य द्वार होल्कर राजवंश तथा देवी अहिल्या बाई होल्कर के शासनकाल की गौरवगाथा का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करता है। यह घाट पूरी तरह से शिवमय प्रतीत होता है।
घाट से किले के मुख्य द्वार में प्रवेश करने पर यह भी देखने को मिलता है कि किला आज भी पूरी तरह से सुरक्षित है। उत्कृष्ट शिल्पकला का व्यवस्थित तरीके से निर्मित यह किला अपनी मजबूती के साथ नर्मदा नदी के किनारे सदियों से अटल है। यह किला बाहर से जितना सुन्दर और अनोराम दिखाई देता है अन्दर से भी उतना ही आकर्षक है। सुन्दर कारीगरी और शिल्पकारी का निर्माण आज भी उतना ही सुन्दर प्रतीत होता है। किले के अंदर ही एक ओर राजराजेश्वर शिवजी का मंदिर है, जहाँ के बारे में कहा जाता है कि वहाँ शिवलिंग की स्थापना भगवान श्री परशुरामजी द्वारा की गई थी। यहाँ पर सैकड़ों वर्षों से ग्यारह अखण्ड दीपक दैदीप्यमान हैं, देवी अहिल्या बाई होल्कर प्रतिदिन प्रातः और संध्या को यहाँ पूजनादि किया करती थी। यहाँ सहस्त्रार्जुन, कालेश्वर, विट्ठलेश्वर, अहिल्येश्वर मंदिर भी अत्यंत दर्शनीय हैं।
किले के अंदर ही देवी अहिल्या बाई होल्कर माँ साहेब का निजी पूजाघर भी है, जहाँ अनेकों धातु तथा पाषाण से निर्मित पृथक पृथक शिवलिंग और अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाओं को एक ही जगह पर संग्रहित करके दर्शनार्थ रखा गया है। यहाँ एक स्वर्ण का झूला भी आकर्षण का केंद्र है, कहा जाता है कि इस झूले में देवी अहिल्या बाई होल्कर माँ साहेब भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा को बैठाकर उन्हें झूला झुलाती थीं। किले में ही देवी अहिल्या बाई होल्कर माँ साहेब की राजगद्दी और शस्त्रागार भी है। पूजा घर के पास ही एक भव्य द्वार है, जिसके अंदर एक आलिशान महल है, जो कभी होल्कर राजपरिवार का निवास हुआ करता था। वर्तमान में यह महल एक हैरिटेज होटल के रूप में स्थित है। वहीं महेश्वरी साड़ियों का लूम भी है, यह होटल और साड़ियों का लूम होल्कर राजवंश के ही वंशज श्री प्रिंस रिचर्ड होल्कर की देखरेख में संचालित हो रहे हैं।
इसी के नजदीक देवी अहिल्या बाई होल्कर माँ साहेब की एक बड़ी प्रतिमा स्थापित है, जिसके पास ही कई गुप्त द्वार हैं। इन गुप्त द्वारों को वर्तमान में बंद कर रखा है, ऐसा कहा जाता है कि इन द्वारो से सुरंग के द्वारा भारत के कई स्थानों तक पहुँचने के लिए गुप्त भूमिगत मार्ग हैं, जो राज काज की व्यवस्थाओं के लिए कभी उपयोग में आते रहे थे। यहाँ पर मुख्य घाट के अलावा पेशवा घाट, फणसे घाट भी आकर्षण का केंद्र हैं, तो ज्योतिर्लिंग स्वरुप में काशी विश्वनाथ मंदिर, घुश्मेश्वर मंदिर, सोमनाथ मंदिर एवं बैद्यनाथ मंदिर भी हैं। मुख्य घाट से कुछ दूरी पर सहस्त्रधारा है, जहाँ नर्मदा नदी का अत्यंत ही मनोरम और प्राकृतिक दर्शन देखने को मिलता है। यहाँ मण्डलेश्वर के नजदीक ही वांचू प्वाइंट स्थित है जहाँ से इन्दौर शहर को जलापूर्ति की व्यवस्था होती है। समय समय पर यहाँ मनाये जाने वाले तीज त्यौहार, उत्सव, पर्व भी देखने योग्य हैं, जिनमें शिवरात्रि स्नान, निमाड़ उत्सव, गणगौर उत्सव, नवरात्रि उत्सव, गंगा दशमी, नर्मदा जयंती, अहिल्या जयंती प्रमुख हैं। श्रावण मास के अंतिम सोमवार को निकलने वाली भगवान श्री काशी विश्वनाथजी की शाही सवारी के नगर भ्रमण पर काफी धर्मप्रेमीजन दर्शन हेतु यहाँ आते हैं।
महेश्वर के घाट और नर्मदा नदी के तट की सुंदरता कई हिंदी फिल्मों में भी बताई जा चुकी है। कई हिंदी फिल्मों और दक्षिण भारत की कई फिल्मों की शूटिंग भी यहाँ सम्पन्न हुई है। तुलसी फिल्म की सम्पूर्ण शूटिंग महेश्वर के घाटों और आसपास के क्षेत्रों में संपन्न हुई थी। फिल्म अशोका भी यहीं फिल्माई गई थी, तो महाशिवरात्रि और आदि शंकराचार्य की शूटिंग भी यहीं संपन्न गई। प्रसिद्द अभिनेत्री हेमा मालिनी द्वारा निर्मित जी टी वी सीरियल झाँसी की रानी की शूटिंग भी यहीं पर संपन्न हुई थी। इसी प्रकार से ही मैन के नाम से प्रसिद्द सुपर स्टार धर्मेंद्र एवं उनके दोनों पुत्रों सन्नी देओल और बॉबी देओल द्वारा अभिनीत फिल्म यमला पगला दीवाना की शूटिंग भी महेश्वर के बाज़ार,चौक, राजवाड़ा, अहिल्या बाई की छत्री एवं अहिल्या घाट पर संपन्न हुई, किन्तु फिल्म में इस स्थान को वाराणसी के रूप में दिखाया गया है।
इन्दौर के बाद देवी अहिल्या बाई होल्कर ने महेश्वर को ही अपनी स्थाई राजधानी बना लिया था और अपने अंतिम समय तक वे यहीं रही थी, उन्हें आज भी महेश्वर की जनता बड़े ही आदर और सम्मान के साथ माँ साहेब कहकर उन्हें याद करती है। धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व की नगरी महेश्वर में आज भी देवी अहिल्या बाई होल्कर अमर हैं। माँ नर्मदा भी वर्षों से एक मूक दर्शक की भांति अपने इसी घाट से देवी अहिल्या बाई होल्कर की भक्ति, उनकी शक्ति, उनका गौरव, उनका वैभव, उनका साम्राज्य और उनका न्याय अपलक देख रही है। माँ रेवा का पवित्र जल देवी अहिल्या बाई होल्कर की भक्ति का साक्षी है और माँ रेवा की लहरें जैसे देवी अहिल्या बाई होल्कर का गौरवगान करती प्रतीत होती है। नमामि देवी नर्मदे कहते हुवे माँ नर्मदा को, राजराजेश्वर श्री महादेव जी को एवं न्यायप्रिया माँ साहेब देवी अहिल्या बाई होल्कर को तथा उनकी ऐतिहासिक महिष्मति नगरी महेश्वर को दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का बारम्बार सादर नमन हर हर महादेव, नर्मदे हर।
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