भक्त राज नरसी मेहता


भक्ति की जहां बात चले और भक्त राज नरसी मेहता का नाम नहीं लिया जाय, ऐसा संभव ही नहीं है। गुजरात के नरसी मेहता बहुत बड़े कृष्ण भक्त हुवे थे। आज भी भक्तराज नरसी मेहता का नाम समस्त भारतवर्ष में बड़े ही सम्मान और आदर के साथ लिया जाता है, साथ ही उनकी कथा आदि के माध्यम से भी उनका और उनकी भक्ति का वर्णन किया जाता है। नरसी मेहता जी का जन्म गुजरात के काठियावाड़ में जूनागढ़ शहर में एक नागर ब्राह्मण कुल में हुआ था।  नरसी जी को उनके बाल्यकाल से ही कुछ साधु संतों का सानिध्य और सत्संग का अमृतपान प्राप्त होता रहा होकर उसी सानिध्य के परिणामस्वरूप कृष्ण भक्ति की प्राप्ति उन्हें हुई। 


साधु संतों के साथ नरसी जी का जीवन का अधिकांश समय श्री कृष्ण एवं गोपियों की लीला का वर्णन करते हुवे भजन कीर्तन कर, गीत गायन करने में ही व्यतीत होने लगा।  नरसी जी का इस प्रकार का व्यवहार और आचरण उनके परिवारजन को अच्छा नहीं लगता था।  परिवारजन के काफी समझाने पर भी उन पर कोई असर नहीं होता था और दिन पर दिन उनकी श्री कृष्ण जी के प्रति भक्ति बढ़ने लगी।     

एक दिन नरसी जी जब अपने भजन कीर्तन में लीन थे, तब उनकी भाभी ने कटाक्ष कर कहा कि  यदि इतनी ही भक्ति उमड़ी है तो जाकर भगवान से ही मिलो।  अपनी भाभी के इस कटाक्ष का भक्त राज नरसी मेहता पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा और वे उसी क्षण घर से बाहर निकल गए।  जूनागढ़ से कुछ दूर श्री महादेव जी के पुराने मंदिर में जाकर वहीँ भक्तिपूर्वक श्री महादेव जी की सेवा पूजा करने लगे।  कहा जाता है कि नरसी जी की पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर जी ने उन्हें दर्शन दिए और श्री कृष्ण के प्रति नरसी जी मेहता की अनन्य भक्ति को देखकर भगवान महादेव जी ने नरसी जी को श्री कृष्ण के गोलोक में ले जाकर श्री कृष्ण एवं गोपियों की रासलीला के औलोकिक एवं अद्भुत दृश्य का दर्शन करवाया।  इस औलोकिक एवं अद्भुत कृष्ण लीला के दृश्य को देखकर नरसीजी मंत्रमुग्ध हो गए। 

इस प्रकार से भाभी के कटाक्ष पर हरि मिलन का लक्ष्य लेकर घर से निकले नरसी मेहता जी अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर घर आये और अपने बाल बच्चों के साथ अलग से रहने लगे और अपना जीवन हरि भजन कीर्तन और सत्संग में व्यतीत करने लगे, जिस कारण से उनकी गृहस्थी का संचालन काफी कष्ट से हो पता था।  नरसीजी की पत्नी ने उन्हें अन्य कार्य करने के लिए काफी प्रेरित भी किया किन्तु नरसी जी को तो मानो हरि भजन के अलावा दूसरा कोई कार्य करना भी पसंद नहीं था। उन्हें श्री कृष्ण के प्रति दृढ़ विश्वास था कि प्रभु श्री कृष्ण की भक्ति करते हुवे उनके समस्त दुःख अपने आप दूर हो जावेंगे और नरसीजी की भक्ति और विश्वास के कारण ऐसा हुआ भी कि भगवान श्री कृष्ण को स्वयं उनके सहयोग के लिए आना पड़ा।  कहा जाता है कि नरसी जी की पुत्री के यहाँ विवाह में मामेरा के लिए जितने रुपयों और अन्य सामग्रियों की आवश्यकता हुई, उन्हें स्वयं भगवन श्री कृष्ण ने पंहुचाई और स्वयं मण्डप में उपस्थित होकर विवाह के समय आवश्यक कार्य संपन्न किये। नरसी जी के पुत्र का विवाह भी भगवत कृपा से ही संपन्न हुआ।  

कहा जाता है कि नरसी मेहता के रिश्तेदार और जातिबंधु उन्हें काफी परेशान किया करते थे।  एक बार उन लोगों ने नरसी जी को परेशान करने की योजना बनाकर उनसे कहा कि अपने पिता का श्राद्ध करके जाति भोजन करावें।  नरसी जी के पास कोई धन अथवा साधन उपलब्ध नहीं होने के कारण उन्होंने भगवन का स्मरण किया और भगवत कृपा से सारा सामान एकत्रित हो गया।  श्राद्ध के दिन आखिर में नरसी जी को मालुम हुवा कि कुछ घी कम पड गया है।  तब वे एक बर्तन लेकर बाजार घी लाने के लिए गए।  रास्ते में उन्होंने देखा कि एक संत मण्डली बड़ी श्रद्धा एवं प्रेम से हरि कीर्तन कर रही थी। बस फिर क्या था, नरसी मेहता भी भजन कीर्तन में शामिल हो गए तथा भूल गए कि वे किसलिए घर से बाहर आए थे।  इधर घर में ब्राह्मण भोजन चल रहा था पत्नी बड़ी बेताबी से उनकी प्रतिक्षा कर रही थी, तब भक्तवत्सल भगवान श्री कृष्ण नरसी जी का स्वरूप धर कर घी  लेकर नरसी जी के घर पंहुचे और ब्राह्मण भोजन स्वयं नरसीजी के रूप में खड़े होकर संपन्न करवाया तथा सभी को यथोचित दक्षिणा भी प्रदान की।  ब्राह्मण भोजन सम्पूर्ण होने के उपरान्त काफी देर बाद जब कीर्तन समाप्त हुआ, तब नरसी जी को भान हुआ तब तक बजार भी बंद हो गया था।  तब वे घर वापस लौटे और अपनी पत्नी से विलम्ब के लिए क्षमा मांगने  लगे, तब उनकी पत्नी को काफी आश्चर्य हुआ।  

नरसी जी के बच्चो का विवाह हो जाने के बाद तो नरसी जी बेफिक्र होकर और भी अधिक उत्साह और प्रेम से भजन कीर्तन में लीन हो गए।  समय व्यतीत होता गया और नरसी जी की पत्नी और पुत्र का स्वर्गवास हो गया।  उसके बाद तो नरसीजी पूर्णतः विरक्त हो गए और विशुद्ध प्रेम और भक्ति के उपदेश भी देने लगे।  एक दिन जूनागढ़ के राव ने किसी बात पर रुष्ट होकर नरसीजी को अपने पास बुलाया और कहा कि तुम जनता को भ्रमित कर रहे हो। यदि सच्चे भक्त हो तो मंदिर में जाकर भगवान के गले में फूलों का हार पहनाओ और भगवान से प्रार्थना करो कि वे स्वयं तुम्हारे पास आकर वह माला तुम्हारे गले में डाल दें।  यदि ऐसा नहीं हुआ तो तुम्हें प्राण दण्ड दिया जावेगा ।  नरसीजी ने मंदिर में भगवान को हार पहनाकर रात भर मंदिर में बैठकर भगवान का गुणगान किया।दूसरे दिन प्रातः सबके सामने भगवान की मूर्ति ने अपने स्थान से उठकर नरसीजी को माला पहनाई।ऐसे थे भक्त राज नरसी मेहता और नरसी मेहता की भक्ति के आगे स्वयं भगवान भी समर्पित थे।  उन भक्त राज नरसी मेहता को सादर प्रणाम। 



Comments

  1. भक्ति के आगे तो भगवान भी नतमस्तक हो जाते हैं सच्ची भक्ति आत्मा का परमात्मा से मिलन है ईश्वर तक पहुंचने का सबसे सरल मार्ग ही भक्ति है

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