महायोद्धा पृथ्वीराज चौहान
पृथ्वीराज चौहान का जन्म वर्ष 1149 में अजमेर के राजा सोमेश्वर जी चौहान के पुत्र के रूप में हुआ था, पृथ्वीराज चौहान की माता का नाम कमलादेवी था। पृथ्वीराज चौहान जन्म से ही अत्यंत ही प्रतिभाशाली बालक थे, जो सैन्य कौशल में तो निपुण थे, साथ ही कई विधाओं में भी वे निपुण थे। अयोध्या नरेश राजा दशरथ के ही समान उन्हें भी शब्द भेदी बाण चलाने में महारथ प्राप्त थी, जिसमें कि आवाज के आधार पर निशाना लगाया जाता है । पृथ्वीराज चौहान पशु पक्षियों के साथ बातें करने की कला भी जानते थे।
कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान ने बारह वर्ष की आयु में एक बार बिना किसी हथियार के अकेले ही एक शेर को जबड़ा फाड कर मार डाला था। जब पृथ्वीराज चौहान ने अपनी किशोरावस्था में ही गुजरात के पराक्रमी राजा भीमदेव को युद्ध में हराया था। उनके पिता की भी लगभग उसी समय एक युद्ध में मृत्यु हो गई थी। पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने अजमेर राज्य का राजपाट संभाला। पृथ्वीराज चौहान को एक योद्धा राजा के रूप में जाना जाता था। बताया जाता है कि उनकी तलवार का वजन 84 किलो था, जिसे वे एक हाथ से चलाते थे। पृथ्वीराज चौहान ने एक बार अपनी तलवार के एक ही वार से जंगली हाथी का सिर धड़ से अलग कर दिया था। पृथ्वीराज चौहान जब 16 वर्ष के थे, तब उन्होंने महाबली नाहरराय को युद्ध में हराकर माडवकर पर विजय प्राप्त की थी।
पृथ्वीराज चौहान के दादा अंगम जी दिल्ली के शासक थे। उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के पराक्रम और वीरता के बारे में सुनने के बाद उन्हें दिल्ली के राजसिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली के राजसिंहासन पर बैठने के बाद किला राय पिथौरा का निर्माण कराया था। पृथ्वीराज चौहान का सम्पूर्ण जीवन वीरता, साहस, शौर्यवान और निरंतर महत्वपूर्ण कार्य करने की एक श्रृंखला में बंधा हुआ था।दिल्ली के राजसिंहासन पर बैठकर पृथ्वीराज चौहान ने सम्पूर्ण हिंदुस्तान पर राज किया था ।
पृथ्वीराज चौहान की जयचंद से शत्रुता थी किन्तु उनकी पुत्री संयोगिता के साथ पृथ्वीराज चौहान की प्रेम कहानी भी बहुत प्रसिद्ध है। पृथ्वीराज चौहान संयोगिता को उसके स्वयंवर के दिन ही उसको साथ में लेकर चले गए थे, जिससे पृथ्वीराज चौहान ने विवाह किया था।
पृथ्वीराज चौहान जिस समय साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे, उस समय मोहम्मद गौरी ने हिंदुस्तान पर आक्रमण कर दिया था और भीषण युद्ध में मोहम्मद गौरी पराजित हो गया था, मोहम्मद गौरी की पराजित हुई सेना पर हमला करने का कहा जाने पर पृथ्वीराज चौहान ने अपनी राजपूत परम्परा का पालन करते हुवे ऐसा करने से इंकार कर दिया था, क्योंकि राजपुताना परम्परा अनुसार पीठ पीछे हमला करना निष्पक्ष युद्ध नियमों के अनुरूप नहीं था। इसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को 16 बार युद्ध में हरा कर जीवन दान देकर उसे जिन्दा छोड़ दिया था।
इसके बाद मोहम्मद गौरी ने फिर से हिंदुस्तान पर आक्रमण किया और धोखे से युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया। बंदी बनाने के बाद मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान के साथ काफी बुरा बर्ताव किया, अनेकों प्रकार की पीड़ाएं देते हुवे महीनो भूखा रखा, फिर भी पृथ्वीराज चौहान ने अपना साहस नहीं खोया। इसके बाद मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान की आँखों में गर्म लौहे की छड़ डालकर उन्हें अंधा बना दिया था, फिर भी पृथ्वीराज चौहान ने उसके सामने अपना मस्तक नहीं झुकाया था।
पृथ्वीराज चौहान ने अपने दरबारी कवि और मित्र चंदबरदाई की सहायता से शब्दभेदी बाण के माध्यम से मोहम्मद गौरी को मारने योजना बनाई। पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी द्वारा आयोजित तीरंदाजी प्रतियोगिता के दौरान अपने शब्दभेदी बाण चलाने के कौशल को प्रदर्शित किया। पृथ्वीराज चौहान के कौशल की तारीफ करने से मोहम्मद गौरी भी अपने आप को नहीं रोक पाया और उसने राजा की तारीफ की। पृथ्वीराज चौहान जिन्होंने मोहम्मद गौरी की आवाज सुन ही ली थी, उसी समय कवि चंदबरदाई ने मोहम्मद गौरी के सिंहासन और उसके बैठने की स्थिति का संकेत देते हुवे अपनी काव्य पंक्ति कही कि "चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चुके चौहान। " पृथ्वीराज चौहान के लिए इतना ही काफी था, उन्होंने शब्दभेदी बाण चलाने में थोड़ी भी देर नहीं की। पृथ्वीराज चौहान का बाण सीधा मोहम्मद गौरी को लगा और उसके प्राण पखेरू उड़ गए। इधर शत्रुओं के हाथों से मरने से बचने के लिए पृथ्वीराज चौहान और उनके कवि मित्र चंदबरदाई ने एक दूसरे को मार दिया था।
सन 1192 में पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु होने के साथ ही उनकी बहादुरी, साहस. देशभक्ति और सिद्धांतो का भी अंत हो गया। दिल्ली के राजसिंहासन पर बैठने वाले चौहान राजवंश के अंतिम शासक रहे पृथ्वीराज चौहान जैसा शासक उसके बाद हिंदुस्तान को कभी नहीं मिल पाया और उनकी मृत्यु के बाद ही मुग़ल और अन्य विदेशी आक्रमणकारियो ने हिंदुस्तान में कदम रखना शुरू किया।कवि चंदबरदाई ने अपने महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान के जीवनकाल की कहानी और प्रसंगों को संकलित किया है। महायोद्धा पृथ्वीराज जी चौहान को शत शत
नमन। जय राजपुताना।
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