महाभारत कालीन स्थानों का वर्तमान में अस्तित्व
सनातन धर्म के बारे में कई लोग आज भी यह प्रश्न अथवा संदेह करते अक्सर मिल जाया करते हैं कि रामायण और महाभारत में वर्णित कथानक सत्य है अथवा काल्पनिक। इस सम्बन्ध में कई चर्चाएं, बहस आदि भी हो चुकी है, काफी प्रामाणिक स्थितियां स्पष्ट हो जाने के बाद भी कुछ लोग आज भी उस समय और घटनाओं को नकारते हुवे उसे मात्र किस्से और कहानी कहने में नहीं चूकते हैं। हजारो वर्षो का समय व्यतीत हो जाने के बाद आज भी हमें कई प्रमाण, अवशेष मिल ही जाते हैं जिनसे यह एहसास हो जाता है कि हजारों साल पहले यह सब कुछ घटित हुआ था, यह पूर्णतः वास्तविक रहा है इसमें कुछ भी काल्पनिक नहीं है। इस लेख में हम महाभारतकालीन कुछ ऐसे स्थानों के विषय में विचार करेंगे जो आज भी विद्यमान हैं और महाभारतकालीन स्थितियों की गवाही देकर संदेहों को दूर कर उस समस्त घटनाक्रम को प्रामाणिक कर रहे हैं। महाभारतकाल में कई बड़े राज्यों का उल्लेख मिलता है, जिनका उल्लेख आगे किया जा रहा है।
गांधार - वर्तमान में अफगानिस्तान के कंधार को उस समय गांधार के रूप में जाना जाता था। गांधार नरेश राजा सुबल की पुत्री गांधारी महाराज धृतराष्ट्र की पत्नी थी और गांधारी के भाई दुर्योधन के मामा शकुनि थे। गांधार देश पाकिस्तान के रावलपिंडी से लेकर सुदूर अफगानिस्तान तक फैला हुआ था।
तक्षशिला - ज्ञान और शिक्षा की नगरी कही जाने वाली तक्षशिला उस समय गांधार देश की राजधानी हुआ करती थी, वर्तमान रावलपिंडी ही किसी समय तक्षशिला हुआ करती थी।
कैकय प्रदेश - महाभारत काल का कैकय प्रदेश जम्मू कश्मीर के उत्तरी भाग को कहा जाता था। कैकय प्रदेश के राजा जयसेन का पुत्र जरासंध था जोकि दुर्योधन का परम मित्र था, जिसने महाभारत के युद्ध में कौरवों का साथ दिया था।
मद्र देश - कैकय प्रदेश से ही सटा हुआ मद्र देश भी जम्मू कश्मीर के ही एक भाग में स्थित होता था, हिमालय के करीब होने की वजह से मद्र देश को उत्तर कुरु भी कहा जाता था। महाभारत काल में मद्र देश के राजा शल्य थे, जिनकी बहन माद्री का विवाह राजा पाण्डु के साथ संपन्न हुआ था और नकुल सहदेव माद्री के पुत्र थे।
उज्जनक - जिस स्थान को महाभारत काल में उज्जनक के नाम से जाना जाता था उस स्थान पर गुरु द्रोणाचार्य जी पांडवों और कौरवों को अस्त्र शस्त्र की शिक्षा प्रदान किया करते थे। गुरु द्रोणाचार्य जी के आदेश पर कुंती पुत्र भीम द्वारा यहाँ पर एक शिवलिंग की स्थापना की थी जिसे भीमशंकर के नाम से जाना जाता हैं, इस स्थान पर भगवन शिव का एक विशाल मंदिर भी है। यह स्थान नैनीताल में बताया जाता है।
शिवि देश - दक्षिण पंजाब वाले स्थान को महाभारत काल में शिवि देश कहा जाता था। महाभारत में महाराज उशीनर का उल्लेख आता है, महाराज उशीनर के पौत्र शैव्य की पुत्री देविका का विवाह युधिष्ठिर के साथ संपन्न हुआ था। महाराज शैव्य महान धनुर्धारी थे और उन्होंने महाभारत युद्ध में पांडवों का साथ दिया था।
बाणगंगा - कुरुक्षेत्र से करीब तीन किलोमीटर की दुरी पर बाणगंगा स्थित है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर महाभारत युद्ध में घायल भीष्म पितामह शर शैय्या पर लेटे थे और उन्हें प्यास लगने पर अर्जुन ने अपने बाणों से धरती पर प्रहार किया था जिससे गंगा की जलधारा फुट पड़ी थी, इस कारण से इसे बाणगंगा कहा जाता है।
कुरुक्षेत्र - हरियाणा के अम्बाला इलाके को कुरुक्षेत्र के नाम से जाना जाता है इसी स्थान पर महाभारत का युद्ध हुआ था। इसी स्थान पर आदिकाल में ब्रह्माजी ने एक यज्ञ किया था, यहाँ पर एक जल कुण्ड है जिसे ब्रह्म सरोवर कहा जाता है। महाभारत के युद्ध के पहले भगवान श्री कृष्ण का यदुवंश के अन्य सदस्यों के साथ इस सरोवर में स्नान किये जाने का उल्लेख श्री मद भागवत महापुराण में भी आता है।
हस्तिनापुर - महाभारत युद्ध की शुरुआत हस्तिनापुर से ही हुई थी और महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने हस्तिनापुर को ही अपने राज्य की राजधानी बनाया था। वर्तमान मेरठ के आसपास का स्थान ही उस समय के हस्तिनापुर का स्थान बताया जाता है।
वर्णावत - वर्णावत का यह स्थान भी उत्तर प्रदेश के मेरठ के करीब ही माना जाता है। वर्णावत में ही दुर्योधन ने पांडवों को छल से मारने के लिए लाक्षागृह का निर्माण करवाया था। यह स्थान गंगा नदी के किनारे पर है। कहा जाता कि महाभारत युद्ध को टालने के लिए पांडवों ने जो पांच गांव की मांग रखी थी उन पांच गांवों में एक गांव यह भी था। आज वहां वर्णावा नाम का एक छोटा सा गांव स्थित है।
पांचाल प्रदेश - हिमालय की तराई का इलाका ही महाभारतकाल में पांचाल प्रदेश कहा जाता था। पांचाल के राजा द्रुपद थे, जिनकी पुत्री द्रोपदी पांचाली पांडव कुलवधु थी।
इंद्रप्रस्थ - महाभारत काल में खांडव वन नामक बियाबान जंगल था, जहाँ पर पांडवों ने विश्वकर्मा जी की सहायता से अपनी राजधानी का निर्माण करवाया था और उसे इंद्रप्रस्थ नाम दिया था। वर्तमान समय में दक्षिणी दिल्ली का इलाका उसी इंद्रप्रस्थ का इलाका है।
वृंदावन - वृंदावन मथुरा नगरी के पास ही स्थित है। भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का मुख्य स्थल वृंदावन भी रहा है। वृंदावन में श्री बांके बिहारी जी का मंदिर काफी प्रसिद्द है।
गोकुल - मथुरा नगरी के पास ही यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है गोकुल धाम, कंस से रक्षा के लिए वासुदेव जी भगवन श्री कृष्ण को गोकुल में अपने मित्र नंदराय जी के घर छोड़ गए थे। भगवान श्री कृष्ण जी और बलराम जी ने अपने बचपन की बाल लीलाये गोकुल में ही साथ साथ की थी।
बरसाना - बरसाना उत्तर प्रदेश में ही ब्रज भूमि में ही स्थित है, बरसाने की चार पहाड़ियों के बारे में मान्यता है कि ये ब्रह्मा जी के चार मुख हैं। श्री राधा रानी का मुख्य धाम भी बरसाना ही रहा है।
मथुरा - यमुना नदी के किनारे स्थित माथुर नगरी सनातन हिन्दू धर्म के अनुयाइयों के लिए अति महत्वपूर्ण है, यह वही नगरी है जहाँ राजा कंस के कारगर में भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ था और पश्चात में श्री कृष्ण जी के हाथों कंस का वध हुआ था। मथुरा नगरी ही यदुवंशियों के राज्य की राजधानी हुआ करती थी।
अंग देश - उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले का इलाका ही महाभारत काल का अंग देश रहा है। दुर्योधन द्वारा अपने मित्र कर्ण को इसी देश का राजा घोषित किया था। कहा जाता है कि जरासंध ने अंग देश दुर्योधन को उपहार में दिया था। अंग देश में शक्तिपीठ की भी मान्यता है।
कौशाम्बी - वत्स देश की राजधानी कौशम्बी हुआ करती थी, यह स्थान वर्तमान में प्रयागराज के पास माना जाता है। महाभारत के युद्ध में कौशाम्बी के लोगों ने कौरवों के पक्ष में युद्ध किया था, जो बाद में कुरुवंशियों के कब्जे में चला गया था। राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने कौशाम्बी को अपनी राजधानी बनाया था।
काशी - काशी नगरी को शिक्षा के लिए जाना जाता रहा है। महाभारत काल में भीष्म पितामह काशी नरेश की तीन पुत्रियों अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका को जीत कर हस्तिनापुर ले आये थे ताकि उनका विवाह विचित्रवीर्य के साथ संपन्न हो जाये। अम्बा पूर्व से ही राजा शल्य को अपना पति स्वीकार कर चुकी थी इसलिए उन्होंने इस विवाह से इंकार कर दिया था और अम्बिका तथा अम्बालिका का विवाह विचित्रवीर्य के साथ संपन्न हुआ था। अम्बा और अम्बालिका से विचित्रवीर्य को दो पुत्र धृतराष्ट्र और पाण्डु उत्पन्न हुवे थे। कालांतर में धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव और पाण्डु के पुत्र पांडव कहलाये थे।
एकचक्र नगरी - वर्तमान समय में बिहार स्थित आरा जिला का क्षेत्र महाभारत काल में एकचक्र नगरी के रूप में जाना जाता था। लाक्षागृह की साजिश से बचने के बाद पांडव काफी समय तक एकचक्र नगरी में ही रहे थे। इस स्थान पर भीम द्वारा बकासुर नामक एक राक्षस का वध किया था तथा महाभारत युद्ध के पश्चात जब युद्धिष्ठिर ने अश्वमेघ यज्ञ किया उस समय उसी बकासुर के पुत्र भीषक ने उनका घोड़ा पकड़ कर रख लिया था तब अर्जुन के हाथों भीषक का अंत हुआ था।
मगध - दक्षिण बिहार के इलाके को महाभारत काल में मगध के नाम से जाना जाता था, जरासंध ने मगध को अपने राज्य की राजधानी बना रखी थी। जरासंध की दो पुत्रियां अस्ती और प्राप्ति का विवाह कंस के साथ हुआ था तथा कंस का वध करने के कारण श्रीकृष्ण अनायास ही जरासंध के दुश्मन बन गए थे। जरासंध ने मथुरा पर कई बार हमले किये थे, पश्चात में एक मल्ल्युद्ध में भीम के हाथों जरासंध का वध हुआ था। महाभारत के युद्ध में मगध की जनता ने पांडवों को सहयोग किया था।
पुण्डरू देश - महाभारत काल का पुण्डरू देश भी बिहार में ही रहा है, इस स्थान पर राजा पोन्ड्रक का राज था। पोन्ड्रक जरासंध का मित्र था और श्री कृष्ण से दुश्मनी रखता था। पोन्ड्रक अपने आप को कृष्ण कहलाना पसंद करता था, वह सदैव कृष्ण के ही वेश में रहता था और अपना नाम भी वासुदेव तथा पुरुषोत्तम रख लिया था। द्रोपदी स्वयंवर में भी पौंड्रक उपस्थित हुआ था, बाद में द्वारिका पर एक हमला करने के दौरान भगवान श्री कृष्ण के हाथों पोन्ड्रक का वध हुआ था।
प्रागज्योतिषपुर - गुवाहाटी का उल्लेख महाभारत में प्रागज्योतिषपुर के रूप में किया गया है। महाभारत काल में यहाँ नरकासुर का राज था, जिसने राज परिवारॉ की सोलह हजार बलिकाओं को बंदी बना का रखा हुआ था। कालांतर में भगवान श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध करके उन सोलह हजार बालिकाओं को वहाँ से छुड़ाकर द्वारिका लाया गया था, नरकासुर के यहाँ बंदी रहने के कारण उनके परिजन उन्हें स्वीकार करने में संकोच कर रहे होने के कारण पश्चात में उन सभी के साथ भगवान श्री कृष्ण ने विवाह कर उनका मान बढ़ाया था। कहा जाता है कि यहाँ का प्रसिद्ध कामाख्या माता जी के मंदिर का निर्माण नरकासुर द्वारा ही कराया गया था।
कामाख्या - गुवाहाटी से करीब 10 किलोमीटर दूरी पर प्रसिद्ध शक्तिपीठ कामाख्या पीठ है। भागवत महापुराण के अनुसार जब भगवान शिव जी सती के मृत शरीर को लेकर बदहवास चले जा रहे थे तब भगवान विष्णु जी ने भगवान शिव जी को सती के मृत शरीर के भार और मोह से मुक्ति मिल जाये इसलिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर के कई टुकड़े कर दिए थे। सुदर्शन चक्र से कटकर सती का शरीर 51 स्थानों पर गिरा, वे सभी स्थान पश्चात में शक्तिपीठ के रूप में पूजित हुवे, कामाख्या शक्तिपीठ भी उन्हीं शक्तिपीठ में से एक है। इन सभी 51 शक्तिपीठ के बारे में विस्तृत कथा मेरे अन्य तीन लेखों देवी सती माता भाग - 1, 2 एवं 3 में पढ़ा जा सकता है।
मणिपुर - नागालैंड, असम, मिजोरम से घिरा हुआ मणिपुर महाभारत काल से भी पुराना है। मणिपुर के राजा चित्रवाहन की पुत्री चित्रांगदा का विवाह अर्जुन के साथ संपन्न हुआ था और इस विवाह से उत्पन्न पुत्र बभ्रुवाहन को राजा चित्रवाहन की मृत्यु के बाद यहाँ का राजपाट सौंपा गया था। महाभारत युद्ध के पश्चात युद्धिष्ठिर द्वारा आयोजित यज्ञ में बभ्रुवाहन ने भी भाग लिया था।
सिंधु देश - हमारे इतिहास में जिस सिंधु घाटी की सभ्यता का पाठ पढ़ाया जाता है वही स्थान महाभारत काल में सिंधु देश के नाम से जाना जाता था। यह स्थान अपनी कला और साहित्य के लिए तो प्रसिद्ध था ही साथ ही साथ वाणिज्य और व्यापार में भी यह स्थान अग्रणी हुआ करता था। यहाँ के राजा जयद्रथ थे जोकि महाराज धृतराष्ट्र की पुत्री दुःशाला के पति थे, जिन्होंने महाभारत युद्ध में कौरवों का साथ दिया था और वीर अभिमन्यु की मौत में जयद्रथ की बड़ी भूमिका थी। वीर अभिमन्यु की मौत के बाद अर्जुन ने जयद्रथ के वध की सौगंध ली होकर अभिमन्यु वध के अगले ही दिन जयद्रथ का वध किया था।
मत्स्य देश - उत्तरी राजस्थान के इलाके को महाभारत काल में मत्स्य देश कहा जाता था। मत्स्य देश की राजधनी विराटनगरी थी, इसी विराटनगरी में अज्ञातवास के दौरान पांडव अपना वेश बदल कर विराट नरेश के सेवक बन कर रहे थे। इसी विराटनगरी में विराट नरेश के साले और सेनापति कीचक की कुदृष्टि द्रोपदी पर पड़ी होने पर भीम के हाथों कीचक का वध हुआ था। विराट नरेश की पुत्री राजकुमारी उत्तरा के साथ अर्जुन पुत्र अभिमन्यु का विवाह हुआ था।
मुचकुन्द तीर्थ - इस स्थान के विषय में कुछ भ्रान्ति है, कुछ मान्यता अनुसार यह स्थान गुजरात में गिरनार पर्वत को बताया जाता है तो कुछ मान्यता राजस्थान के धौलपुर की कही जाती है। एक बार जरासंध ने कालयवन को साथ लेकर मथुरा पर आक्रमण किया था तब भगवान श्री कृष्ण युद्ध क्षेत्र से ही युद्ध को छोड़कर चले गए थे और रणछोड़ कहलाये थे। कालयवन ने श्री कृष्ण जी का पीछा किया, तो श्री कृष्ण जी ने एक गुफा में अपने आप को छिपाया तथा गुफा में पहले से ही निंद्रामग्न महाराज मुचकुन्द जी पर अपना पीताम्बर डाल दिया था। जब कालयवन पीछा करते हुवे गुफा में आया और पीताम्बर ओढ़े महाराज मुचकुन्द जी को श्री कृष्ण समझकर उन्हें निंद्रा से जगा दिया, महाराज मुचकुन्द जी ने जैसे ही अपने नेत्र खोले तो महाराज मुचकुन्द जी को प्राप्त वरदान के परिणामतः कालयवन जलकर भस्म हो गया। महाराज मुचकुन्द जी को वरदान प्राप्त था कि उनकी निंद्रा में व्यवधान उत्पन्न करेगा, उस पर उनकी दृष्टी पड़ते ही वह जल कर भस्म हो जायेगा। विस्तृत में यह कथा मेरे अन्य लेख श्री मुचकुन्द जी महाराज और कालयवन का प्रसंग में पढ़ी जा सकती है। मान्यता यह भी है कि महाभारत युद्ध के बाद जब पांडव हिमालय की तरफ स्वर्गारोहण को चले गए थे और भगवान श्री कृष्ण जी भी गोलोक निवासी हो गए थे तब कलयुग ने इसी स्थान से अपनी शुरुआत की थी।
पाटन - महाभारत काल अर्थात द्वापर युग में पाटन जोकि गुजरात में स्थित है, वह स्थान एक प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र हुआ करता था। पाटन के करीब ही हिडिम्ब नामक राक्षस का निवास था, जिसका भीम ने संहार किया था और उसकी बहन हिडिम्बा से भीम ने विवाह किया था। हिडिम्बा ने बाद में एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम घटोत्कच था। घटोत्कच ने महाभारत युद्ध में पांडवों के पक्ष में भाग लिया था और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक का भी प्रसंग महाभारत काल में आता है, जोकि शीश के दानी होकर खाटू श्याम के रूप में पूजनीय हैं, खाटू श्याम की विस्तृत कथा भी मेरे अन्य दो लेखों खाटू नरेश श्री श्याम बाबा भाग 1 एवं भाग 2 में पढ़ी जा सकती है।
द्वारका - गुजरात में यह स्थान भगवान श्री कृष्ण जी का धाम रहा है जोकि कालांतर में समुद्र में समा गया था आज भी समुद्र में अवशेष प्राप्त होते हैं जोकि उस स्थान की पुष्टि करते हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार वर्तमान का भेंट द्वारका वही स्थान बताया जाता है। जरासंध के बार बार मथुरा पर हमले करने के कारण यदुवंशियों को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण मथुरा छोड़कर द्वारका चले गए थे।
प्रभाष - यह स्थान भी गुजरात में ही सोमनाथ के करीब स्थित है, इसके बारे में कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की लीलाओँ के अंतिम चरण में यहीं पर उनके पैरो में तीर लगा था, जिससे वे घायल हुवे थे और तत्पश्चात उनके गोलोक गमन और द्वारका नगरी के समुद्र में समा जाने की मान्यता प्रचलित है।
अवन्तिका - मध्य प्रदेश के उज्जैन को उस समय अवन्तिका नगरी के नाम से जाना जाता था, वैसे आज भी यह नाम प्रचलन में है। यहाँ सांदीपनि ऋषि के गुरुकुल आश्रम में भगवान श्री कृष्ण, बलराम जी के साथ साथ सुदामा जी के द्वारा शिक्षा ग्रहण की थी, यह आश्रम आज भी विद्यमान है। अवन्तिका नगरी को सात प्रमुख मोक्षदयिनी नगरी में से एक माना जाता है। यहाँ परम मोक्षदायिनी क्षिप्रा नदी प्रवाहित होती है, साथ ही इस नगरी में 51 शक्तिपीठ में से एक माता हरसिद्धि के रूप में तथा द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक श्री महाकालेश्वर प्रभु विराजमान हैं। इसके अलावा मंगल ग्रह की उत्पत्ति भी इसी नगरी के मंगलनाथ धाम से होना मानी जाती है, किन्तु कुछ मान्यता अंगारनाथ महादेव जी के स्थान के बारे में कही जाती है।
चेदी देश - वर्तमान के ग्वालियर के क्षेत्र को महाभारत काल में चेदी देश के रूप में जाना जाता था। गंगा एवं नर्मदा नदी के मध्य के क्षेत्र चेदी देश उस समय का एक सम्पन्न नगरों में से एक नगर था। यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण की बुआ के पुत्र शिशुपाल का राज था। शिशुपाल रुक्मिणी से विवाह करना चाहता था किन्तु श्री कृष्ण जी ने रुक्मिणी हरण कर रुक्मिणी से विवाह कर लिया होने के कारण शिशुपाल और श्री कृष्ण जी के सम्बन्ध कटु हो गए थे और शिशुपाल श्री कृष्ण जी को दुश्मन समझने लगा था। इनकी दुश्मनी की बात ज्ञात होने पर श्री कृष्ण जी की बुआ जी ने श्री कृष्ण जी से पुत्र शिशुपाल को अभयदान देने का निवेदन किया तब भगवान श्री कृष्ण जी ने अपनी बुआ को कहा कि वे शिशुपाल के 100 अपराध क्षमा कर देंगे किन्तु 101 वीं गलती पर माफ़ नहीं करेंगे। सम्राट युधिष्ठिर द्वारा किये गए यज्ञ में शिशुपाल को भी आमंत्रित किया गया था, वहाँ शिशुपाल द्वारा श्री कृष्ण जी को भला बुरा कहना प्रारम्भ कर दिया उस समय 100 गलतियों को क्षमा करने के बाद 101 वीं गलती पर भगवान श्री कृष्ण द्वारा अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध कर दिया था।
सोणितपुर - मध्यप्रदेश के इटारसी को महाभारत काल में सोणितपुर के नाम से जाना जाता था, सोणितपुर पर बाणासुर का राजपाट था। इन्हीं बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के साथ संपन्न हुआ था।
विदर्भ - महाभारत काल में विदर्भ क्षेत्र पर जरासंध के मित्र राजा भीष्मक का शासन था। रुक्मिणी राजा भीष्मक की पुत्री थी, जिनका हरण कर उनसे श्री कृष्ण जी ने विवाह कर लिया होने के कारण भीष्मक श्री कृष्ण जी को अपना शत्रु मानते थे। पांडवों ने अश्वमेघ यज्ञ किया था तब भीष्मक ने उनका घोडा रोक लिया था उस समय सहदेव ने भीष्मक को युद्ध में हरा दिया था। गीता जयंती के पावन अवसर पर सभी को दुर्गा प्रसाद शर्मा की ओर से सादर जय श्री कृष्ण।
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