श्री गुरु नानक देव जी के चरित्र का प्रसंग
परम श्रद्धेय श्री गुरु नानक देव जी द्वारा जिस धार्मिक पंथ से इस विश्व को अवगत करवाया था वह सिख पंथ, गुरुमत अथवा खालसा पंथ के नाम से किसी भी परिचय का मोहताज़ नहीं है। सिख पंथ में दस गुरुजन हुवे, जो समस्त संसार के धार्मिक इतिहास में अद्वितीय तो रहे उनका नेतृत्व भी अद्वितीय रहा। सभी गुरुजन द्वारा जहाँ मुगलों के कुशासन का मुकाबला किया वहीं मानव समाज (चाहे वह किसी भी जाति धर्म का हो) का उत्थान करने में भी काफी योगदान दिया। उन्होंने एक ही सिख में (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) चारों वर्णों के चारों गुणों को एकत्र कर यह आदेश दिया कि वह निरंतर हरिनाम श्री वाहेगुरु का जप करे, आठों प्रहर दूसरों की सेवा के लिए अपने तन मन धन से तत्पर रहे और अपनी गृहस्थी के निर्वाह के लिए सत्य व्यवहार करे साथ ही तलवार देकर ऐसी शक्ति से भी परिपूर्ण किया जिससे समय पर वह अपने धर्म की तथा देश की रक्षा भी कर सके।
गुरुजन द्वारा अपने में मानव को कठिनाई के समय प्रमुख रूप से काम आने वाले चरित्रबल को ही सर्वस्व माना। भलाई, बुराई, पाप, पुण्य की समस्याओं क निराकरण चरित्रबल के आश्रय से ही हो सकता है। जीवन में कई अवसर ऐसे भी आते हैं जबकि सोचने विचारने का अवसर ही नहीं मिलता, तुरंत कार्य हेतु अग्रसर होना पड़ जाता हैं। चाहे वह कार्य गलत कार्य के दमन का हो या सद्कार्य में सहायता का हो। मनुष्य में जितना चरित्रबल होगा उसे उतनी ही सफलता मिलेगी। गुरुजन द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को बुद्धि और अनुभव के वह पाठ सिखाये जिससे मनुष्य चरित्रबल से परिपूर्ण होकर कुछ ही व्यक्ति हजारों व्यक्तियों का कार्य संपन्न करने योग्य हो गए।
सिख मत के प्रथम गुरु अज्ञान और अंधकार के विनाशक, सूर्य सामान तेजस्वी स्वरुपवान जगतगुरु श्री नानक देव जी का जन्म राइ भोई की तलवंडी (जोकि अब नानकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध है) में हुवा था। श्री गुरुनानक देव जी बचपन से ही शांत स्वभाव के होकर अधिकांश एकांत में बैठना ही पसंद करते थे। उनकी माताजी उन्हें कहती थी कि वे बाहर अन्य बालकों के साथ खेला करे। एक बार माताजी के काफी कहने पर वे बाहर गए और वहां खेल रहे बच्चों को बोले कि एक जैसा खेल तेज खेला करते हो आज कुछ नया खेल खेलते है, ऐसा कहकर उन्होंने सभी बच्चों को पद्मासन लगाकर गोलाकार में चुपचाप और बोले मन ही मन सत्यकर्तार सत्यकर्तार कहते चलो। बच्चे श्री गुरु नानक देव जी के साथ उसी प्रकार काफी देर तक समाधि में बैठे रहे। इस प्रकार का औलोकिक खेल श्री गुरु नानक देव जी के बचपन का साक्षी रहा।
श्री गुरु नानक देव जी के पिताश्री द्वारा गुरुदेव को उनको छह वर्ष की आयु में पहले हिंदी, उसके बाद संस्कृत और बाद में फ़ारसी पढ़ने के लिए तीन अलग अलग गुरुजन के पास भेजा। श्री गुरु नानक देव जी ने अपने तीनों गुरुजनों को अपने आत्मिक बल द्वारा न केवल अपना शिष्य बना लिया बल्कि यह भी समझाया कि विध्या का तत्व जाने बगैर पढ़ा लिखा मनुष्य भी मुर्ख है।
श्री गुरु नानक देव जी सदैव हरिचिंतन में लीन रहा करते होने से उनके पिता उनके विषय में चिंतित रहा करते थे। वे चाहते थे कि उनका सुपुत्र किसी काम धंधे में लग जाए। एक बार पिताजी ने कुछ रूपये देकर कुछ बढ़िया सौदा खरीद कर लाने के लिए बाहर भेजा। रास्ते में कई दिन के भूखे विद्वान् संतों के मिलने पर पिता द्वारा दिए रुपयों से उन्होंने खानपान का सामान खरीद कर संत भोजन हेतु अर्पण कर दिया। घर पर वापस आकर पिता को सब हाल सुनाया और कहा कि आज का सौदा सच्चा सौदा है और उससे अधिक खरा तो कुछ हो ही नहीं सकता। पिता इससे काफी क्रुद्ध हुवे। श्री गुरु नानक देव जी की बहन जो उन्हें ईश्वर समान जानती थी उन्हें बड़ा दुःख हुआ, तो वे अपने पति से कहकर श्री गुरु नानक देव जी को अपने घर सुल्तानपुर अपने साथ ले आई। जहां सब लोगों के कहने पर गुरुदेव ने मोदीखाने की सेवा संभाल ली।
श्री गुरु नानक देव जी का विवाह श्री सुलक्षिणी देवी के साथ संपन्न हुवा जिनसे दो पुत्र बाबा श्री चंद और बाबा लक्ष्मीदास उत्पन्न हुवे।
श्री गुरु नानक देव जी मोदी खाने में सेवा अवश्य करते थे किन्तु उनका मन ईश्वर की और ही लगा रहता था। कितना ही सामान कई बार मुफ्त में ही बाँट दिया करते थे परन्तु ईश्वर की कृपा से हिसाब किताब सदैव ठीक ही मिल जाया करता था और सामान भी कभी कम नहीं मिलता था। एकबार आटा तौलते समय एक, दो, तीन गिनते हुवे जब तेरह पर पंहुचे तो गिनती ही भूल तेरा तेरा कहते हुवे सारा आटा ही तौल दिया। उसके बाद उन्होंने वहां से कार्य भी छोड़ दिया। बात यह थी कि नानक अब सिर्फ नानक नहीं थे वे अब नानक से श्री गुरु नानक देव जी हो गए थे। उन्होंने अपने चित्त में विचार कर निश्चय किया कि अपने अन्तःप्रकाश से जगत के अंधकार का विनाश करना आवश्यक है। यह भी सोच लिया की बैठकर उपदेश करने से संसार का पूर्ण उपकार नहीं होगा इसलिए श्री गुरु नानक देव जी ने देशाटन प्रारम्भ कर दिया।
श्री गुरु नानक देव जी की चार यात्राएं प्रसिद्ध हैं। प्रथम यात्रा में गुरुदेव पहले एमनाबाद गए और वहां वे एक बढ़ई भाई लालो के घर रहकर छुआछूत का भ्रम दूर किया। फिर हरिद्वार, दिल्ली, काशी, गया आदि स्थानों पर सच्चे धर्म का प्रचार करते हुवे जगन्नाथ पुरी पहुँच कर्तार की सच्ची आरती का उपदेश दिया।
श्री गुरु नानक देव जी ने दूसरी यात्रा दक्षिण की और करते हुवे अर्बुदगिरि, सेतुबंध रामेश्वर, सिंहल द्वीप आदि स्थानों में कर्तार की भक्ति का प्रचार किया।
तीसरी यात्रा में श्री गुरु नानक देव जी ने सरमौर, गढ़वाल, हेमकुण्ड, सिक्किम, गोरखपुर, भूटान, तिब्बत आदि स्थानों पर वाहेगुरु परमात्मा की अनन्य उपासना से लोगों को अवगत कराया।
चौथी यात्रा पश्चिम की और करते हुवे बलूचिस्तान होते हुवे मक्का पंहुचे फिर रूस , बगदाद, ईरान आदि का भ्रमण करते हुवे कंधार, काबुल में सत्यनाम का सदुपदेश देते हुवे कई कट्टर पंथियो का अभिमान दूर किया।श्री गुरु नानक देव जी का उपदेश करने का तरीका ही एकदम अलग था। उनके उपदेश बिजली के करंट की तरह असर करते थे। मक्का पंहुच कर गुरुदेव काबा की और पैर करके सो गए जिससे वहाँ के काजी काफी नाराज होकर गुरुदेव के पास आये और बोले कि अल्लाह के घर की और से पैर हटा लें, तो श्री गुरु नानक देव जी बोले कि ठीक है काजी साहब जिधर अल्लाह का घर न हो पैर उधर कर दीजिये। कहा जाता है कि काजी साहब द्वारा गुरुदेव के पैर जिधर किये जाते काबा उधर ही दिखाई देने लगता था।
पच्चीस वर्ष भ्रमण करने के बाद श्री गुरु नानक देव जी कर्तारपुर में रहने लगे और भक्ति रस के साथ अन्न का लंगर भी सब लोगों के लिए शुरू किया। गुरु गादी का उत्तराधिकारी अपने पुत्र के बजाय योग्य पुरुष हो, यह भी सिद्ध करते हुवे गुरुदेव ने अपने पुत्र के स्थान पर अपने योग्य शिष्य गुरु श्री अंगद जी को नियुक्त कर 70 वर्ष की आयु में परलोक गमन कर गए। गुरुदेव के अंतिम संस्कार को लेकर भी सिख, हिन्दू और मुस्लिम लोगों में काफी आपसी विवाद हुवा, क्योंकि ये सभी श्री गुरु नानक देव जी को अपना गुरु, पीर मानते थे। कहा जाता है कि अंत में जब गुरुदेव के वस्त्र को उठाया गया तो वहां गुरूजी का शरीर ही नहीं मिला।
श्री गुरु नानक देव जी द्वारा उच्चारित और रचित समस्त वाणी पंचम गुरुदेव श्री अर्जुनदेव जी द्वारा श्री गुरुग्रंथ साहिब में संकलित की गई। श्री गुरुग्रंथ साहिब के पठन से ज्ञात होता है कि पूज्य श्री गुरु नानक देव जी ने हिन्दू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, ईसाई आदि सभी धर्मो के मुख्य मुख्य धार्मिक स्थानों पर पंहुच कर ईश्वरीय ज्ञान से सभी को अवगत कराया है। परमपूज्य श्री गुरु नानक देव जी को सादर प्रणाम।
जो बोले सो निहाल। सत श्री अकाल।
श्री गुरु नानक देव जी का विवाह श्री सुलक्षिणी देवी के साथ संपन्न हुवा जिनसे दो पुत्र बाबा श्री चंद और बाबा लक्ष्मीदास उत्पन्न हुवे।
श्री गुरु नानक देव जी मोदी खाने में सेवा अवश्य करते थे किन्तु उनका मन ईश्वर की और ही लगा रहता था। कितना ही सामान कई बार मुफ्त में ही बाँट दिया करते थे परन्तु ईश्वर की कृपा से हिसाब किताब सदैव ठीक ही मिल जाया करता था और सामान भी कभी कम नहीं मिलता था। एकबार आटा तौलते समय एक, दो, तीन गिनते हुवे जब तेरह पर पंहुचे तो गिनती ही भूल तेरा तेरा कहते हुवे सारा आटा ही तौल दिया। उसके बाद उन्होंने वहां से कार्य भी छोड़ दिया। बात यह थी कि नानक अब सिर्फ नानक नहीं थे वे अब नानक से श्री गुरु नानक देव जी हो गए थे। उन्होंने अपने चित्त में विचार कर निश्चय किया कि अपने अन्तःप्रकाश से जगत के अंधकार का विनाश करना आवश्यक है। यह भी सोच लिया की बैठकर उपदेश करने से संसार का पूर्ण उपकार नहीं होगा इसलिए श्री गुरु नानक देव जी ने देशाटन प्रारम्भ कर दिया।
श्री गुरु नानक देव जी की चार यात्राएं प्रसिद्ध हैं। प्रथम यात्रा में गुरुदेव पहले एमनाबाद गए और वहां वे एक बढ़ई भाई लालो के घर रहकर छुआछूत का भ्रम दूर किया। फिर हरिद्वार, दिल्ली, काशी, गया आदि स्थानों पर सच्चे धर्म का प्रचार करते हुवे जगन्नाथ पुरी पहुँच कर्तार की सच्ची आरती का उपदेश दिया।
श्री गुरु नानक देव जी ने दूसरी यात्रा दक्षिण की और करते हुवे अर्बुदगिरि, सेतुबंध रामेश्वर, सिंहल द्वीप आदि स्थानों में कर्तार की भक्ति का प्रचार किया।
तीसरी यात्रा में श्री गुरु नानक देव जी ने सरमौर, गढ़वाल, हेमकुण्ड, सिक्किम, गोरखपुर, भूटान, तिब्बत आदि स्थानों पर वाहेगुरु परमात्मा की अनन्य उपासना से लोगों को अवगत कराया।
चौथी यात्रा पश्चिम की और करते हुवे बलूचिस्तान होते हुवे मक्का पंहुचे फिर रूस , बगदाद, ईरान आदि का भ्रमण करते हुवे कंधार, काबुल में सत्यनाम का सदुपदेश देते हुवे कई कट्टर पंथियो का अभिमान दूर किया।श्री गुरु नानक देव जी का उपदेश करने का तरीका ही एकदम अलग था। उनके उपदेश बिजली के करंट की तरह असर करते थे। मक्का पंहुच कर गुरुदेव काबा की और पैर करके सो गए जिससे वहाँ के काजी काफी नाराज होकर गुरुदेव के पास आये और बोले कि अल्लाह के घर की और से पैर हटा लें, तो श्री गुरु नानक देव जी बोले कि ठीक है काजी साहब जिधर अल्लाह का घर न हो पैर उधर कर दीजिये। कहा जाता है कि काजी साहब द्वारा गुरुदेव के पैर जिधर किये जाते काबा उधर ही दिखाई देने लगता था।
पच्चीस वर्ष भ्रमण करने के बाद श्री गुरु नानक देव जी कर्तारपुर में रहने लगे और भक्ति रस के साथ अन्न का लंगर भी सब लोगों के लिए शुरू किया। गुरु गादी का उत्तराधिकारी अपने पुत्र के बजाय योग्य पुरुष हो, यह भी सिद्ध करते हुवे गुरुदेव ने अपने पुत्र के स्थान पर अपने योग्य शिष्य गुरु श्री अंगद जी को नियुक्त कर 70 वर्ष की आयु में परलोक गमन कर गए। गुरुदेव के अंतिम संस्कार को लेकर भी सिख, हिन्दू और मुस्लिम लोगों में काफी आपसी विवाद हुवा, क्योंकि ये सभी श्री गुरु नानक देव जी को अपना गुरु, पीर मानते थे। कहा जाता है कि अंत में जब गुरुदेव के वस्त्र को उठाया गया तो वहां गुरूजी का शरीर ही नहीं मिला।
श्री गुरु नानक देव जी द्वारा उच्चारित और रचित समस्त वाणी पंचम गुरुदेव श्री अर्जुनदेव जी द्वारा श्री गुरुग्रंथ साहिब में संकलित की गई। श्री गुरुग्रंथ साहिब के पठन से ज्ञात होता है कि पूज्य श्री गुरु नानक देव जी ने हिन्दू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, ईसाई आदि सभी धर्मो के मुख्य मुख्य धार्मिक स्थानों पर पंहुच कर ईश्वरीय ज्ञान से सभी को अवगत कराया है। परमपूज्य श्री गुरु नानक देव जी को सादर प्रणाम।
जो बोले सो निहाल। सत श्री अकाल।
अति उत्तम। ननकाना साहिब जो अब पाकिस्तान में है । नानक देव जी ने धर्म को उदारता की एक नई परिभाषा दी। हिन्दू धर्म इस्लाम धर्म एवं अन्य धर्मों के मूल सुझावों एवं सर्वोत्तम सुझावों को सम्मिश्रित करके एक नये धर्म की स्थापना की जिसके मूलाधार थे प्रेम और समानता यही बाद में सिक्ख धर्म कहलाये ।
ReplyDeleteइसी तरह रोचक जानकारियों से अवगत कराते रहेंगे। धन्यवाद।
आपने लेख पढ़ा और हमारा उत्साहवर्धन किया जिसके लिए आपको ह्रदय से धन्यवाद। आपसे आगे भी यही अपेक्षा रहेगी।
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