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महाभारत - भीष्म पितामह एवं भगवान श्री कृष्ण का संवाद

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर का सादर अभिनन्दन।  हमारे धर्मग्रंथों एवं हमारे ऋषि मुनि आचार्य आदि और स्वयं भगवान भी यही कहते आएं हैं कि मनुष्य तुम केवल कर्म करो, फल की इच्छा मत करो, क्योंकि फल तो मिलना ही है। हमें मनुष्य का जीवन मिला है, हमारे इस मनुष्य जीवन में हमारे आने से लेकर जाने तक और इसके मध्य के भी समस्त कार्यकलाप की स्क्रिप्ट ईश्वर द्वारा पहले से ही बना कर रखी हुई है, हमें तो केवल कर्म करना है। हमें अपने जीवनकाल में अपने प्रारब्ध के अनुसार जो कुछ भी भोगना है वह भी निश्चित है।  हमारे सम्पूर्ण जीवनकाल में घटने वाली प्रत्येक घटना भी निश्चित है, आज अपनी इस बेबसाईट के 155 वें लेख में हम इसी पर चिंतन कर रहे हैं। जहाँ घटनाओं का घटित होना निश्चित है, उनका तरीका भी निश्चित है, वहीं उसके परिणामों को भोगना भी लगभग निश्चित ही है।

गणगौर महोत्सव

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिननंदन। सनातन धर्म में प्रत्येक प्रथा के पीछे कोई न कोई सन्देश है, कोई कहानी है, कोई आस्था है,  अथवा कोई भावना समाहित है।  कुछ इसी प्रकार से होलिका दहन के बाद मनाया जाने वाला पर्व गणगौर का है।  गणगौर का त्यौहार भगवान शिवजी और माता पार्वती को समर्पित होकर शक्ति, वीरता और वैवाहिक निष्ठाओं का प्रतीक है। विवाहित महिलायें अपने जीवनसाथी के दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए इस पर्व को मनाती हैं, तो अविवाहित बेटियां श्रेष्ठ एवं अनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति की अभिलाषा हेतु इस पर्व को मनाती हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश के विशेषकर मालवा निमाड़ क्षेत्र, बुंदेलखंड के साथ ही उत्तर प्रदेश में भी काफी धूमधाम से मनाया जाता है। गुजरात, महाराष्ट्र में चैत्र गौरी के रूप में, उत्तरी कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में सौभाग्य गौरी के नाम से और पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों में भी यह पर्व मनाया जाता है।  सनातन धर्म की संस्कृति के साथ ही पति पत्नी के पारस्परिक प्रेम और विवाहित महिलाओं की अपन...

श्री शीतला माता सप्तमी/अष्टमी

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी एवं अष्टमी तिथि को की जाने वाली शीतला माता की उपासना आदिकाल से ही हमारे देश में की जाती रही है, शीतला माता की उपासना स्वच्छता और पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टी से प्रासंगिक है। हमारा यह 153 वां आलेख श्री शीतला माता जी के श्री चरणों में समर्पित है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार स्वच्छ्ता की अधिष्ठात्री देवी शीतला माता का पूजन चेचक, खसरा आदि रोगों के प्रकोप से सुरक्षार्थ किया जाता रहा है। शीतला माता की उपासना से हमें यह सन्देश मिलता है कि हमें संक्रमण और बीमारियों से बचना है तो हमें अपने आसपास की स्वच्छता को बनाये रखना है, साथ ही हमें पर्यावरण की भी सुरक्षा करनी होगी। ग्रीष्मकाल के प्रारम्भ के समय शीतला माता की उपासना का यह पर्व धार्मिक, दृष्टी से तो महत्वपूर्ण है ही साथ ही स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है। होली के बाद सातवें और आठवें दिन पति और संतान की सुरक्षा और निरोगी काया के लिए महिलाएं यह उपासना करती हैं।  केवल यही एक ऐसा पर्व है जिसमे...

छत्रपति शिवाजी महाराज

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। महाराष्ट्र की अहमदनगर सल्तनत में शक्तिशाली सामंत परिवार में जन्में मालोजीराव भोंसले एक प्रभावशाली जनरल रहे होकर उनके पुत्र शहाजीराजे भी बीजापुर सुल्तान के दरबार में काफी प्रभावशाली राजनेता थे। शहाजीराजे का विवाह जाधवराव कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली एवं धार्मिक महिला जीजाबाई के साथ सम्पन्न हुआ था तथा इस विवाह से इन दम्पत्ति के यहाँ शिवनेरी दुर्ग में 19 फरवरी 1630 को शिवाजी का जन्म हुआ था, जोकि पश्चात् में छत्रपति हुवे। शिवाजी महाराज का बचपन अपनी माता के मार्गदर्शन में व्यतीत हुआ, उन्होंने राजनीति और युद्ध की शिक्षा प्राप्त की। वे उस कालावधि के वातावरण को भली प्रकार से समझने लगे थे और उनके ह्रदय में स्वाधीनता की ज्वाला भी प्रज्वलित हो गई थी, इसलिए उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों का संगठन तैयार किया। उन्हीं छत्रपति शिवाजी महाराज के जन्म जयंती दिवस पर यह 152 वाँ लेखरूपी पुष्प को उन्हें समर्पित है।  

पतितपावनी माता नर्मदा

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारे सनातन धर्म में अनादि काल से नदियों को भी दैवीय रूप से पूजने की परम्परा चली आ रही है।  मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा कही जाने वाली नर्मदा नदी हमारे देश की सात पवित्र नदियों में से एक और सबसे प्राचीन नदियों में से भी एक मानी जाती है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी का दिन नर्मदा जयंती के रूप में मनाया जाता है। आज हमारे इस 151 वें लेख में पतित पावन नर्मदा नदी के श्री चरणों में समर्पित है। कहा जाता है कि गंगा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों में तो स्नान से पुण्य की प्राप्ति होती है किन्तु नर्मदा नदी के तो दर्शन मात्र से ही पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। मत्स्य पुराण में कहा गया है कि गंगा नदी में कनखल में स्नान करने पर तथा सरस्वती नदी में कुरुक्षेत्र में जो पुण्य प्राप्त होता है, वह पुण्य नर्मदा में किसी भी स्थान पर स्नान करने पर प्राप्त हो जाता है। नर्मदा नदी ही एकमात्र ऐसी नदी है, जिसके पत्थर बगैर प्राणप्रतिष्ठा के भी शिवलिंग रुप में पूज्य होते हैं।

सागर मंथन से प्राप्त अनमोल चौदह रत्न

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर का सादर अभिनन्दन। इस समय तीर्थराज प्रयागराज में महाकुम्भ का पावन अवसर है,  सागर मंथन के समय पर जब भगवान धन्वन्तरि जी अमृत कलश लेकर प्रकट हुवे थे, उस समय अमृत कलश के लिए देवताओं और असुरों में संघर्ष प्रारम्भ हुआ, तब अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदे छलक गई और वे बूंदे प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में जाकर गिरी थीं, इसी कारण से यहाँ कुम्भ परम्परा प्रारम्भ हुई और इस कालावधि में इन स्थानों पर पवित्र नदियों में स्नान करने पर अमृत स्नान का काफी पुण्य बताया गया है। इस 150 वें लेख में हम सागर मंथन से प्राप्त अमृत सहित सभी चौदह रत्नों के विषय में चर्चा करेंगे। हमारे धर्म ग्रंथो में सागर मंथन का उल्लेख मिलता है, उस सम्बन्ध में कहा जाता है कि एक बार महर्षि दुर्वासा जी के  श्राप के कारण स्वर्ग श्रीहीन (ऐश्वर्य, धन, वैभव हीन आदि)   हो गया था और देवराज इन्द्र सहित समस्त देवता शक्तिहीन हो गए थे। उस परिस्थिति  में समस्त देवता भगवान श्री विष्णु जी की शरण में गए। भगवान श्री विष्णु जी ने देवताओं को ...

वीरांगना महारानी ताराबाई भोंसले

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारे भारत देश का इतिहास वीरांगनाओं के साहस और वीरगाथाओं से भरा हुआ है। भारतीय वीरांगनाओं ने समय समय पर अपनी वीरता का लौह मनवाया है और अपने वीरोचित स्वभाव अनुसार चुनौतियों का सदैव ही डटकर सामना कर समाज में एक आदर्श प्रस्तुत किया है। ऐसी ही वीरता की प्रतीक रही है महारानी ताराबाई भोंसले, जिनकी कहानी प्रत्येक महिला को ज्ञात होना चाहिये। आज का यह 149 वां लेख उन्हीं वीरांगना महारानी ताराबाई भोंसले को समर्पित है। छत्रपति शिवाजी महाराज के सरसेनापति हम्बीर राव जी मोहिते की सुपुत्री ताराबाई का जन्म 1675 में हुआ होकर दिनांक 9 दिसंबर 1761 को उनका निधन हुआ।  छत्रपति शिवाजी महाराज के छोटे पुत्र राजाराम महाराज की धर्मपत्नी महारानी ताराबाई ने अपने पति के निधन के पश्चात् मराठा साम्राज्य की संरक्षिका बनकर चार वर्षीय बालक शिवाजी द्वितीय को मराठा साम्राज्य का छत्रपति घोषित किया और संरक्षिका के रूप में मराठा साम्राज्य का संचालन करते हुवे मुग़ल सम्राट औरंगजेब से लगातार सात वर्षों तक टक्कर लेते हुवे कई स...