छत्रपति शिवाजी महाराज

मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। महाराष्ट्र की अहमदनगर सल्तनत में शक्तिशाली सामंत परिवार में जन्में मालोजीराव भोंसले एक प्रभावशाली जनरल रहे होकर उनके पुत्र शहाजीराजे भी बीजापुर सुल्तान के दरबार में काफी प्रभावशाली राजनेता थे। शहाजीराजे का विवाह जाधवराव कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली एवं धार्मिक महिला जीजाबाई के साथ सम्पन्न हुआ था तथा इस विवाह से इन दम्पत्ति के यहाँ शिवनेरी दुर्ग में 19 फरवरी 1630 को शिवाजी का जन्म हुआ था, जोकि पश्चात् में छत्रपति हुवे। शिवाजी महाराज का बचपन अपनी माता के मार्गदर्शन में व्यतीत हुआ, उन्होंने राजनीति और युद्ध की शिक्षा प्राप्त की। वे उस कालावधि के वातावरण को भली प्रकार से समझने लगे थे और उनके ह्रदय में स्वाधीनता की ज्वाला भी प्रज्वलित हो गई थी, इसलिए उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों का संगठन तैयार किया। उन्हीं छत्रपति शिवाजी महाराज के जन्म जयंती दिवस पर यह 152 वाँ लेखरूपी पुष्प को उन्हें समर्पित है।  
भारत के महान रणनीतिकार राजा छत्रपति शिवजीराजे भौंसले ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन करते हुवे युद्ध कौशल में अनेक नवाचार किये। छापामार युद्ध गौरिल्ला युद्धनीति की नई शैली विकसित करते हुवे मुग़ल शासक औरंगजेब से संघर्ष करते हुवे पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की स्थापना की, बाद में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और वे छत्रपति बने। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं एवं दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित करते हुवे मराठी और संस्कृत भाषा को राजकाज की भाषा बनाया। पुणे के लालमहल में शिवाजी महाराज का विवाह सईबाई के साथ सम्पन्न हुआ। वैवाहिक राजनीति के माध्यम से सभी मराठा सदस्यों को एक छत्र के नीचे लाने के उद्देश्य से उन्होंने कुल 8 विवाह किये थे। संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करते हुवे कुशल योद्धा शिवाजी महाराज ने पश्चिम घाट से जुड़े मावल प्रदेश जहाँ मराठा और सभी जाति के लोग रहते थे, उन्हें मावळा नाम देकर संगठित किया तथा इस संगठन के युवकों के माध्यम से दुर्ग के निर्माण को भी प्रारम्भ किया। 

उस समय बीजापुर आपसी संघर्ष तथा मुगलों के आक्रमण के दौर से गुजर रहा था। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह के अस्वस्थ होने पर बीजापुर में अराजकता फ़ैल गई, जिस अवसर का लाभ उठाकर शिवाजी महाराज ने बीजापुर में प्रवेश के साथ ही बीजापुर के दुर्गों पर अपना अधिकार करने की नीति बनाई। शिवाजी महाराज ने सबसे पहले रोहिदेश्वर के दुर्ग पर अपना अधिकार किया, उसके बाद कूटनीति के माध्यम से ऐसी स्थिति बनाई कि स्वयं आदिलशाह ने उन्हें तोरण के दुर्ग का अधिपति बना दिया। इस प्रकार से यह दुर्ग भी उन्होंने आदिलशाह से हथिया लिया। इसके बाद उन्होंने रायगढ़ के दुर्ग को अपने अधिकार में लिया। रायगढ़ के बाद उन्होंने चाकन के दुर्ग पर अधिकार किया, उसके बाद कोंडना के दुर्ग पर भी अपना अधिकार जमाया, कोंडना के दुर्ग पर कब्ज़ा करने के दौरान युद्ध में तानाजी मालुसरे वीरगति को प्राप्त हो गए थे, जिनकी याद में उस दुर्ग का नाम सिंहगढ़ रखा गया। शिवाजी महाराज की इस साम्राज्य विस्तार की नीति की जानकारी होने पर आदिलशाह ने क्षुब्ध होकर शिवाजी महाराज के पिता शाहजीराजे से अपने पुत्र पर नियंत्रण रखने को कहा तो शिवाजी महाराज ने अपने पिता के क्षेत्र का प्रबंधन भी अपने हाथों में ले लिया और नियमित लगान देना भी बंद कर दिया।  

इसके पश्चात् शिवाजी महाराज ने सूपा के दुर्ग पर आक्रमण करके अपने अधिकार में ले लिया। उसी समय पुरन्दर के किलेदार की मृत्यु  हो गई और किले के उत्तराधिकार के लिए उनके तीनों बेटों में लड़ाई छिड़ गई तब शिवाजी महाराज पुरन्दर पहुँचे और कूटनीति का सहारा लेते हुवे सभी भाइयों को बंदी बनाकर पुरन्दर के किले को भी अपने आधिपत्य में ले लिया होकर चाकन से लेकर नीरा तक के भूभाग के अधिपति शिवाजी महाराज बन गए। इसके पश्चात् अपनी बड़ी सैन्य शक्ति के साथ शिवाजी महाराज ने मैदानी इलाकों में प्रवेश करने की योजना बनाई। एक अश्वारोही सेना का गठन कर उन्होंने आबाजी सोन्देर के नेतृत्व में कोंकण के विरूद्ध अपनी सेना भेजी और आबाजी ने कोंकण सहित नौ अन्य दुर्गों पर अपना अधिकार कर लिया साथ ही टाला, मोस्माला और रेती के दुर्ग भी शिवाजी महाराज के अधीन आ गए। इन सभी जगहों से प्राप्त संपत्ति रायगढ़ में सुरक्षित रखी गई। उसके बाद शिवाजी महाराज ने कल्याण के गवर्नर को  मुक्त कर कोलाबा की ओर रुख किया और यहाँ के प्रमुखों को विदेशियों के खिलाफ युद्ध के लिए तैयार किया।   

शिवाजी महाराज की इस शैली से बीजापुर का सुल्तान आक्रोश में था, उसने शिवाजी महाराज के पिता को बंदी बनाने का आदेश दे दिया। एक विश्वासघाती सहायक द्वारा शाहजीराजे को कर्नाटक से बंदी बनाकर बीजापुर  लाया गया। बीजापुर के दो सरदारों की मध्यस्थता के बाद शाहजीराजे को इस शर्त पर छोड़ा गया कि वे शिवाजी महाराज पर नियंत्रण रखेंगे। शाहजीराजे को मुक्त करने की शर्तों के मुताबिक शिवाजी महाराज ने बीजापुर के खिलाफ तो कोई आक्रमण नहीं किया किन्तु अपनी सेना संगठित कर दक्षिण पश्चिम में आगे बढ़ने की चेष्टा की, जिस क्रम में सतारा के सुदूर उत्तर पश्चिम में वामा और कृष्णा नदी के मध्य स्थित जावली का राज्य बाधक था। शिवाजी महाराज ने यहाँ के राजा चन्द्रराव मोरे को स्वराज में सम्मिलित होने को कहा किन्तु चन्द्रराव बीजापुर के सुल्तान के साथ मिल गया तब शिवाजी महाराज ने जावली पर आक्रमण कर दिया। चन्द्रराव  ने अपने दो  पुत्रों के साथ शिवाजी लड़ाई लड़ी पर अंत में दोनों पुत्र बंदी बना लिए गए और चन्द्रराव भाग गया। इस दुर्ग में संग्रहित आठ वंशों की संपत्ति शिवाजी महाराज को प्राप्त हुई साथ ही मुरारबाजी देशपाण्डे भी शिवाजी महाराज की सेना में शामिल हो गए। ( इस संबंध में अम्रर बलिदानी मुरारबाजी देशपाण्डे लेख पूर्व में लिखा गया है, उस लेख को भी अवश्य पदे)  

बीजापुर के सुल्तान  मृत्यु होने पर उस समय दक्षिण के सूबेदार शहजादे औरंगजेब ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया। इधर शिवाजी महाराज ने औरंगजेब पर धावा बोल कर ढ़ेर सारी सम्पत्ति के साथ 200 घोड़े लूट लिए और अहमदनगर, गुण्डा तथा रेसिन दुर्ग में भी काफी सामग्री, हाथी घोड़े लूट लिए। बाद में मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के आदेश पर औरंगजेब ने बीजापुर से संधि कर ली, उसी समय शाहजहाँ के बीमार होने पर औरंगजेब उत्तर भारत चला गया जहाँ शाहजहाँ को कैद कर खुद मुग़ल सम्राट बन गया। दक्षिण भारत में औरंगजेब की अनुपस्थिति पर शिवाजी महाराज ने जंजीरा आक्रमण कर दक्षिण कोंकण पर  अधिकार कर दमन के पुर्तगालियों से कर एकत्र करना प्रारम्भ कर दिया। कल्याण और भिवण्डी पर अधिकार कर वहाँ नौसेनिक अड्डा बना लिया। इस समय तक शिवाजी 40 दुर्गों के अधिपति बन गए थे।  

औरंगजेब के आगरा लौट जाने के बाद बीजापुर के सुल्तान ने अफजल खां को शिवाजी महाराज के खिलाफ भेजा।  अफजल खां ने बड़ी भारी सेना के साथ कूच किया और तुलजापुर के मंदिरों को ध्वस्त करता हुआ  सतारा के पास तक आ गया। वहाँ से अफजल खां ने अपने दूत कृष्णजी भास्कर को संधि वार्ता के लिए शिवाजी महाराज के पास भेजा, शिवाजी महाराज के मंत्री एवं सलाहकार संधि के पक्ष में थे किन्तु शिवाजी महराज को यह बात रास नहीं आई, उन्होंने दूत को उचित सम्मान देकर अपने दरबर में ही रख लिया तथा अपने दूत गोपीनाथ को स्थिति का जायजा लेने अफजल खां के पास भेजा। गोपीनाथ और कृष्णजी भास्कर से शिवाजी महाराज को लगा कि संधि का षड्यंत्र रचकर अफजल खां उन्हें बंदी बनाना चाहता है। तब शिवाजी महाराज ने युद्ध के बदले बहुमूल्य उपहार प्रेषित कर अफजल खां को संधि के लिए राजी किया। संधि स्थल पर दोनों ओर  सैनिक घात लगाए बैठे थे, नियत स्थान पर दोनों मिले। अफजल खां ने अपनी कटार से शिवाजी पर वार करना चाहा, उसके पहले ही शिवाजी महाराज ने बाघनखों से अफजल खां को मार डाला।  अफजल खां की मृत्युपरान्त शिवाजी महाराज ने पन्हाला दुर्ग पर अधिकार किया बाद में पवनगढ़ और बसंतगढ़ के दुर्गों पर अधिकार करने के साथ रुस्तम खां के आक्रमण को विफल किया। इससे राजापुर और दावुल पर कब्जा हो गया किन्तु बाद में बीजापुर के सामंतों के संगठित हो जाने पर पन्हाला और पवनगढ़ के दुर्ग उनके अधिकार से निकल गए। उसी समय कर्नाटक में सिद्दीजौहर के विद्रोह के कारण बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी महाराज के साथ समझौता कर उन्हें स्वतंत्र शासक की मान्यता प्रदान की।  तब उत्तर में कल्याण से लेकर दक्षिण में पोंडा तक 250 km. और पूर्व में इन्दापुर से पश्चिम में दावुल 150 km. का भूभाग शिवाजी महाराज के नियंत्रण में आ गया।  

इधर सम्राट बनने के बाद औरंगजेब ने शिवाजी महाराज पर नियंत्रण रखने के उद्देश्य से अपने मामा शाइस्ता खां को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया, जिसने तीन साल तक मावल में भरी लूटमार की। एक रात शिवाजी महाराज ने मात्र 350 मावलों के साथ उस पर हमला कर दिया तब शाइस्ता खां खिड़की के रास्ते बच निकला किन्तु उसके हाथ की चार अंगुलियाँ कट गई। इस घटना के बाद उसे बंगाल का सूबेदार बनाया गया और  उसके स्थान पर शहजादा मुजज्जम को भेजा गया। शाइस्ता खां द्वारा की गई लूटमार और आगजनी का हर्जाना वसूलने के लिए शिवाजी महाराज ने मुग़ल क्षेत्रों में लूटमार प्रारम्भ कर दी। शिवाजी महाराज से खिन्न होकर औरंगजेब ने छलपूर्वक शिवाजी महाराज को आगरा बुलवाया, जहाँ तिरस्कार होने पर भरे दरबार में शिवाजी महाराज ने विरोध किया तो औरंगजेब ने कुछ दिनों बाद हत्या कर देने के  विचार से शिवाजी महाराज और उनके पुत्र संभाजी को नजरबन्द कर लिया। अदम्य साहस और युक्ति से शिवाजी महाराज अपने पुत्र के साथ वहाँ से बच निकले तथा मथुरा में अपने एक विश्वस्त ब्राह्मण के यहाँ संभाजी को छोड़कर बनारस, पुरी  होते हुवे राजगढ़ पहुँच गए। उसके बाद औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता देते हुवे उनके पुत्र संभाजी को मनसबदारी  प्रदान कर पूना, चाकल और सपा का किला वापस लौटा दिया।  

इस प्रकार से शिवाजी महाराज ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरन्दर की संधि के समय मुगलों को देने पड़े थे। उसके बाद महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी महाराज ने अपना राज्याभिषेक कराना चाहा, जिसकी भनक लगते ही मुगल सैनिकों ने धमकी दी कि जो भी ब्राह्मण  राज्याभिषेक करेगा उन्हें मार दिया जायेगा।  जब यह बात शिवाजी महाराज को ज्ञात हुई तो उन्होंने निश्चित किया कि मुगलों के अधिकार वाले राज्य के  ब्राह्मण से ही राज्याभिषेक करावेंगे। इस सम्बन्ध में मुगल शासन के अधीन काशी में दूत भेजे गए और ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया। ब्राह्मण भी संघर्ष करते हुवे रायगढ़ पहुंचे और शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक संपन्न किया। मुगलों ने फूट डालने के काफी प्रयास किये किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। शिवाजी महाराज ने अष्ट प्रधान मंडल की स्थापना की। राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही शिवाजी महाराज की माताजी का देहांत हो गया होने से बाद में दोबारा आयोजित समारोह में उन्होंने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। इस समारोह में हिंदवी स्वराज की स्थापना का उद्घोष  किया गया।  विजय नगर के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था।  ( इस संबंध में छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक और हिंदवी स्वराज्य की स्थापना लेख पूर्व में लिखा गया है, उस लेख को भी अवश्य पदे)   

शिवाजी महाराज को एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाना जाता है।  उनके प्रशासनिक कार्यों में मदद के लिए आठ मंत्रियों की एक परिषद् थी, जिसे अष्ट प्रधान कहा जाता है।  मंत्रियों के प्रधान को पेशवा कहते थे, जोकि राजा के बाद प्रमुख हस्ती होता था।  अमात्य का कार्य वित्त और राजस्व के कार्यों  को करना  होता था।  मंत्री राजा की व्यक्तिगत दैनंदिनी का ध्यान रखता था।  सचिव दफ्तरी कार्य करते थे, तो सुमंत विदेश मंत्री  होते थे।  सेना के प्रधान को सेनापति तो न्यायिक मामलों का प्रधान न्यायाधीश  होता था।  दान और धार्मिक मामलों के  प्रमुख को पंडितराव कहते थे। मराठा साम्राज्य तीन या चार विभागों में विभक्त था।  प्रत्येक प्रान्त में एक सूबेदार था, जिसे प्रान्तपति  कहते थे। गांव के पटेल फौजदारी मामलों की जाँच  करते थे।  चौथ पड़ौसी राज्यों की सुरक्षा की गारंटी के लिए वसूला जाने वाला कर था। शिवाजी महाराज अपने को मराठों का सरदेशमुख कहते थे और इसी हैसियत से सरदेशमुखी कर वसूला जाता था। शिवाजी महाराज की राजमुद्रा संस्कृत में लिखित अष्टकोणीय थी, जिसका उपयोग वे अपने पत्रों में और सैन्य सामग्री पर करते थे। 

शिवाजी महाराज धर्म परायण हिन्दू शासक थे। अपने अभियानों का आरम्भ वे प्रायः दशहरे पर करते थे। शिवाजी महाराज के चरित्र पर उनके माता पिता का गहरा प्रभाव था। वे अच्छे सेनानायक के साथ ही एक अच्छे कूटनीतिक भी थे।  कई बार उन्होंने सीधे युद्ध लड़ने की अपेक्षा कूटनीति का  सहारा लेकर ही विजयश्री प्राप्त की।  शिवाजी महाराज अपने पिता से पृथक रूप से स्वतंत्र होकर  एक बड़े साम्राज्य के अधिपति  हो गए थे फिर भी उन्होंने अपने पिता की जीवित अवस्था में अपना राज्याभिषेक नहीं करवाया, पिता की मृत्युपरान्त ही राज्याभिषेक करवाया।  उनके नेतृत्व को सभी लोग स्वीकार करते थे, इसी कारण  से उनके शासनकाल में कोई आतंरिक विद्रोह जैसी कोई बड़ी घटना नहीं हुई।  बंबई के दक्षिण में कोंकण, तुंगभद्रा नदी के पश्चिम में वेलगांव तथा धारवाड़ का क्षेत्र, मैसूर, वैलारी, त्रिचूर तथा जिंजी पर अधिकार करने के बाद 3 अप्रेल 1680 को उनका देहान्त हो गया।  उस समय शिवाजी महाराज के उत्तराधिकार संभाजी को मिले।  संभाजी शिवाजी महराज के ज्येष्ठ पुत्र थे उनकी द्वितीय पत्नी के पुत्र राजाराम उस समय मात्र 10 वर्ष  के थे, इस कारण मराठों ने संभाजी को अपना राजा मान लिया था। आज धर्मपरायण महान हिन्दू शासक छत्रपति शिवाजी महाराज की जन्म जयंती महोत्सव के अवसर पर शत शत नमन - दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर।                    

Comments

Popular posts from this blog

बूंदी के हाडा वंशीय देशभक्त कुम्भा की देशभक्ति गाथा

महाभारत कालीन स्थानों का वर्तमान में अस्तित्व

बुजुर्गों से है परिवार की सुरक्षा