पतितपावनी माता नर्मदा

मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारे सनातन धर्म में अनादि काल से नदियों को भी दैवीय रूप से पूजने की परम्परा चली आ रही है।  मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा कही जाने वाली नर्मदा नदी हमारे देश की सात पवित्र नदियों में से एक और सबसे प्राचीन नदियों में से भी एक मानी जाती है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी का दिन नर्मदा जयंती के रूप में मनाया जाता है। आज हमारे इस 151 वें लेख में पतित पावन नर्मदा नदी के श्री चरणों में समर्पित है। कहा जाता है कि गंगा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों में तो स्नान से पुण्य की प्राप्ति होती है किन्तु नर्मदा नदी के तो दर्शन मात्र से ही पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। मत्स्य पुराण में कहा गया है कि गंगा नदी में कनखल में स्नान करने पर तथा सरस्वती नदी में कुरुक्षेत्र में जो पुण्य प्राप्त होता है, वह पुण्य नर्मदा में किसी भी स्थान पर स्नान करने पर प्राप्त हो जाता है। नर्मदा नदी ही एकमात्र ऐसी नदी है, जिसके पत्थर बगैर प्राणप्रतिष्ठा के भी शिवलिंग रुप में पूज्य होते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि नर्मदा नदी का अस्तित्व उस समय से है, जब न तो हिमालय था और न ही गंगा थी, नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर  दंडकारण्य के घने जंगलों का ही अस्तित्व था। पौराणिक कथाओं के अनुसार तपस्यारत भगवान शिवजी के पसीने से 12 वर्षीय कन्या के रूप में नर्मदा नदी की उत्पत्ति बताई गई होकर इन्हें शिवपुत्री भी कहा गया किन्तु कुछ मान्यताओं के अनुसार इन्हें राजा मैखल की पुत्री भी बताया गया है। हमारे ऋषि मुनियों की सर्वोत्तम तप स्थली नर्मदा नदी के तट रहे हैं, मार्कण्डेय ऋषि, कपिल ऋषि, भृगु ऋषि, जमदग्नि ऋषि सहित अनेकानेक ऋषि मुनियों के आश्रम नर्मदा किनारे रहे हैं।  विशाल पर्वतों और चट्टानों के बीच से मानो उछलते कूदते जल प्रवाह से इनका नाम रेवा भी पड़ा, तो मात्र दर्शन से आनंद प्रदान करने के कारण इनका नाम नर्मदा हुआ। 

मध्य प्रदेश के अमरकंटक से नर्मदा नदी का उद्गम स्थान है, जहाँ से एक पतली सी धारा के रूप में नर्मदा नदी के दर्शन होते हैं। पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित होने वाली नर्मदा नदी का नेमावर में नाभिस्थल अर्थात मध्य माना गया है, उसके बाद विंध्याचल और सतपुड़ा की पर्वत श्रृंखला से होते हुवे ओंकारेश्वर, महेश्वर, जबलपुर से होकर गुजरात में प्रवेश करती हैं तथा करीब 1312 किलो मीटर की अपनी यात्रा पूर्ण कर भरुच में अरब सागर में विलीन हो जाती है। कपिल धारा, दूध धारा, धावड़ीकुंड, सहत्रधारा के प्रपात अति दर्शनीय हैं। अमरकंटक से भरुच तक की यात्रा में छोटी बड़ी कुल 41 नदियाँ नर्मदा नदी में मिलती हैं, जिनमे प्रमुख नदियाँ - हिरदन, टिन्डोनी, बरना, कोलर, मान, उरी, हथिनी, बर्नर, बंजर, शक़्कर, दूधी, तवा, गंजल, कुंडी, गोई, चोरल आदि हैं।     

हमारे देश में नर्मदा नदी ही एकमात्र नदी है जो कि अन्य नदियों से विपरीत दिशा की ओर  प्रवाहित होती है।  इस संबंध में भी यह मान्यता है कि राजा मैखल द्वारा अपनी पुत्री नर्मदा के विवाह के लिए शर्त रखी कि जो भी राजकुमार गुलबकावली के पुष्प उनकी पुत्री के लिए लेकर आएगा, उसके साथ उसका विवाह कर दिया जायेगा। इस शर्त को सोनभद्र ने पूरा किया और उनका विवाह तय हो गया।  दोनों के विवाह में कुछ समय था, नर्मदा सोनभद्र से कभी मिली नहीं थी तब उन्होंने अपनी दासी जुहिला से हाथों सोनभद्र के लिए कोई सन्देश भेजा। जुहिला ने नर्मदा से वस्त्राभूषण मांगे और उन्हें धारण कर सोनभद्र से मिलने चली गई।  सोनभद्र ने दासी को राजकुमारी समझ लिया और जुहिला भी कुछ डगमगा गई तथा वह सोनभद्र का प्रणय निवेदन ठुकरा नहीं पाई। जब काफी समय व्यतीत हो गया और जुहिला नहीं आई तो नर्मदा स्वयं सोनभद्र से मिलने चल पड़ी और वहाँ जाकर जुहिला और सोनभद्र को एकसाथ देखकर नाराज होकर सदैव कुंवारी रहने की शपथ लेकर उलटी दिशा की ओर चल पड़ी।  इसी कारण से हमारी सभी प्रमुख नदियाँ बंगाल की खाड़ी में विलीन होती है जबकि नर्मदा विपरीत दिशा में जाकर अरब सागर में मिलती है।   

नर्मदा नदी के संदर्भ में एक मान्यता यह भी है कि नर्मदा नदी का प्रत्येक पाषाण नर्मदेश्वर शिवलिंग के रूप में बगैर प्राणप्रतिष्ठा के ही पूज्य होता है।  इस सम्बन्ध में कहा जाता है कि मातृ नर्मदा द्वारा कठोर तप करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया तब ब्रह्मा जी ने वरदान मांगने को कहा तो नर्मदा गंगा के समान पवित्र होने का वरदान माँगा जिसके लिए ब्रह्माजी ने असमर्थता व्यक्त की तो नर्मदा ने काशी में जाकर पिलपिल तीर्थ में शिवलिंग की स्थापना करके तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने वरदान दिया कि नर्मदे आपके सम्पर्क में आने वाले सभी पत्थर शिवलिंग में परिवर्तित हो जायेंगे तथा जिस प्रकार गंगा में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, वह पुण्य तुम्हारे दर्शन मात्र से प्राप्त होगा। तब से ही नर्मदा का हर कंकर शंकर कहलाने लगा और इन्हें नर्मदेश्वर शिवलिंग भी कहा जाने लगा जिन्हें प्राणप्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती है।    

नर्मदा घाटी से अन्वेषणों एवं खुदाई में ऐसी बहुत सी शिलायें, शिलालेख, भित्ति चित्र, तैल चित्र मिले जिससे प्राचीन भारतीय सभ्यता प्रमाणित होती है। नर्मदा घाटी की खुदाई से प्राप्त तथ्यों ने यह भी सिद्ध किया है कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों  में से एक है। नर्मदा घाटी की खुदाई में, मेहरगढ़ में प्राप्त अवशेषों से तथा भीमबैठका में पाए गए 25 हजार वर्ष पुराने शैलचित्र, एवं पुरातत्वीय प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि भारत भूमि विश्व के सर्वाधिक एवं प्राचीनतम आदिमानव की प्राचीन कर्म भूमि रही है। नर्मदा किनारे मानव खोपड़ी का पॉंच से छह लाख वर्ष पुराण जीवाश्म भी मिला, तो डायनासोर के अंडो के जीवश्म भी प्राप्त हुवे हैं, उसी प्रकार विशालतम वृषभ के भी जीवाश्म प्राप्त हुवे हैं। भोपाल के समीप रातापानी के वनों में स्थित भीम बैठका की गुफाओं के बारे में कहा जाता है कि महाभारत काल में भीमसेन यहाँ विश्राम करते थे। इन प्राचीन स्थलों की श्रृंखला में ही भेड़ाघाट, नेमावर, हरदा, ओंकारेश्वर, महेश्वर, होशंगाबाद (नर्मदापुरम), बावनगजा, अंगारेश्वर, शूलपाणि आदि स्थानों पर सैकड़ों पुरातात्विक प्रमाण सहज दृष्टिगत होते हैं।       

सम्पूर्ण  विश्व में नर्मदा नदी ही एकमात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है। परिक्रमा करने वाले नर्मदा नदी के दोनों तटों पर पैदल चलते हुवे लगभग  1312 किलोमीटर के नर्मदा नदी के प्रवहित होने वाले जलक्षेत्र की परिक्रमा करते हैं।  व्यवस्थित नर्मदा परिक्रमा तीन वर्ष, तीन माह, तेरह दिनों में पूर्ण होती है, वैसे कुछ लोग इस यात्रा को 108 दिनों में भी पूर्ण कर लेते हैं, इसके आलावा अब तो कई लोग सड़क मार्ग का उपयोग कर वाहनों से भी नर्मदा परिक्रमा कर रहे हैं। यह भी कहा जाता है कि नर्मदा के तट पर शिव पार्वती सहित सभी देवताओं का आगमन होता रहता है। यह भी कहा जाता है कि माँ नर्मदा की सवारी मगरमच्छ है किन्तु नर्मदा नदी के जल में कभी किसी मगरमच्छ ने किसी व्यक्ति पर हमला नहीं किया है। नर्मदा जयंती के अवसर पर माँ नर्मदा को शत शत प्रणाम, त्वदीय पाद पंकजम, नमामि देवी नर्मदे...  नमामि देवी नर्मदे... दुर्गा प्रसाद शर्मा,एडवोकेट, इंदौर।     

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