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Showing posts from November, 2023

कार्तिक पूर्णिमा

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। विक्रम संवत के प्रत्येक माह की अंतिम तिथि होती है, पूर्णिमा अर्थात पूर्णमासी।  प्रत्येक माह के अंत में आने वाली यह तिथि पूरे वर्षभर में 12 बार आती है और जिस वर्ष अधिकमास होता है, उस समय 13 बार आती है। प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि का पृथक पृथक महत्त्व है किन्तु कार्तिक मास की पूर्णिमा का अपना अलग ही महत्त्व है। कार्तिक मास को श्रावण मास से भी अधिक पावन मास माना गया है, कार्तिक मास स्नान की भी परम्परा प्रचलित है, जिसका कई धर्मप्रेमीजन निर्वाह भी करते हैं यह भी कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान से भी पुरे माह के स्नान का फल प्राप्त हो जाता है। वैष्णव और शैव दोनों ही पंथ कार्तिक मास को एक समान नियम और संयम पूर्वक पूजते हैं। कार्तिक माह की पूर्णिमा को देव दीवाली अर्थात देवताओं की दीवाली के रूप में मनाया जाता है, कहा जाता है कि इस दिन देवता स्वर्ग से पृथ्वी पर आकर विचरण करते हैं। 

आँवला नवमी (अक्षय नवमी)

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। संतान प्राप्ति और अपने परिवार में सुख, शांति एवं समृद्धि की कामना से कार्तिक मास की नवमी तिथि को आँवला नवमी का पर्व मनाया जाता है, अक्षय तृतीया के समान फल देने के कारण इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है। वैसे तो यह पर्व संपूर्ण देश में मनाया जाता है किंतु बृज मंडल में इस पर्व की महत्ता कुछ अलग ही है, वहाँ बड़ी धूमधाम और विधि विधान से मनाया जाता है। उत्तर भारत और मध्य भारत में आँवला नवमी या अक्षय नवमी के रूप में मनाए जाने वाले पर्व को दक्षिण और पूर्वी भारत में  इस दिन जगद्धात्री देवी की पूजा उत्सव के रूप में मनाते हैं। इस प्रकार से आँवला नवमी के साथ साथ इसे अक्षय नवमी, धात्री नवमी और कूष्माण्डा नवमी भी कहा जाता है।  ऐसी मान्यता है कि इस दिन किये हुए सद्कार्य का पुण्य फल कई गुना और बहुत अधिक समय तक मिलता है। पापों और कष्टों से मुक्ति के लिए इस दिन आँवले के वृक्ष की पूजा करने और व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है, जिसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि माता लक्ष्मी जी ने इसे प्र...

गोपाष्टमी

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारे  देश में प्राचीन काल से ही यह परम्परा रही है कि हम अपनी दिनचर्या के कार्यों को करने में भी उत्सव मना लेते हैं और उसके बाद वही परिपाटी पर्व के रूप में मान्यता भी ले लेती है। एक इसी प्रकार की दिनचर्या भगवान श्री कृष्ण जी ने अपने बाल्यकाल में की थी, जो आज हम गोपाष्टमी को एक पर्व के रूप में उल्हासपूर्वक मनाते है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन से ही भगवान श्री कृष्ण जी ने गौ चारण की लीला प्रारम्भ की थी। इसके अतिरिक्त एक अन्य मान्यता के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से सप्तमी तिथि तक भगवान श्रीकृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था और अष्टमी तिथि को देवराज इन्द्र ने अहंकार रहित होकर भगवान की शरण में आकर क्षमायाचना की थी और उसी दिन कामधेनु गाय द्वारा भगवान का अभिषेक भी किया था, तब गायों की रक्षा करने के कारण भगवान का नाम गोविन्द पड़ा और तब से ही कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा। 

भाई दूज (यम द्वितीया)

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। रक्षा बंधन के अतिरिक्त   हिन्दू धर्म का भाई बहनों का एक अति महत्वपूर्ण पर्व भाई दूज मनाया जाता है, जोकि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि अर्थात दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाता है। भाई के प्रति बहन के स्नेह की अभिव्यक्ति के इस पर्व पर बहनें अपने भाइयों की खुशहाली के लिए कामना करती हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन यमुना ने अपने भाई यमराज को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था, उस दिन कई जीवों को नारकीय यातनाओं से मुक्ति मिली होकर वे सभी पाप मुक्त होकर समस्त बंधनों से मुक्ति पा गए थे और पूर्णतः तृप्त हो गए थे। यमलोक की यातनाओं से मुक्ति के कारण यह पर्व यम द्वितीया के नाम से विख्यात हो गया, ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भी भाई अपनी बहन के हाथ का बना उत्तम भोजन करता है, वह ईहलोक में समस्त सुख और ऐश्वर्य प्राप्त करता है साथ ही यमलोक की नारकीय यातनाओं से भी मुक्ति पा जाता है।   

औदीच्य गौरव ब्रह्मनिष्ठ पूज्य श्री जयनारायण बापजी वकील साहब

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारे सनातन धर्म और हमारे भारत देश में एक नहीं कई घटनाएँ इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करती रही है कि ईश्वरीय शक्ति इस दुनिया में विद्यमान है, जिससे इंकार नहीं किया जा सकता। हमारे जीवन में भी इस प्रकार की कई घटनाएँ घटित होती है, जोकि ईश्वतरीय शक्ति का एहसास दिलाती है किन्तु हम उन्हें उस समय तो अनदेखा कर देते हैं, फिर बाद में याद  भी करते हैं। इसी प्रकार की एक घटना मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले के आगर में वर्ष 1932 में घटित हुई थी, जिसने यह प्रमाणित कर दिया कि यदि ईश्वर में आस्था और विश्वास हो तो वे आपका साथ अवश्य देते हैं। यह घटना अवधूत श्री नित्यानंद जी बापजी के विशेष कृपापात्र, परम साधक, ब्रह्मनिष्ठ हमारे औदीच्य ब्राह्मण समाज के प्रेरणापुंज दिव्य विभूति श्री जयनारायण बापजी की है, जिनकी आज कार्तिक कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि को पुण्यतिथि है उन्हीं को स्मरण करते हुवे उनके श्री चरणों में वंदन करते हुवे यह पुष्पांजली स्वरुप आलेख उन्हीं को समर्पित है। 

सनातन धर्म के ऋषि मुनि एवं विद्वतजन की दक्षता और वैज्ञानिक आविष्कार

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर का सादर अभिनन्दन  सम्पूर्ण लौकिक एवं वैदिक संस्कृत वाड़्मय में चिरकाल से विज्ञान शब्द का व्यवहार होता आया है। विज्ञान अंतःकरण है, विज्ञान ब्रह्म है, विज्ञान अनुभवात्मक ज्ञान है। हमारे वेद पुराण उपनिषद शास्त्रों में विज्ञानं के कई गूढ़ रहस्यों का  उल्लेख है, जिसमे कई आविष्कार और तकनीकियों का उल्लेख है। आज पश्चिम देश भी हमारे उन्हीं साहित्यो की  सहायता से उपलब्धियां प्राप्त कर रहे हैं।  हम पुरातन समय में ही सम्पूर्ण विश्व में सबसे उन्नत तकनीकि  सपन्न रहे होकर हमारे प्राचीन ऋषि मुनि जोकि हमारे आदि वैज्ञानिक रहे होकर उन्होंने एक आविष्कार करते हुवे विज्ञान को सर्वोच्च ऊचाइयों तक पहुँचाया था। आज हम इसी संबंध में चर्चा करने का प्रयास कर रहे हैं। आज हमारे यहाँ  पंचांग की गणना से सैकडों हजारों साल बाद की खगोलीय घटना ग्रहण आदि की सटीक जानकारी दी जाती है जो जानकारी नासा भी इतना सटीक नहीं दे सकती है।