कार्तिक पूर्णिमा
मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। विक्रम संवत के प्रत्येक माह की अंतिम तिथि होती है, पूर्णिमा अर्थात पूर्णमासी। प्रत्येक माह के अंत में आने वाली यह तिथि पूरे वर्षभर में 12 बार आती है और जिस वर्ष अधिकमास होता है, उस समय 13 बार आती है। प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि का पृथक पृथक महत्त्व है किन्तु कार्तिक मास की पूर्णिमा का अपना अलग ही महत्त्व है। कार्तिक मास को श्रावण मास से भी अधिक पावन मास माना गया है, कार्तिक मास स्नान की भी परम्परा प्रचलित है, जिसका कई धर्मप्रेमीजन निर्वाह भी करते हैं यह भी कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान से भी पुरे माह के स्नान का फल प्राप्त हो जाता है। वैष्णव और शैव दोनों ही पंथ कार्तिक मास को एक समान नियम और संयम पूर्वक पूजते हैं। कार्तिक माह की पूर्णिमा को देव दीवाली अर्थात देवताओं की दीवाली के रूप में मनाया जाता है, कहा जाता है कि इस दिन देवता स्वर्ग से पृथ्वी पर आकर विचरण करते हैं।
भगवान भोलेनाथ द्वारा कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर नमक एक अति भयानक असुर का संहार किया था और उसके बाद वे त्रिपुरारी कहलाये और कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा का भी नाम मिला। इसी प्रकार से भगवान विष्णु जी ने प्रलयकाल में वेदों के साथ साथ सृष्टि की रक्षा करने के उद्देश्य से मत्स्य अवतार धारण किया था। शिवजी की प्रसन्नता के लिए इस दिन चंद्रोदय के समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा नामक छः कृतिकाओं (जिन्हें भगवान कार्तिकेय स्वामी की माताओं के रूप में भी मान्यता है) का पूजन करने का भी विधान है, ऐसा कहा जाता है कि इस पूजा के करने से मनुष्य सात जन्म तक ज्ञानी और धनवान रहता है। इस दिन सम्पूर्ण दिवस व्रत रखकर रात्रि में बछड़ा दान करने की भी परम्परा है, इसके बारे में मान्यता है कि ऐसा करने वाले जीव को शिवपद की प्राप्ति होती है। हरिहर मिलन पर समस्त शिव भक्त और समस्त विष्णु भक्त एक साथ मिलकर पर्व को आनंदपूर्वक मानते हैं। इस दिन गंगा जी में स्नान करने से पुरे वर्ष गंगा स्नान का फल भी मिलता है।
कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन ही वैकुण्ठ धाम में देवी तुलसी का प्राकट्य हुआ था और पृथ्वी पर भी तुलसी इसी दिन अवतरित हुई थी, ऐसी भी मान्यता है। कार्तिक मास में श्री राधा जी के साथ श्री कृष्ण जी का पूजन करने का भी विधान है। कहा जाता है कि तुलसी के नीचे श्री राधा जी और श्री कृष्ण जी की निष्काम भाव से पूजा करने वाले जीव को सांसारिक आवागमन से मुक्ति मिल जाती है, तुलसी के आभाव में यह पूजन आँवले के वृक्ष के नीचे भी किया जा सकता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन समस्त ब्रह्मांडों से परे सर्वोच्य गोलोक धाम में भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा पूजित श्री राधा रानी का राधा उत्सव मनाया जाता है और वहां रासमण्डल का भी आयोजन होता है।
भगवान शिवजी और देवी पार्वती जी के पुत्र कार्तिकेय जी के संबंध में भी एक कथा प्रचलित है कि श्री कार्तिकेय जी और श्री गणेश जी को जब अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए अवसर प्राप्त हुआ था तब कार्तिकेय जी तो परिक्रमा करने निकल पड़े किन्तु श्री गणेश जी ने अपने माता पिता की परिक्रमा करके माता पिता की परिक्रमा को ही समस्त जगत की परिक्रमा के समान माना जाने का तर्क रखा तो भगवान शिवजी और देवी पार्वती जी ने प्रसन्न होकर श्री गणेश जी को विजयी घोषित कर दिया, जिस बात से रुष्ट होकर श्री कार्तिकेय जी वनगमन कर गए थे। उन्हें मनाने भगवान शिवजी और देवी पार्वती जी गए तो उन्होंने वापस आने से इंकार करते हुवे क्रोध में श्राप भी दिया कि यदि कोई स्त्री यहाँ उनके दर्शन हेतु आएगी तो वह सात जन्म तक वैधव्य का सामना करेगी और कोई पुरुष आता है तो वह मृत्युपरांत नरकगामी होगा। बाद में भगवान शिवजी और देवी पार्वती जी के मनाने से उनका क्रोध शांत हुआ, तब उन्होंने कार्तिक पूर्णिमा का दिन दर्शन के लिए श्रेष्ठ एवं महाफलदायी बताया था। आज भी कार्तिकेय जी के कई मंदिर में केवल एक दिवसीय दर्शन की ही परंपरा है।
महाभारतकाल में अठारह दिन तक चले विनाशकारी युद्ध में कई योद्धाओं एवं सम्बन्धियों के मारे जाने से पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर काफी विचलित हो गए थे, उस समय भगवान श्री कृष्ण के निर्देशानुसार पांडवों ने कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को स्नान कर कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तक गंगा नदी के तट पर यज्ञ पूजन आदि करने के बाद रात्रि में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान कर श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके मोक्ष की कामना की थी। संपूर्ण कार्तिक मास में नियम संयम पूर्वक स्नान, दान, व्रत, यज्ञ, पूजन एवं दीपदान आदि की परंपरा चली आ रही है किन्तु यदि कोई सम्पूर्ण माह नियम संयम पूर्वक यह करने में असमर्थ हो तो उस स्थिति में भीष्म पंचक का भी विधान बतलाया गया है, जिसमें कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन से कार्तिक पूर्णिमा तक मात्र पांच दिन नियमपूर्वक स्नान, पूजन और आराधना करने वाले प्राणी को भी संपूर्ण कार्तिक मास के स्नान का फल प्राप्त हो जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा के ही दिन सिख संप्रदाय के संस्थापक श्री गुरुनानक देव जी का जन्म हुआ था। सिख समुदाय द्वारा कार्तिक पूर्णिमा का दिन गुरुदेव श्री नानकदेव जी के प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। सिख समुदाय के सभी लोग इस दिन प्रातःकाल शीघ्र स्नानादि से निवृत्त होकर गुरुद्वारा जाते हैं और गुरुवाणी का श्रवण करते हैं तथा गुरु नानक देव जी के द्वारा बताये हुवे मार्ग का अनुसरण करने की प्रतिज्ञा लेते हैं। सिख समुदाय द्वारा कार्तिक पूर्णिमा का दिन गुरु पर्व के रूप में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है, इस दिन कई जगहों पर प्रभात फेरी का आयोजन होता है तो कई जगहों पर नगर कीर्तन का भी आयोजन होता है, वहीं कई गुरुद्वारों में लंगर का आयोजन भी किया जाता है।
मेरे साथ भी इस दिन की कुछ स्मृतियाँ हैं जिनमें मुख्यतः तीन स्मृतियाँ हैं पहली तो यह कि मेरा जन्म कार्तिक की पूर्णिमा के दिन भरणी नक्षत्र में हुआ, मैंने प्रथम बार इसी दिन इस संसार मेँ अपनी आँखे खोली और दूसरी यह कि मेरी धर्मपत्नी द्वारा वैकुण्ठ चतुर्दशी की तिथि में त्यागी गई नश्वर देह कार्तिक की पूर्णिमा की तिथि में अग्नि को समर्पित हुई। इन दोनों स्मृतियों के मध्य मेरी पचासवीं वर्षगांठ और मेरी धर्मपत्नी का पूर्णिमा व्रत का उद्यापन हमने साथ साथ मनाया था। कार्तिक पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर आप सभी को दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर की और से हार्दिक शुभकामनाओं सहित हरिहर।
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