औदीच्य गौरव ब्रह्मनिष्ठ पूज्य श्री जयनारायण बापजी वकील साहब

मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारे सनातन धर्म और हमारे भारत देश में एक नहीं कई घटनाएँ इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करती रही है कि ईश्वरीय शक्ति इस दुनिया में विद्यमान है, जिससे इंकार नहीं किया जा सकता। हमारे जीवन में भी इस प्रकार की कई घटनाएँ घटित होती है, जोकि ईश्वतरीय शक्ति का एहसास दिलाती है किन्तु हम उन्हें उस समय तो अनदेखा कर देते हैं, फिर बाद में याद  भी करते हैं। इसी प्रकार की एक घटना मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले के आगर में वर्ष 1932 में घटित हुई थी, जिसने यह प्रमाणित कर दिया कि यदि ईश्वर में आस्था और विश्वास हो तो वे आपका साथ अवश्य देते हैं। यह घटना अवधूत श्री नित्यानंद जी बापजी के विशेष कृपापात्र, परम साधक, ब्रह्मनिष्ठ हमारे औदीच्य ब्राह्मण समाज के प्रेरणापुंज दिव्य विभूति श्री जयनारायण बापजी की है, जिनकी आज कार्तिक कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि को पुण्यतिथि है उन्हीं को स्मरण करते हुवे उनके श्री चरणों में वंदन करते हुवे यह पुष्पांजली स्वरुप आलेख उन्हीं को समर्पित है। 
औदीच्य समाज के ऐसे गौरवपूर्ण तपस्वी श्री जयनारायण बापजी का जन्म मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के आगर निवासी पुष्टिमार्गीय सेवा के अनुयायी श्री बलदेवदास जी  उपाध्याय और श्रीमती मथुराबाई के पुत्र के रूप में 23 मार्च 1896 को रामनवमी के पावन पर्व पर हुआ था। घर में भक्तिमय वातावरण होने से यज्ञोपवीत संस्कार के पश्चात मात्र छः वर्ष की आयु से ही उनका भक्ति के प्रति रुझान प्रारम्भ हो गया था, अपने विद्यालय जाने के समय रास्ते में हनुमान जी के मंदिर में एक पैर पर खड़े होकर आराधना करके विद्यालय जाना उनका दैनिक कर्म बन चुका था। मिडिल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद सन 1911 में शाजापुर निवासी श्री भीकमजी भट्ट की सुपुत्री कलावती देवी के साथ उनका विवाह सम्पन्न हुआ।  श्री लालजी पंड्या को वे अपना प्रथम आध्यात्मिक गुरु मानते थे और उनके सम्पर्क में आने के पश्चात से वे साधना मार्ग की ओर चल पड़े। उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने आगर आकर सन 1916 में रेवेन्यू एजेंट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी।   

आगर में ही रहकर उन्होंने अध्ययन किया और फौजदारी वकील की परीक्षा पास करके प्रांतीय न्यायालय में पैरवी करने का अधिकार प्राप्त कर अपना वकालत का व्यवसाय प्रारम्भ किया, गरीब असहाय लोगों के मुक़दमे वे बगैर फ़ीस के ही लड़ लेते थे। वकालत में उनकी ख्याति दिनोदिन बढ़ती गई, लोग आदर से उन्हें बापजी कहा करते थे। उनकी दिनचर्या भी अन्य वकीलों से पृथक थी, उनके प्रकरणों की सुनवाई भी जज साहब दोपहर दो बजे के बाद ही करते थे क्योंकि वे न्यायालय पहुँचते ही उस समय थे। पूज्य जयनारायण बापजी प्रतिदिन प्रातः 5 बजे उठकर छः किलोमीटर दूर स्थित बाबा बैजनाथ जी के मंदिर जाते थे, वहाँ स्नान, पूजन, जपादि से निवृत्त होकर दोपहर 12 बजे घर लौटते थे फिर उसके बाद ही न्यायालय जाते थे, कभी लेट हो जाते तो मंदिर से सीधे ही न्यायालय चले जाते थे। उनके पुत्र का असमय निधन होने के कुछ वर्षों बाद उनकी माता और  पिता का भी निधन हो गया, सन 1931 में पुत्री का विवाह के बाद से वे विरक्ति की ओर अग्रसर हो गए। इसके पहले समर्थ अवधूत श्री नित्यानन्द जी बापजी के प्रथम दर्शन का सौभाग्य उन्हें प्राप्त हो चुका था।   

एकदिन न्यायालय में काफी महत्वपूर्ण प्रकरण की पेशी नियत थी, उस दिन अपनी दिनचर्या के अनुसार ही श्री जयनारायण बापजी बाबा बैजनाथ जी के मंदिर पहुंचे और अपनी दैनिक पूजन अर्चना करते हुवे ध्यान में लीन हो गए। जब ध्यान टूटा और समय देखा तो दोपहर के तीन बजे थे, न्यायालय भी दूर था, महत्त्वपूर्ण प्रकरण की पेशी नियत थी, प्रकरण से सम्बंधित जज साहब मौलवी मुबारिक हसन भी काफी कठोर स्वाभाव के थे, यह सब सोच विचार कर साथ ही प्रकरण में संभावित नुकसान और पक्षकार को उससे होने वाली परेशानी के बारे में सोच कर वे बड़े परेशान हो गए। अपने दो साथियों पुजारी श्री नाथूराम जी और अध्यापक श्री रेवाशंकर जी को साथ लेकर इस विचार से न्यायालय पहुंचे कि प्रकरण में यदि कोई निर्णय नहीं हुआ हो तो एक अवसर ले लेंगे। न्यायालय पहुंचकर जज साहब से निवेदन  किया कि यदि प्रकरण में कोई निर्णय नहीं हुआ हो तो कृपया बहस के लिए अगली पेशी तारीख प्रदान कर देवें।  

जज साहब उनके इस निवेदन से काफी आश्चर्यचकित हुवे और बोले अभी कुछ देर पहले तो आपने प्रकरण में बहस की और तो और इस प्रकार की बहस मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं सुनी, मैंने तो आपके प्रकरण में निर्णय भी कर दिया है और आपके पक्षकार को बरी भी कर दिया है। बापजी ने जब कहा कि मैं तो यहाँ था ही नहीं तो जज साहब ने प्रकरण की फाइल दिखाकर यह भी कहा कि आपने फाइल पर अपने हस्ताक्षर भी किये हैं और एक अन्य प्रकरण की आगामी पेशी भी आप लेकर गए थे। इस सब घटनाक्रम से स्तब्ध श्री जयनारायण बापजी जब न्यायालय से बाहर निकले तो न्यायलय के अन्य कर्मचारियों, साथी वकीलों और स्वयं उनके प्रकरण के पक्षकार ने भी उन्हेँ वही सब बातें बताई जो कि कुछ देर पहले जज साहब ने बताई थी। बापजी की समझ में आ गया कि उनकी ध्यानस्थ अवस्था में उनकी अनुपस्थिति में किसी प्रकार से कोई नुकसान नहीं हो इसके लिए उनका रूप धरकर उनके स्थान पर स्वयं बाबा बैजनाथ जी ने आकर उनका कार्य संपन्न किया, उसी दिन बापजी ने सन्सारी जीवन से सन्यास ले लिया और अपने गुरुदेव अवधूत श्री नित्यानन्द जी के पास चले गए और उनके साथ आध्यात्मिक जीवन का प्रारम्भ कर दिया।  घटना वाले उस दिन के बाद बापजी कभी भी न्यायालय या अपने घर नहीं गए। 

श्री जयनारायण बापजी के गुरुधाम जाने के बाद उनके परिवारजन काफी समय तक आश्रम में इस अभिलाषा के साथ आते जाते रहे कि किसी भी तरह से उन्हेँ मनाकर घर वापस ले आएं, किन्तु ऐसा हो नहीं सका। गुरुदेव समर्थ अवधूत श्री नित्यानन्द जी भी अन्तर्यामी थे और वे सभी के भाव भी समझते थे तब उन्होंने एक बार श्री जयनारायण बापजी की धर्मपत्नी से कहा कि पहले तुम जयनारायण को पतिभाव से भजती थी, अब परमेश्वर भाव से भजो। वह साक्षात नारायण है और आज मुझमें और जयनारायण में कोई अंतर नहीं है।  आश्रम में रहते हुवे बापजी द्वारा साहित्य के क्षेत्र में कई रचनाएं लिखी थीं जोकि तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई। इस प्रकार से अनंत जीवों का कल्याण करते हुवे तथा उन सभी जीवों को सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हुवे दिनांक 26 अक्टूबर 1945, कार्तिक कृष्ण पक्ष षष्ठी को रतलाम जिला स्थित धौंसवास आश्रम में अपनी नश्वर देह को त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए। वहाँ बापजी का समाधि मंदिर बना हुआ है, जहाँ दूर दूर से हजारों भक्त दर्शन एवं पूजन हेतु आते हैं।    

आगर न्यायालय से सम्बन्धित लोगों, विशेषकर वकीलों के साथ ही आगर के निवासियों के मध्य आज भी यह चर्चा होना एक आम बात है। जिस न्यायालय में स्वयं बाबा बैजनाथ बापजी के रूप में उपस्थित हुवे थे उस कक्ष में अभी भी बापजी का चित्र लगा हुआ है और उस न्यायालय परिसर में बापजी की आदमकद प्रतिमा विराजमान की गई है। स्थानीय लोगों की तो यहाँ तक मांग है कि उस न्यायालय भवन को बापजी का संग्रहालय बना दिया जावे। यही नहीं वहाँ के वकीलों के घरो और आफिसों में बापजी का चित्र होना भी आम बात है, इसके अलावा लोग उस फाइल की प्रतिलिपि बनवाकर ले जाते हैं और उसकी पूजा करते हैं, जिसमें बापजी के रूप में पधारे स्वयं भगवान बैजनाथ बाबा ने अपने हस्ताक्षर किये थे। आज परम श्रद्धेय पूज्य श्री जयनारायण बापजी की पुण्यतिथि के अवसर पर उनके श्री चरणों में बारम्बार नमन। 

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