सनातन धर्म के ऋषि मुनि एवं विद्वतजन की दक्षता और वैज्ञानिक आविष्कार

मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर का सादर अभिनन्दन सम्पूर्ण लौकिक एवं वैदिक संस्कृत वाड़्मय में चिरकाल से विज्ञान शब्द का व्यवहार होता आया है। विज्ञान अंतःकरण है, विज्ञान ब्रह्म है, विज्ञान अनुभवात्मक ज्ञान है। हमारे वेद पुराण उपनिषद शास्त्रों में विज्ञानं के कई गूढ़ रहस्यों का  उल्लेख है, जिसमे कई आविष्कार और तकनीकियों का उल्लेख है। आज पश्चिम देश भी हमारे उन्हीं साहित्यो की  सहायता से उपलब्धियां प्राप्त कर रहे हैं।  हम पुरातन समय में ही सम्पूर्ण विश्व में सबसे उन्नत तकनीकि  सपन्न रहे होकर हमारे प्राचीन ऋषि मुनि जोकि हमारे आदि वैज्ञानिक रहे होकर उन्होंने एक आविष्कार करते हुवे विज्ञान को सर्वोच्च ऊचाइयों तक पहुँचाया था। आज हम इसी संबंध में चर्चा करने का प्रयास कर रहे हैं। आज हमारे यहाँ  पंचांग की गणना से सैकडों हजारों साल बाद की खगोलीय घटना ग्रहण आदि की सटीक जानकारी दी जाती है जो जानकारी नासा भी इतना सटीक नहीं दे सकती है।   
अश्विनीकुमार के विषय में मान्यता रही है कि वे श्रेष्ठ चिकित्सक होकर समस्त प्रकार की चिकित्सा में दक्ष थे। अपने इस चिकित्सा कार्य के साथ ही  साथ उन्होंने नौकाओं तथा उड़ने वाले रथों  (वायु मार्ग से गमन करने वाले) का आविष्कार किया था। धन्वंतरि को आयुर्वेद का प्रथम आचार्य तथा प्रवर्तक माना जाता है, इन्होंने धन्वंतरि संहिता नामक ग्रन्थ की रचना की थी। ऐसी मान्यता है कि धन्वंतरि जी शल्य चिकित्सा में पारंगत थे, शल्य चिकित्सा के आदि प्रवर्तक सुश्रुत जी तथा नागार्जुन भी इन्हीं की श्रृंखला में थे। 

आज वायुयान के अविष्कार का श्रेय भले ही राइट बंधुओं को मिल रहा हो किन्तु ऋषि भारद्वाज जी वास्तव में वायुयान के आविष्कारक रहे हैं। सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार कई सदियों पूर्व ही ऋषि भारद्वाज द्वारा अपने विमानशास्त्र के माध्यम से वायुयान को अदृश्य कर देने तक के असाधारण विचार से लेकर एक ग्रह से दूसरे ग्रह तथा एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्यों को भी उजागर कर दिया था। ऋषि बनने के पहले क्षत्रिय रहे विश्वामित्र जी वशिष्ठ ऋषि से कामधेनु गाय लेने के लिए युद्ध में पराजित होकर तपस्या में लीन हो गए। कालांतर में विश्वामित्र जी ने भगवान शिवजी से अस्त्र शस्त्र विद्या प्राप्त की थी, उनके विषय में मान्यता है कि वर्तमान युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली की खोज हजारों वर्ष पूर्व ऋषि विश्वामित्र जी ने ही की थी। 

गर्ग मुनि को नक्षत्रों का खोजकर्ता माना जाता है।  गर्ग मुनि द्वारा ही श्रीकृष्ण और अर्जुन के विषय में नक्षत्र विज्ञानं के आधार पर जो भी बताया था, वह एकदम सटीक था। महाभारत के युद्ध के अति विनाशक होने का कारण भी ग्रह नक्षत्रों के आधार पर व्यक्त करते हुवे उन्होंने बताया था कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि का क्षय होने से तेरहवें दिन ही अमावस्या रहेगी इसी प्रकार दूसरे पक्ष में भी तिथि का क्षय होने और पूर्णिमा चौदहवें दिन आने के कारण इस समयावधि में होने वाला युद्ध अति विनाशक होगा।  गर्ग मुनि द्वारा ग्रह नक्षत्रों के बारे में कई रहस्य और उनके परिणामों से हजारों साल पहले ही अवगत करा दिया था।  

आधुनिक समय में कई जानलेवा बीमारियों के उपचार उपलब्ध हैं, जिनमें कैंसर जैसे रोग का भी कुछ स्थितियों में उपचार संभव बताया गया है किन्तु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाले योगशास्त्र की रचना कर बताया था कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है। सुश्रुत जी शल्य चिकित्सा पद्धति के प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य थे, जिन्होंने सुश्रुत संहिता नामक ग्रन्थ में शल्य क्रिया का विस्तार से वर्णन किया है।  सुश्रुत जी ने ही त्वचारोपण (प्लास्टिक सर्जरी) और मोतियाबिंद की शल्य क्रिया का विकास किया था, भले ही आज प्रथम शल्य चिकित्सक होने का श्रेय पार्क डेविस को जाता हो। सम्राट बिंबसार के एकमात्र वैद्य थे जीवक, जिन्होंने उज्जयिनी सम्राट चंडप्रद्योत की शल्य चिकित्सा की थी। मान्यता तो यह भी है कि इन्होंने गौतम बुद्ध की अस्वस्थ अवस्था में उनकी भी चिकित्सा की थी।   

महर्षि कपिल दर्शन के प्रवर्तक होकर वे दर्शन के सूत्रों के रचयिता थे। महर्षि कपिल ने चेतना शक्ति  के साथ त्रिगुणात्मक प्रकृति के विषय में कई महत्वपूर्ण सूत्र प्रतिपादित किये हैं। कणाद ऋषि वैशेषिक दर्शन जिसमें अणु विज्ञान होता था, के प्रवर्तक रहे पश्चात में अणु विज्ञानं भौतिक विज्ञानं में पढ़ाया जाने लगा था कणाद ऋषि ने उस ज़माने में ही परमाणु संरचना की व्याख्या कर दी थी। स्वामी अग्निवेश जी ने शरीर विज्ञान के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियों से जगत को अवगत कराया था, वहीं शालिहोत्र जी पशु चिकित्सा में पारंगत थे और उन्होंने पशु चिकित्सा पर आयुर्वेद के ग्रन्थ की रचना की थी । रामायण काल में वैद्य सुषेण जी का उल्लेख मिलता है जिन्होंने लक्ष्मण जी को शक्ति लगने पर संजीवनी बूटी से उपचार किया था।  

आचार्य चरक प्राचीन काल में भारतीय औषधि विज्ञानं के जनक के माने जाते हैं।  आचार्य चरक कनिष्क के दरबार में राजवैद्य अर्थात राजकीय चिकित्सक थे। इन्होंने चिकित्सा पर चरक संहिता नामक एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की थी, जिसमें उन्होंने काफी रोगों का उल्लेख करते हुवे उन रोगों का विवरण, पहचान के तरीके और उन रोगों के उपचर की पद्धत्ति का विस्तृत उल्लेख किया है। उन्होंने अपने ग्रन्थ में पाचन, चयापचय और प्रतिरक्षा के बारे में विशेष सूत्र बताये हैं। चिकित्सा विज्ञान के महत्वपूर्ण ग्रन्थ चरक संहिता में किसी भी रोग के उपचार के बजाय उस रोग के उत्पत्ति के कारण को ही हटाने पर विशेष बल दिया गया है। आचार्य चरक ने  आनुवंशिकता से प्राप्त रोग, अपंगता के मूल सिद्धांतों से भी अपने इस ग्रन्थ के माध्यम से अवगत कराया था। व्याडि एक रसायन शास्त्री थे, इन्होंने भैषज अर्थात औषधि रसायन पर काफी कार्य किया था। इन्होंने औषधि रसायन का एक ऐसे लेप का अविष्कार किया था जिसे शरीर पर मल कर वायु में उड़ा जा सकता था। नागार्जुन भी रसशास्त्री और धातुकर्मी रहे हैं।                           

बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ रहे और वे शूल्यशास्त्र के रचयिता थे। आज दुनिया भर में जो यूनानी  ज्योमेट्री पढाई जाती है उसकी खोज हमारे देश भारत मेँ कई गणितज्ञों द्वारा की जा चुकी थी और उसके नियमोँ की व्याख्या भी उन लोगो द्वारा हजारों वर्ष पूर्व की जा चुकी थी। उस समय ज्योमेट्री या एल्जेब्रा को  शूल्यशास्त्र कहा जाता था और इसके जानकर गणितज्ञों में बौधायन का नाम सर्वोच्च स्थान पर था। इसी प्रकार से उज्जयनी के महाराजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर जिनका जन्म भी उज्जैन में ही हुआ था वे भी महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे।  इन्होंने अपनी पुस्तक पंचसिद्धांतका में अयनांश का मान बताने के अतिरिक्त शून्य और ऋणात्मक संख्याओं के बीजगणितीय गुणों को भी परिभाषित किया।   

गणित को एक पृथक पहचान देने वाले गणितज्ञ थे ब्रह्मगुप्त।  उन्होंने गुणन के अपने जो तरीके  उस समय बताये थे लगभग उसी तरह स्थान मूल्य का प्रयोग वर्तमान में भी किया जा रहा है। उन्होंने ब्रह्म मुक्त सिद्धान्तिका की रचना की जिसमें उन्होंने गणित में शून्य पर नकारात्मक संख्याऐं और सञ्चालन पर प्रकाश डाला। दुनिया को शून्य से अवगत कराने वाले आर्यभट्ट भी महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री रहे।  इन्होंने ही सर्वप्रथम पाई के मान को निरुपित किया इसके साथ ही इन्होंने सूर्य और चंद्र ग्रहण की भी अति सुंदर व्याख्या की थी। काशी में जन्में हलायुध जी ज्योतिषविद, गणितज्ञ तो थे ही इसके अतिरिक्त वे महान वैज्ञानिक भी थे। इन्होंने अभिधानरत्नमाला मृतसंजीवनी नामक ग्रन्थ की रचना की। इन्होंने या की पास्कल त्रिभुज की भी विस्तृत व्याख्या भी की। 

गुरुत्वाकर्षण शक्ति की खोज का श्रेय आधुनिक युग में भले ही न्यूटन को दिया जाता हो किन्तु न्यूटन से भी कई सदियों पहले गुरुत्वाकर्षण शक्ति का रहस्य भास्कराचार्य जी द्वारा बता दिया गया था। भास्कराचार्य जी द्वारा रचित अपने सिद्धांतशिरोमणि नामक ग्रन्थ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे विस्तृत व्याख्या करते हुवे बताया था कि पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को एक विशिष्ठ शक्ति से अपनी ओर खींचती है और इसी कारण आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है। इनके अलावा भी कई प्राचीन ऋषि, मुनि एवं दार्शनिक जन हमारे आदि वैज्ञानिक थे जिन्होंने कई आविष्कार किये और विज्ञानं को ऊंचाइयों पर पहुँचाया था किन्तु आज हम उनसे अनभिज्ञ हैं। आविष्कार हमारे यहाँ हुआ और हमें इतिहास में विदेशियों को आविष्कारक पढ़ाया जा रहा है, इससे बड़ा दुर्भाग्य हमारे देश का और क्या होगा। आज आवश्यकता है हमारे इतिहास को संशोधित करने की और हमारे प्राचीन वेद, पुराण, उपनिषद तथा अन्य ग्रंथों का अध्ययन कराये जाने की जिससे कि हमें अपने गौरवशाली इतिहास की जानकारी हो सके।     

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