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Showing posts from June, 2024

महिष्मति नगरी - होल्कर राजवंश की राजधानी महेश्वर

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारे भारत देश के मध्य प्रदेश राज्य के खरगोन जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित महिष्मति नगरी (जिसे वर्तमान में महेश्वर के नाम से जाना और पहचाना जाता है) का पौराणिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व तो है ही साथ ही यह एक प्रसिद्द पर्यटन स्थल भी है।  कभी होल्कर राजवंश की राजधानी रही यह नगरी आज पर्यटन के साथ ही महेश्वरी साड़ियों के लिए विशेषतः प्रसिद्द है।  स्कन्द पुराण, रेवाखण्ड, वायु पुराण एवं अन्य कई धर्म ग्रंथों में महिष्मति नगरी के नाम से प्रसिद्द इस नगरी में पिछले दिनों अपने एक बालसखा एवं सहपाठी उमाशंकर के साथ जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, उस समय महेश्वर के किले से लगे अति सुन्दर और मनोरम घाट पर माँ नर्मदा में स्नान करते समय इस मनोरम नगरी के विषय में भी कुछ लिखने की इच्छा हुई, इसलिए यह 140 वां पुष्प माँ नर्मदा और भगवान श्री राजराजेश्वर जी को अर्पित करता हूँ। पुण्यश्लोका देवी अहिल्या बाई होल्कर माँ साहेब द्वारा इन्दौर के बाद महेश्वर में अपनी राजधानी स्थापित की गई थी। 

वायुयान के प्रथम भारतीय अविष्कारक शिवकर बापूजी तलपदे

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति इतनी अधिक विकसित रही है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है किन्तु हमारी संस्कृति का वास्तविक चित्रण हमारे इतिहास से विलुप्त कर हमें गलत इतिहास शिक्षा के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है।  इस 139 वें लेख के माध्यम से हम वायुयान के प्रथम भारतीय अविष्कारक श्री शिवकर बापूजी तलपदे के विषय में चर्चा कर रहे हैं।  वैसे तो प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनियों के समय से ही कई संसाधन विकसित हो गए थे किन्तु वे अप्रचारित ही रहे। हमें यह पढ़ाया जाता है कि सबसे पहले वायुयान का अविष्कार राइट बंधुओं ने सन 1903 में किया किन्तु संभवतः हम भूल गए कि उसके पहले यह कार्य भारत में शिवकर बापूजी तलपदे द्वारा सन 1895 में ही कर दिखाया था और उसके भी काफी पहले हमारे महर्षि भारद्वाज द्वारा विमान शास्त्र की रचना कर सम्पूर्ण सिद्धांत बता दिया था। मुंबई में जन्में शिवकर बापूजी तलपदे मुंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स के अध्यापक और एक वैदिक विद्वान थे, उनकी शिक्षा भी वहीं हुई थी। 

क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। काकोरी कांड के महानायक क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल का आज जन्म दिवस है, उन्हें शत शत नमन करते हुवे इस 138 वें पुष्परूपी लेख को स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों को अर्पित करता हूँ। हमारे देश को आजादी मिले 77 वर्ष हो गये हैं। इस आजादी की प्राप्ति में असंख्य लोगों ने अपने प्राणों की आहुतियाँ दी, किंतु हमारे इतिहासकार ने इस आजादी का श्रेय कुछ चुनिंदा लोगों तक ही रखा है। काफी नाम तो ऐसे भी हैं, जिन्हें आज तक कोई नहीं जानता है। क्रांतिकारियों और आजाद हिंद फौज को भी उतना श्रेय नहीं दिया गया, जितने के वे अधिकारी थे। उन्हीं क्रांतिकारियों में एक पंडित राम प्रसाद जी बिस्मिल का भी नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। पंडित राम प्रसाद जी हिन्दी और उर्दू में कविताएँ बिस्मिल उपनाम से लिखा करते थे और अपनी उन कविताओं के माध्यम से ब्रिटिश शासन के विरूद्ध लोगों में जोश भरने का कार्य करते थे। 

छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक और हिंदवी स्वराज्य की स्थापना

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन।   ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी अर्थात आज ही के दिन विजयी हिन्दू सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा हिन्दू पद पादशाही की स्थापना करके यह सन्देश दिया था कि भारत का राष्ट्र जीवन विजय का उपासक है, पराजय का नहीं और भारत हिन्दू राष्ट्र था, है और रहेगा।  चाहे कितनी भी भीषण और विपरीत परिस्थिति हो, हिन्दू समाज का अस्तित्व सदैव रहेगा। छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वर्णिम कार्यकाल में उन्होंने  गुरिल्ला युद्ध तकनीक का अविष्कार  तो किया ही साथ ही  समुद्री बेड़ा (नौसेना) का निर्माण भी किया और  वे  प्रत्येक युद्ध में विजयी भी रहे तथा  उन्होंने  हिन्दूपद पादशाही की स्थापना करते हुवे   भगवा ध्वज एवं संस्कृत भाषा को मान्यता प्रदान करते हुवे पूर्व में  धर्मान्तरित हिन्दुओं की घर वापसी भी करवाई थी। 

महात्मा विदुर जी एवं उनकी धर्मपत्नी पर प्रभु श्री कृष्ण की कृपा

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर सादर अभिनन्दन। प्रभु श्री कृष्ण जी और महाभारत के विषय में तो सभी को जानकारी होगी ही, आज मेरा महान देश के इस 136 वें पुष्प में हम महाभारत के ही एक महत्वपूर्ण चरित्र महात्मा विदुर जी एवं उनकी धर्मपत्नी पर प्रभु श्री कृष्ण की कृपा के अत्यंत ही रोचक प्रसंग से अवगत होंगे, जिसमें प्रभु श्री कृष्ण बगैर आमंत्रण के महात्मा विदुर जी के घर जाकर उनके यहाँ भोजन करने की इच्छा व्यक्त करते हैं। इस संबंध में आज भी कहा जाता है कि दुर्योधन के मेवा त्यागे साग विदुर घर खाई। भगवान श्री वेद व्यास जी के पुत्र होने के कारण महात्मा विदुर जी महाराज धृतराष्ट्र एवं महाराज पांडू के सहोदर थे, किंतु उनकी माता के एक दासी होने के कारण धर्मात्मा एवं विद्वान विदुर जी को  परिवार में वह सम्मान प्राप्त नहीं होता था जिसके कि वे अधिकारी थे। आदर्श भगवतभक्त, उच्च कोटि के साधु एवं स्पष्टवादी महात्मा विदुर जी हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री एवं महाराज धृतराष्ट्र के प्रमुख सलाहकार थे।