अक्षय तृतीया (आखा तीज)
बैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, जिसे आखा तीज या अक्षय तृतीया कहा जाता है। अक्षय का अर्थ है, जिसका कभी क्षय नहीं हो जो स्थाई रहे। ऐसी मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन किया हुआ कोई भी पुण्य कार्य, दान, पूजन, हवन आदि अक्षय फल प्रदान करता है। किसी भी मांगलिक कार्य को करने के लिए यह दिन अत्यंत ही शुभ माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि इस दिन बगैर मुहूर्त के भी कार्य संपन्न किया जा सकता है, क्योंकि यह एक स्वयंसिद्ध मुहूर्त है। वैवाहिक कार्यक्रम इस दिन इस मान्यता के साथ किये जाते हैं कि पति पत्नी में प्रेम और स्नेह अक्षय रहे, इसी प्रकार इस दिन पितृकार्य भी इस आशय से किये जाते हैं कि पितृगण को अक्षय फल की प्राप्ति हो। समृद्धि के लिए इस दिन स्वर्ण खरीदने की भी परम्परा है। यह भी मान्यता है कि इस दिन मनुष्य अपने या अपने स्वजनों द्वारा किये गए जाने अनजाने अपराधों के बारे में सच्चे मन से क्षमा प्रार्थना भगवान से करे तो भगवान उन अपराधों को क्षमा कर उसे सदगुण प्रदान कर देते हैं। इस दिन अपने दुर्गुणों को सदैव के लिए प्रभु के चरणों में अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान प्राप्त करने की भी परंपरा है।
अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र नदी सरोवर आदि में स्नान करने के बाद भगवान श्री हरि विष्णु की शांत चित्त से विधि पूर्वक पूजन करने का विधान है, पूजन में भी श्वेत या पीले पुष्पों को प्राथमिकता दी जाती है। नैवेद्य में सत्तू, ककड़ी, खरबूजा, चने की दाल अर्पित की जाती है, भिन्न भिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न नैवेद्य अर्पित किये जाते हैं। पूजन के उपरांत फल, पात्र, वस्त्र आदि का दान करके ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा देने का भी विधान है। ग्रीष्म ऋतु के परिवर्तन के इस दिन जल से भरे घड़े, कुल्हड़, सकोरे, पंखे, खड़ाऊ, छाता, चांवल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गर्मी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना जाता है। सक्षम लोग गौ, भूमि और स्वर्ण का दान भी इस दिन करते हैं। इस दान के पीछे लोक मान्यता यह है कि इस दिन जिन जिन वस्तुओं का दान किया जाता है वे समस्त वस्तुऐं अगले जन्म में प्राप्त होती है। अक्षय तृतीया के दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए साथ ही नवीन वस्त्राभूषण भी धारण किये जाते हैं।
अक्षय तृतीया के दिन से ऋतु परिवर्तन भी हो जाता है, बसंत ऋतु की समाप्ति और ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत भी इसी दिन से होती है। अक्षय तृतीया का यह दिन किसानो के लिए भी महत्वपूर्ण दिन माना जाता है, किसान इस दिन से ही नई फसल की तैयारी में जुट जाते हैं। अक्षय तृतीया को युगाब्द तिथि भी कहा जाता है ऐसा बताया जाता है कि युग परिवर्तन भी इसी तिथि से होता है। अक्षय तृतीया की तिथि से सम्बंधित और भी कई संयोग है, जिनमें से कुछ यहाँ उल्लेखित किये जा रहे हैं। ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षयकुमार का अवतरण इसी तिथि को हुआ था, तो नर नारायण, भगवान हयग्रीव और भगवान परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को माना जाता है। माता अन्नपूर्णा का प्राकट्य भी अक्षय तृतीया के ही दिन हुआ था। स्वर्गलोक से गंगा जी का पृथ्वीलोक पर आगमन भी इसी दिन हुआ होना माना जाता है।
वेद व्यास जी ने महाकाव्य महाभारत इस रचना गणेशजी के साथ अक्षय तृतीया के ही दिन शुरू की थी। आदि शंकराचार्य जी ने कनकधारा स्त्रोत की रचना भी अक्षय तृतीया के दिन ही की थी। कुबेर को खजाना भी इसी दिन प्राप्त हुआ था। बद्रीनाथ जी के कपाट भी इसी दिन खोले जाते है, उसी प्रकार से वृन्दावन के बांके बिहारी जी के मंदिर में अक्षय तृतीया के ही दिन बांके बिहारी जी के चरणों के दर्शन होते है, शेष दिन वे कपड़ों में ढके रहते हैं। इसी प्रकार से श्री जगन्नाथ भगवान के रथ यात्रा के रथों के निर्माण की प्रक्रिया भी अक्षय तृतीया के दिन से ही प्रारम्भ होती है।
द्रोपदी को चीरहरण से भी अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान श्री कृष्ण जी ने बचाया था। धर्मराज युद्धिष्ठिर को वनवास के समय सूर्यदेव ने इसी दिन अक्षय पात्र प्रदान किया था, जिसमें द्रोपदी के भोजन करने के पहले कभी भी अन्न समाप्त नहीं होता था। महाभारत के युद्ध की समाप्ति भी इसी दिन होना मानी जाती है। यह भी कहा जाता है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण द्वारा अपने बचपन के मित्र सुदामा को चाँवल की विनम्र भेंट के बदले असीमित समृद्धि प्रदान की थी। इसी प्रकार से जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव जी ने निरंतर 13 महीने का बगैर जल का कठिन उपवास भी इसी दिन गन्ने के रस को ग्रहण कर छोड़ा था, जिसे वर्षी तप कहा जाता है। आज भी जैन समाज के कई लोग वर्षी तप करने के बाद अक्षय तृतीया को उपवास छोड़कर नए उपवास प्रारम्भ करते हैं और भगवान का गन्ने के रस से अभिषेक भी किया जाता है। अक्षय रहे सुख आपका, अक्षय रहे धन आपका, अक्षय रहे प्रेम आपका, अक्षय रहे स्वास्थ्य आपका, अक्षय रहे रिश्ता हमारा। अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर दुर्गा प्रसाद शर्मा की ओर से आप सभी को एवं आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं। जय श्री कृष्ण।
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