श्री हनुमान जी महाराज को बाली द्वारा युद्ध की चुनौती का प्रसंग

किष्किंधा नगरी के राजा वानर श्रेष्ठ ऋक्ष के पुत्र थे बाली और सुग्रीव। बाली और सुग्रीव दोनों को ही हमारे धर्मशास्त्रों में वरदान पुत्र भी माना गया है, जिसमे बाली को ब्रह्मा जी का औरस पुत्र एवं सुग्रीव को सूर्य देव का औरस पुत्र माना गया है। बाली को यह वरदान प्राप्त था कि जो भी उससे युद्ध करने के  लिए उसके सामने आएगा उसकी आधी शक्ति बाली के शरीर में चली जाएगी और बाली सदैव ही अजेय रहेगा। बाली को अपने बल पर बड़ा ही घमंड था और यह घमंड कई बलशाली योद्धाओं जिनमे लंकापति रावण भी सम्मिलित थे, से युद्ध और मुठभेड़ के बाद दिनोदिन बढ़ता ही गया। हालांकि लंकापति रावण के साथ बाली का युद्ध नहीं हुआ था, जबकि लंकापति रावण युद्ध के लिए ही वहां आये थे किन्तु संध्या वंदन में रत बाली ने अपनी साधना में व्यवधान से बचने के लिए लंकापति को अपनी कांख में दबा लेने से ही लंकापति रावण ने युद्ध का विचार त्याग बाली से मित्रता कर ली थी। 
माया नामक एक असुर स्त्री के अति बलशाली दो पुत्र दुंदुभि और मायावी थे, जिन दोनों के साथ ही बाली का युद्ध हुआ था और दोनों ही बाली के हाथों मारे गए थे। दुंदुभि के वध के समय अनायास बाली को मतंग ऋषि का श्राप मिला कि यदि ऋष्यमूक पर्वत के आसपास भी बाली आता है तो वह मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा और मायावी से युद्ध के समय बाली और सुग्रीव दोनों भाइयों का प्रेम एक संदेह की भेंट चढ़कर दुश्मनी में बदल गया था जिसके कारण ही सुग्रीव को अपने प्राणों की रक्षार्थ ऋष्यमूक पर्वत पर निवास करना पड़ा था। हनुमानजी अपने गुरु सूर्य देव को गुरुदक्षिणा के बदले में दिए गए वचनों के कारण सुग्रीव की रक्षा के दायित्वाधीन थे।    

अपने बल के मद में चूर बाली अपने आप को सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा था, उसी मदहोशी के चलते एक दिन जंगल में वह पेड़ पौधों को तिनके के सामान उखाड़ कर तहस नहस कर रहा था, अमृत समान जल के सरोवरों में मिट्टी डालकर कीचड़ कर रहा था एक प्रकार से अपनी ताकत से पुरे जंगल को उजाड़ देना चाहता था, वह बार बार गर्जना कर  अपने से युद्ध करने की चेतावनी भी दे रहा था कि   है कोई जो मुझसे युद्ध करने की हिम्मत रखता हो, है कोई जो बाली से युद्ध करके उसे हरा दे। संयोगवश उसी जंगल में हनुमानजी भी राम नाम का जप कर रहे थे बालि की गर्जना के कारण हनुमान जी के राम नाम जप में विघ्न होने लगा तो हनुमानजी बाली के समक्ष जाकर बोले हे वीरों के वीर, हे ब्रह्म अंश, हे राजकुमार बाली क्यों हरे भरे फलदार वृक्षों को इस प्रकार उखाड़कर फेंक रहे हो, स्वच्छ सरोवर में मिटटी डालकर जल को दूषित क्यों कर रहे हो इससे तुम्हें क्या मिलेगा, तुम्हे तो प्राप्त वरदान स्वरुप युद्ध में कोई हरा ही नहीं सकता है। इसलिए हे कपि राजकुमार अपने बल का घमंड छोड़ राम नाम का जप करो जिससे तुम्हारा यह लोक और परलोक सुधरे।   

हनुमानजी की बात सुनकर अपने बल के मद में चूर बाली बोला तुम उस राजकुमार बाली को शिक्षा दे रहे हो जिसने कई योद्धाओं को परास्त किया है और जिस राम की बात कर रहे हो उन्हें आज तक किसी ने न तो देखा है और न सुना, भक्ति करना हो तो तुम्ही करो। इस प्रकार हनुमानजी के समझाने पर भी बाली नहीं समझा उल्टा श्री राम जी के बारे में कटु वचन बोलते हुवे बोला कि बुलाओ अपने राम को और कहो मुझसे युद्ध करे। प्रभु श्री राम के बारे में इस प्रकार के वचन सुनकर हनुमान जी को भी क्रोध आ गया और वे बोले बाली तू क्या प्रभु श्री राम को युद्ध में हराएगा पहले उनके इस तुच्छ सेवक को ही युद्ध में हरा कर दिखा। बाली तो यही चाहता था कि कोई उससे युद्ध करे वह बोला ठीक है कल बीच नगर में हमारा युद्ध होगा, हनुमानजी ने भी बात मान ली। बाली ने नगर में जाकर घोषणा करवा दी कि कल नगर के बीच हनुमान और बाली का युद्ध होगा।   

अगले दिन तय समय पर जब हनुमानजी बाली से युद्ध करने के लिए अपने निवास से निकलने ही वाले थे तभी उनके समक्ष ब्रह्मा जी प्रकट हुए। हनुमानजी ने ब्रह्मा जी को प्रणाम कर आगमन का कारण पूछा तो ब्रह्मा जी बोले हे अंजनीसुत, हे पवनपुत्र, हे रामभक्त हनुमान मेरे पुत्र बाली को उसकी उद्धण्ड़ता के लिए क्षमा कर दो और युद्ध के लिए मत जाओ। हनुमानजी बोले प्रभु बाली ने यदि मुझे ही कहा होता तो मैं क्षमा कर देता किन्तु उसने नेरे आराध्य प्रभु श्री राम जी के बारे मेँ कहा जो असहनीय है और मुझे युद्ध के लिए चुनौती दी है जिसे मेरे द्वारा  स्वीकार करना ही होगा अन्यथा जगत में यह कहा जाएगा कि हनुमान कायर है, जो ललकारने पर भी इसलिए युद्ध में नहीं जा रहा क्योंकि एक बलवान योद्धा उसे ललकार रहा है। उधर बाली ने नगर के बीच एक स्थान को अखाड़े में बदल दिया था और व्याकुलता से बार बार हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकार रहा था। तब ब्रह्मा जी ने कुछ सोच विचार कर कहा कि ठीक है हनुमान किन्तु आप अपनी समस्त शक्तियों को साथ लेकर न जाते हुवे केवल उनका दसवां भाग बल ही लेकर जावें बाकि बल को योग द्वारा अपने आराध्य के चरणों में ही रख जावें और युद्ध से आने के उपरांत पुनः ग्रहण कर लें। हनुमानजी ने भी ब्रह्माजी का मान रखते हुवे वैसा ही किया और अपने बल के दसवे भाग को ही साथ लेकर बलि के साथ युद्ध के लिए चल पड़े।  

पूरा नगर इन दोनों महायोद्धाओं के इस युद्ध को देखने के लिए एकत्र हो गया था। हनुमानजी जैसे ही युद्ध स्थल पर पहुंचे बाली ने उन्हें अखाड़े में आने के लिए ललकारा। ललकार सुनकर जैसे ही हनुमानजी ने अपना एक पैर अखाड़े में रखा, उनकी आधी शक्ति बाली के शरीर में प्रवेश कर गई। बाली के शरीर में हनुमानजी की आधी शक्ति के प्रवेश करते ही बाली के शरीर में बदलाव आने लगे, उसके शरीर में ताकत का मानो सैलाब आ गया बाली का शरीर बल के प्रभाव से फूलने लगा, बलि के शरीर से नसों के फूटकर रक्त निकलने की हालत हो गई। बाली को कुछ समझ नहीं पड़ रहा था तभी ब्रह्मा जी बाली के समक्ष प्रकट हुवे और बाली से बोले पुत्र जितना जल्दी हो सके यहाँ से दूर अति दूर चले जाओ बाली को इस समय कुछ भी भान नहीं था वह ब्रह्माजी की बात सुनकर सरपट भाग लिया और करीब सौ मील से भी अधिक दौड़ने के बाद थक कर बेहोश हो गिर पड़ा।  

कुछ समय बाद जब बाली को होश आया तो अपने समक्ष पुनः ब्रह्माजी को देखा तो उनसे पूछा कि हनुमान से युद्ध के पहले मेरा शरीर फट जाने की हद तक फूलना फिर अचानक आपका आना और यह कहना कि वहां से जितना दूर हो सके चले जाओ यह सब क्या है आप मुझे बताएं। ब्रह्माजी बोले पुत्र जब तुम्हारे सामने हनुमानजी आये तो उनका आधा बल तुम्हारे शरीर में समा गया, तब तुम्हें कैसा लगा। बाली ने कहा मुझे उस समय ऐसा लगा कि मेरे शरीर में शक्ति का सागर उमड़ आया हो ऐसा लग रहा था कि समस्त संसार में मेरे तेज का सामना कोई नहीं कर सकता है  ऐसा भी लग रहा था कि मेरा शरीर फट जायेगा। ब्रह्मा जी बोले हे बाली मेरे कहने पर हनुमान जी अपने बल का केवल दसवां भाग ही लेकर तुमसे युद्ध करने को आये थे पर तुम उनके बल के दसवें भाग के आधे बल को भी नहीं संभाल सके, सोचो यदि वे अपने समस्त बल के साथ तुमसे युद्ध करने आते तो उनके आधे बल से तुम उसी समय फट जाते जब वे तुमसे युद्ध करने के लिए अपने निवास से बाहर निकलते।    

ब्रह्मा जी की बात सुनकर और हनुमानजी की शक्ति का अनुमान लगा कर ही बाली के पसीने छूटने लगे फिर कुछ सोच कर ब्रह्मा जी से पूछा प्रभु हनुमानजी के पास यदि इतनी शक्तियां है तो वे उस शक्ति का उपयोग कहां करेंगे। तब ब्रह्मा जी बोले हनुमानजी कभी भी अपने पुरे बल का प्रयोग नहीं कर पायेंगे क्योंकि यह सम्पूर्ण सृष्टि भी उनके बल के दसवें भाग को नहीं सहन कर सकती। ब्रह्मा जी की बात सुनकर बाली ने वहीं से हनुमानजी महाराज को दंडवत प्रणाम किया और बोलै हे हनुमान जी आप अथाह बलशाली होते हुवे भी शांत हैं और राम नाम जप में लीन रहते हो और एक मैं हूँ जो आपके बाल बराबर भी नहीं हूँ फिर भी आपको युद्ध के लिए ललकार रहा हूँ, मुझे क्षमा करें। इसके बाद आत्मग्लानि से भरकर बाली ने प्रभु श्री राम जी की आराधना कर अपने मोक्ष का मार्ग उन्हीं से प्राप्त किया। आज चैत्र पूर्णिमा का मंगल दिवस और हनुमानजी महाराज के जन्मोत्सव का पावन पर्व है हनुमानजी महाराज के चरणों में दंडवत प्रणाम कर सभी को दुर्गा प्रसाद शर्मा की ओर से जय जय सियाराम, भक्त और भगवान की जय हो। सभी पर हनुमानजी महाराज की सदैव कृपा बनी रहे।      

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