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Showing posts from January, 2021

क्रान्तिकारी रास बिहारी बोस

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हमारे देश में आज़ादी के लिए कई लोगों को याद किया जाता है किन्तु क्रान्तिकारी रास बिहारी बोस की बात ही अलग है। बंगाल के चन्द्रनगर में दिनांक 25 मई 1885 को रास बिहारी बोस का जन्म हुआ था। बचपन से ही वे क्रान्तिकारियों  संपर्क में आ गए थे।  हाई स्कूल करने के बाद ही वन विभाग में उनकी नौकरी लग गई थी, जहां रहकर उन्हें अपने विचारो को क्रियान्वित करने का अच्छा अवसर मिला।  रास बिहारी बोस को केमिकल्स के प्रति अत्यधिक लगाव होने से उन्होंने क्रूड बम बनाना सीख लिया था और सघन वनों में रहते हुवे बम, गोली का परिक्षण भी वे आसानी से कर लिया करते थे, जिस पर किसी को शक भी नहीं होता था। पश्चिम बंगाल में अलीपुर बमकाण्ड में नाम आने के बाद वे देहरादून शिफ्ट हो गए थे किन्तु देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा कम नहीं हुआ था।  

मकर संक्रांति

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संक्रांति का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि मे प्रवेश करना।  वर्ष भर में जब जब भी सूर्य का राशि परिवर्तन होता है तब तब ही संक्रांति आती है, इस प्रकार से वर्ष भर में बारह संक्रांति आती है। प्रत्येक संक्रांति को पवित्र दिवस के रूप में शास्त्रोक्त मान्यता प्राप्त है।  सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के वास्तविक समय का वास्तविक ज्ञान तो हमारे लिए असंभव है क्योंकि वह समय अति अल्प होता है और उस अल्प काल में संक्रांति के कार्यों को कर पाना भी संभव नहीं है।  देवी पुराण में संक्रांति की लघुता का उल्लेख करते हुवे बताया गया है कि स्वस्थ मनुष्य जब एक बार अपनी पलक झपकाता है तो उस पलक गिरने भर के समय का तीसवां काल तत्पर  कहलाता है और तत्पर का सौंवा भाग त्रुटि  कहा जाता है और त्रुटि सौवें भाग के समय में सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है।  

देवी माता सती ( 51 शक्ति पीठ) - (3)

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गतांक से आगे - माता सती का शरीर श्री हरि   विष्णु जी के सुदर्शन चक्र से   इक्यावन (51) खंडों में विभक्त होकर आर्यावर्त के विभिन्न विभिन्न स्थानों   पर गिरा।   जहां जहां माता सती के शरीर के अंग गिरे वह स्थान   एक महान शक्तिपीठ में परिणित हुआ , जहां पर साधकगण अपनी साधना कर भगवती जगदम्बा को प्रसन्न कर लाभ प्राप्त करते हैं। इक्यावन शक्तिपीठों  श्रृंखला में विगत लेख में इक्कीस शक्तिपीठ का उल्लेख किया गया था,  शेष शक्तिपीठ की जानकारी  निम्नानुसार प्रस्तुत की जा रही है - 

देवी माता सती ( 51 शक्ति पीठ) - (2)

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गतांक से आगे - दक्ष प्रजापति के यज्ञ विध्वंस और दक्ष प्रजापति की पत्नी द्वारा अपने पति को पुनः जीवित कर देने की इच्छापूर्ति करने के बाद महादेव जी माता सती की मृत देह को अपने कंधे पर लिए हुवे अत्यंत ही शोक में डूबे हुवे लम्बे लम्बे डग भरते हुवे यज्ञ स्थल से चले गए और उन्मत्त होकर पृथ्वी पर इधर उधर विचरण करने लगे।  उनकी आँखों से मानो अग्नि निकल रही थी, उनकी पद चाप से तीनो लोक कम्पायमान थे।  उस समय सम्पूर्ण मानव जाति की रक्षा के लिए भगवान श्री हरि विष्णु जी शिव जी के पीछे आकर अपने सुदर्शन चक्र से बार बार माता सती की मृत देह पर तब तक आघात करते रहे जब तक कि सम्पूर्ण मृत देह खंड खंड नहीं हो गई।  उसके बाद महादेव भी भारमुक्त होकर कैलाश पर्वत पर वापस आ गए और एकांत में ध्यानस्थ हो गए।  

देवी माता सती ( 51 शक्ति पीठ) - (1)

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ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि निर्माण का संकल्प लिया तब उन्होंने अपने पुत्र दक्ष प्रजापति को सृष्टि रचना हेतु प्रेरित कर संतानोत्पत्ति का निर्देश दिया।  दक्ष प्रजापति की साठ कन्याएँ हुई, जिनका उन्होंने यथायोग्य विवाह संपन्न करवाया।  मात्र उनकी सबसे छोटी पुत्री सती का ही विवाह होना शेष था।  सती बाल्य काल से ही अपने ह्रदय में भगवान शिवजी को ही वरण करने की कामना लेकर उनकी आराधना करते हुवे बालिका से किशोरी एवं युवती हो गई थी।  उस समय दक्ष प्रजापति ने सती के विवाह के लिए एक स्वयंवर सभा का आयोजन किया।  विशाल राज सभा में आमंत्रित कई देवतागण एवं राजपुरुष सिंहासनारूढ़ हुवे थे।   उस समय हाथ में वरमाला लिए सती ने सभा में प्रवेश किया। उस समय सती ने चारों ओर दृष्टी डाली किन्तु उनकी दृष्टी जिन्हें खोज़ रही थी वे उस सभा में कहीं भी दिखाई नहीं  पड़ रहे थे।  तब अंत में हताश होकर सती सभा के मध्य स्थान में आकर खड़ी हुई और उन्होंने अपने हाथ की वरमाला को ऊपर फेंककर कहा कि यदि मैं यथार्थ में सती हूँ तो हे शिव तुम मेरी यह वरमाला ग्रहण करो।  सती के ऐसा कहने के बाद...