क्रान्तिकारी रास बिहारी बोस
हमारे देश में आज़ादी के लिए कई लोगों को याद किया जाता है किन्तु क्रान्तिकारी रास बिहारी बोस की बात ही अलग है। बंगाल के चन्द्रनगर में दिनांक 25 मई 1885 को रास बिहारी बोस का जन्म हुआ था। बचपन से ही वे क्रान्तिकारियों संपर्क में आ गए थे। हाई स्कूल करने के बाद ही वन विभाग में उनकी नौकरी लग गई थी, जहां रहकर उन्हें अपने विचारो को क्रियान्वित करने का अच्छा अवसर मिला। रास बिहारी बोस को केमिकल्स के प्रति अत्यधिक लगाव होने से उन्होंने क्रूड बम बनाना सीख लिया था और सघन वनों में रहते हुवे बम, गोली का परिक्षण भी वे आसानी से कर लिया करते थे, जिस पर किसी को शक भी नहीं होता था। पश्चिम बंगाल में अलीपुर बमकाण्ड में नाम आने के बाद वे देहरादून शिफ्ट हो गए थे किन्तु देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा कम नहीं हुआ था।
रास बिहारी बोस ने अपने समय का सबसे दुस्साहस भरा कार्य किया था, उस समय के ब्रिटिश वायसराय लार्ड हार्डिंग जोकि कलकत्ता से राजधानी दिल्ली लेकर आये थे, उनकी हत्या की योजना बना ली थी और इस योजना के क्रियान्वयन में उन्होंने अपने साथी के साथ दिल्ली के चांदनी चौक से वायसराय की शोभायात्रा के दौरान एक मकान से बम भी फेंका, जोरदार विस्फोट हुआ, चारों ओर अफरा तफरी मच गई। लोगों को लगा कि वायसराय की मौत हो गई किन्तु वायसराय सिर्फ घायल हुवे थे। इस घटना के बाद रास बिहारी बोस देहरादून लौट आये और अपना ऑफिस भी ज्वाइन कर लिया। कई महीनों तक ब्रिटिश पुलिस यह पता ही नहीं लगा पाई कि बम किसने फेंका था लेकिन जब बात धीरे धीरे फैलने लगी और अंग्रेज पुलिस ने कई क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर लिया तब रास बिहारी बोस को भी खतरा महसूस हुआ, उस समय उन्होंने अपने साथियों की सलाह पर विदेश जाकर देशभक्तों को संगठित करने की योजना बनाई। उसी समय प्रथम विश्व युद्ध भी प्रारम्भ हो गया था, तब रास बिहारी बोस जापान चले गए।
अंग्रेज सरकार को भी तब तक रास बिहारी बोस के बारे में जानकारी हो गई थी और उन्होंने यह भी पता लगा लिया था कि रास बिहारी बोस जापान में हैं। तब अंग्रेजों ने जापान सरकार से रास बिहारी बोस को उन्हें सौपने की मांग की, किन्तु एक शक्तिशाली जापानी लीडर ने उन्हें अपने घर में पनाह दी हुई थी, इस कारण अंग्रेज सरकार को सफलत नहीं मिली। उसके बाद अंग्रेज सरकार के भारी दबाव के कारण रास बिहारी बोस को जापान में भी अपने ठिकाने कई बार बदलने पड़े। उस दौरान उन्होंने करीब सत्रह ठिकाने बदले। जापानियों ने भी रास बिहारी बोस की काफी मदद की। उन्हें एक बेकरी के मालिक के घर में रहने की जगह मिली, जहाँ वे महीनों तक रहे, उनका बाहर निकलना संभव नहीं था और न बाहरी दुनिया से कोई संपर्क ही था। ऐसे में वे बेकरी के लोगों और बेकरी मालिक के परिवार के साथ रहते हुवे बेकरी में ही काम करते हुवे बेकरी के लोगों को भारतीय भोजन बनाना सिखाने लगे।
समय ने भी तब रास बिहारी बोस का काफी साथ दिया, उस समय जापान में एक ब्रिटिश जहाज में आग लग गई, जिसमें रास बिहारी बोस से संबंधित कागजाद भी जल गए और उसके बाद जापान सरकार ने भी डिपोर्टेशन का आर्डर वापस ले लिया। अब रास बिहारी बोस जापान में आज़ादी से घूम फिर सकते थे। तब उन्होंने बेकरी छोड़ने का निश्चय किया तो बेकरी के मालिक ने अपनी बेटी से विवाह का आग्रह रास बिहारी बोस से किया जो कि कई सालों तक रास बिहारी बोस को भोजन ले जाकर देती थी। रास बिहारी बोस ने बेकरी मालिक के आग्रह को स्वीकार कर उनकी बेटी से विवाह कर लिया। इस विवाह से उन्हें दो संताने भी हुई किन्तु अचानक ही रास बिहारी बोस की पत्नी की निमोनिया से मौत हो जाने के बाद रास बिहारी बोस भी मोह माया के भंवर से निकल गए और फिर से देश सेवा में लग गए।
तब तक द्वितीय विश्वयुद्ध भी शुरू हो गया था और फिर से भारत को आज़ाद करने की मांग उठ चुकी थी। उस समय रास बिहारी बोस ने भी दक्षिण एशिया के देशो के दौरे करने शुरू कर दिए। भारत की आज़ादी की लड़ाई के लिए वे सहयोग जुटाने लगे। रास बिहारी बोस को इण्डियन इंडिपेंडेंस लीग का अध्यक्ष बना दिया गया। रास बिहारी बोस ने भी भारत की स्वतंत्रता हेतु जापान के साथ आज़ाद हिन्द की सरकार के सहयोग की घोषणा कर दी। जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस जर्मनी चले गए थे तब रास बिहारी बोस को लगा कि सुभाष चंद्र बोस से बेहतर कोई नेतृत्व नहीं हो सकता तो उन्होंने सुभाष चंद्र बोस को आमंत्रित करने का फैसला लिया। रास बिहारी बोस को सुभाष चंद्र बोस से काफी आशाएं थी, दोनों बंगाली थे, क्रान्तिकारी थे और एक दूसरे के प्रशंसक भी थे।
जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर पंहुचे तब नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जोरदार स्वागत हुआ और सिंगापुर मार्च हुवा तथा रास बिहारी बोस ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को आज़ाद हिन्द की सरकार का प्रमुख तथा फ़ौज का प्रधान सेनापति घोषित कर दिया और खुद को सलाहकार के कार्य तक सीमित कर लिया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कमान सौंपने के बाद रास बिहारी बोस उनका अधिक साथ नहीं दे पाए क्योंकि फेफड़ों के संक्रमण के चलते उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ा। जापान सरकार ने भी जापान के इस भारतीय दामाद को जापान के दूसरे सबसे बड़े अवार्ड "आर्डर ऑफ दि राईजिंग सन" से सम्मानित किया। देश की स्वतंत्रता की लिए विदेशो में अलख जगाते हुवे और संघर्ष करते हुवे रास बिहारी बोस का शरीर थक गया था, उन्हें अनेक रोगों ने घेर लिया था। भारत माता को स्वतंत्र देखने की अपूर्ण अभिलाषा लिए हुवे ही दिनांक 21 जनवरी 1945 को रास बिहारी बोस चिर निंद्रा में सो गए। क्रन्तिकारी रास बिहारी बोस को सादर नमन। जय हिन्द।
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