देवी माता सती ( 51 शक्ति पीठ) - (2)
गतांक से आगे -
दक्ष प्रजापति के यज्ञ विध्वंस और दक्ष प्रजापति की पत्नी द्वारा अपने पति को पुनः जीवित कर देने की इच्छापूर्ति करने के बाद महादेव जी माता सती की मृत देह को अपने कंधे पर लिए हुवे अत्यंत ही शोक में डूबे हुवे लम्बे लम्बे डग भरते हुवे यज्ञ स्थल से चले गए और उन्मत्त होकर पृथ्वी पर इधर उधर विचरण करने लगे। उनकी आँखों से मानो अग्नि निकल रही थी, उनकी पद चाप से तीनो लोक कम्पायमान थे। उस समय सम्पूर्ण मानव जाति की रक्षा के लिए भगवान श्री हरि विष्णु जी शिव जी के पीछे आकर अपने सुदर्शन चक्र से बार बार माता सती की मृत देह पर तब तक आघात करते रहे जब तक कि सम्पूर्ण मृत देह खंड खंड नहीं हो गई। उसके बाद महादेव भी भारमुक्त होकर कैलाश पर्वत पर वापस आ गए और एकांत में ध्यानस्थ हो गए।
माता सती का शरीर श्री हरि विष्णु जी के सुदर्शन चक्र से इक्यावन (51) खंडों में विभक्त होकर आर्यावर्त के विभिन्न विभिन्न स्थानों पर गिरा। जहां जहां माता सती के शरीर के अंग गिरे वह प्रत्येक स्थान एक महान शक्तिपीठ में परिणित हुआ, जहां पर साधकगण अपनी साधना कर भगवती जगदम्बा को प्रसन्न कर लाभ प्राप्त करते हैं। इक्यावन शक्तिपीठों के स्थान जहां माता सती के जो जो अंग गिरे और उस स्थान पर माँ जगदम्बा को किस स्वरुप में शक्तिपीठ के रूप में मान्यता हुई उन स्थानों का विवरण देने का प्रयास किया जा रहा है, जो कि निम्नानुसार है -
१. हिंगलाज - पाकिस्तान में कराची के पास बलूचिस्तान प्रान्त में स्थित यह स्थान जहां माता सती का मस्तक गिरा था। यहाँ माता को कोट्टाविशा या कोटटरी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही भीमलोचन भैरव की भी पूजा होती है।
२. शर्करार - महाराष्ट्र के कोल्हापुर का यह क्षेत्र महालक्ष्मी जी का निज निवास भी माना जाता है। यहाँ माता सती के त्रिनेत्र गिरे थे, यहाँ माता को महिषमर्दिनी अथवा महिषासुर मर्दिनी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही क्रोधशिश भैरव की भी पूजा होती है।
३. सुगन्धा - बांग्लादेश के खुलना नामक स्थान पर सुगन्धा नदी के तट पर स्थित इस स्थान पर माता सती की नासिका गिरी थी, यहाँ माता को सुनंदा नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही त्रयंबक भैरव की भी पूजा होती है।
४.- काश्मीर (अमरनाथ) - काश्मीर के अमरनाथ क्षेत्र में स्थित इस स्थान पर माता सती का कण्ठदेश गिरा था, यहाँ माता को महामाया नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही त्रिसंध्येश्वर भैरव की भी पूजा होती है।
५.- ज्वालामुखी - हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में ज्वालामुखी में माता के दर्शन दिव्य ज्योति के रूप में होते हैं, इस स्थान पर माता सती की जिव्हा गिरी थी, यहाँ माता को सिद्धिदा नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही उन्मत भैरव की भी पूजा होती है।
६.- जालंधर - पंजाब में जालंधर स्टेशन के पास देवीतला नामक इस स्थान पर माता सती का वाम स्तन गिरा था, यहाँ माता को त्रिपुरमालिनी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही भीषण भैरव की भी पूजा होती है।
७.- बैद्यनाथ - देवधर स्थित बाबा बैद्यनाथ में यह स्थान है। इस स्थान पर माता सती का ह्रदय गिरा था, यहाँ माता को जय दुर्गा नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही बैद्यनाथ भैरव की भी पूजा होती है।
८.- गुह्येश्वरी - मूल स्थान के बारे में वैसे तो संशय है किन्तु नेपाल में पशुपतिनाथ जी के मंदिर के पास यह स्थान माना जाता है, इस स्थान पर माता सती के घुटने गिरे थे। यहाँ माता को महामाया नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही कपाल भैरव की भी पूजा होती है।
९. - मानस - तिब्बत और कैलाश मानसरोवर के पास यह स्थान है जहां माता सती की दक्षिण हथेली गिरी थी। यहाँ माता को दाक्षायणी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही अमर भैरव की भी पूजा होती है।
१०. - उत्कल - उड़ीसा के उत्कल में विरजा क्षेत्र में जगन्नाथ पूरी में स्थित इस स्थान पर माता सती का नाभिदेश गिरा था, यहाँ माता को विमला नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही जगन्नाथ पुरुषोत्तम भैरव की भी पूजा होती है।
११.गण्डकी - नेपाल में पोखरा के पास गण्डकी नदी के उद्गम स्थल पर यह स्थान है, जहां पर माता सती के कपोल गिरे थे। यहाँ माता को गण्डकी शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही चक्रपाणि भैरव की भी पूजा होती है।
१२. - बहुला - पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के कटोआ के पास केतु ग्राम में अजद नदी के तट पर स्थित इस स्थान पर माता सती के वाम बाहू गिरे थे, यहाँ माता को बहुला नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही भीरुक भैरव की भी पूजा होती है।
१३. - हरसिद्धी - मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में स्थित इस स्थान पर माता सती की दक्षिण कोहनी गिरी थी। यहाँ माता को मंगला चण्डिका नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही मांगल्य भैरव/ कपिलांबर भैरव की भी पूजा होती है।
१४. - चट्टल - बांग्लादेश में चट्ट ग्राम जिले में सीता कुण्ड स्टेशन के पास यह स्थान माना जाता है, जहां माता सती की दक्षिण बाहू गिरा था। यहाँ माता को भवानी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही चंद्र शेखर भैरव की भी पूजा होती है।
१५.- त्रिपुरा - त्रिपुरा में उदयपुर शहर के पास राधाकिशोर पुर में पहाड़ी पर इस स्थान को माना जाता है। यहां माता सती के दक्षिण पाद गिरे थे। यहाँ माता को त्रिपुर सुन्दरी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही त्रिपुरेश भैरव की भी पूजा होती है।
१६.- त्रिस्त्रोता - पश्चिम बंगाल जलपाई गुड़ी में शालवाड़ी ग्राम में तीस्ता नदी के तट पर स्थित इस स्थान पर माता सती के वाम पाद गिरे थे। यहाँ माता को भ्रामरी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही ईश्वर भैरव की भी पूजा होती है।
१७.- कामरूप कामाख्या - असम में गौवाहाटी के पास नीलांचल पर्वत पर स्थित इस स्थान पर माता सती का योनिदेश गिरा था। यहाँ माता को कामाख्या नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही उमानन्द भैरव की भी पूजा होती है।
१८.- युगाद्या - पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में क्षीरग्राम में स्थित इस स्थान पर माता सती के दाहिने चरण के अंगुष्ठ गिरे थे। यहाँ माता को भूतधात्री नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही खण्डक (जुगाड़या) भैरव की भी पूजा होती है।
१९.- कालीघांट - कोलकाता के कालीघांट का काली मंदिर इस स्थान के रूप में माना जाता है, यहां माता सती की दक्षिण पादांगुलि गिरी थी। यहाँ माता को कालिका नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही नकुलेश भैरव की भी पूजा होती है।
२०.- प्रयाग - प्रयागराज संगम के पास यह स्थान है हालाँकि कुछ मतानुसार मीरापुर, अलोपी में अक्षयवट का स्थान भी माना जाता है। जहां माता सती की हस्तांगुली गिरी थी। यहाँ माता को ललिता नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही भव भैरव की भी पूजा होती है।
२१.- जयंती - मेघालय में जयंतिया पहाड़ी पर यह स्थान माना जाता है। यहां माता सती की वाम जंघा गिरी थी।यहाँ माता को जयंती नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही क्रमदीश्वर भैरव की भी पूजा होती है।
शेष शक्तिपीठ की जानकारी के लिए आपको अगले लेख पर प्राप्त होगी। जय माता दी।
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