मकर संक्रांति
संक्रांति का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि मे प्रवेश करना। वर्ष भर में जब जब भी सूर्य का राशि परिवर्तन होता है तब तब ही संक्रांति आती है, इस प्रकार से वर्ष भर में बारह संक्रांति आती है। प्रत्येक संक्रांति को पवित्र दिवस के रूप में शास्त्रोक्त मान्यता प्राप्त है। सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के वास्तविक समय का वास्तविक ज्ञान तो हमारे लिए असंभव है क्योंकि वह समय अति अल्प होता है और उस अल्प काल में संक्रांति के कार्यों को कर पाना भी संभव नहीं है। देवी पुराण में संक्रांति की लघुता का उल्लेख करते हुवे बताया गया है कि स्वस्थ मनुष्य जब एक बार अपनी पलक झपकाता है तो उस पलक गिरने भर के समय का तीसवां काल तत्पर कहलाता है और तत्पर का सौंवा भाग त्रुटि कहा जाता है और त्रुटि सौवें भाग के समय में सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है।
खर मास या मल मास वे महीने होते है जिनमे किसी भी प्रकार के शुभ कार्य या मांगलिक कार्य किये जाना निषेध होते हैं, वैसा ही एक खर मास सूर्य के धनु राशि में विचरण वाला माह भी होता है, सूर्य के मकर राशि में परिवर्तन होने के साथ ही यह खर मास भी समाप्त हो जाता है। वर्ष भर की बारह संक्रांति को सात प्रकार के नाम दिए गए हैं, अर्थात मन्दा, मन्दाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, महोदरी, राक्षसी एवं मिश्रिता। मेष, कर्क और मकर संक्रांति के अलावा रविवार को पड़ने वाली संक्रांति घोरा कही जाती है। इसी प्रकार से ध्वांक्षी सोमवार को, महोदरी मंगलवार को, मन्दाकिनी बुधवार को, मंदा गुरुवार को, मिश्रिता शुक्रवार को और राक्षसी शनिवार को आने वाली संक्रांति को कहा जाता है।
मकर संक्रांति जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है कि सूर्य जब धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है तब मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। सूर्य का उत्तरायण होने का अर्थ सूर्य का उत्तरी गोलार्ध पर सीधे होना। इसके बाद से ही दिन के समय में वृद्धि होना शुरू हो जाती है अर्थात दिन बड़े और रातें छोटी होने लग जाती है। शीत का प्रभाव भी कम होने लगता है, जिससे मनुष्य की कार्यक्षमता में भी वृद्धि होने लगती है। सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण आने की क्रिया होने पर उस दिन पवित्र नदियों, कुण्ड, सरोवर आदि में स्नान, दान, जप, तप, यज्ञ, तर्पण एवं अन्य अनुष्ठान का विशेष महत्त्व माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि संक्रांति पर्व पर उक्त कार्य संपन्न किये जाने पर कई गुना फल की प्राप्ति होती है। उत्तरायण को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि माना जाता है।
मकर संक्रांति से जुडी पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि शनि मकर राशि के स्वामी हैं इस समय सूर्यदेव अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर आते हैं। इसी प्रकार एक अन्य कथा के अनुसार इसी दिन गंगा जी भागीरथ पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम में भागीरथ जी के पूर्वज सगरपुत्रों जोकि मुनि की क्रोधाग्नि से भस्म हो गए थे, का उद्धार करते हुवे सागर में जाकर मिली थीं, इस कारण इस दिन तर्पण का भी विशेष महत्त्व है। मकर संक्रांति पर आज भी गंगा सागर में मेला लगता है, जिसमें काफी लोग आते हैं। यह भी मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु जी ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्याग करने के लिए सूर्य के उत्तरायण आने की प्रतिक्षा की थी, ऐसा बताया जाता है कि उत्तरायण में देह त्याग करने वाला जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
मकर संक्रांति को तिल संक्रांति भी कहा जता है। इस दिन तिल के तेल और तिल के उबटन को लगाकर, तिल मिश्रित जल से स्नान किया जाकर, तिल मिश्रित जल से तर्पण, तिलोदक का हवन पूजन करके, तिलों का दान देकर, तिल से बने हुवे व्यंजन ग्रहण करने का विशेष महत्त्व होता है। तिल के इस प्रकार के प्रयोग के कई धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व भी हैं। धार्मिक पहलू में मकर संक्रांति पर तिल दान से कई गुना फल की प्राप्ति होती है, तिलदान एवं तिल से बनी सामग्री ग्रहण करने से कष्टदायक ग्रहों के प्रभावों में कमी हो जाती है। उसी प्रकार से वैज्ञानिक पहलू यह है कि तिल गुड़ के सेवन से शरीर गर्म रहता है, तिल के तेल से शरीर को नमी मिलती है। तिल के सेवन से शरीर को भरपूर कैल्शियम तो मिलता ही है साथ ही कॉपर, मेग्नेशियम, आयरन, मैंग्नीज, फास्फोरस, जिंक, विटामिन बी १ एवं फायबर भी प्राप्त होते हैं। तिल एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदी, सरोवर में स्नान, तिल के प्रयोग, दान पुण्य के साथ ही सूर्य पूजन का भी विशेष महत्त्व होता है। इस दिन सूर्य को जल अर्पित कर पूजन किया जाता है, सूर्य नमस्कार कर सूर्य देव से सुखद जीवन की प्रार्थना की जाती है। गुड़, तिल , फल, कंबल आदि का दान करने के अलावा इस दिन लोग खिचड़ी बना कर सूर्य देव को भोग लगाकर प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं। खिचड़ी का दान भी विशेष रूप से किया जाता है। कई जगहों पर इस दिन गुल्ली डंडा खेलने की तो कई जगह पतंग उड़ाने की भी परम्परा है। कई जगहों पर इस दिन उपवास भी किया जाता है। सुहागिन महिलाएं भी इस दिन विशेष रूप से अन्य सुहागिन महिलाओं को अपने अपने घर बुलाकर हल्दी कुंकु करके सुहाग सामग्री के साथ ही अन्य वस्तुऐं उपहार में देकर उन्हें सम्मानित करती हैं, साथ ही तिल गुड़ के स्वादिष्ट व्यंजन भी एक दूसरे को खिलाए तथा दिए जाते हैं।
सम्पूर्ण भारत वर्ष में मकर संक्रांति हर राज्य में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन सभी राज्यों में इस त्यौहार को पृथक पृथक जगह पर पृथक पृथक तरीके से मनाये जाने की परम्परा है। उत्तर प्रदेश एवं बिहार में खिचड़ी का विशेष महत्त्व है, यहाँ पवित्र नदियों में स्नान एवं दान के पर्व के रूप में मकर संक्रांति मनाई जाती है। प्रयागराज में एक माह तक मेला लगता है। राजस्थान में इस दिन सुहागिन महिलाऐं अन्य सुहागिन महिलाओं को सुहाग की सामग्री एवं तिल के लड्डू उपहार में देकर अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त करती है। गुजरात में इस दिन पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता होती है, गुजरात में एक अलग ही रौनक इस पर्व को मनाने की रहती है जिसकी काफी पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती है। गुजरात में तो इस समय अवकाश भी घोषित किया जाता है। हरियाणा और पंजाब में इस दिन को लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। वहां यह त्यौहार नई दुल्हनों के लिए बहुत ही खास होता है। वहां पर इस दिन अग्निदेव की पूजा की जाकर तिल, गुड़, चांवल और भुने हुवे मक्के की उसमे आहुति देकर अग्नि के इर्द गिर्द घूमकर नाचते गाते यह पर्व मानते हैं।
बंगाल में मकर संक्रांति के त्यौहार को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। गंगा नदी और समुद्र के संगम स्थल अर्थात गंगा सागर पर मेला लगता है, जिसमें देशभर के लोग आते हैं। यहाँ भी स्नान के बाद तिल दान की परम्परा है। दक्षिण भारत में भी इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाने की परंपरा है वहां इस त्यौहार पर चांवल के पकवान बनाये जाते हैं तथा रंगोली बनाकर भगवान श्री कृष्ण की पूजा की प्रथा है। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इसे मकर संक्रमामा के नाम से तीन दिन तक पोंगल के रूप मे मनाते हैं। तेलगु में इसे पेंडा पांडुगा कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ बड़ा उत्सव। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड में भी मकर संक्रांति का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है, यहां भी स्नान, दान, पूजन आदि के साथ तिल गुड़ के व्यंजन बनाये जाते हैं। महाराष्ट्र में भी सुहागिन महिलाएं अन्य सुहागिन महिलाओं को हल्दी कुंकु के लिए आमंत्रित कर उन्हें तिल गुड़ के व्यंजन और कुछ उपहार प्रदान करती हैं। केरल में इस त्यौहार को चालिस दिन का अनुष्ठान कर मनाने की प्रथा है, जो सबरीमाला में पूर्ण होती है। उड़ीसा में इस दिन आदिवासी नए साल की शुरुआत करते हैं एक साथ नृत्य और भोजन करते हैं, यहां माघ यात्रा का भी आयोजन होता है जिसमे घर में बनी वस्तुओं को बिक्री के लिए रखा जाता है। कश्मीर में इसे शिशुर सेंक्रांत के नाम से मनाया जाता है तो आसाम में इसे बिहू के नाम से मनाया जाता है।
हमारे भारत देश के अलावा संक्रांति का यह पर्व दूसरे देशों में भी अपने अपने तरीके से मनाई जाता है। नेपाल में इसे माघे संक्रांति अथवा मगही के नाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार को थाईलैंड में सोंगक्रन, म्यांमार में थिनसान के नाम से मनाया जाता है। उसी प्रकार से कम्बोडिया में मोहा संगक्रण तो श्री लंका में उलावर थिरूनाल के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है। लाओस में इस त्यौहार को पी मा लाओ के नाम से मानाने की प्रथा है।
आप सभी को मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभकामनाऐं। जय श्री कृष्ण।
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने । इसे भी देखेंमकर संक्रांति
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