देवी माता सती ( 51 शक्ति पीठ) - (3)

गतांक से आगे -

माता सती का शरीर श्री हरि विष्णु जी के सुदर्शन चक्र से इक्यावन (51) खंडों में विभक्त होकर आर्यावर्त के विभिन्न विभिन्न स्थानों पर गिरा। जहां जहां माता सती के शरीर के अंग गिरे वह स्थान एक महान शक्तिपीठ में परिणित हुआ, जहां पर साधकगण अपनी साधना कर भगवती जगदम्बा को प्रसन्न कर लाभ प्राप्त करते हैं। इक्यावन शक्तिपीठों श्रृंखला में विगत लेख में इक्कीस शक्तिपीठ का उल्लेख किया गया था,  शेष शक्तिपीठ की जानकारी निम्नानुसार प्रस्तुत की जा रही है - 
२२.- किरीट - पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद में हुगली नदी के तट पर लालबागकोट के पास किरीट कणा नामक स्थान जहां पर माता सती का किरीट अर्थात शिराभूषण/मुकुट गिरा था। यहाँ माता को भुवनेश्वरी/विमला नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही संवत भैरव की भी पूजा होती है। 
२३.- वाराणसी (बनारस) - उत्तर प्रदेश में वाराणसी (बनारस) के मोरघांट पर स्थित इस स्थान पर माता सती के कर्ण कुण्डल (कान के मणि) गिरे थे। यहाँ माता को विशालाक्षी नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही काल भैरव की भी पूजा होती है।  
२४.- कन्याकुमारी - तमिलनाडु में तीन सागर के संगम स्थल पर कण्यकाश्रम पर कन्याकुमारी स्थल जहां पर माता सती का पृष्ठदेश गिरा था।  यहाँ माता को शर्वाणी/नारायणी  नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही निमषि/स्थाणु भैरव की भी पूजा होती है।  
२५.- कुरुक्षेत्र - हरियाणा के कुरुक्षेत्र के पास द्वैपायन सरोवर के पास देवीकूप/भद्रकाली शक्तिपीठ के स्थान पर माता सती के दाहिने चरण गिरे थे। यहाँ माता को सावित्री नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही स्थाणु भैरव की भी पूजा होती है।   
२६.- मणिवेदिका - राजस्थान के पुष्कर में गायत्री पर्वत पर स्थित यह स्थान जहां पर माता सती का मणिबन्ध (कलाइयां) गिरी थी। यहाँ माता को गायत्री नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही शर्वानन्द भैरव की भी पूजा होती है। 
२७.- श्री शैल - आंध्र प्रदेश के कुर्नूल के पास यह स्थान माना गया है कुछ मतानुसार बांग्लादेश में जौनपुर बताया जाता है, इस जगह पर माता सती की ग्रीवा गिरी थी। यहाँ माता को महालक्ष्मी नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही संवरानन्द/ईश्वरानन्द भैरव की भी पूजा होती है।  
२८.- कांची - तमिलनाडु के कांचीवरम में कोपाई नदी के तट पर स्थित इस स्थान पर माता सती का कंकाल शरीर अर्थात अस्थियां गिरी थी। यहाँ माता को देवगर्भा नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही रुरु भैरव की भी पूजा होती है।  
२९.- कालमाधव - मूल स्थान ज्ञात नहीं है किन्तु मान्यता के अनुसार मध्य प्रदेश में अमरकंटक की पहाड़ी पर सोन नदी के तट पर स्थित एक गुफा वाला स्थान जहां माता सती के वाम नितम्ब गिरे थे। यहाँ माता को काली नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही असितांग भैरव की भी पूजा होती है।  
३०.- शोण - मध्य प्रदेश में अमरकंटक में नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर स्थित स्थान जहां पर माता सती का दक्षिण नितम्ब गिरा था।  कुछ मान्यता के अनुसार यह स्थान बिहार के सासाराम का तारा चंडी मंदिर भी माना  जाता है। यहाँ माता को नर्मदा/शोणाक्षी नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही भद्रसेन  भैरव की भी पूजा होती है।   
३१.- रामगिरि - चित्रकूट के पास रामगिरि का यह स्थान है किन्तु अन्य मतानुसार मध्य प्रदेश के मैहर को यह स्थान माना गया है। यहां पर माता सती के दक्षिण स्तन गिरे थे। यहाँ माता को शिवानी नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही चण्ड भैरव की भी पूजा होती है।   
३२.- वृन्दावन - वृन्दावन में यमुना नदी के तट पर स्थित राधा बाग का स्थान कत्यायनी शक्तिपीठ कहा जाता है, जहां पर माता सती के केशपाश गिरे थे। यहाँ माता को उमा/कात्यायनी नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही भूतेश भैरव की भी पूजा होती है।  
३३.- शुचि तीर्थ - तमिलनाडु के कन्याकुमारी में तीन सागर के संगम स्थल शुचीन्द्रम  स्थल पर माता सती के उधर्व दन्त गिरे थे। यहाँ माता को नारायणी नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही संहार/संकूर भैरव की भी पूजा होती है।   
३४.- पंच सागर - मूल स्थान एवं मान्य स्थान की स्पष्ट कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, इस स्थान पर माता सती के अधो दन्त गिरे थे। यहाँ माता को वाराही नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही महारुद्र भैरव की भी पूजा होती है।  
३५.- करतोया घांट - बांग्लादेश में बाकुण्डा जिले के भवानीपुर ग्राम में करतोया नदी तट स्थित इस स्थान पर माता सती के पृष्ठ भाग का एक अंश वाम तल्प गिरा था। यहाँ माता को अपर्णा नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही वामन भैरव की भी पूजा होती है।   
३६.- श्री पर्वत - लद्दाख में श्री पर्वत के स्थान को ही मुख्य रूप से मान्यता है किन्तु कई लोग असम में सिलहट नामक स्थान भी बताते है। इस स्थान पर माता सती की कनपटी गिरी थी। यहाँ माता को श्री सुन्दरी नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही सुन्दरानन्द भैरव की भी पूजा होती है।  
३७.- विभाष -  पश्चिम बंगाल में मिदनापुर के ताम्रलुक नामक स्थान पर जहां माता सती का वाम घुटना गिरा था।यहाँ माता को कपालिनी नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही भीमरूपा/सर्वानंद  भैरव की भी पूजा होती है।      
३८.- अम्बाजी - गुजरात में गिरनार पर्वत के शिखर पर स्थित इस स्थान पर माता सती का उदर गिरा था।  यहाँ माता को चंद्रभागा नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही वक्रतुण्ड  भैरव की भी पूजा होती है।   
३९.- भैरव पर्वत - भिन्न भिन्न मान्यताओं के चलते मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में क्षिप्रा नदी के तट के अतिरिक्त गुजरत के गिरनार पर्वत के निकट भी इस स्थान को बताया जाता है। इस स्थान पर माता सती के उधर्व ओष्ठ गिरे थे। यहाँ माता को अवंती नामक शक्ति  के रूप में पूजा जाता है ।   
४०.- गोदावरी तट - आंध्र प्रदेश के राजमहेंद्री में कब्बूर में गोदावरी नदी के तट पर स्थित इस स्थान पर माता सती का बांया कपोल गिरा था।  यहाँ माता को विश्वेश्वरि/रुक्मिणी/राकिनी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही दण्डपाणि भैरव की भी पूजा होती है।   
४१.- रत्नावली - मूल स्थान की कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है किन्तु कुछ मान्यताओं के अनुसार तमिलनाडु में चेन्नई के आस पास बताया जाता है।  इस स्थान पर माता सती का दक्षिण स्कंध गिरा था। यहाँ माता को कुमारी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही शिव  भैरव की भी पूजा होती है।
४२.- जनस्थान -  महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के तट पर पंचवटी में स्थित इस स्थान पर माता सती की ठुड्डी गिरी थी।  यहाँ माता को भ्रामरी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही विकृताक्ष  भैरव की भी पूजा होती है।     
४३.- मिथिला - मूल स्थान की कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है किन्तु मान्यताओं के अनुसार तीन स्थानों को माना जाता है उनमें नेपाल सीमा पर स्थित जनकपुर के अतिरिक्त बिहार के समस्तीपुर और सहरसा में भी बताया जाता है।  स्थान पर माता सती का वाम स्कंध गिरा था। यहाँ माता को उमा/महादेवी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही महोदर भैरव की भी पूजा होती है।   
४४.- नलहटी - पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले में बोलपुर के नलहाटी क्षेत्र में स्थित इस स्थान पर माता सती की उदर नली गिरी थी। यहाँ माता को कालिका देवी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही योगीश भैरव की भी पूजा होती है।  
४५.- कर्णाक - मूल स्थान की कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है, इस स्थान पर माता सती के दोनों कर्ण गिरे थे। यहाँ माता को जय दुर्गा नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है। 
४६.- वक्रेश्वर - पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले में सैन्यथा में यह स्थान बताया जाता है।  इस स्थान पर माता सती का मन गिरा था।  यहाँ माता को महिष मर्दिनी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही वकानाथ भैरव की भी पूजा होती है।     
४७.- यशोर - बांग्लादेश के खुलना जिले के यशोर/ईश्वरीपुर  स्थित इस स्थान पर माता सती की बांयी हथेली गिरी थी। यहाँ माता को यशोरेश्वरी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही भैरव चंद्र भैरव की भी पूजा होती है।  
४८.- अटटहास - पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले के लाभपुर नामक स्थान के पास के स्थान जहां पर माता सती के  निचले ओष्ठ गिरे थे। यहाँ माता को फुल्लरा नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही विष्वेश भैरव की भी पूजा होती है।   
४९.- नन्दीपुर - पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले में सैन्यथा में यह स्थान बताया जाता है, जहां माता सती का कंठहार गिरा था। यहाँ माता को नन्दिनी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही निन्दकेश्वर भैरव  की भी पूजा होती है।   
५०.- लंका - लंका में निश्चित रूप से मूल स्थान की कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है, इस स्थान पर माता सती के नूपुर गिरे थे। यहाँ माता को इन्द्राक्षी नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही राक्षसेश्वर भैरव  की भी पूजा होती है। 
५१.- विराट - महाभारत की विराट नगरी जोकि राजस्थान के जयपुर के वेराट ग्राम को बताया जाता है, इसके अलावा अलवर और भरतपुर में भी बताया जाता है, इस स्थान पर माता सती के पैरों की अंगुलियां गिरी थी।  यहाँ माता को अम्बिका नामक शक्ति के रूप में पूजा जाता है तथा यहाँ माता के साथ ही अमृत भैरव  की भी पूजा होती है। 
माँ जगदम्बा की इन इक्यावन शक्तिपीठ को बारम्बार नमन।  माता सभी का कल्याण करें सभी पर अपनी कृपा बनाये रखें।  जय माता दी। 

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