शरद पूर्णिमा

सम्पूर्ण वर्ष भर की पूर्णिमा में आश्विन मास की पूर्णिमा अर्थात शरद पूर्णिमा का एक विशेष ही महत्त्व है। इस पूर्णिमा के बाद से ही हेमंत ऋतू की शुरुआत हो जाती है और धीरे धीरे ठण्ड का मौसम शुरू हो जाता है। ऐसी मान्यता है कि आश्विन मास की पूर्णिमा के दिन ही चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और  इस शरद पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्रमा के प्रकाश के माध्यम से अमृत वर्षा होती है, जोकि मानव के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत ही लाभदायक होती है।  इसलिए शरद पूर्णिमा के इस समय को अमृत काल भी कहा जाता है।  
हमारे धर्म शास्त्रों में भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा को ही होना बताया गया है, इस कारण से इस दिन को शिव जी, पार्वती जी और कार्तिकेय जी के पूजन का भी विधान है तथा इसे किन्ही किन्ही स्थानों पर कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है।  यह भी मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय की शरद पूर्णिमा के दिन की गई उपासना से वाद विवाद एवं संपत्ति आदि की परेशानियों से मुक्ति मिलती है।  शरद पूर्णिमा के दिन से ही कार्तिक मास स्नान प्रारम्भ हो जाता है तथा राधा दामोदर व्रत का प्रारम्भ भी इसी दिन से होता है। 

शरद पूर्णिमा, आश्विन पूर्णिमा, कुमार पूर्णिमा, कोजगिरि पूर्णिमा और कौमुदी पूर्णिमा के नाम से जाना जाने वाला यह दिन भगवान श्री कृष्ण के रास महोत्सव के आलावा माता लक्ष्मी जी के जन्म के प्रसंग के कारण भी काफी महत्त्व का है। ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय माता लक्ष्मी का प्राकट्य भी इसी दिन हुआ था।  माता लक्ष्मी के प्राकट्य के कारण ही इस पूर्णिमा को कौमुदी पूर्णिमा कहा जाता है।  हमारे धर्म शास्त्रों में शरद पूर्णिमा को रात्रि जागरण और पूजन का विधान बताया गया है।  यह भी कहा गया है कि  इस शरद पूर्णिमा की महारात्रि को माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरुड़ पर आरूढ़ होकर पृथ्वी लोक पर भ्रमण करने आती है और जो भी उन्हें रात्रि जागरण और उपासना में रत मिलता है, उस पर प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाती है। इस दिन सम्पूर्ण प्रकृति माता लक्ष्मी का स्वागत करती है और उनके दर्शन के लिए सभी देवताओं का आगमन भी पृथ्वी पर होता है। माता लक्ष्मी के विचरण के कारण ही शरद पूर्णिमा को बंगाल में कोजगरा पूर्णिमा कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है कि कौन जाग रहा है। शरद पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी की उपासना से कर्ज से मुक्ति भी होती है, इस कारण इस पूर्णिमा को कर्ज मुक्ति पूर्णिमा भी कहा जाता है।  

द्वापर युग में शरद पूर्णिमा की रात्रि को ही भगवान श्री कृष्ण एवं अनेकों गोपियों के महारास महोत्सव का भी उल्लेख हमारे धर्म शास्त्रों में मिलता है।  इस महारास में सम्मिलित होने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने माता पार्वती को भी निमंत्रण भेजा था। चूँकि महारास में पुरुषों का प्रवेश वर्जित था इसलिए माता पार्वती के जाने के बाद भगवान शिव जी भी इस महारास में सम्मिलित होने का मोह नहीं छोड़ सके और वे भी वहाँ पंहुच गए, जब उन्हें रोका गया तो उन्होंने गोपी का वेश धारण कर महारास में भाग लिया और वे गोपेश्वर महादेव कहलाये तथा महारास का मोह होने के कारण शरद पूर्णिमा की इस रात्रि को मोह रात्रि भी कहा जाने लगा। भागवत महापुराण में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण द्वारा रचाया गया यह महारास एक यौगिक क्रिया से परिपूर्ण था,  जिसमे प्रत्येक गोपियों के साथ भगवान श्री कृष्ण की ही शक्ति के अंश ने इस महारास में भाग लिया था अर्थात जितनी गोपियाँ थी उतने ही श्री कृष्ण उनके साथ थे।  यह भी मान्यता है कि यह महारास एक सांसारिक रात्रि का नहीं होकर ब्रह्मा जी जी की एक रात्रि तक चला था।  

शरद पूर्णिमा की इस महारात्रि को चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ अपने प्रकाश के माध्यम से अमृत वर्षा करते हैं और उस अमृत को कई औषधियां अपने में सोख लेती है, जिससे उन औषधियों की शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए इस दिन चन्द्रमा के प्रभाव वाली चीज अर्थात दूध से खीर बनाई जाती है और चांदी के पात्र में रखकर चन्द्रमा की रोशनी में खुले आसमान में रखी जाती है ताकि चन्द्रमा की अमृत युक्त किरणों से खीर औषधीय गुणों से युक्त अमृत सामान हो जावे। कुछ कथाओं के अनुसार लंकापति रावण अपने आप को चिरयुवा बनाये रखने के लिए शरद पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्रमा से निकलने वाली किरणों को अपनी नाभि पर केंद्रित करते थे, जिससे वह शक्ति संगृहीत होकर रावण को पुनर्योवन शक्ति प्रदान करती थी और उसके परिणामस्वरूप लंकापति रावण सदैव युवा ही दिखाई देते थे।  

ऐसा भी माना जाता है कि चन्द्रमा की अमृत किरणों से खीर में जो औषधीय गुण आते है वे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत ही लाभदायक होते है।  कई तरह की बीमारियों से राहत तो मिलती ही है बल्कि इस खीर को ग्रहण करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है।  अस्थमा के रोगियों के लिए तो यह जीवनदायिनी शक्ति मानी  गई है।  इसके साथ ही इस औषधीय खीर के सेवन से पित्त का प्रकोप एवं मलेरिया का खतरा नहीं रहता है साथ ही नेत्रों की रोशनी कम हो जाने की स्थिति में भी सुधार हो जाता है। इसके आलावा ह्रदय सम्बन्धी, श्वास सम्बन्धी समस्याओ के साथ ही चर्म रोग के लिए भी इस औषधीय गुणों से युक्त खीर का सेवन किया जाता है। कई स्थानों पर इस औषधी का व्यापक रूप से वितरण भी शरद पुर्णिमा की रात्रि को किया जाता है। आइये हम भी मनाएं शरद पूर्णिमा का पावन पर्व और प्रभु का स्मरण करें  - जय श्री कृष्ण।         
 

Comments

  1. बहुत सुन्दर जानकारी जी
    🙏🙏🙏🙏🙏

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  2. Bhut hi achchi jankari
    🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  3. बहुत ही रोचक जानकारी बहुत कुछ सिर्फ और सिर्फ शरद पूर्णिमा के दिन ही घटित हुआ..... Jay Ho..🙏🙏

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