क्रांतिकारी बिरसा मुंडा
स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान देने वाले कई महान क्रांतिकारियों के तो नाम भी आज की पीढ़ी को याद भी नहीं है, और कई नाम गुमनामी के अंधेरों में चले गए हैं, ऐसा ही एक नाम है बिरसा मुंडा का। छोटा नागपुर के पहाड़ी इलाकों में 19 वीं सदी के अंत में उठी क्रन्तिकारी गूंज ने ब्रिटिश सरकार की नींद हराम कर दी थी। इस क्रांतिकारी गूंज का आव्हान करने वाले बिरसा मुंडा जिन्हें स्थानीय जनता एक भगवान के रूप में मानती थी। रांची से 45 किलोमीटर दूर स्थित एक गांव में किसान सुगना मुंडा के पुत्र का जन्म बृहस्पतिवार को होने के कारण इस बालक का नाम बिरसा पड़ा। बचपन से ही बालक का मन पढ़ाई की बजाय कुछ नवीन कार्य एवं उक्तियों में अधिक लगता था। जब वह 16 वर्ष के थे तब उन्हें पढ़ने के लिए मिडिल स्कूल भेजा गया किन्तु वहां बिरसा अंग्रेजों की गुलामी से विचलित हो गए। स्कूल में उन्होंने बड़ी मुश्किल से चार साल निकाले कि एक दिन अपने सहपाठियों को कंधों पर हल रखकर खेत जोतते देख उनका किशोर मन विद्रोह कर बैठा। वह दौड़कर अपने सहपाठियों के पास पंहुचा और देखा कि उनके कंधों पर फफोले पड गए थे, यह देखकर बिरसा का मन काबू से बाहर हो गया और वह हल उठाकर पास के तालाब में फेंक आया। बिरसा के इस कार्य की जानकारी स्कूल के अंग्रेज हेडमास्टर को हुई तो वह काफी नाराज हुवे और इसके बाद बिरसा ने पढ़ाई बंद कर दी और गांव के जमींदार के यहाँ नौकरी करने लगे। इसी समय उनका विवाह हीरी नामक युवती के साथ संपन्न हुआ।
सन 1894 में सम्पूर्ण देश अकाल की स्थिति से जूझ रहा था, लोग मुट्ठी भर अनाज से भी मोहताज थे। छोटा नागपुर के रहवासी बैर और जामुन के पेड़ों की छाल को उबालकर अपना जीवन बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उस समय लोगों के घरों में अंग्रेज सिपाही घुसकर औरतों के गहने छीनते और बलात्कार करते थे। बिरसा ने जब यह देखा तो उसने युवाओं को ललकार कर जाग्रत किया। पुलिस द्वारा जनता पर अत्याचार करने पर बिरसा मुंडा ने हेड कांस्टेबल युसूफ खान का सर कुल्हाड़ी के एक ही वार में धड़ से पृथक कर दिया और कांस्टेबल गुलाब सिंह ने जब उन्हें रोकने के लिए गोली चलाना चाही तो विषभरे तीर से उसका भी काम तमाम कर दिया तब बाकी पुलिस वाले अपनी जान बचा कर भाग निकले। छोटा नागपुर के इतिहास में ब्रिटिश आतंक के हिंसक विरोध की यह एक अभूतपूर्व घटना रही थी। इस घटना के बाद उस समय के रांची के डिप्टी कमिश्नर स्ट्रीट फील्ड ने बिरसा मुंडा का गिरफ्तारी वारंट जारी कर गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। जेल से रिहा होने तक तो बिरसा मुंडा की देशप्रेम की भावना और भी बढ़ गई थी। जेल से छूटकर उन्होंने चलकद में एक सेवादल की स्थापना की, जिस सेवादल में देखते ही देखते 5000 आदिवासी शामिल हो गए।
बिरसा मुंडा ने चलकद में सेवादल में स्वराज्य का उदघोष कर यह संकल्प लिया कि आओ सब एकजुट हो जाओ अब हमारा राज्य आने वाला है और वह दिन दूर नहीं है जब अंग्रेज हमारे पैरों में गिरकर अपने प्राणों की भीख मांगेंगे। इस संकल्प के साथ ही बिरसा मुंडा ने अंग्रेजो के खिलाफ असहयोग आंदोलन की घोषणा कर वनवासियों को फसल नहीं बोने को कहा। इसके बाद बिरसा मुंडा अपने इस अभियान के लिए खूंटी पंहुचे उस समय उनके साथ करीब 400 आदिवासी थे। बिरसा के अभियान की जानकारी अंग्रेजो को थी ही उन्होंने भी भरपूर बंदोबस्त किया हुवा था पुलिस थाने से जब गोलीचालन शुरू हुवा तो आदिवासियों के तीरों ने चंद मिनटों में ही थाने को मरघट में बदल दिया। अंग्रेजो में बिरसा मुंडा का इतना खौफ हो गया कि रांची के डिप्टी कमिश्नर ने बिरसा मुंडा को जिन्दा या मुर्दा पकड़ कर इस क्रांति का नामोनिशान मिटा देने का आदेश जारी कर दिया। वहीं बंदगांव, तोरपा, जशपुर और रायपुर आदि के हजारों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुवे घने जंगलों में बिरसा मुंडा और उनके सहयोगियों का एकतरफा राज था। आदिवासियों में बिरसा की छबि पहले राजा बिरसा के रूप में और उसके बाद भगवाम के रूप में बन चुकी थी।
बिरसा मुंडा के नेतृत्व में आदिवासियों का विशाल समूह क्रांति का ध्वज फहराते हुवे अंग्रेजों के रांची मुख्यालय पर धावा बोल दिया। अंग्रेजो को इसकी जानकारी मिलने पर रास्ते में कई जगहों पर भारी पुलिस का इंतजाम कर रखा था, जिन सबसे बचते हुवे बिरसा मुंडा रांची पंहुच गए और अपने साथियों की एक टुकड़ी के साथ सर्वादाग मिशन पर चढ़ाई कर मिशन परिसर को जला दिया, उसके बाद अपने सहयोगियों को छोटी छोटी टुकड़ियों में बांटकर पुलिस थानों पर हमला करने का आदेश दिया और करीब 300 साथियो के साथ बिरसा मुंडा ने खूंटी थाने पर हमला कर थाने को तहस नहस कर दिया। इस हमले में 12 कांस्टेबल और एक अंग्रेज इंचार्ज मारा गया और बाकी सिर्फ बिरसा की दहशत से ही भाग गए। अंग्रेजो के लिए आफत बन चूका था बिरसा मुंडा, अंग्रेजो ने कूटनीति से भी काम लेने की कोशिश की। उन्होंने बिरसा पर इनाम की घोषणा की किन्तु कोई सफलता नहीं मिली। बिरसा मुंडा का अंग्रेजो में इतना खौफ हो गया था कि पूरी अंग्रेज फ़ौज बिरसा और उसके आंदोलन को समाप्त करने के लिए खूंटी और डुंबारी की पहाड़ियों की तरफ कूच कर गई पर कोई सफलता नहीं मिलने पर अंग्रेजी फौज की टुकड़ी ने डुंबारी गांव में सामूहिक हत्या और बलात्कार करना शुरू करते हुवे निर्दोष औरतों और बच्चों पर गोलीबारी कर मारने लगे।
एक दिन शाम को जिस समय बिरसा मुंडा अपने बच्चो के साथ अपने घर में बैठा हुवा था तब किसी देशद्रोही ने इनाम के लालच में पुलिस को खबर कर दी। पुलिस ने सुचना मिलते ही पुरे दलबल सहित सिंह भूमि जिले के जोम्कोपाई में घेराबंदी कर दी। पुलिस द्वारा सामूहिक हत्या की आशंका के चलते बिरसा मुंडा अपने बच्चे को पत्नी के हवाले कर हाथ में कुल्हाड़ी लिए सामने आ गया, तब पुलिस ने बिरसा को गिरफ्तार कर उसे रांची जेल ले गए। बिरसा मुंडा के हजारो साथी आदिवासी जेल तक साथ गए, उन्हें बिरसा ने यह कहकर वापस लौटाया कि तुम सभी वापस लौट जाओ और अंग्रेजो के विरूद्ध अपनी लड़ाई को जारी रखें। बाद में अंग्रेजो ने बिरसा को गुपचुप तरीके से हजारीबाग जेल भेजकर बिरसा मुंडा के हाथ पैरों में बेड़ियाँ डाल दी और काफी कठोर कार्य करवाया, भोजन में जहरीला पदार्थ मिलकर दिया गया, जिससे बिरसा का शरीर कंकाल में बदल गया फिर उसे हैजा भी हो गया।अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुवे 30 वर्ष की आयु में 9 जून 1900 बिरसा मुंडा शहीद हो गए। बिरसा के साथी किसी प्रकार का कोई उपद्रव नहीं करे इस कारण बिरसा मुंडा की मौत की खबर भी कई दिनों बाद उसके परिवारजन को दी गई थी और यह प्रचारित किया कि बिरसा मुंडा की मौत हैजे से हुई है। भारत माता के ऐसे सपूत वीर क्रान्तिकारी बिरसा मुंडा को शत शत नमन। - दुर्गा प्रसाद शर्मा
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