गुरु पूर्णिमा

गुरु का मनुष्य के जीवन में काफी महत्त्व है। गुरु शब्द का शाब्दिक अर्थ यदि देखा जाए तो गु अर्थात अंधेरा और रु अर्थात अंधेरे को दूर करने का प्रतीक। दोनों शब्द हमारे मस्तिष्क और आत्मा को जाग्रत कर हमारे जीवन के अंधकार को दूर करते हैं। हिन्दू कैलेण्डर अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को गुरुपूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। हमारे सनातन हिन्दू धर्म में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर माना गया है, क्योंकि गुरु बिन न तो ज्ञान मिलता है और न मानव जीवन अनुशासन का पालन कर भक्ति को प्राप्त किया जा सकता है। तभी तो कहा है कि गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आप की जो गोविन्द दियो मिलाय। गुरु का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है इसी बात को समझने और समझाने के लिए इस पर्व को मनाया जाता है।  इसदिन लोग श्रद्धा पूर्वक अपने गुरुजनों का पूजन कर उन्हें याद करते हुवे उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते है और उन्हें अपनी सामर्थ्य अनुसार भेंट दक्षिणा प्रदान कर उनका आभार व्यक्त करते है।    

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस दिन महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था, और उनके जन्म दिवस के रूप में ही यह पर्व मनाया जाता है, इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। महर्षि वेद व्यास जी ने सर्वप्रथम वेदों की चार भाग में व्याख्या करते सभी अठारह पुराणों की भी रचना की थी। महाभारत महाकाव्य के रचयिता भी वे ही थे। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले भी हमारे आदिगुरु महर्षि वेद व्यास ही हैं। हमें भी अपने गुरुजन को व्यास जी का अंश मानकर उनका पूजन कर कुछ भेंट अवश्य ही देना चाहिए। जिन लोगो के गुरु अब नहीं रहे वे पादुका पूजन करते हैं। श्रद्धा पूर्वक गुरु पूजन कर गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। 

प्रभु श्री राम गुरु वशिष्ठ जी, गुरु विश्वामित्र जी, गुरु अगस्त्य जी से शिक्षा और मार्गदर्शन पाकर ही भगवान बने। श्री कृष्ण भी गुरु सांदीपनि जी से प्राप्त ज्ञान के अभ्यास के बाद ही भगवान के रूप में पूज्य बने। आदि गुरु शंकराचार्य जी ने भी गुरु पद प्राप्ति के पहले अपने गुरु श्री गौड़पाद जी से ज्ञान प्राप्त किया। विवेकानंद जी ने भी गुरु रामकृष्ण परमहंस जी से ज्ञान प्राप्त करके ही सम्पूर्ण विश्व में हिंदुत्व का ध्वज लहराया। महर्षि दयानन्द जी ने अपने गुरु श्री विरजानन्द जी से प्राप्त वैदिक ज्ञान का ही प्रकाश फैलाते हुवे स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पंजाब जो गुरुजनों की धरती रही है, वहां भी गुरुजन द्वारा सदैव भारत भूमि की आक्रमणकारियों से और धर्म परिवर्तन से रक्षा की।     

एक गुरु ही है जो हाड़ मांस के ढांचे रूपी मनुष्य को शिक्षा प्रदान कर उसमे सद्गुणों को विकसित कर उसे धैर्यवान व्यक्ति बनाता है। व्यक्ति की पहली गुरु उसकी माता और दूसरा गुरु उसका पिता होते हैं, जो बचपन में उसे उसके जीवन के वास्तविक मूल्यों को समझाते हुवे सही और गलत के बीच अंतर बताते हुवे भले बुरे का एहसास कराते हैं। सही मायने में माता पिता ही बच्चे को गुरु से ज्ञान प्राप्ति के लिए एक आधार निर्माण का कार्य कर जीवन का सही मार्ग बताने के लिए उसे गुरु को सौंप देते है। हमारे माता पिता गुरुजन और हमारे शुभचिंतकों की उचित शिक्षा और आशीर्वाद से हम उत्तम व्यक्तित्व की प्राप्ति कर सकते हैं। गुरु का मार्गदर्शन व्यक्ति को महान बनता है। गुरु वही है जिनसे हम अपनी  उन्नति की लिए उपाय की सीख लेकर सदमार्ग पर चलते हुवे मोक्ष की प्राप्ति कर सकें। आजकल गुरु शिक्षा में भी धन सर्वोपरि हो गया है जबकि गुरु शिक्षा में व्यापार नहीं होना चाहिए। संत कबीरदास जी ने गुरु की महिमा बड़े ही सूंदर तरीके से करते हुवे कहा है कि हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर। अर्थात यदि भगवान आपसे नाराज हो जाय तो गुरु का सानिध्य आपकी रक्षा कर सकता है, किन्तु गुरु यदि रुष्ट हो जाय तो भगवान भी किसी प्रकार से रक्षा नहीं करते। 

जैन और बौद्ध धर्म में भी गुरुपूर्णिमा का बड़ा ही महत्त्व है। जैन धर्म में इस दिन महावीर स्वामी के त्रिनोक गुहा बन जाने के स्मरण में त्रिनोक गुहा पूर्णिमा के रूप में गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है।  वहीं बौद्ध धर्म में इस दिन भगवान गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति की स्मृति के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू पौराणिक प्रसंगों के अनुसार प्रथम गुरु भगवान शिव को माना गया है, कहा जाता है कि इसी दिन भगवान शिव द्वारा सप्तर्षियों को शिव ज्ञान योग का प्रदान कर गुरु बन गए थे, उस कारण भी गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। 

सभी धर्म के लोगों द्वारा सम्पूर्ण देश में गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।  इस दिन लोग अपने घर, विद्यालय, महाविद्यालय, मंदिरों आदि में अपने गुरुजन का आभार व्यक्त करते हुवे उनके द्वारा दी गई शिक्षा को याद करके उन्हें भेट, दक्षिणा आदि प्रदान कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन से ही वर्षाकाल का भी आरम्भ मन जाता है और इस दिन से चार माह के लिए चातुर्मास प्रारम्भ है, कई संत, महापुरुष इन चार महीने एक ही स्थान पर रुक कर पुरे चातुर्मास उपदेश आदि से लाभान्वित करते हैं। आज भारतीय संस्कृति की गुरु शिष्य परम्परा पर निरंतर हमले हो रहे हैं, आक्षेप लगाए जा रहे हैं। जबकि आज भी हमारे देश में कई संत महापुरुष बिना किसी लोभ लालच के हिन्दू धर्म और संस्कृति के उत्थान में लगे हुवे हैं। यदि हमें भारत को पुनः विश्वगुरु बनाना है तो हमें अपनी गुरु शिष्य परम्परा पर विश्वास रखना होगा, गुरुजनों द्वारा बताई राह पर चलना होगा। गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर समस्त गुरुजनों को सादर प्रणाम।                                          





Comments

  1. समस्त गुरुजनों को सादर प्रणाम।
    माटी से मूरत गढ़े , सदगुरु फूंके प्राण ।
    कर अपूर्ण को पूर्ण गुरु,भव से देता त्राण।
    निशा जोशी।

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