नाग पंचमी
भारत देश में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता हैं, देश के कुछ भागों में यह पर्व कृष्ण पक्ष की पंचमी को भी मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में नाग पंचमी का एक विशेष महत्त्व है। भगवान शंकर के गले में सुशोभित नाग को देवता के रूप में पूजने का यह त्यौहार भी शिवजी के प्रिय श्रावण मास में ही आता है। भगवान शिव के गले में हार के रूप में सुशोभित और भगवान विष्णु की शैया बने नाग को भी देवता मन कर पूजा आराधना करने का पर्व है नाग पंचमी। पुराणों में यक्ष, किन्नर और गन्धर्वो दे साथ नागों का भी वर्णन आता है, देवों के लिए समर्पित नागों का स्थान पाताल में माना जाता है और इनका उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से माना जाता है। पुराणों में भगवान सूर्य के रथ में भी द्वादश नागों का उल्लेख मिलता है जोकि प्रत्येक मास में उनके रथ के वाहक माने जाते हैं, इन बारह स्वरुप में ही मुख्य रूप से पूजन किया जाता है। वर्षा ऋतू में नाग भूगर्भ से निकल कर बाहर आ जाते हैं और वे किसी प्रकार की हानि न पंहुचाये आइल उन्हें प्रसन्न करने के लिए भी पूजन किये जाने की मान्यता है। नाग पंचमी पर नाग पूजन करने के धार्मिक और सामाजिक कारण के अलावा ज्योतिषीय कारण भी है। ज्योतिष शास्त्रानुसार कुंडली में विध्यमान योग और दोष में कालसर्प योग एक बड़ा दोष माना गया है, जिस दोष के शमन के लिए भी नाग पंचमी को नाग पूजन करने की परम्परा है। भारतीय संस्कृति में देवरूप में स्वीकार्य नाग देवता ग्राम देवता और लोक देवता के रूप में भी पूजा होती है। नाग विष, नाग भय और सर्वत्र विजय के लिए नव नाग स्त्रोत के रूप में भी नाग देवता का स्मरण किया जाता है।
कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों से से जब उच्चैश्रवा नामक अश्व (जोकि अत्यंत ही श्वेत वर्ण का था) प्राप्त होने पर नागमाता कद्रू और विमाता विनीता में अश्व के रंग को लेकर वाद विवाद हो गया, कद्रू ने कहा कि अश्व के बाल श्याम वर्ण के है विवद बढ़ने पर हार जीत की स्थिति बन गई। कद्रू बोली यदि उसका कथन असत्य हो तो वह विनीता की दासी बन जाएगी और यदि सत्य हो तो विनीता को दासी बनना होगा। इस प्रकार शर्त लगने पर सर्प माता कद्रू ने अपने पुत्रों को आज्ञा दी की वे सूक्ष्म रूप में अश्व की पुंछ पर लिपट जाएं जिससे उसके बाल काले रंग के दिखें। नागों ने जब इस प्रकार कार्य करने में असमर्थता बताई तो माता ने नाराज होकर पुत्रों को श्राप दिया कि पांडव वंश के राजा जन्मेजय के यज्ञ में तुम सब भस्म हो जाओगे। श्राप के भय से और श्राप से मुक्ति की अभिलाषा में सर्पों ने माता की बात मान ली और शर्त के अनुसार विनीता कद्रू की दासी हो गई। उसके बाद श्राप से भयभीत सर्पों ने वासुकि के साथ ब्रह्माजी से श्राप निवृत्ति का उपाय पूछा तब उन्होंने बताया कि यायावर वंश में उत्पन्न तपस्वी जरत्कारु सर्पों के बहनोई होंगे और उनका पुत्र आस्तिकी ही सर्पों रक्षा करेगा। ब्रह्माजी ने यह वरदान भी नाग पंचमी के ही दिन दिया था और आस्तिकी मुनि ने सर्पों का रक्षण भी इसी तिथि को किया। इस कारण भी इस दिन नाग पंचमी मनाई जाती है।
इसी प्रकार से यमुना नदी में भयानक विषधर कालिया नाग के निवास के कारण यमुना नदी का जल भी विष के समान हो गया था, जो भी वह जल पीता मर जाता या बीमार हो जाता, नदी किनारे खेतों की फसलें भी विष के कारण नष्ट हो जाती थी। जब भगवान श्री कृष्ण को कालिया नाग के इस कृत्य की जानकारी मिली तो वे यमुना किनारे गेंद खेलने के बहाने अपने साथियों के साथ गए और खेलते खेलते जब गेंद यमुना नदी में चली गई तो उसे लाने के बहाने नदी में कूद गए और वहां किया नाग के साथ द्वंद युद्ध कर कालिया नाग का मर्दन किया और उसके फनों पर नृत्य करते हुवे नदी से बाहर आये। नदी से बाहर आने पर नाग पत्नियों के अनुरोध पर कालिया नाग को इस शर्त पर जीवनदान दिया कि वह यमुना नदी को छोड़कर चला जाए, इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने बृजवासियों को श्रावण मास की इस पंचमी तिथि को ही विषधर के भय से मुक्त कराया था। बृज प्रदेश में भी तभी से नाग पंचमी मनाई जाने की मान्यता है। वाराह पुराण की एक कथा अनुसार श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही ब्रह्माजी ने शेषनाग को पृथ्वी धारण करने का आशीर्वाद प्रदान किया था। इसके अलावा भी अन्य कई कथाऐ नाग पंचमी के बारे में प्रचलित हैं।
कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल विष का पान तो भगवान शिव ने कर लिया था किन्तु विष की कुछ बुँदे जो गिर गई थी वह नागों ने पी ली थी, जिससे वे विषधर हो गए और वे मानव जाति को किसी प्रकार का नुकसान न पंहुचाए इस कारण से उनकी आराधना नागपंचमी पर की जाती है। नाग पंचमी को नाग के बारह स्वरुप की आराधना करते है तो कहीं कहीं नौ स्वरुप की। नाग पंचमी पर नाग मंदिर में नाग प्रतिमा के अलावा प्रत्यक्ष नाग पूजन और दुग्धपान की परंपरा है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में मांडणे बनाकर अथवा गोबर से सर्प की आकृति बनाकर उसकी पूजा की जाती है। कई स्थान पर नाग की बाँबी की भी नाग देव का मूल स्थान मानकर पूजा की जाती है। इस दिन भोजन बनाने के लिए तवा नहीं चढ़ता है, चांवल और उड़द की दाल भी नहीं बनाई जाती है इस सम्बन्ध में बुजुर्गों का कहना है कि तवे को नाग के फन का, चांवल को दांत का और उड़द की दाल को आँख का प्रतीक मानकर नाग पंचमी के दिन इनसे बचना चाहिये। अलग अलग जगहों पर भोजन के रूप में अलग अलग प्रकार की सामग्री बनाई जाती है किन्तु अधिकांशतः इस दिन दाल बाटी चूरमा ही बनाया जाता है। इस दिन कुछ चीज काटने पीटने और सिलाई से बचना चाहिये, इसी प्रकार इस दिन जमीन को खोदना या हल बक्खर चलाने से बचना चाहिये।
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