हरियाली अमावस्या


अमावस्या की तिथि का धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टी से तथा अन्य कई पहलुओं से हमारे हिन्दू धर्म में एक अलग ही महत्त्व है, अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव होने कारण अधिकांशतः इस तिथि को पितृ तृप्ति हेतु पितृ कार्य अर्थात श्राद्ध, तर्पण, पितृ शांति हवन पूजन, ब्राह्मण भोजन, दान धर्म के कार्य संपन्न किये जाते हैं। पवित्र श्रावण मास की अमावस्या का अपना एक अलग ही महत्त्व है, श्रावण मास की इस अमावस्या को हरियाली अमावस्या के नाम से जाना जाकर इसे एक उत्साह एवं भक्तिभाव के साथ शिव पार्वती की पूजा आराधना कर त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा हमारे धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि एक पेड़ दस पुत्रों के समान होता है, पेड़ लगाने से सुख के साथ पुण्य की भी प्राप्ति होती है इस कारण बारिश के मौसम में प्रकृति पर आई बहार की ख़ुशी के साथ भगवान शिव की आराधना और पितृ पूजन के साथ ही इस दिन वृक्षारोपण भी किया जाता है। हमारे धर्म शास्त्रों में वृक्षों में देवता का वास  जैसे पीपल में त्रिदेव, बेल में शिव, आंवले में लक्ष्मीनारायण आदि, भी बताया है, इस कारण से पर्यावरण को शुद्ध बनाये रखने के लिए हरियाली अमावस्या को वृक्षारोपण की परम्परा बनी। इसके पीछे वृक्षों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना तो है ही बल्कि उन्हें संरक्षित करने की भावना भी है।

हरियाली अमावस्या के दिन भगवान शिव पार्वती की पूजा तो होती ही है, साथ ही पीपल के वृक्ष की पूजा और परिक्रमा भी कई लोग करते है और इस दिन खीर मालपुवे बनाकर उसका भोग लगाने की भी परम्परा है। ऐसी मान्यता है कि हरियाली अमावस्या की पूजा और व्रत अच्छे भाग्य, समृद्धि एवं सम्पन्नता के साथ ही सभी मनोकामनाओं की पूर्ति का आशीर्वाद लेने के लिए किया जाता है। यह भी कहा जाता है कि इस दिन पितृ पूजा करने और ब्राह्मण भोजन कराने से पूर्वजो का भी आशीर्वाद मिलता है। कई क्षेत्रों में हरियाली अमावस्या से हरियाली तीज तक तीन दिन तक त्यौहार मनाया जाता है, महिलायें अपने सुखी गृहस्थ जीवन, अच्छे भाग्य और अपने पति के कल्याण के लिए यह पूजन करती है। देशभर अलग अलग स्थानों पर हरियाली अमावस्या को अलग अलग नमो से भी जाना जाता है, जैसे ओडिसा में चितलगी अमावस्या, महाराष्ट्र में गटारी अमावस्या तो तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में चुक्कला अमावस्या।    

श्रावण मास में बारिश के आगमन से धरती का कोना कोना हरा भरा होकर खिल उठता है और पेड़ पौधों को नया जीवन मिलता है जिससे मानव जीवन भी सुरक्षित रहता है। श्रावण मास में कई स्थानों पर मेलों का आयोजन किया जाता है, जिसमे सभी वर्ग लोग सम्मिलित होकर आनंदपूर्वक उत्सव मानते है।  कई जगह पर इस दिन सांकेतिक बुवाई करते हुवे कृषि उत्पादन की आगामी स्थिति का अनुमान लगाते हैं। हरियाली अमावस्या के दिन किसान अपने औजारों की पूजा भी करते है साथ ही बैलों की जोड़ी को सजाकर उनका भी सत्कार किया जाता है। वृक्षों के विनाश का दुष्परिणाम आज हम देख ही रहे है, इसलिए पर्यावरण संरक्षण भी आवश्यक है। सनातन धर्म और हमारे धर्म शास्त्रों में पेड़, पौधों, जीव, जन्तुओं सहित सम्पूर्ण मानवता को संरक्षण देने हेतु उन्हें धार्मिक भावना से जोड़कर उनके प्रति आदर और उनका संरक्षण करने की परम्परा रही है, इसलिए हरियाली अमावस्या पर हम भी संकल्पित होकर अपने अपने शहर नगर को हरा भरा और स्वच्छ बना कर धरती पर पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में अपना सहयोग प्रदान करें।  हरियाली अमावस्या के दिन पौधा लगाकर उसकी रखवाली करने, जल खाद आदि देने से पुण्य की प्राप्ति होती है। यह दिन वास्तव में प्रकृति का आभार मनाने के लिए ही है। पेड़ जोकि मानव जीवन का आधार तथा हमारी प्राण शक्ति श्वांस को शुद्ध कर हमारे जीवन का संरक्षण करते हैं, उन्हें सरंक्षित करने और धरती को हरा भरा रखने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष हरियाली अमावस्या को मनाया जाता है।  

हरियाली अमावस्या को नदी,जलाशय आदि में स्नान कर सूर्यदेव को अर्ध्य देने के बाद पितरों के निमित्त तर्पण, दान की परम्परा तो है ही साथ ही नदी, जलाशय आदि में मछली को आटे की गोलियां खिलाने और चीटियों को चीनी, आटा आदि खिलाने की भी परम्परा है।  पीपल के वृक्ष की पूजा  के साथ ही पीपल, बरगद, केला, निम्बू, तुलसी आदि का रोपण भी हरियाली अमावस्या को किया जाता है।  इसके अलावा  हनुमान जी के दर्शन, पूजन के साथ  उनको सिंदूर और चमेली के तेल का चोला भी चढ़ाया जाता है।  

Comments

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  2. बहुत सुंदर आलेख.... आपने इस त्यौहार का महात्म्य बताते हुए इसकी प्रासंगिकता को भी बताया।
    धन्यवाद
    प्रणाम

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  3. हरियाली अमावस्या का महत्व एवं रोचक जानकारी पढ़कर बहुत अच्छा लगा घंटाघर में झूले लगते थे वहां पर बुआ जी के साथ अर्चना अलका दीदी के साथ पिकनिक मनाने जाया करते थे वह पुरानी यादें इस प्रसंग को पढ़कर ताजी हो गई

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