मार्कण्डेय पर शिव कृपा


भगवान शिव के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण काफी दुःखी रहा करते थे। पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा से उन्होंने अपनी पत्नी मरुद्गति के साथ भगवान शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए उनकी आराधना एवं कठोर नियमों का पालन करते हुवे तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर  भगवान शिव उनके समक्ष प्रकट हुवे और उनसे पूछा कि हे मुने, तुम उत्तम गुणों से रहित चिरजीवी पुत्र चाहते हो या अल्पायु गुणवान पुत्र तुम्हें चाहिए।  मुनि कुछ सोच कर बोले प्रभु सद्गुण रहित दीर्घजीवी पुत्र से किसी का क्या भला होगा, मुझे तो धर्मात्मा गुणवान पुत्र चाहिए, भले ही वह थोड़े समय तक जीवित रहे। भगवान शंकर वरदान देकर अंतर्धान हो गए। समय आने पर मुनि के यहाँ एक सुन्दर पुत्र का जन्म हुआ।  बालक के गर्भाधान संस्कार से लेकर बाद तक के समस्त संस्कार विधिपूर्वक संपन्न कराये गए।  रूप और तेज में साक्षात् शिव के समान प्रतीत होने वाले बालक का नाम मार्कण्डेय रखा गया।  मृकण्ड मुनि को पता था कि उनके पुत्र को मात्र सोलह वर्ष की ही आयु प्राप्त हुई है, आयु के विषय में कुछ मतभेद भी है कुछ जगह बारह वर्ष की आयु का भी उल्लेख है।  उन्होंने यह बात पुत्र मार्कण्डेय को बताते हुवे कहा कि भगवान शंकर की शरण ग्रहण करो और तुम जिस किसी भी ब्राह्मण को देखना उन्हें विनयपूर्वक प्रणाम करना, साथ ही उन्होंने पुत्र को भगवान शंकर की महिमा बताकर महामृत्युञ्जय मन्त्र का जप करने का उपदेश दिया।  


बालक मार्कण्डेय पिता की आज्ञा अनुसार दक्षिण समुद्र तट पर आश्रम बनाकर एक शिवलिंग स्थापित कर विधिपूर्वक शिवपूजन में लीन हो गया और जब जब भी किसी ब्राह्मण को वे देखते उन्हें आदरपूर्वक प्रणाम अवश्य करते थे।  एक दिन सप्तऋषिगण बालक मार्कण्डेय के आश्रम के पास से निकले, बालक मार्कण्डेय ने जैसे ही उन्हें  देखा वैसे ही सादर दण्डवत प्रणाम किया। सभी सप्तऋषिगण ने प्रसन्न होकर बालक मार्कण्डेय को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देने लगे, किन्तु आशीर्वाद देते देते ऋषि वशिष्ठ जी की दृष्टी  बालक मार्कण्डेय के  ललाट पर पड़ी और वे चौंक गए।  उन्होंने सभी ऋषिगण को बताया कि हम सभी ने इस बालक को दीर्घायु होने का आशीर्वाद तो दे दिया किंतु इसके ललाट की रेखा के अनुसार इसकी आयु तो मात्र तीन ही दिन शेष है, हमारा आशीर्वाद तो झूठा हो जायेगा।  

आशीर्वाद झूठा न हो इसका अन्य कोई उपाय नहीं देखकर ऋषिगण बालक मार्कण्डेय को लेकर ब्रह्मलोक में ब्रह्माजी के पास गए। ऋषिगण की बात सुनकर ब्रह्माजी बोले भाग्य तो मैं बदल नहीं सकता किन्तु यह बालक शिवभक्त है और भगवान शिव के लिए कुछ भी असंभव नहीं है, वे कुछ भी कर सकते  हैं।  आप आशीर्वाद के बारे में किसी  प्रकार की कोई चिंता न करें।  इस पर सप्तऋषिगण बालक मार्कण्डेय को शिव आराधना का उपदेश देकर चले गए।  इधर ब्रह्माजी और सप्तऋषिगण की बात सुनकर बालक मार्कण्डेय की भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भी अधिक प्रगाढ़ हो गई। 

बालक मार्कण्डेय की आयु जिस दिन समाप्त हो रही थी और वह उस दिन जब वह महामृत्युञ्जय मन्त्र का जप करते हुवे शिव आराधना में लीन था, तभी यम के गण उसे लेने आये किन्तु शिव पूजा में लीन बालक मार्कण्डेय के प्राण ले जाने का साहस नहीं कर पाए और वापस यमलोक चले गए।  गणो से जानकारी मिलने पर स्वयं यमराज बालक मार्कण्डेय के प्राण हरने के लिए आये।  यमराज ने आते ही बालक मार्कण्डेय के गले में यमपाश का फंदा डाल दिया, तब बालक मार्कण्डेय ने यमराज से कहा कि मैं शिव पूजन के पहले कहीं नहीं जाता हूँ आप शिव पूजन  होने तक रुकें।  बालक मार्कण्डेय की बात सुनकर यमराज हंसकर बोले  कि काल किसी की प्रतीक्षा नहीं करता है, जिसका काल नहीं  आता है, वह सैकड़ो बाणों के लगने  पर भी नहीं मरता है और  जिसका काल आ जाता है वह कुशा की नॉक लग जाने से भी मर जाता है, मैंने कई राजा महाराजा सहित असंख्य लोगों के प्राणों  का हरण किया है, कभी किसी के लिए ठहरा नहीं हूँ । 

यमराज की बात सुनकर बालक मार्कण्डेय निर्भीक होकर बोले मैं आपको इसलिए मना कर रहा हूँ कि भगवान शंकर की आराधना में लगे हुवे व्यक्ति को बाधा देने वाले शीघ्र नष्ट हो जाते हैं, जैसे राजा के सेवकों पर राजा के अलावा अन्य कोई का आदेश नहीं चलता, वैसे ही भगवान के भक्तों पर उनके प्रभु के अलावा अन्य कोई शासन नहीं कर सकता  है। भगवान सर्व समर्थ हैं और मृत्यु, यमराज या स्वयं ब्रह्माजी भी भगवान के  भक्त पर प्रभुत्व नहीं दिखा सकते हैं।  

बालक मार्कण्डेय की बातें यमराज को ठीक नहीं लगी उन्होंने घोर गर्जन करके बालक मार्कण्डेय को खींच लेना चाहा किन्तु उसी समय शिवलिंग से भगवान शिव हाथ में त्रिशूल लेकर प्रकट हो गए और उन्होंने यमराज को सावधान किया और कि मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया। बालक मार्कण्डेय तो भावविव्हल होकर भगवान शिव के चरणों में गिरकर स्तुति करने लगा। बालक मार्कण्डेय की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें काल के भय से मुक्त होकर दीर्घायु का वरदान दिया।  यमराज शिवजी के प्रचंड रूप को देखकर कांपने लगे, और बोले प्रभु मैं तो आपका सेवक हूँ और आपके द्वारा दिए गए कार्य के लिए ही तत्पर हूँ। भगवान भोलेनाथ का क्रोध कुछ शांत हुआ और वे बोले मैं अपने इस भक्त की स्तुति से प्रसन्न होकर इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया होने के कारण तुम इसे नहीं ले जा सकते। इसपर यमराज बोले प्रभु  आपकी आज्ञा सर्वोपरि है आपके इस भक्त द्वारा रचित महामृत्युञ्जय मन्त्र का जप करने वाले को भी मेरे द्वारा कोई कष्ट नहीं दिया जायेगा। इसके बाद यमराज वहां से लौट गए, और बालक मार्कण्डेय को दीर्घायु की प्राप्ति हुई।  तभी तो कहते हैं कि काल भी उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का। हर हर महादेव।  






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