वीरांगना महारानी ताराबाई भोंसले
मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारे भारत देश का इतिहास वीरांगनाओं के साहस और वीरगाथाओं से भरा हुआ है। भारतीय वीरांगनाओं ने समय समय पर अपनी वीरता का लौह मनवाया है और अपने वीरोचित स्वभाव अनुसार चुनौतियों का सदैव ही डटकर सामना कर समाज में एक आदर्श प्रस्तुत किया है। ऐसी ही वीरता की प्रतीक रही है महारानी ताराबाई भोंसले, जिनकी कहानी प्रत्येक महिला को ज्ञात होना चाहिये। आज का यह 149 वां लेख उन्हीं वीरांगना महारानी ताराबाई भोंसले को समर्पित है। छत्रपति शिवाजी महाराज के सरसेनापति हम्बीर राव जी मोहिते की सुपुत्री ताराबाई का जन्म 1675 में हुआ होकर दिनांक 9 दिसंबर 1761 को उनका निधन हुआ। छत्रपति शिवाजी महाराज के छोटे पुत्र राजाराम महाराज की धर्मपत्नी महारानी ताराबाई ने अपने पति के निधन के पश्चात् मराठा साम्राज्य की संरक्षिका बनकर चार वर्षीय बालक शिवाजी द्वितीय को मराठा साम्राज्य का छत्रपति घोषित किया और संरक्षिका के रूप में मराठा साम्राज्य का संचालन करते हुवे मुग़ल सम्राट औरंगजेब से लगातार सात वर्षों तक टक्कर लेते हुवे कई सरदारों को एक एक करके मराठा साम्राज्य को बनाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था।
छत्रपति शिवाजी महाराज के बड़े पुत्र संभाजी को मुग़ल शासक औरंगजेब ने छलपूर्वक बंदी बनाकर बलात इस्लाम स्वीकार करने के लिए भीषण यातनाऐं दी, किन्तु सफलता नहीं मिलने पर संभाजी की जघन्य हत्या कर दी गई। तब संभा जी के छोटे भाई राजाराम जी को छत्रपति बनाया गया। इसी के साथ मुगलों के विरूद्ध स्वतंत्रता संग्राम का उद्घोष हो गया। दुर्भाग्यवश सन 1700 में छत्रपति राजाराम जी का देहांत हो गया। छत्रपति राजाराम जी की मृत्यु का समाचार सुनकर औरंगजेब ने अपने शिविर में उत्सव मनाकर प्रसन्नता व्यक्त की, किन्तु यह औरंगजेब का भ्रम था। छत्रपति राजाराम महाराज का का प्रथम विवाह जनकीबाई था, महारानी ताराबाई उनकी द्वितीय पत्नी थीं। महारानी ताराबाई ने अपने पति के निधन के पश्चात् मराठा साम्राज्य की संरक्षिका बनकर चार वर्षीय बालक शिवाजी द्वितीय को मराठा साम्राज्य का छत्रपति घोषित किया और संरक्षिका के रूप में मराठा साम्राज्य का संचालन करते हुवे कमान अपने हाथों में ले ली।
महारानी ताराबाई ने स्वतंत्र मराठा साम्राज्य में श्वांस ली थी और उन्हें पता था कि स्वाधीनता की उन्मुक्त हवा और गुलामी की गंधयुक्त हवा में क्या अंतर है। उन्होंने अपने पति की मृत्यु का शोक नहीं किया बल्कि निराश मराठा सेना में एक प्रेरणा का संचार किया। उन्होंने अपने पति राजाराम के साथ मिलकर गुरिल्ला युद्ध की सभी तकनीकें सीखी थी। वे तलवारबाजी, तीरंदाजी, युद्ध कौशल तथा प्रशासन आदि सभी कार्यों में पारंगत थी। मराठा साम्राज्य की सर्वोच्च सत्ता, अधिकार और निर्देश अपने हाथों में लेकर महारानी ताराबाई ने अपना मंत्री मण्डल बनाया। महारानी ताराबाई ने सेना और प्रशासन का योग्यता और दक्षता से संचालन कर मुगल सम्राट को कड़ी टक्कर दी।
छत्रपति राजाराम जी की मृत्यु के बाद महारानी ताराबाई के कुशल नेतृत्व में मुगलो के विरूद्ध मराठा सैनिक अभियान अत्यंत ही तीव्र हो गया तथा आक्रमण छत्रपति राजाराम जी के शासनकाल की अपेक्षा अधिक तीव्र, आकस्मिक और व्यापक हो गए। महारानी ताराबाई योजनाबद्ध तरीके से अपने सैनिकों को प्रोत्साहित करते हुवे कुशल नेतृत्व करते हुवे मुगल सेना से लोहा लेती रही। वीरांगना ताराबाई नेतृत्व में मराठा सेना दक्षिण के सभी मुग़ल इलाकों में फ़ैल गई और सर्वत्र तहलका मचाकर मुगलों की सैन्य टुकड़ियों को परास्त करके उन्होंने कई प्रदेश मुगलों के कब्जे से वापस ले लिए। महारानी ताराबाई के नेतृत्व में उनकी सेना ने सात वर्ष की अवधि में साधन संपन्न शक्तिशाली मुग़ल साम्राज्य और उसकी सत्ता को जीर्ण शीर्ण कर नवीन राज्य का निर्माण कर मराठा साम्राज्य स्थापित किया।
महारानी ताराबाई ने अपने श्वसुर की आगरा की कैद का प्रतिशोध लिया। मुग़ल सम्राट ने जैसा छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में चाहा, वैसा कर तो नहीं सका किन्तु एक स्त्री से पराजित होकर वही सबकुछ स्वयं के साथ घटित हुआ। अपने सबसे बड़े शत्रु छत्रपति शिवाजी की असमय मृत्यु एवं उनके पुत्र संभाजी को तड़पा तड़पा कर मृत्यु के घाट उतारने वाला मुग़ल सम्राट निश्चिन्त था कि अब वह मराठों को हरा देगा और उत्तर से दक्षिण तक मुग़ल शासन स्थापित कर देगा किन्तु वह सपना पहले छत्रपति शिवाजी महाराज के छोटे पुत्र और बाद में उनकी पुत्रवधु ने धूमिल कर दिया। मुग़ल सम्राट को बार बार छत्रपति शिवाजी महाराज का अट्टहास और कथन याद आते रहे जिसमे कहा गया था कि मै रहूँ या ना रहूँ, मराठा कभी भी भगवा ध्वज झुकने नहीं देंगे।
वीरांगना महारानी ताराबाई भोंसले के अदम्य साहस और कुशल नेतृत्व क्षमता के बल पर ही इस स्वतंत्रता संग्राम में मराठों में साहसिक वीरता, उत्कृष्ट सहनशीलता, घोर निराशा में भी आशा की भावना, आत्मविश्वास, उच्च आदर्शों के प्रति निष्ठां, श्रेष्ठ सैन्य बल, नैतिक बल, आत्मबलिदान, राष्ट्रिय और देशप्रेम की उत्कृष्ट भावना जैसे गुण विकसित किये और इससे वे इतने शक्तिशाली हो गए कि आगामी तीन पीढ़ियों में वे उत्तरी भारत में विजेता के रूप में पहुँच गए। वीरांगना महारानी ताराबाई भोंसले ने मुग़ल सम्राट औरंगजेब की मानसिक और शारीरिक अवस्था पर भयानक आघात किया और इस स्वतन्त्रता संग्राम ने ऐसा भीषण और विकराल रूप धारण किया कि दक्षिण में उन्होंने मुग़ल साम्राज्य को क्षत विक्षत कर दिया, समाप्त कर दिया और मराठा साम्राज्य स्थापित किया। भारतीय इतिहास की ऐसी अदम्य साहसी महान वीरांगना महारानी ताराबाई भोंसले को हम समस्त देशवासियों की ओर से शत शत नमन - दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर।
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