सागर मंथन से प्राप्त अनमोल चौदह रत्न
मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इन्दौर का सादर अभिनन्दन। इस समय तीर्थराज प्रयागराज में महाकुम्भ का पावन अवसर है, सागर मंथन के समय पर जब भगवान धन्वन्तरि जी अमृत कलश लेकर प्रकट हुवे थे, उस समय अमृत कलश के लिए देवताओं और असुरों में संघर्ष प्रारम्भ हुआ, तब अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदे छलक गई और वे बूंदे प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में जाकर गिरी थीं, इसी कारण से यहाँ कुम्भ परम्परा प्रारम्भ हुई और इस कालावधि में इन स्थानों पर पवित्र नदियों में स्नान करने पर अमृत स्नान का काफी पुण्य बताया गया है। इस 150 वें लेख में हम सागर मंथन से प्राप्त अमृत सहित सभी चौदह रत्नों के विषय में चर्चा करेंगे। हमारे धर्म ग्रंथो में सागर मंथन का उल्लेख मिलता है, उस सम्बन्ध में कहा जाता है कि एक बार महर्षि दुर्वासा जी के श्राप के कारण स्वर्ग श्रीहीन (ऐश्वर्य, धन, वैभव हीन आदि) हो गया था और देवराज इन्द्र सहित समस्त देवता शक्तिहीन हो गए थे। उस परिस्थिति में समस्त देवता भगवान श्री विष्णु जी की शरण में गए। भगवान श्री विष्णु जी ने देवताओं को ...