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Showing posts from September, 2024

सच्चा श्राद्ध - जीवित माता पिता की सेवा

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा,  एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। अभी श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं और इसी कालावधि में अभी कुछ दिनों पूर्व समाचार पत्र में कुछ खबरें पढ़ी, जिससे दुःख भी हुआ साथ ही मन भी काफी विचलित हुआ इसलिए पितृपक्ष में पितरों को समर्पित इस  146 वॉँ लेख  की प्रस्तुति का कारण बना। एक खबर कुछ इस प्रकार की थी जिसमें अपने मृत परिजन के अंतिम संस्कार में आने के लिए उनके पुत्र को समय नहीं मिला और उसने अपने पड़ोसियों को ही अंत्येष्टि करने को कह दिया, तब उन पड़ोसियों ने उनका अंतिम संस्कार संपन्न किया, वही दूसरी खबर के अनुसार अपने माता पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ने के बाद पुत्र ने उनकी कोई खैर खबर लेना उचित नहीं समझा, बाद में माता पिता की मृत्यु भी हो गई, वह तब भी नहीं आया।  कालांतर में कुछ परेशानी आने पर ज्योतिष के समक्ष अपनी परेशानी के कारण और समाधान हेतु गया तो ज्ञात हुआ कि पितृदोष के कारण परेशानियाँ आ रही है, तब वह उस वृद्धाश्रम पहुंचा जहाँ मता पिता को छोड़ा था और वहाँ उसने अपने मृत माता पिता की अस्थियाँ अथवा कोई अन्य निशानी की मांग...

भगवान श्री वामन का प्राकट्य

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी, जिसे कि भगवान श्री विष्णु जी के वामन अवतार लिए जाने के कारण वामन द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। त्रेता युग के प्रारम्भिक कालावधि में भगवान श्री हरि विष्णु जी प्रजापति कश्यप एवं माता अदिति के पुत्र के रूप में अवतरित हुवे भगवान श्री वामन भगवान विष्णु जी के पहले ऐसे अवतार रहे जो कि मानव रूप में प्रकट हुवे। दक्षिण भारत में इन्हें उपेन्द्र के नाम से जाना जाता है।  इनके बड़े भाई विवस्वान, इन्द्र, वरुण, पूषा, अर्यमा, भग, धाता, पर्जन्य, अंशुमान, त्वष्टा  और मित्र थे। इस 145 वें पुष्प को उन्हीं भगवान श्री वामन को समर्पित।  ब्रह्मचारी बालक का वेष धारण किये हुवे मेखला, मृगचर्म, दण्ड, कमंडल एवं छत्र इत्यादि से सुशोभित हो रहे भगवान श्री वामन की इन्द्रादि समस्त देवताओं ने दर्शन कर महर्षियों के साथ स्तुति की - पीताम्बरोत्तरीयोऽसौ ,   मौञ्जीकौपीन -  धृग्धरि : ।  कमण्डलुं   च   दध्यन्नं ,   दण्डं   छत्रं   कर...

महावीर पराक्रमी सेनापति लाचित बरफुकन

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। हमारा  इतिहास साक्षी है कि विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा हमारे देश पर काफी आक्रमण किये गए और समय समय पर हमारे वीर योद्धाओं ने उनसे लोहा  भी लिया किन्तु आज भी कई ऐसे नाम हैं जो आमजन को ज्ञात ही नहीं है, आज इस 144 वें पुष्प में हम एक ऐसे वीर योद्धा की चर्चा कर रहे हैं, जिनकी वीरता के  कारण   मुग़ल  शासक  पूर्वोत्तर   भारत पर कब्ज़ा नहीं कर पाए थे, जिनका नाम लाचित बरफुकन है। असम में आज भी वहाँ के लोग तीन महान लोगों का बहुत ही सम्मान करते हैं, जिनमें प्रथम श्रीमंत शंकर देव जी जोकि पंद्रहवीं शताब्दी में वैष्णव धर्म के महान प्रवर्तक थे, द्वितीय लाचित बरफुकन जिन्हें लाचित बोरफूकन भी कहा जाता है, जोकि असम के सबसे वीर सैनिक माने जाते हैं और तृतीय लोकप्रिय गोपीनाथ जी बारदोलोई, जोकि स्वतंत्रता संघर्ष के समय अग्रणीय रहे थे। सन 1671 की सराईघाट की लड़ाई  लाचित बरफुकन की नेतृत्व क्षमता के कारण ही जानी जाती है, जिसमे मुग़ल सेना बुरी तरह से पराजित हुई थी।   ...

श्री अष्ट विनायक

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मेरा महान देश (विस्मृत संस्कृति से परिचय) में दुर्गा प्रसाद शर्मा, एडवोकेट, इंदौर का सादर अभिनन्दन। प्रथम पूज्य श्री गणेश जी का पूजन समस्त देवी देवता के पूजन में प्रथम रूप से किया जाता रहा हे, वैसे तो हमारे भारत देश में और भारत देश से बाहर भी श्री गणेश जी के कई मंदिर विद्यमान हैं, हमारे इंदौर शहर में ही श्री गणेश जी की एशिया की सबसे बड़ी प्रतिमा विराजमान है। यह स्थान श्री बड़ा गणपति के नाम से प्रसिद्द है किन्तु महाराष्ट्र के श्री अष्ट विनायक जोकि महाराष्ट्र  पृथक पृथक आठ स्थानों पर विराजमान हैं, उनका एक अलग ही महत्त्व है। कहा जाता है कि यह आठों ही स्थान काफी पौराणिक महत्त्व के हैं, जहाँ विराजमान श्री गणेश जी की प्रतिमाएं मानव निर्मित नहीं होकर स्वयंभू अर्थात स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाएं हैं। महाराष्ट्र के पुणे के आसपास स्थित यह आठों पावन स्थान की महाराष्ट्र में एक अष्ट विनायक तीर्थयात्रा भी होती है। श्री अष्ट विनायक के नाम से पृथक पृथक विराजमान आठ गणपति जी के क्रम में भी मत भिन्नता होने से उनके क्रम को भी पृथक पृथक बताया जाता है। आज इस 143 वें पुष्प को श्री अष्ट विनायक जी के श्री चरणों...