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Showing posts from October, 2021

करवा चौथ (करक चतुर्थी)

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सनातन हिन्दू धर्म में महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु के लिए रखे जाने व्रतों में से एक है कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी अर्थात करवा चौथ जिसे करक चतुर्थी भी कहते हैं , उत्सवी परम्परा के रूप में मनाया जाने वाला यह पर्व मध्य प्रदेश , राजस्थान , पंजाब,   हरियाणा , उत्तर प्रदेश सहित सम्पूर्ण देश में बड़े ही उत्साह   के साथ   मनाया जाता है। यह व्रत सौभाग्यवती ( सुहागिन ) महिलाएं अपने पति  की दीर्घायु और संकट से बचने  के लिए करती है , जोकि   प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से प्रारम्भ होकर रात्रि में चंद्र दर्शन और उसके पश्चात् भोजन से साथ संपन्न होता है। ग्रामीण से लेकर आधुनिक महिलाऑ तक सभी महिलाएँ करवा चौथ का व्रत बड़ी ही श्रद्धा एवं उत्साहपूर्वक रखती हैं। शास्त्रोक्त मतानुसार चंद्रोदय वाली चतुर्थी को ही यह व्रत होता है इस कारण कभी कभी उदयकालीन तृतीया तिथि को भी ( चंद्रोदय चतुर्थी तिथि में होने के कारण ) इस पर्व को मन...

महर्षि वाल्मीकि जी

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आदिकवि एवं रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का जन्म दिवस आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को माना जाता है। धर्म ग्रंथों एवं धार्मिक मान्यतानुसार महर्षि कश्यप जी और माता अदिति के नवम पुत्र प्रचेता के पुत्र महर्षि वाल्मीकि जी थे उनकी माता का नाम चर्षणी था और महर्षि भृगु इनके भाई थे, किन्तु बचपन में उन्हें एक निःसंतान भील स्त्री द्वारा चुरा लिया गया था और उस भील स्त्री ने बड़े ही प्रेमपूर्वक बालक रत्नाकर (वाल्मीकि जी का वास्तविक नाम) का लालन पालन किया। भीलनी के जीवनयापन का मुख्य साधन दस्यु कर्म था और वह लूटपाट आदि करते हुए बालक रत्नाकर का लालन पालन कर रही थी, जिसका प्रभाव  बालक रत्नाकर पर भी पड़ा और लूटपाट, हत्या को बालक रत्नाकर ने अपना कर्म बना लिया। जंगलों में ही निवास करते हुवे उन्होंने अपने जीवन का काफी समय बिताया और बड़े होकर एक कुख्यात डाकू रत्नाकर बने। युवावस्था में उनका विवाह भील समुदाय की ही एक कन्या के साथ संपन्न हुआ। विवाह उपरांत कई संतानों के पिता रत्नाकर ने संतानों के भरण पोषण के लिए पापकर्म को ही अपना जीवन मान लिया था। 

महाराज श्री अग्रसेन जी

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व्यापारियों  के गढ़ के नाम से प्रसिद्द अग्रोदय नामक राज्य जिसकी राजधानी अग्रोहा थी, वहां के महानतम राजा महाराज अग्रसेन जी का जन्म क्षत्रिय कुल में हुआ था। प्रचलित मान्यतानुसार खांडवप्रस्थ, वल्लभगढ़ और अग्रजनपद, वर्तमान में दिल्ली से आगरा, के सूर्यवंशीय महाराजा वल्लभसेन जी के ज्येष्ठ पुत्र महाराज अग्रसेन जी का जन्म द्वापरयुग के अंतिम चरण और कलियुग के प्रारम्भकाल में भगवान राम के पुत्र कुश की चौंतीसवी पीढ़ी में होना माना जाता है। यह भी मान्यता है कि उन्होंने अपनी पंद्रह वर्ष की आयु में पांडवो के पक्ष में महाभारत युद्ध में कौरव सेना के विरूद्ध युद्ध लड़ा था। महाराज श्री अग्रसेन जी बचपन से ही अपनी प्रजा में बहुत ही लोकप्रिय थे, वे एक धार्मिक, प्रजा वत्सल, हिंसा विरोधी, शांतिदूत तथा समस्त जीवों से प्रेम व स्नेह रखने वाले दयालु राजा थे, जिन्होंने क्षत्रिय कुल में जन्म लेकर वैश्य कार्य का वणिक धर्म अपनाया था। अग्रसेन जी महाराज के दो विवाह हुवे थे पहला नागराज की पुत्री माधवी से और दूसरा नागवंशी राजा की पुत्री सुन्दरवती से।

भक्त बामा खेपा

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भक्त बामा खेपा माता तारा के परम प्रिय भक्त रहे, उनका जन्म पश्चिम बंगाल के एक गांव में हुआ था। इनके जन्म के कुछ दिनों बाद ही इनके पिता का देहांत हो गया, माता गरीबी हालात में बच्चों के पालन पोषण में असमर्थ थी इस कारण उन्होंने अपने बच्चों को तारा शक्तिपीठ के पास ही रहने वाले अपने भाई के यहाँ भेज दिया था। मां के घर बच्चों के साथ बहुत अच्छा व्यव्हार नहीं होता था, इस कारण बालक बामाचरण की रूचि माता तारा शक्तिपीठ तथा गांव के श्मशान में आने वाले साधु संगति की ओर बढ़ने लगी। बालक बामाचरण माता तारा को बड़ी माँ और अपनी माँ को छोटी माँ कहा करते थे। बालक बामाचरण कभी श्मशान में जलती चिता के पास जाकर बैठ जाता, तो कभी ऐसे ही हवा में बातें करता हुआ युवावस्था में आ गया। बामाचरण की इस प्रकार की हरकतों के कारण उसका नाम बामाचरण से बामा खेपा पड़ गया, खेपा अर्थात पागल। गांव वाले बामाचरण को पागल समझते थे इस कारण उन्होंने उनके नाम के साथ उपनाम जोड़ दिया था, पर गांव वाले नहीं जानते थे उस उच्च कोटि के महामानव को।  

जगतजननी शक्ति देवी जगदम्बा का प्राकट्य

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शक्ति की उपासना, आराधना के नवरात्री के इन दिनों को जगतजननी जगदम्बा माँ दुर्गा की सेवा करते हुए शक्ति पर्व के रूप में मनाये जाने की परंपरा रही है।  नवरात्री के ये दिन माँ दुर्गा को सर्वाधिक प्रिय होते हैं।  पुरे वर्ष भर में चार नवरात्री के अवसर आते हैं जिनमे दो गुप्त नवरात्री कहे जाते हैं। सनातन धर्म को मानने वाले अधिकांश सनातनी शक्ति पर्व के रूप में मनाये जाने वाले नवरात्री के इन अवसरों पर शक्ति अर्जित करने के लिए माँ जगदम्बा की आराधना, सेवा, पूजा अपने अपने तरीके और परंपरा के अनुसार करते हैं, व्रत उपवास भी करते हैं।  माँ जगदम्बा के बारे में कुछ लिखने की मेरी सामर्थ्य तो नहीं है किन्तु महिषासुर के संहार के लिए देवी माँ जगदम्बा के प्राकट्य का विवरण जोकि हमारे पवित्र धार्मिक ग्रंथ श्री दुर्गा सप्तशती के द्वितीय अध्याय में उल्लेखित है, उसे आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ।   

श्राद्ध कर्म

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आज के समय में आमजन नित्य कर्म, श्राद्ध, तर्पण, पंचदेव पूजन, कुलदेवी पूजन इत्यादि सारे अनुष्ठानिक कर्म करना भूलते जा रहे हैं। भारतीय अपनी तुलना पाश्चत्य देशों से करते हैं, किन्तु यह सही नहीं है क्योंकि पृथ्वी पर भारत भूमि कर्म भूमि है तथा अन्यत्र भोग भूमि है। वहां अपने सुख दुःख भोगने के लिए के लिये जन्म लेते हैं और यहां कर्म करने के लिए। पद्मपुराण में श्री ब्रह्मा जी नारद जी से कहा है कि देवताओं की इस देवभूमि पर किये हुए कर्मों से ही कर्म फल निर्धारित होते हैं, यहाँ किये हुए कर्म के अनुसार ही आपका जन्म कहाँ, किस परिवार  में, किस कुल में होगा, आपको माता, पिता, पुत्र, पुत्री, पत्नी, मित्र, संबंधी कैसे मिलेंगे यह सब यही के कर्मों से निर्धारित होता है। आप अपने बच्चों को भले ही कितना भी पढ़ा लिखा दो किन्तु सनातनी हिन्दू होने के नाते उन्हें पंचदेव पूजन और श्राद्ध कर्म करना अवश्य सिखाओ, अपने और मामा पक्ष की दो चार पीढ़ियों के नाम भी बताओ। यदि आपको अपने कुल देवी देवता की जानकारी नहीं है तो कम से कम  पितृों का तो पता होगा, उन्हीं को प्रसन्न रखो आपकी आधी से ज्यादा समस्या तो समाप्त हो ...