श्राद्ध कर्म

आज के समय में आमजन नित्य कर्म, श्राद्ध, तर्पण, पंचदेव पूजन, कुलदेवी पूजन इत्यादि सारे अनुष्ठानिक कर्म करना भूलते जा रहे हैं। भारतीय अपनी तुलना पाश्चत्य देशों से करते हैं, किन्तु यह सही नहीं है क्योंकि पृथ्वी पर भारत भूमि कर्म भूमि है तथा अन्यत्र भोग भूमि है। वहां अपने सुख दुःख भोगने के लिए के लिये जन्म लेते हैं और यहां कर्म करने के लिए। पद्मपुराण में श्री ब्रह्मा जी नारद जी से कहा है कि देवताओं की इस देवभूमि पर किये हुए कर्मों से ही कर्म फल निर्धारित होते हैं, यहाँ किये हुए कर्म के अनुसार ही आपका जन्म कहाँ, किस परिवार  में, किस कुल में होगा, आपको माता, पिता, पुत्र, पुत्री, पत्नी, मित्र, संबंधी कैसे मिलेंगे यह सब यही के कर्मों से निर्धारित होता है। आप अपने बच्चों को भले ही कितना भी पढ़ा लिखा दो किन्तु सनातनी हिन्दू होने के नाते उन्हें पंचदेव पूजन और श्राद्ध कर्म करना अवश्य सिखाओ, अपने और मामा पक्ष की दो चार पीढ़ियों के नाम भी बताओ। यदि आपको अपने कुल देवी देवता की जानकारी नहीं है तो कम से कम  पितृों का तो पता होगा, उन्हीं को प्रसन्न रखो आपकी आधी से ज्यादा समस्या तो समाप्त हो जावेगी।  
श्राद्ध न करने पर पितृ अपने स्वजनों से नाराज और दुखी होकर उन्हें श्राप देते हैं, जो हमारी कुंडली में पितृ दोष, चांडाल योग, कालसर्प दोष, श्रापित दोष, मंगल आदि रूप में दिखाई देता है और जो श्राद्ध करता है, उसके विधान  को जानता है अथवा श्राद्ध करने की सलाह देता है तो उसे श्राद्ध का पुण्य फल मिलता है। इस कारण मनुष्य को श्राद्ध कर्म करना चाहिए जिससे वंश वृद्धि, बल, बुद्धि, घर में धन धान्य की वृद्धि, समाज में यश सम्मान की प्राप्ति आदि लाभ प्राप्त होते हैं। परिस्थिति ठीक नहीं हो तो भी अपनी परिस्थिति अनुसार श्राद्ध कर्म करने से पुण्य के साथ ही परिस्थिति भी सुधरेगी, श्राद्ध कर्म पूर्ण श्रद्धा के भाव होना चाहिए। अन्न वस्त्र के आभाव में शाक से भी कर्म किया जा सकता है और शाक की भी व्यवस्था न हो तो एक दिन की मजदूरी करे उस धन से भी श्राद्ध कर्म किया जा सकता है क्योंकि अतिश्रम के विशुद्ध धन से किया श्राद्ध लाख गुना फलदायी होता है। यदि व्यक्ति की मजदूरी नहीं करने की स्थिति हो तो हरी घास स्वयं काटकर श्राद्धकर्म के भाव से गाय को खिलाने से भी कर्म की पूर्णता की व्याख्या हमारे शास्त्रों में है।       

हिन्दू पंचाग के मान से भाद्रपद मास की पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर अश्विन मास की अमावस्या तक के सोलह दिन श्राद्ध पक्ष के होते हैं। ब्राह्मण भोजन के पहले पांच बली अवश्य करना चाहिए, जिसमें गोबली अर्थात गाय का भोजन पत्ते पर, श्वान बली अर्थात कुत्ते का भोजन पत्ते पर, काक बली अर्थात कौवे का भोजन जमीन पर, देवादि बली अर्थात देवों का भोजन पत्ते पर और पिपीलिका बली अर्थात चींटी का भोजन पत्ते पर विधिवत निकाल कर ही ब्राह्मण भोजन के लिए थाली या पत्तल लगानी चाहिये। अगर परिस्थिति ब्राह्मण भोजन की न हो तो गौ ग्रास निकाल कर गाय खिला देने मात्र से भी श्राद्ध हो जाता है। भविष्य पुराण में कहा गया है कि तुलसी से पिंडार्चन करने से पितृ प्रलयपर्यन्त तृप्त रहते हैं और तुलसी की गंध से प्रसन्न हो गरुड़ पर आरुढ़ हो विष्णुलोक जाते हैं।  भविष्यपुराण में बारह प्रकार के श्राद्धों का उल्लेख किया गया है, जो निम्नानुसार है -

प्रतिदिन किये जाने वाले श्राद्ध कर्म को नित्य श्राद्ध (1) कहा जाता है, किसी भी व्यक्ति की मृत्यु की वार्षिक तिथि पर किये जाने वाले श्राद्ध को नैमित्तिक श्राद्ध (2) कहा जाता है। किसी भी कामना के लिए किये जाने वाले श्राद्ध को काम्य श्राद्ध (3) कहा जाता है, तो किसी मांगलिक अवसर पर किये जाने वाले श्राद्ध को नान्दी श्राद्ध (4) कहते हैं। पितृ पक्ष, अमावस्या एवं तिथि पर किये जाने वाले श्राद्ध को पार्वण श्राद्ध (5) कहते हैं, इसी प्रकार से त्रिवार्षिक श्राद्ध जिसमे कि प्रेत पिंड को पितृ पिंड में सम्मिलन कराया जाता है उन श्राद्ध कर्म को सपिण्डन श्राद्ध (6) कहते हैं। पारिवारिक या स्वजातीय समूह में किये जाने वाले श्राद्ध को गोष्ठी श्राद्ध (7) कहते हैं। शुद्धि हेतु किये जाने वाले श्राद्ध कर्म को शुद्धयर्थ श्राद्ध (8) कहा जाता है, इसमें ब्राह्मण भोजन कराना आवश्यक होता है। षोडश संस्कारों के निमित्त किये जाने वाले श्राद्ध को कर्मांग श्राद्ध (9) कहा जाता है। देवताओं के निमित्त किये जाने वाले श्राद्ध को दैविक श्राद्ध (10) कहा जाता है, तो तीर्थ स्थानों पर किये जाने वाले श्राद्ध को हम यात्रार्थ श्राद्ध (11) कहते हैं तथा अपने स्वयं एवं पारिवारिक सुख-समृद्धि एवं उन्नति  लिए किये जाने वाले श्राद्ध कर्म को पुष्टयर्थ श्राद्ध (12) कहा जाता है।    

पितृ पक्ष पितृों के लिए पर्व का समय है, इसलिए प्रत्येक गृहस्थ को अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार उनके निमित्त श्राद्ध एवं तर्पण आदि अवश्य करना चहिये, ताकि सभी पर पितृों का आशीर्वाद और कृपा बनी रहे। सभी पितृ देव हम सभी की समस्त त्रुटियों के लिए हमें क्षमा करें और हम पर अपनी कृपा एवं आशीर्वाद सदैव बनाये रखें, उनको बारम्बार नमन।           

Comments

Popular posts from this blog

बूंदी के हाडा वंशीय देशभक्त कुम्भा की देशभक्ति गाथा

महाभारत कालीन स्थानों का वर्तमान में अस्तित्व

बुजुर्गों से है परिवार की सुरक्षा