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Showing posts from September, 2021

सरदार भगत सिंह

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सरदार भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1906 को एक सिख किसान परिवार में हुआ था।  उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। बचपन में बारह साल की उम्र में ही अमृतसर में हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बालमन पर गहरा प्रभाव डाला था, बारह मील पैदल चलकर वे जलियाँवाला बाग जा पहुंचे थे। भगत सिंह ने लाहौर के नॅशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। वर्ष 1922 में चौरी चौरा हत्याकांड के बाद गांधीजी द्वारा किसानों का साथ नहीं देने पर भगत सिंह काफी निराश हो गए और उसके बाद उनका अहिंसा पर से विश्वास उठ गया और सशस्त्र क्रांति से ही स्वतंत्रता प्राप्त हो सकती है, यह निश्चय कर लिया था। 

माता सीता द्वारा किया गया श्राद्ध कर्म

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कई बार हमारे मन में सवाल उठता है कि श्राद्ध क्या होते हैं, क्यों मानते हैं, कैसे मनाते हैं, यह कोई अन्धविश्वास है या इसका कोई शास्त्रीय आधार भी है। हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से आश्विन मास की अमावस्या तक के पखवाड़े के सोलह दिन पितृ पक्ष कहे जाते हैं, जिसमें सनातनी अपने पूर्वजों अर्थात पितरों को विशेष रूप से सम्मानपूर्वक याद कर उन्हें धन्यवाद और श्रद्धांजलि अर्पित कर उनके निमित्त ब्रह्मभोज आदि संपन्न करते हैं। सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्त्व माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि इस समय हमारे पूर्वज अपने वंशजों को आशीर्वाद देने आते हैं। पितृ पक्ष में मृत व्यक्ति का श्राद्ध करने से उन्हें आत्मिक शांति प्राप्त होती है और वे मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर हो जाते हैं।  श्राद्ध कर्म के बारे में हमारे धार्मिक ग्रंथो में भी काफी कुछ उल्लेख मिलता है, रामायण और महाभारत में भी इस संबंध में कई प्रसंग आये हैं।  उसी में एक प्रसंग त्रेता युग में माता सीता द्वारा राजा दशरथ जी को पिंड अर्पित करने और राजा दशरथ जी को आत्मिक शांति की प्राप्ति होने का भी एक प्रसंग आता है।...

अमर बलिदानी मुरारबाजी देशपाण्डे

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सत्रहवीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल में मराठा साम्राज्य के पुरंदर किले के सरदार थे अमर बलिदानी मुरारबाजी देशपाण्डे (Murarbaji Deshpande)। दिलेरखान के साथ हुवे युद्ध प्रसंग में मुरारबाजी देशपाण्डे को सदैव याद किया जायेगा। अमर बलिदानी मुरारबाजी देशपाण्डे के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है क्योंकि हमारे इतिहास में कई महान योद्धाओं को लुप्त कर दिया गया है, जब शिक्षा के समय इतिहास में उनके बारे में कुछ पढ़ाया ही नहीं जायेगा तो नव पीढ़ी को कैसे जानकारी होगी। उस समय मराठा साम्राज्य सम्पूर्ण भारत में फैला हुआ था,  मुरारबाजी देशपाण्डे का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिला स्थित महाड तालुका के किंजलोली गांव में हुआ था। प्रारंभ में मुरारबाजी जावली के चन्द्रराव मौर्य के साथ थे। छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा जावली को मराठा साम्राज्य में शामिल करने के लिए जावली पर आक्रमण के समय चन्द्रराव मौर्य के साथ मुरारबाजी ने जो पराक्रम दिखाया उससे प्रभावित होकर छत्रपति शिवाजी महाराज ने स्वराज्य रक्षा के लिए अपने साथ काम करने का प्रस्ताव रखा जिसे मुरारबाजी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया, जिससे ...

तारणहार प्रभु श्री कृष्ण

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भगवान श्री कृष्ण जी के चरित्र से कोई भी सनातन धर्म को मानने वाला सनातनी अनभिज्ञ नहीं है किन्तु कतिपय लोगों द्वारा उनके चरित्र को लेकर कई टीका टिप्पणी की जाती रही है और अपने हिसाब से उनके चरित्र की व्याख्या भी की जाती रही है। इस कार्य में जहां सनातन धर्म के विरोधियों के साथ ही कुछ टी वी सीरियल और फ़िल्मों का योगदान है वहीं कुछ कथाकारों ने भी अपनी कथाओं के माध्यम से वास्तविक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करते हुवे एक अलग ही काल्पनिक चरित्र का बखान सिर्फ अपनी कथा को रसीली बनाने के दुराशय से करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और योगिराज भगवान श्री कृष्ण जी के चरित्र को विकृत करके प्रस्तुत करने में लगे हुवे हैं। जबकि हमारे सनातन धर्म की सच्चाई हमारे धर्म ग्रंथों के माध्यम से आसानी से प्राप्त हो सकती है, जिससे उपरोक्तानुसार कतिपय लोगों द्वारा फैलाई गई भ्रांतियों को भी दूर किया जा सकता है। आइये हम हमारे धर्म ग्रंथों से प्राप्त जानकारी अनुसार तारणहार भगवान श्री कृष्ण जी के जीवन के बारे में जानने का प्रयास करते हैं।