राजमाता जीजा बाई


छत्रपति शिवाजी महाराज की पुण्यमयी माताजी जीजा बाई अपने बाल्यकाल से ही हिन्दू जाति के मान सम्मान  और गौरव की रक्षा के लिए सदैव समर्पित रही थी।  सोलहवीं सदी में सिंदखेड के यदुवंशीय देशमुख जाधवराव की पुत्री के रूप में जीजा बाई का जन्म हुआ था।  दक्षिण भारत में सतारा के राज्य संस्थापक सुजान सिंह मेवाड़ के महाराणा प्रताप के वंशज थे, जो कि भोसवंत या भौंसले कहलाया करते थे। इस  भौंसले वंश के मालोजी नामक सरदार बड़े ही वीर और पराक्रमी थे।  सिंदखेड के अधिपति जाधवराव से उनके काफी अच्छे सम्बन्ध थे।  एक बार होली के उत्सव पर मालोजी सिंदखेड में थे, जहां उन्होंने जाधवराव की छोटी पुत्री जीजा बाई को देखकर कहा कि यह तो मेरे पुत्र शाहजी की वधु होने योग्य है, जाधवराव जी की सहमति के बाद उस समय बचपन में ही जीजाबाई और शाहजी का विवाह हो गया था।  


दोनों घरानो के मधुर सम्बन्ध अधिक समय नहीं चल सके, दोनों घरानो की विपरीत विचारधाराओं ने दोनों के मध्य वैमनस्य उत्पन्न कर दिया।  शाहजहाँ उस समय दक्षिण भारत की ओर विजय यात्रा की तैयारी कर रहा था, जाधवराव मुगलों के पक्षधर थे और शाह जी भौंसले हैदराबाद के निजाम शाही की नौकरी करते थे और उनके लिए युद्ध भी लड़ते थे। इस कारण  दोनों परस्पर विरोधी हो गए थे।  एक बार जाधवराव शाहजी का पीछा कर रहे थे, तब शाहजी ने अपने एक मित्र की सहायता से शिवनेर के किले में जीजा बाई को सुरक्षित कर आगे बढ़ गए, उस समय जीजाबाई गर्भवती थी।  जब शिवनेर में जीजा बाई का अपने पिता से सामना हुआ तो वे उनसे बोली मैं इस समय आपकी दुश्मन हूँ, मेरे पति आपके बैरी हैं, वे आपके हाथ नहीं आये तो आप मेरे साथ जैसा व्यवहार करना चाहें कर सकते हैं।  तब जाधवराव ने जीजा बाई को समझा बुझा कर अपने साथ ले जाने का प्रयास किया तो पतिव्रता जीजा बाई ने अपने पिता के साथ जाने से स्पष्ट  इंकार कर कहा कि  आर्य नारी का धर्म अपने पति का अनुसरण करना है।  जाधवराव वहां से चले गए, किन्तु उनके इस कार्य को बादशाह ने राजद्रोह मानते हुवे उनका वध करवा दिया।  

समय आने पर शिवनेर दुर्ग में जीजा बाई ने शिवाजी महाराज को जन्म दिया।  अपने पुत्र शिवाजी के साथ जीजा बाई ने इस दुर्ग में तीन वर्ष बिताये।  जीजा बाई ने काफी कठिन परिस्थितियों में कठिनाइयों का सामना कर, कई यातनाओं को झेलकर शिवाजी महाराज का लालन पालन किया।  शिवाजी को स्वयं जीजा बाई ने ही शिक्षा प्रदान करते हुवे किसी प्रकार की कोई कमी नहीं छोड़ी।  उन्होंने बालक शिवाजी को लिखना पढ़ना, तीर चलाना, घुड़सवारी आदि सब में पारंगत कर दिया।  जीजा बाई शिवाजी महाराज के बाल सखाओं को अक्सर बुलाकर खेल खेल में ही कई प्रकार से शिक्षित करती और उन्हें पुरुस्कृत भी करती थी।  

अपनी माता जीजा बाई की देखरेख में ही बालक शिवाजी बाल्यकाल से ही अपने मित्रों की टोलियाँ बनाकर युद्ध युद्ध का खेल खेला करते थे।  उसके बाद माता जीजा बाई के आदेश से बालक शिवाजी ने छोटे छोटे गांवों पर हमला कर बीजापुर के सुल्तान को काफी परेशान कर दिया था।  जीजा बाई एक आदर्श माता थीं, वे समय, काल, परिस्थिति को देखते हुवे  बालक शिवाजी को धर्म सम्बन्धी गूढ़ तत्वों का भी ज्ञान देती रहती थी।  जीजा बाई को एक बात  का सदैव दुःख रहता था कि  उनके पति ने हिन्दू स्वराज्य के संकल्प का विचार ही नहीं किया,  इस संकल्प को वे अपने पुत्र शिवाजी के माध्यम से पूरा करना चाहती थी।  वे शिवाजी को रामायण और महाभारत का ज्ञान तो देती थी साथ ही महाराणा प्रताप सहित अन्य महापुरुषों की वीर गाथाएँ सुना कर बालक शिवाजी के मन में हिंदुत्व की भावनाएँ भी जाग्रत करती रहती थी।  दादोजी कोंडदेव को गुरु नियुक्त कर उन्होंने बालक शिवाजी को एक आदर्श हिन्दू संतान बना कर शस्त्र शिक्षा में भी पारंगत कराया।  जीजा बाई सदैव अपने पुत्र बालक शिवाजी से कहा करती थी कि  यदि तुम संसार में आदर्श हिन्दू बनकर रहना चाहते हो तो हिन्दू स्वराज्य की स्थापना करो और हिन्दू धर्म की रक्षा करो। शिवाजी महाराज ने अपनी सोलह वर्ष की आयु में पहला दुर्ग जीतकर अपना विजय अभियान प्रारम्भ किया।  

अपने पति शाहजी की मृत्यु होने पर जीजा बाई ने सती होना चाहा किन्तु शिवाजी महाराज ने उनसे आग्रह किया की माता आपके पवित्र आदेश  के बिना हिन्दू स्वराज्य की स्थापना नहीं हो सकेगा और धर्म पर विद्रोहियों का आघात पुनः शुरू हो जावेगा।  शिवाजी महाराज के इस प्रकार के आग्रह पर उन्होंने सती होने का विचार त्याग दिया। 

एक बार औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को कैद कर लिया था, बाद में कैद से निकलकर माता के दर्शन के लिए आ पंहुचे।  उस समय वे सन्यासी के वेश में थे और द्वार पर आकर उन्होंने भिक्षा मांगी।  माता ने आवाज़ से ही पुत्र को पहचाना और काफी प्रसन्न होकर बोली अब मुझे विश्वास हो गया है कि मेरा पुत्र हिन्दू स्वराज्य स्थापित करेगा।  हिन्दू पद पादशाही आने में अब विलम्ब नहीं होगा। शिवाजी महाराज ने भी अपनी माता जीजा बाई की इच्छानुसार ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी विक्रम संवत १७३१  ईस्वी सन १६७४ में विदेशी आतताइयों को परास्त करके माता जीजा बाई, गुरु दादोजी कोंडदेव और समर्थ गुरु रामदास जी की प्रेरणा से हिंदवी स्वराज हिन्दू पद पादशाही की स्थापना की।  

यह शिवाजी महाराज का अखण्ड भारत की स्थापना का ही एक प्रयास था, वे अखण्ड राष्ट्र की स्थापना का ध्येय लेकर चले थे।  उनके राज्य का विस्तार चार लाख वर्ग किलोमीटर था, शिवाजी ने २७६ युद्ध लड़े जिनमे से २६८ युद्धों में उन्हें विजयश्री प्राप्त हुई थी। छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन में जीजा बाई का अहम योगदान रहा है।  यही कारण है कि शिवाजी को याद करने के पहले उनकी माता जीजा बाई को याद किया जाता है।  उन्हीं के द्वारा बनाई गई नीतियों के अनुसार शिवाजी ने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की और वह हिन्दू साम्रज्य स्थापित करने में सफल हुऐ।  शिवाजी महाराज ने हमेशा अपनी सफलता का श्रेय अपनी माता जीजा बाई को ही दिया। 

हिन्दू स्वराज्य की देवी माता जीजा बाई ने भारत के एक बड़े भू भाग  पर हिन्दू स्वराज्य की स्वतंत्र पताका फहराती देखने के बाद ही अपनी देह का त्याग किया। इतिहास में जीजा बाई के इस योगदान को हिंदुस्तान कभी नहीं भुला पायेगा, उन्हें शत शत नमन।  

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