पंचाग की समझ अति आवश्यक


सनातन धर्म की रक्षार्थ हमें जागरूक होना होगा और हमारी नव पीढ़ी को भी जागरूक करना होगा।  इसके लिए जहाँ हमें अपने बच्चों को शुरू से ही संस्कारित करना होगा वहीं उन्हें बचपन से ही अपने धर्म के बारे में जानकारी भी देते रहना है।  बच्चों को जहाँ अपनी परम्परा और रीती रिवाजों से अवगत कराते हुवे अपने धर्म के प्रति उनमें बचपन से ही रुझान बना रहे इस बारे में भी हमें प्रयास करना होगा।  आज पाश्चत्य संस्कृति के प्रति आकर्षित होकर हम उसका अनुसरण करते जा रहें हैं, उस पर भी हमें रोक लगानी होगी।  आज पाश्चत्य संस्कृति के प्रति आकर्षित होकर हम अपनी संस्कृति और अपनी मर्यादाएं भूलकर फूहड़ता और अश्लीलता की ओर बढ़े चले जा रहे हैं, जिसमें सबसे ज्यादा ख़राब स्थिति आये दिन पाश्चत्य संस्कृति अनुसार विभिन्न प्रकार के डे अर्थात दिवस मनाने से हो रही है। इसमें प्रमुख हैं 31 दिसंबर, न्यू ईयर डे, वैलेंटाइन डे की आड़ में पूरा सप्ताह कोई न कोई डे मनाने के तरीकों से हमारे धर्म और संस्कृति  को हम कितना नुकसान पंहुचा रहे हैं, कितना धर्म के विपरीत आचरण हमारे द्वारा किया जा रहा है।  हमारे सनातन धर्म में जो व्यवस्थाएं है उनका यदि हम अध्धयन करें तो हम अपनी परम्परा अनुसार शालीनता के साथ भी पर्व, दिवस आदि मना सकते हैं।  इसके लिए आवश्यक है कि हम सभी के घरों में हिन्दू पंचाग होना चाहिए और पंचाग का उपयोग करना भी आना चाहिए।


हमें सनातन धर्म का पालन करते हुवे मर्यादा पूर्वक सनातन पर्व, दिवस, जयंतिया आदि  मना  सकते है, हमारा यह छोटा सा प्रयास अपनी संस्कृति से पुनः जुड़ने और नव पीढ़ी के ज्ञान अर्जन के लिए अत्यंत ही सहायक होगा। अंग्रेजों ने हमारे धर्म की आलोचना करते हुए तथा ढोंग बताकर यह प्रचारित किया था कि ये हिन्दू लोग एक साल में इतने अधिक व्रत पर्व क्यों और कैसे मानते हैं, जिस पर हमारी उदासीनता का लाभ उठाकर उन्होंने अपने हिसाब से हमारे पर्वों का स्वरुप बदल कर एवं कुछ विकृति समाविष्ट कर काफी सारे डे घोषित कर मनाने लगे और हम भी अपने पर्वों को भूलकर उन अंग्रेजों के डे को मनाने लग गए, जबकि हमनें यह नहीं सोचा कि  हमारे सनातन धर्म में पहले से ही श्रेष्ठ व्यवस्थाए विध्यमान हैं जिनसे हम विमुख हो कर कहाँ जा रहे हैं । 

हमारे सनातन धर्म में लगभग हर डे का विकल्प विद्यमान है फिर अंधानुकरण क्यों। रक्षाबंधन है तो सिस्टर्स डे क्यों, भाईदूज है तो ब्रदर्स डे क्यों, धन्वंतरि जयंती है तो डॉक्टर्स डे क्यों, कौमुदी महोत्सव है तो वेलेंटाइन डे  की जरुरत ही नहीं है, मातृ नवमी को मदर्स डे  के रूप में मनाया जा सकता है, विश्वकर्मा जयंती है तो प्रद्योगिकी अर्थात इंजीनियर्स डे की कोई जरुरत ही नहीं है, संतान सप्तमी को हम चिल्ड्रन डे  में मना सकते है,  गुरुपूर्णिमा है तो टीचर्स डे  क्यों, आंवला नवमी या तुलसी विवाह ही हमारे पर्यावरण दिवस हैं। नवरात्री स्त्रियों के नवरूप  और कंजिका भोज डाटर्स डे के रूप में मनते ही हैं। नारद जयंती ब्रह्मांडीय पत्रकारिता दिवस से बढ़कर है क्या, पितृपक्ष में तो हम सात पीढ़ी के पितृ को याद करते हैं।  गुड़ी पड़वा पर नव संवत्सर है तो न्यू ईयर की क्या आवश्यकता  है।

हमें अपनी जड़ों की और लौटना होगा, हमारे वेद, शास्त्र, और देवभाषा संस्कृत को अंगीकार करना होगा सनातन भाव को स्वीकार करना होगा, हमारे पर्वतों नदियों को सुरक्षित रखना होगा।  अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत  कर सनातन धर्म के मूल में लौटना होगा।  अपने पर्वों,  त्योहारों और मौसम संबंधित जानकारियों को जानना और समझना अत्यंत ही आवश्यक है। नियमित रुप से पंचाग का अध्ययन कर दिन, तिथि, मिति, पक्ष, योग, नक्षत्र, राशि, धार्मिक व्रत पर्व उत्सव आदि की जानकारी स्वयं को तो रखनी ही है अपने परिवार और बच्चो को भी बताते रहना होगी साथ ही हमें हमारे सभी पर्व उत्सव त्यौहार को परंपरागत रूप से मानते हुवे अपने बच्चो को भी इससे अवगत कराना आज की प्राथमिकता है।  






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