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Showing posts from August, 2022

नारी धर्म की शिक्षा

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भारतवर्ष में प्रत्येक माता पिता अपनी पुत्री को विवाहोपरांत इस भावना के साथ अपने घर से विदा करते रहे हैं कि  उसका जीवन और भविष्य सुखमय एवं समृद्धिशाली बने तथा ससुराल में उसे सुयश की प्राप्ति हो। उस समय उसे  दी गई शिक्षा अत्यंत ही मार्मिक और महत्वपूर्ण होती थी, जो आज के समय में भी उतना ही महत्त्व रखती है जितना कि प्राचीन समय में रखती थी। रामचरित मानस शिक्षा की दृष्टी से अनुपम ग्रन्थ है। मानस के प्रत्येक पात्र कुछ न कुछ जीवनोपयोगी शिक्षा अवश्य देते हैं। रामचरित मानस में नारी शिक्षा सम्बन्धी सूत्र प्रारम्भ से अंत तक विध्यमान हैं। बालकाण्ड के प्रारम्भ में सती शिरोमणि पार्वती जी का चरित्र यह शिक्षा देता है कि पतिप्रेम में नारी की अचल निष्ठां होनी चाहिए। विवाह के पूर्व जब सप्तर्षि पार्वती जी की परीक्षा लेने जाते हैं, तब वे शिव जी के चरित्र में नाना प्रकार के दोष बतलाकर उनसे सकल गुणराशि भगवान विष्णु जी से विवाह करने का आग्रह करते हैं किन्तु पार्वती जी तो मन ही मन महादेव जी के चरणों में स्वयं को समर्पित कर चुकी थी तो गुण दोष के विचार करने का तो प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता है, उनका शिव ...

क्रान्तिकारी रानी गाईदिन्ल्यू

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झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के ही समान वीरतापूर्ण कार्य करने के लिए रानी गाईदिन्ल्यू को नागालैण्ड की रानी लक्ष्मीबाई कहा जाता है। रानी गाईदिन्ल्यू भारत की नागा आध्यात्मिक एवं राजनैतिक नेत्री के साथ ही भारत की प्रसिद्द महिला क्रांतिकारियों में से एक रही थी। मणिपुर में तमेंगलोंग जिले के नुंगकाओ गांव में जन्मी रानी गाईदिन्ल्यू ने भारत की स्वतंत्रता के लिए  नागालैण्ड में क्रांतिकारी आंदोलन चलाते हुवे ब्रिटिश शासन के विरूद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया था। नागा जनजाति में जन्मी रानी गाईदिन्ल्यू की शिक्षा भारतीय परम्परा के अनुसार हुई, वे बचपन से ही बड़े स्वतंत्र और स्वाभिमानी स्वभाव की रही। तेरह वर्ष की आयु में ही वे नागा नेता जादोनाग के संपर्क में आई थी, जादोनाग हेराका आंदोलन के माध्यम से मणिपुर में नागा राज स्थापित करने और यहाँ से अंग्रेजों को निकाल कर बाहर करने के प्रयास में लगे हुवे थे। जादोनाग अपने आंदोलन को क्रियात्मक रूप दे पाते उसके पहले ही उन्हें गिरफ्तार करके अंग्रेजो ने उन्हें फांसी दे दी थी।  

बूंदी का तीज महोत्सव

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राजस्थान के बूंदी जिले में रियासत काल से ही तीज उत्सव बड़ी ही धूमधाम से और उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि जिसे कजरी तीज भी कहते है, इस दिन बूंदी में तीज की भव्य सवारी निकाली जाती है। पहले राजघराने की तीज की प्रतिमा की सवारी राजमहलों में ही निकाली जाती थी, राजघराने द्वारा तीज की प्रतिमा नहीं दिए जाने के कारण तीज की दूसरी प्रतिमा निर्मित कराकर आम जनता के दर्शनार्थ सवारी निकालने की परम्परा बनी थी, उसके काफी समय बाद जिला प्रशासन के विशेष अनुरोध और आश्वासन के बाद राजघराने की तीज की भी सवारी निकाली जाने लगी। रियासत काल में इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों के साथ मदमस्त हाथियों का युद्ध भी होता था। इस दिन तीज का व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है। कहा जाता है कि 108 जन्म लेने के बाद देवी पार्वती की निस्वार्थ भक्ति से प्रसन्न होकर देवी पार्वती को भगवान शिव ने पत्नी रूप में स्वीकार किया था।  सुहागिन महिलाऐं अपने पति की लम्बी आयु और सुखी वैवहिक जीवन के लिए इस व्रत को करती हैं तथा अविवाहित कन्याएँ मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए यह व्रत रख...