क्रान्तिकारी रानी गाईदिन्ल्यू

झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के ही समान वीरतापूर्ण कार्य करने के लिए रानी गाईदिन्ल्यू को नागालैण्ड की रानी लक्ष्मीबाई कहा जाता है। रानी गाईदिन्ल्यू भारत की नागा आध्यात्मिक एवं राजनैतिक नेत्री के साथ ही भारत की प्रसिद्द महिला क्रांतिकारियों में से एक रही थी। मणिपुर में तमेंगलोंग जिले के नुंगकाओ गांव में जन्मी रानी गाईदिन्ल्यू ने भारत की स्वतंत्रता के लिए  नागालैण्ड में क्रांतिकारी आंदोलन चलाते हुवे ब्रिटिश शासन के विरूद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया था। नागा जनजाति में जन्मी रानी गाईदिन्ल्यू की शिक्षा भारतीय परम्परा के अनुसार हुई, वे बचपन से ही बड़े स्वतंत्र और स्वाभिमानी स्वभाव की रही। तेरह वर्ष की आयु में ही वे नागा नेता जादोनाग के संपर्क में आई थी, जादोनाग हेराका आंदोलन के माध्यम से मणिपुर में नागा राज स्थापित करने और यहाँ से अंग्रेजों को निकाल कर बाहर करने के प्रयास में लगे हुवे थे। जादोनाग अपने आंदोलन को क्रियात्मक रूप दे पाते उसके पहले ही उन्हें गिरफ्तार करके अंग्रेजो ने उन्हें फांसी दे दी थी।  
जादोनाग के बाद उनके द्वारा चलाये जा रहे आंदोलन की बागडोर बालिका गाईदिन्ल्यू के हाथों में आ गई, उन्होंने अपने समाज के लोगों को समझाया कि धर्म को खो देना अपनी संस्कृति को खो देना है और संस्कृति खोना यानि अपनी पहचान खोना है, इसलिए अंग्रेजो के कहने में आकर धर्म परिवर्तन नहीं करें। ब्रिटिश सरकार के द्वारा थोपे गए अमानवीय नियमों को नहीं मानने एवं करों को नहीं चुकाने की बात पर भी उनके कबीले वाले एकजुट हो गए और कर देने से मना कर दिया। जादोनाग को फांसी दिए जाने से लोगों में असंतोष तो था ही गाईदिन्ल्यू की निर्भयता और तेजस्वी व्यक्तित्व कारण जनजातीय लोग उन्हें सर्वशक्तिशाली देवी मानने लगे। सोलह वर्ष की आयु में उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया था उनके पास केवल चार हजार सशस्त्र नागा सिपाही थे।गाईदिन्ल्यू गुरिल्ला युद्ध और शस्त्र संचालन में निपुण थी फिर भी बन्दूक के सामने भाले और तीर कमान कमजोर पड़ गए, इस कारण गाईदिन्ल्यू अण्डरग्राउण्ड हो गई। जनता उन्हें उद्धारक मानती थी तो अंग्रेज उन्हें बड़ी खूंखार नेता मानते थे, इसलिए अंग्रेजो ने उन्हें खोजना शुरू कर दिया।      

रानी गाईदिन्ल्यू द्वारा चलाये जा रहे आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजो ने वहां के कई गांवों को जला कर राख कर दिए किन्तु लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ। सशस्त्र नागा सिपाहियों ने एक दिन खुले आम सरकारी चौकी पर हमला कर दिया जिससे बौखलाकर अंग्रेज सरकार  ने कैप्टन मैकडोनाल्ड को गाईदिन्ल्यू को पकड़ने के लिए भेजा। किसी मुखबिर से कैप्टन को सुचना मिली कि गाईदिन्ल्यू और उनके साथी पुलोमी गांव में छिपे हैं तो उन्होंने वहाँ हमला बोल दिया। गाईदिन्ल्यू और उनके साथियों को गिरफ्तार कर पहले कोहिमा और बाद में इम्फाल ले जाया गया, जहाँ हत्या और हत्या की साजिश का आरोप लगा कर उम्रकैद की सजा सुनाकर उन्हें जेल में डाल दिया गया। उनके अधिकतर साथियों को भी मौत की सजा सुना दी गई या उन्हें भी जेल में डाल दिया गया। चौदह वर्ष जेल में बिता कर 1947 में देश के स्वतंत्र होने पर ही वे जेल से बाहर आ सकी। 

गाईदिन्ल्यू की गिरफ्तारी और उनके साथियों की मृत्यु के बाद उनके आंदोलन भी लगभग समाप्त ही हो गया था 1952 में उन्हें अपने गांव में वापस लौटने की अनुमति मिली थी। रानी गाईदिन्ल्यू ने अपने लोगों के लिए काम जारी रखा।  आजाद भारत में वे नागा नॅशनल काउन्सिल के खिलाफ थी क्योंकि वे नागाओं के लिए अलग देश की मांग कर रहे थे। रानी गाईदिन्ल्यू ने भारत में ही अलग क्षेत्र की मांग की जिससे उनका भारी विरोध हुआ और वे फिर से अंडरग्राउंड हो गई, इसी बीच उनके समर्थकों ने कई नागा लीडरों की हत्या कर दी। सन 1966 में भारत सरकार से बातचीत के बाद रानी गाईदिन्ल्यू ने अहिंसा का मार्ग छोड़ने का निर्णय लेकर शांतिपूर्वक अपने कार्यों  को अंजाम देना प्रारम्भ किया। आजादी के कई वर्षों बाद उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मानकर स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रधानमंत्री की ओर से ताम्रपत्र प्रदान कर सम्मानित किया तथा 1982 में राष्ट्रपति द्वारा पद्मभूषण से उन्हें सम्मानित किया गया। रानी गाईदिन्ल्यू का निधन दिनांक 17 फरवरी 1993 को हुआ।  क्रन्तिकारी रानी गाईदिन्ल्यू को शत शत नमन - दुर्गा प्रसाद शर्मा                                                                               

Comments

Popular posts from this blog

बूंदी के हाडा वंशीय देशभक्त कुम्भा की देशभक्ति गाथा

महाभारत कालीन स्थानों का वर्तमान में अस्तित्व

बुजुर्गों से है परिवार की सुरक्षा