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Showing posts from November, 2021

जीवन संगिनी साथ है तो सब सुख है

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पति पत्नी का सम्बन्ध ही कुछ इस प्रकार का है कि कुछ खट्टी तो कुछ मीठी नोक झोक वाली बातें होना एक आम बात होती है। लेकिन कहते है न कि जब जो हमारे पास होता है तब हमें उसकी कीमत मालूम नहीं पड़ती कीमत मालूम पड़ती है उसके चले जाने के बाद। प्रेम और लड़ाई तो अक्सर होती ही रहती है किन्तु कई बार यह भी देखा गया कि छोटी छोटी सी बात पर हम अपनी पत्नी पर निर्भर होकर उसे बेवजह काफी परेशान करते हैं। कई बार उसे तानों और उलाहनों का भी सामना करना पड़ता है और वह अपने कर्तव्य और प्रेम के वशीभूत होकर सब कुछ नजर अंदाज का सहन कर जाती है आपकी किसी बात का बुरा नहीं मानती है और समर्पित भाव से अपनी चिंता किये बगैर घर की साल संभाल में लगी रहती है।  सुबह उठने से लेकर रात सोने तक आपके और आपके घर के कामों लगी रहने के बाद उसके आराम के वक्त भी उसे किसी काम के बारे में बोल दिया जाता है, जिसे भी वह सहर्ष कर दिया करती है। वह भी मान सम्मान की अपेक्षा रखती है वह भी चाहती है कि उसे भी कोई सहयोग करे। 

भक्तशिरोमणि श्री नामदेव जी

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भक्त शिरोमणि श्री नामदेव जी का जन्म कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को माना जाता है। महाराष्ट्र के सतारा जिले में कराड के पास नरसी वामनी नामक ग्राम में नामदेव जी का जन्म हुआ था किन्तु कुछ लोग मराठवाड़ा के परभणी और कुछ पंढरपुर को इनका जन्म स्थान मानते हैं।  इनकी माता जी का नाम गोनई था और पिताजी दामासेठ था।  भक्त नामदेव के पिताजी दामा सेठ अपना पारम्परिक रूप से दर्जी का कार्य किया करते थे और भगवान विट्ठल के परम भक्त थे। नामदेवजी को भगवन्नाम स्मरण और भगवान विट्ठल की सेवा विरासत में प्राप्त हुई थी। बचपन में भगवान विट्ठल के नाम का जयकारा लगाना ध्यान करना नामदेव जी का नित्य कर्म था।  भगवान विट्ठल की सेवा में लीन नामदेव जी आठ वर्ष की आयु में भगवान को अपने हाथों से नैवैद्य खिलाने और दूध पिलाने लगे थे, वे भगवान विट्ठल की मूर्ति के समक्ष दूध और नैवैद्य लेकर बैठ जाते थे और भगवान से कहते थे कि आप भोग लगाओ नहीं तो मैं भी नहीं खाऊंगा। बालक नामदेव के इस प्रकार से आग्रह करने पर भगवान को भी विवश होकर पाषाण मूर्ति से निकल कर बाहर प्रकट होकर दूध और नैवैद्य का भोग लगाना पड़ता था। माताज...

भक्तिमती कर्माबाई

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भगवान का जहाँ भी नाम आता है उनके साथ ही साथ उनके भक्तों का भी नाम आ ही जाता है। भगवान और भक्त का एक ऐसा रिश्ता होता है जिसका न तो कोई नाम होता है और न ही कोई तुलना होती है। भगवान श्री जगन्नाथ जी और उनके धाम परम पावन पुरी धाम के बारे में सभी को जानकारी है और भगवान श्री जगन्नाथ जी के भक्तगण भक्तिमती कर्माबाई से अनभिज्ञ नहीं है, भगवान के कई भजनों और प्रार्थना, स्तुतियों में भी अनायास कर्मा देवी के नाम का स्मरण हो जाता है तो कई बार भगवान को ताने उलाहने देने के लिए भी कर्मादेवी का नाम लिया जाता है, एक भजन के तो यहाँ तक कह दिया कि कर्माबाई कंई थारी मासि लागे जा घर खिचड़ो खायो रे ।

धन तेरस (धन त्रयोदशी)

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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस या धन त्रयोदशी कहा जाता है। यमराज जी और कुबेर देव  की पूजा तो इस दिन की ही जाती है किन्तु समुद्र मंथन के समय समुद्र से अमृत कलश लेकर भगवान धन्वन्तरि जी के प्रकट होने के कारण इस दिन को भगवान धन्वन्तरि जी के प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान धन्वन्तरि जी देवताओं के चिकित्सक भी माने जाते हैं इस कारण इन्हें चिकित्सा के देवता भी कहा जाता है और समस्त चिकित्स्कों के लिए धन तेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। भारत सरकार ने भी धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। भगवान महावीर स्वामी जी द्वारा इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने हेतु योग निरोध करते हुवे दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त किया होने के कारण तभी से इस दिन को जैन समाज द्वारा धन्य तेरस और ध्यान तेरस के नाम से मनाने की परम्परा चली आ रही है।