भक्तिमती कर्माबाई
भगवान का जहाँ भी नाम आता है उनके साथ ही साथ उनके भक्तों का भी नाम आ ही जाता है। भगवान और भक्त का एक ऐसा रिश्ता होता है जिसका न तो कोई नाम होता है और न ही कोई तुलना होती है। भगवान श्री जगन्नाथ जी और उनके धाम परम पावन पुरी धाम के बारे में सभी को जानकारी है और भगवान श्री जगन्नाथ जी के भक्तगण भक्तिमती कर्माबाई से अनभिज्ञ नहीं है, भगवान के कई भजनों और प्रार्थना, स्तुतियों में भी अनायास कर्मा देवी के नाम का स्मरण हो जाता है तो कई बार भगवान को ताने उलाहने देने के लिए भी कर्मादेवी का नाम लिया जाता है, एक भजन के तो यहाँ तक कह दिया कि कर्माबाई कंई थारी मासि लागे जा घर खिचड़ो खायो रे।
वात्सल्य और भक्तिप्रिय कर्माबाई पुरी में ही निवास करती थी। ऐसा कहा जाता है कि कर्माबाई प्रतिदिन नियमपूर्वक प्रातःकाल स्नानादि किये बिना ही खिचड़ी तैयार करके भगवान को अर्पित करती थी और प्रेम के वश में रहने वाले भगवान श्री जगन्नाथ जी भी प्रतिदिन सुन्दर सलोने बालक श्यामसुन्दर के वेश में कर्माबाई के घर आकर कर्माबाई की गोद में बैठकर खिचड़ी खा जाते थे। कर्माबाई को केवल यही चिंता रहती थी कि बच्चे के भोजन में कभी किसी प्रकार का विलम्ब न हो, इसी कारण से कर्माबाई किसी भी प्रकार के विधि विधान में पड़े बिना अत्यंत ही प्रेमपूर्वक नित्य प्रातःकाल को खिचड़ी तैयार कर लिया करती थी।
एक दिन कर्माबाई के घर एक साधु महाराज का आगमन हुआ और उन्होंने देखा कि कर्माबाई ने स्नानादि किये बिना ही खिचड़ी तैयार की और भगवान को अर्पित कर दी, कुछ ही देर में बालक श्यामसुन्दर का आगमन हुआ और वह खिचड़ी खाकर चला गया। साधु महाराज को कुछ ठीक नहीं लगा और उन्होंने कर्माबाई को समझाया कि भगवान को स्नानादि के बिना तैयार भोजन अर्पित नहीं करना चाहिये और उन्होंने कर्माबाई को पवित्रता से भोजन तैयार करने के बारे में उपदेश किया।
कर्माबाई ने दूसरे दिन साधु महाराज के बताये अनुसार कार्य किया किन्तु उस तरह से कार्य करने के कारण कर्माबाई को खिचड़ी तैयार करने में विलम्ब हो गया। विलम्ब होने के कारण कर्माबाई को बड़ा दुःख भी हुआ कि आज मेरा प्रिय श्यामसुन्दर भूख से छटपटा रहा होगा। उस दिन कर्माबाई ने बड़े ही दुखी मन से श्यामसुन्दर को खिचड़ी खिलाई। उस दिन विलम्ब हो गया था और मंदिर में भी भोग प्रसादी का समय हो गया था तब मंदिर में पुजारीयों द्वारा अनेकानेक घी, दूध, मेवा आदि से निर्मित स्वादिष्ट पकवान निवेदित करते हुवे प्रभु का आव्हान किया तो प्रभु कर्माबाई के घर खिचड़ी खाते ख़ाते ही बिना मुँह साफ कराये ही मंदिर पहुँच गए।
प्रभु के मुख पर खिचड़ी लगी देख पुजारी को बड़ा ही आश्चर्य हुआ, वह भी एक भक्त था उसे विचार आया कि मेरे द्वारा लगाए भोग में क्या त्रुटि रह गई जो प्रभु ने कहीं ओर भोजन किया। पुजारी ने अत्यंत ही क़ातर भाव से प्रभु से जानना चाहा तो उत्तर मिला कि मुझे खिचड़ी अति प्रिय है और कर्माबाई प्रतिदिन सुबह जल्दी खिचड़ी बनाती है तो मैं प्रतिदिन वहाँ खिचड़ी खाने जाता हूँ किन्तु आज किसी साधु ने कर्माबाई को स्नानादि करने के बाद खिचड़ी बनाने को कह दिया इस कारण से देर हो गई और शीघ्रता से यहाँ आने के लिए मुझे झूंठे मुँह ही आना पड़ा।
प्रभु की बात सुनकर पुजारी जी ने उन साधु की खोज करके सारी बात उन्हें बताई तो वे साधु महाराज भी घबरा गए तथा उनके द्वारा बताये कार्य से भगवान को हुवे कष्ट के निवारण के लिए तुरंत कर्माबाई के पास पहुंचे और उन्होंने कर्माबाई को पूर्वानुसार ही बिना किसी नियम का पालन करते हुवे अपना कार्य करते रहने का निवेदन किया ताकि भगवान को भोजन करने में किसी प्रकार का विलम्ब नहीं हो। साधु महाराज की बात से कर्माबाई को भी बड़ी प्रसन्नता हुई क्योंकि उन्हें भी लगा कि अब श्यामसुन्दर के भोजन में किसी प्रकार का कोई विलम्ब नहीं होगा और कर्माबाई पूर्वानुसार ही समय पर प्रतिदिन भगवान को खिचड़ी खिलाने लगी।
कहते है कि अपने जीवन पर्यन्त कर्माबाई भगवान को खिचड़ी खिलाती रही और भगवान भी खाते रहे। इसी प्रकार से भगवान की सेवा करते करते ही अपनी आयु पूर्ण कर कर्माबाई ने परमात्मा के पवित्र और आनदमय धाम को प्राप्त किया। कर्माबाई तो रही नहीं किन्तु उनकी गाथा आज भी कही जाती है और याद की जाती है। कर्माबाई और उनकी खिचड़ी के प्रति भगवान के प्रेम के कारण आज भी पुरी के श्री जगन्नाथ धाम में प्रतिदिन प्रातःकाल खिचड़ी का भोग भगवान श्री जगन्नाथ जी को लगाया जाता है। श्री जगन्नाथ प्रभु जी के श्री चरणों में दंडवत - दुर्गा प्रसाद शर्मा।
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